केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले सप्ताह नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) खरीदने के लिए 1009 करोड़ रुपए देने का फैसला किया था। ताकि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कुछ मशीनों को रिप्लेस किया जा सके। अब चुनाव आयोग तकनीक का इस्तेमाल कर ईवीएम को और प्रभावी बनाना चाहता है। आयोग ने रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए 25 करोड़ रुपए का बजट दिया है। चुनाव आयोग चाहता है कि नई ईवीएम में ‘बैलट यूनिट के साथ वोटर की तस्वीर लेने के लिए कैमरा’ भी लगा हो। पिछले सप्ताह, चुनाव आयोग ने इस संबंध में टेंडर जारी कर ”प्रोडक्ट डिजाइन, प्रोडक्ट इंजीनियरिंग और संबंधित सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की क्षमताओं वाली रिसर्च एंड डेवलपमेंट संस्थाओं” से ‘भविष्य की ईवीएम मशीनों जिनमें वोटिंग तकनीक के विकल्प हों” तथा वर्तमान ईवीएम में और बेहतरी के लिए निविदाएं मंगाई हैं। आयोग ने नई संस्था या व्यक्ति के चुनाव, जो कि नई ईवीएम को डिजाइन करेगा, के लिए तीन-छह माह का समय खुद को दिया है।
इसके अलावा चुनाव आयोग जिन पहलुओं पर गौर कर रहा है, उनमें ईवीएम में लाइट-वेट कॉम्पैक्ट वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT), जिससे वोटर यह पुष्टि कर सकेगा कि उसका वोट सही से पड़ा है या नहीं। VVPAT को बैलट यूनिट से जोड़ा जाना है और ‘बैलट यूनिट, VVPAT यूनिट और कंट्रोल यूनिट को जोड़ने’ के लिए ऑप्टिकल फाइबर तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।
चुनाव आयोग के टेंडर में इसके पीछे का कारण भी बताया गया है। आयोग को उम्मीद है कि नई ईवीएम ‘लागत घटाने’, ‘वजन कम करने’, ‘वोटरों का अनुभव बेहतर करने’ तथा आसानी से फील्ड में काम करने लायक होंगी। ईवीएम मशीनों का पहली बार नवंबर, 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 16 विधानसभाओं में किया गया था। तब से अब तक ईवीएम में कोई खास बदलाव नहीं आया है, सिवाय 2013 में VVPAT लागू करने के।
समय-समय पर ईवीएम में खराबी के आरोप लगाए जाते रहे हैं। 2009 के आम चुनावों के बाद, दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव उमेश सहगल ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर दावा किया था कि उनके द्वारा विशेषज्ञों की मदद से किए गए शोध में पता चला है कि ईवीएम से छेड़छाड़ ‘मुमकिन’ है। इस पर अायोग ने कहा था कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हो सकती।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से