नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना वायरस के बढ़ते कहर को देखते हुए इसे आधिकारिक तौर पर महामारी घोषित किया जा चुका है। कोरोना के खौफ ने 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू की यादें ताजा कर दी हैं। 1918 में जब पूरी दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के बाद के हालात से उबरने की कोशिश कर रही थी, उसी समय स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दी थी।
प्रथम विश्व युद्ध में जितने लोग मारे गए, स्पेनिश फ्लू ने उससे दो गुना लोगों को अपना शिकार बनाया। बताया जाता है कि उस दौरान दुनियाभर में करीब 5 करोड़ से 10 करोड़ लोग मारे गए थे। यही नहीं, इसे मानव इतिहास की सबसे भीषण महामारियों में से एक माना गया था। ऐसा बताया जाता है कि स्पेनिश फ्लू ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के दादा को भी अपना शिकार बनाया था। कोरोना और स्पेनिश फ्लू में तुलना इसलिए की जा रही है क्योंकि दोनों महामारियों ने लोगों को अंदर से हिला दिया।
स्पेनिश फ्लू का केंद्र स्पेन था। यह 1918 का समय था जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। तीन देशों- अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में इस फ्लू ने दस्तक दे दी थी। बाद में स्पेन भी इससे अछूता नहीं रहा, लेकिन समाचार पत्रों और दूसरे माध्यमों के जरिए इसे छिपाया गया, जिससे इसे संभाला जा सके। लौरा स्पिननी ने ‘द गार्जियन’ के एक हालिया लेख में इसकी जानकारी दी। स्पेन इस मामले में तटस्थ था, इसलिए इसने अपने प्रेस को सेंसर नहीं किया। फ्लू की ‘रिपोर्ट’ सबसे पहले स्पेन में दर्ज की गई थी, इसलिए इसे स्पेनिश फ्लू कहा जाता है। ब्राजील के लोगों ने इसे जर्मन फ्लू तो सेनेगल ने इसे ब्राजीलियन फ्लू कहा।
कोरोना का सेंटर चीन का वुहान शहर है। बावजूद स्पेनिश फ्लू की तर्ज पर इसे चीनी फ्लू नहीं कहा गया। दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2015 में किसी बीमारी का नाम देने को लेकर दिशानिर्देश जारी किए थे। यही वजह है कि कोरोना को चीनी फ्लू या वुहान प्लेग नहीं बुलाया गया। इसे कोविड- 19 नाम इसीलिए दिया गया ताकि महामारी में किसी एक देश का नाम नहीं घसीटा जाए।
लौरा स्पिननी ने अपने लेख में अहम सवाल पूछा। उन्होंने लिखा, ‘क्या हमें कोविड-19 की तुलना स्पेनिश फ्लू से करनी चाहिए?’ फ्लू और कोविड- 19 का कारण बनने वाले वायरस दो अलग-अलग परिवारों के हैं। Sars-CoV-2 की वजह से कोविड- 19 आया जो कि कोरोनावायरस से संबंधित है। इसमें और SARS (सिविअर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम जो 2002 में चीन में उत्पन्न हुआ) एवं MERS (मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम जो 2012 में सऊदी अरब में शुरू हुआ) के बीच अधिक समानताएं हैं।
स्पिननी ने अपने लेख में बताया कि फ्लू का वायरस आबादी के माध्यम से तेजी से और अपेक्षाकृत समान रूप से फैलता है जबकि कोरोनावायरस गुच्छों में संक्रमित होता है। यही वजह है कि सैद्धांतिक तौर पर कोरोना वायरस के प्रकोपों को रोकना आसान होता है। सबसे बड़ी बात कि 1918 से अब तक दुनियाभर में काफी बदलाव आ चुका है। 1918 में बड़ी संख्या में लोग धार्मिक नेताओं पर भरोसा करते थे। उस समय लोग स्वास्थ्य जानकारों की सलाह बहुत कम ही मानते थे। उदाहरण के लिए, स्पेनिश शहर जमोरा में स्वास्थ्य अधिकारियों से अलग स्थानीय बिशप ने संत रोको के सम्मान में फ्लू के दौरान लगातार नौ दिनों तक शाम की प्रार्थना का आदेश दिया। बता दें कि जमोरा में ही फ्लू से सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई थीं। यहां मरने वालों का आंकड़ा पूरे यूरोप में सबसे अधिक था।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से