सन ७११ई. की बात है! अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के पश्चात, एक विशेष सम्प्रदाय के लोगों ने हिन्दूओं पर गांवो, शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था! सैंकडों महिलाओं की छातियाँ नोच डाली गयीं! इसलिए अपनी लाज बचाने सैंकडों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं! लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया, या गुलाम बना लिया गया! भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी!
गांव के एक बालक तक्षक के पिता, कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में, वीरगति को प्राप्त हो चुके थे! लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव पहुंची, तो हाहाकार मच गया!
महिलाओं को घरों से खींच-खींच कर, उनके देह लूटे जाने लगे! भय से आक्रांत, तक्षक के घर में भी सभी चिल्ला उठे! तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं!
तक्षक की माताजी पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी! उन्होंने कुछ देर तक अपने बालकों को देखा, और जैसे ही एक निर्णय पर पहुचीं, माताजी ने अपने तीनों बालकों को खींच कर छाती में चिपका लिया, और रो पड़ीं!
फिर देखते ही देखते, उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीची, और अपनी दोनों पुत्रियों का सर काट डाला! उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और पुत्र की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया!
८ वर्ष का बालक तक्षक, एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था! उसने भूमि पर पड़ी मृत माताजी के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर, खेतों से होकर, जंगल में भाग गया!
२५ वर्ष बीत गए! अब वह बालक ३२ वर्ष का पुरुष हो कर, कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था! वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था! वह न कभी प्रसन्न होता था, न कभी दुःखी! उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की भावना को पनपने देने के कारण अंगारे की तरह लाल रहती थीं! उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने-सुनाये जाते थे! अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श माना जाने लगा था!
कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यातनाम थे!
सिंध पर शासन कर रहे अरब, कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते!
युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर, बार-बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे! ऐसा १५ वर्षों से हो रहा था!
इस बार फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर, सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी थी, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी!
इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी! सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे, तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला-
महाराज, हमें इस बार शत्रु को उसी की शैली में उत्तर देना होगा!
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, और बोले- “अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नहीं पा रहे हैं!”
“महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं! उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे! उनको उन्ही की शैली में पराजित करना होगा!”
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले -“किन्तु हम धर्म और मर्यादा नहीं छोड़ सकते, सैनिक!”
तक्षक ने कहा-
“मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है, जो मर्यादा का अर्थ समझते हों! ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं, महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है!”
“पर यह हमारा धर्म नहीं हैं, बीर!”
“राजा का केवल एक ही धर्म होता है, महाराज! और वह है प्रजा की रक्षा करना! देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें, महाराज! जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात, प्रजा पर कितना अत्याचार किया था! ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए, तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी महिलाओं, बालकों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं!”
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था! महाराज अपने मुख्य सेनापतियों, मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए!
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिमी सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा!
आधी रात्रि बीत चुकी थी! अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी! अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी! अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी! वे उठते, सावधान होते और हथियार सँभालते, इसके पुर्व ही, आधे अरब गाजर-मूली की तरह काट डाले गए!
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था! वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता, उधर की भूमि शवों से भर जाती थी! आज माताजी और बहनों की आत्माओं को ठंडक देने का समय था!
उषा की प्रथम किरण से पुर्व, अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी! सबेरा होते ही, शेष सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे! दोपहर होते-होते समूची अरब सेना काट डाली गयी! अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था!
इस विजय के पश्चात, महाराज ने अपने सभी सेना नायकों की ओर देखा! उनमें तक्षक का कहीं पता नही था!
सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की, तो देखा – लगभग एक हजार अरब सैनिकों के शवों के बीच, तक्षक की मृत देह दमक रहा था!
उसे शीघ्र उठा कर, महाराज के पास लाया गया! कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात, महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर, उसके मृत देह को प्रणाम किया!
युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा – “आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे, तक्षक! भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया! भारत युगों-युगों तक आपका आभारी रहेगा!”
इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगली तीन शताब्दियों तक, अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हुई!
तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नहीं, लिए भी जाते है! साथ ही, ये भी सिखाया, कि दुष्ट केवल दुष्टता की ही भाषा जानता है! इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर, उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए! अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा!
(लेखक ऐतिहासिक विषयों पर शोेधपूर्ण लेख लिखते हैं)
साभार- https://hindi.pratilipi.com/ से