राजनांदगांव। संस्कारधानी के प्रखर वक्ता और शासकीय दिग्विजय अग्रणी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन, ने उच्च शिक्षा से जुड़े तीन राज्यों के राष्ट्रीय सेवा योजना अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रभावी व्याख्यान दिया। युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार, राष्ट्रीय सेवा योजना क्षेत्रीय केंद्र भोपाल,राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ शासन के उच्च शिक्षा विभाग के मार्गदर्शन में, इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय,रायपुर द्वारा आयोजित इस पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में डॉ.जैन को अतिथि वक्ता और विषय विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया गया था। कृषि विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ.एस.के.पाटिल तथा रासेयो के राज्य संपर्क अधिकारी और उप सचिव डॉ.समरेंद्र सिंह वि.वि.के रासेयो समन्वयक डॉ.आर.एन.गांगुली सक्षम मार्गदर्शन में आयोजन यादगार बन गया। रासेयो के विद्यार्थियों ने अपने अधिकारियों की देखरेख में पूरे आयोजन की बागडोर अपने हाथों में लेकर उसकी कामयाबी का इतिहास रच दिखाया। इनमें प्रथम वर्ष से पीएचडी तक के विद्यार्थी शामिल थे।
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के संचालक और प्रख्यात पत्रकार रमेश नैयर, छत्तीसगढ़ बाल आयोग की अध्यक्ष श्रीमती शताब्दी पाण्डे, शासन के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे प्रखर चिंतक सुशील त्रिवेदी सहित चुनिंदा ख्यातिप्राप्त अतिथि वक्ताओं ने इस प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मार्गदर्शन दिया। डॉ.जैन ने राज्य संपर्क अधिकारी डॉ.समरेंद्र सिंह, विषय विशेषज्ञ डॉ.आर.पी.अग्रवाल की ख़ास मौजूदगी में रासेयो प्रशिक्षकों को जीवन शैली,आतंरिक द्वंद्व और उसके समाधान पर सरस, सार्थक और अत्यंत उपयोगी टिप्स दिए। प्रारम्भ में डॉ.शिवाजी लिमजे ने प्रतिभागी अधिकारियों को डॉ.चन्द्रकुमार जैन का परिचय देते हुए उनकी बहुआयामी उपलब्धियों की विशेष चर्चा की।
आयोजन के केन्द्रीय विषय सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता एवं मानवाधिकार को ध्यान में रखते हुए डॉ.जैन ने बड़े सुलझे हुए अंदाज़ में कहा कि राष्ट्रीय सेवा योजना व्यक्तित्व निर्माण और देश सेवा का बहुत बड़ा मंच है। यह राष्ट्र निर्माण और राष्ट्रीय जागरण की अहम कड़ी है। लिहाज़ा, रासेयो अधिकारी हमारे स्वयं सेवक छात्र-छात्राओं की सोच को रचनात्मक बनाने वाली जीवन शैली की प्रेरणा दें। इससे उनकी जीवन ऊर्जा को सार्थक निवेश की दिशा मिलेगी। उसकी सामाजिक उपयोगिता बढ़ेगी और उनके सेवा कार्यों को नई पहचान मिलेगी। डॉ.जैन ने कई उदाहरण, सूक्तियों, दृष्टान्तों के माध्यम से स्पष्ट किया कि मन के अनुकूल न होने या प्रतिकूल हो जाने पर मानसिक संघर्ष की स्थिति कैसे बनती है। ऎसी स्थिति में समस्या से अपने व्यक्तित्व को विभाजित होने से बचाना और समस्या को ही विभाजित करके उसे बड़ी से छोटी बना देना सचमुच बड़ी कला है। डॉ.जैन ने तर्कपूर्ण शैली में पूरी दृढ़ता के साथ कहा कि ज़िंदगी के सवालों से कहीं ज्यादा उसके ज़वाब हैं, बशर्ते हम तिल को ताड़ बनाने के बदले अपनी टीस के कारणों को ताड़ने में महारथ हासिल कर लें। इससे समाधान के द्वार खुद जाएंगे।
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