परिवर्तन कब किसके रोके रुका है। न पहले रुका, न आगे कभी रुकेगा। बस प्रतिक्रियावादी या कट्टरवादी-हार्ड लाइनर्स इसकी रफ्तार कम कर सकते हैं। यह भी प्रकृति का नियम है कि जिसे जितना रोका जाएगा, चाहे वह व्यक्ति हो या समाज या कौम, वह और त्वरा से आगे बढ़ेगा। आज सभी तरफ से विकास और प्रगति की आवाज उठ रही है। सुधार और सरलीकरण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जो शुभ भविष्य का सूचक है। लेकिन इस शुभता को भी लीलने के प्रयास हार्ड लाईनर कर रहे हैं, कल भी करेंगे। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बने हुए तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। अपने कार्यकाल के अतिमहत्वपूर्ण तीन वर्ष सम्पन्नता की एवं सरकार के कामकाज की गहन समीक्षा व बहसें भी प्रारम्भ हो गयी हैें। मोदी के मंत्रियों ने अपने तीन साल के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड भी साक्षात्कारों के माध्यम से देना प्रारम्भ कर दिया है। वहीं मोदी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल पर जश्न मनाने के मूड में भी आगयी है लेकिन इन तीन वर्षंो के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने व्यक्तित्व व काम करने के ढंग से सभी को प्रभावित करने का सफल प्रयास किया हैं। पीएम मोदी लगातार अपने कार्यक्रमों व योजनाओं के बल पर देश व सामज में बदलाव लाने का दिन रात हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जहां कई क्षेत्रों में अपने दमखम का सशक्त परिचय देते हुए साहसिक निर्णयों के बल पर जनता के मन में भरोसा कायम रखा है वहीं दूसरी ओर वैश्विक जगत मेें भी बदलाव लाने का एक सफल अभिनव प्रयास सरकार कर रही है।
मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अच्छे दिनों का जो वादा किया था उसे लेकर विपक्ष पूछ रहा है कि कहां हैं अच्छे दिन? विपक्ष की मानें तो तीन साल में देश बेहाल है। विपक्ष को यह सवाल करने का जनतांत्रिक अधिकार है। लेकिन इस तरह के सवालों के जबाव से विपक्ष कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। इन सवालों के जबाव का एक ही तरीका है और वह है आम जनता की खुशी और नाराजगी की। उनकी खुशी-नाराजगी नापने का सबसे बड़ा पैमाना चुनाव होते हैं। दो महीने पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में लोगों ने मतदान के जरिये बता दिया कि वे किससे खुश हैं और किससे नाराज?
तीन वर्ष का पडाव किसी भी सरकार के लिये अपनी उपलब्धियों पर इतराने के लिये नहीं होना चाहिए। यह अवसर समीक्षा एवं आत्मावलोकन का अवसर होना चाहिए। जो किया है उसका संतोष होना चाहिए, लेकिन जो किया जाना ज्यादा अपेक्षित है, उसकी सशक्त योजना बननी चाहिए, किये जाने वाले कार्यों पर चिन्तन-मंथन होना चाहिए। यह सही है कि इन तीन वर्षों में व्यापक काम हुआ है, नयी उम्मीदें जगी है, नया विश्वास जागा है। आज देश में औद्योगिक विकास दर दुनिया में संभवतः सबसे अधिक है। भ्रष्टाचाररहित सरकार देने का दावा भी सबसे बड़ी उपलब्धि है। नोटबंदी के द्वारा भले ही कालेधन एवं भ्रष्टाचार पर काबू पाने का लक्ष्य आधा-अधूरा रहा हो, लेकिन कालेधन पर हमले के साहस के लिये जनता ने मोदी सरकार की भूरि-भूरि सराहना की है। स्वच्छ भारत अभियान, गंगा सफाई अभियान, बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ, बेटियों की सुरक्षा के लिए सुकन्या समृद्धि योजना, गैस सब्सिडी त्यागो जैसी योजनाओं से भी मोदी सरकार आम जनता के जीवन व विचारों में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सफल रही है। आर्थिक सुधारों को अपने अंदर समेटे जीएसटी बिल का मार्ग भी साफ हुआ है।
राजनीति में वास्तविकता से ज्यादा अहमियत जनता के विश्वास की होती है। आम जनता का मानना है कि पिछले तीन साल में समाज के गरीब तबके में प्रधानमंत्री के प्रति विश्वास बढ़ा है। इसका कारण उनके वादे ही नहीं, सरकार का जमीन पर पहुंचा काम भी है। योजनाएं तो सभी सरकारें अच्छी बनाती हैं। चुनौती होती है उन्हें लागू करने की। किसी योजना को किस तरह लागू करना चाहिए, इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण बनी है उज्ज्वला योजना। एक साल में सवा दो करोड़ गरीबों के घर रसोई गैस पहुंच गई है। बात केवल इतनी नहीं है कि इतने बड़े पैमाने पर गैस कनेक्शन दिए गए, ज्यादा अहम बात यह है कि एक भी मामले में भ्रष्टाचार की शिकायत नहीं आई। भ्रष्टाचार ऐसा मुद्दा है जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के पतन का सबसे बड़ा कारण बना। तो क्या तीन साल में देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया? इसका जवाब कोई भी हां में नहीं दे सकता, लेकिन एक बात मोदी के विरोधी भी दबी जबान से ही सही, मानते हैं कि तीन साल में सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे किसी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। सत्ता का गलियारा अक्सर दलालों का अड्डा बना होता था, कम-से-कम अब वहां ये दलाल तो दिखाई नहीं देते। इसका अर्थ यही नहीं है कि सरकार में भ्रष्टाचार पूर्णतः समाप्त हो गया है।
यह भी एक उपलब्धि ही है और जनता का विश्वास है कि विकास के लिये नरेन्द्र मोदी सरकार कुछ-न-कुछ कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी यह और ऐसी अनेक उपलब्धियों के श्रेय के हकदार है, जो उन्हें मिलना ही चाहिए। मोदी सरकार न केवल फैसले ले रही हैं, बल्कि पारदर्शी और प्रभावी तरीके से लागू भी कर रही हैं। जबकि पूर्व सरकार की नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बिगड़ रही थी उससे लगता था कि भारी आर्थिक संकट देश के सम्मुख खड़ा होने वाला है। सरकार में फैसले होते नहीं थे और होते थे तो कोई मानता नहीं था। नौकरशाही को समझ में नहीं आता था किसकी सुनें और किसकी न सुनें? तब कोई मंत्री अपने को प्रधानमंत्री से कम नहीं समझता था। घोर अराजकता का माहौल निर्मित हो गया है, अंधेरा घना था, उससे बाहर निकलना असंभव दिख रहा था, लेकिन मोदी सरकार ने उन अंधेरों से बाहर निकाला है तो उसका श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए।
मोदी सरकार ने पडौसी राष्ट्र पाकिस्तान की हरकतों एवं अशांति फैलाने की नीतियों का कूटनीति तरीके से जबाव देकर जनता के लगातार टूटते विश्वास को जोड़ा है। उन्होंने पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर के हिस्से में सर्जिकल स्ट्राइक की मंजूरी दी और भारतीय सेना ने पहली यह कारनामा कर पूरी दुनिया को अचरज में डाल दिया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद को नीति के रूप में प्रयोग कर रहे पाकिस्तान को भारत ने अलग थलग करने में भी सफलता हासिल की है इसी कारण आज पाकिस्तान पर अमेरिका से लेकर कई देशों ने दबाव बनाया है कि वह आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद करे। यह मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी है। चीन की दादागिरी को भी बढ़ने न देना सरकार की सफलता है। चीन जहां एक तरफ पाकिस्तान की मदद कर रहा है वहीं भारत के कई हिस्से पर अपना दावा करता रहा है। एलएसी को वह स्वीकार नहीं कर रहा है। लेकिन कई दशकों बाद भारत ने लेह के आगे अपने 100 टैंक भेजे और युद्धाभ्यास किया। वहीं अरुणाचल प्रदेश के विकास और सीमा पर सड़क निर्माण कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे, इसके लिए सभी सरकारी भुगतान ऑनलाइन करने का निर्णय लिया। टेंडरिंग को पूरी तरह ऑनलाइन करने का आदेश दिया। इस प्रकार के कई आदेश सरकार ने दिए और इसकी उपलब्धि कितनी है और इससे भ्रष्टाचार पर कितना अंकुश लगा है, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन एक शुभ शुरुआत तो इसे कहा ही जा सकता है। इसी तरह डिजिटल भारत के सपने को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी आगे बढ़ रहे हैं। उनके पिछले तीन साल के कार्यक्रम में वह लगातार इस ओर बढ़ते जा रहे हैं। लोगों से इस दिशा में काम करने का आग्रह कर रहे हैं। सरकार के सभी विभागों को डिजिटलाइजेशन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे पर्यावरण से लेकर धन-हानि दोनों को बचाया जा सकता है। कई सरकारी काम अब इस माध्यम से होने लगे हैं। इतना ही नहीं कई ऐसे फॉर्म को सरल किया जिसके चलते लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
प्रधानमंत्री की नया भारत की संकल्पना से उत्साह जागा है। उन्होंने इसके लिए कैशलेस भारत की बात कही है। वह चाहते हैं कि देश में नकदी का चलन न हो। यह सबसे बड़ा माध्यम है भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का। पीएम को कितनी कामयाबी मिली, या मिलेगी यह तो साफ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन लोगों ने माना कि पीएम भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत किलेबंदी की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आजादी के पहले अंग्रेजों ने भारत के लिए कई कानून बना जो आज अप्रासंगिक हो गये है। मोदी सरकार ने कई ऐसे कानून रद्द कर दिए जिनकी अब कोई जरूरत नहीं है। एक अच्छी शासन व्यवस्था के लिये कानून कम-से-कम होने जरूरी है। मोदी सरकार चुनाव की खामियों को दूर करने एवं राजनीति अपराध एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिये भी प्रभावी उपक्रम कर रही है।
लोकतंत्र का अर्थ चुनाव और मतदान का अधिकार भर नहीं है। यह एक नियंत्रण और संतुलन के माध्यम से समस्त नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा का दायित्व भी देता है। आज ढांचे में परिवर्तन लाने की शुरूआत हो गई है। क्यों न हम राजनीतिक ढांचे को सुधारने की प्रक्रिया शुरू करें। ताकि देश की राजनीति का एक चरित्र बने। वरना आज के राजनीतिज्ञों को चुनाव की तिथियों के आगे भारत का भविष्य दिखता ही नहीं।
ऐसा नहीं है कि तीन साल में सब कुछ अच्छा ही हुआ है। देश को जातिवाद और धर्मान्धता से बाहर निकाला जाना जरूरी है, संभवतः इसमें सरकार कमजोर रही है।। हमारी विविधता को एकता में बांधे रखने वाले सूत्रों को शुद्ध रखने में भी कहीं-न-कहीं चूक हो रही है। स्वच्छता का नारा देने वाली सरकार के शासन में ही दिल्ली में सबसे ज्यादा गंदगी का साम्राज्य देखने को मिला। दीपक तले अंधेरा तो होता ही है। देश में अपराध की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रहीं। सही है कि कानून व्यवस्था राज्य का मामला है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस सुधार के मामले पर कुछ खास नहीं हुआ है। लोकसभा चुनाव में मोदी को मिले भारी समर्थन में सबसे बड़ी भागीदारी युवाओं की रही। रोजगार उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। लेकिन सरकार ने युवाओं की भावनाओं से खिलवाड़ ही किया है, कभी स्टार्टअप के नाम पर तो कभी मैंक इन इंडिया के नाम पर।
विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान् नहीं। महान् उस दिन बनेंगे जिस दिन किसी निर्दोष का खून इस धरती पर नहीं बहेगा। जिस दिन कोई भूखा नहीं सोएगा, जिस दिन कोई अशिक्षित नहीं रहेगा, जिस दिन देश भ्रष्टाचारमुक्त होगा। जिस दिन शासन और प्रशासन में बैठे लोग अपनी कीमत नहीं, मूल्यों का प्रदर्शन करेंगे। यह आदर्श स्थिति जिस दिन हमारे राष्ट्रीय चरित्र में आयेगी, उस दिन महानता हमारे सामने होगी। फूलों से इत्र बनाया जा सकता है, पर इत्र से फूल नहीं उगाए जाते। उसके लिए बीज को अपनी हस्ती मिटानी पड़ती है। आज भी जश्न मनाने से ज्यादा जरूरी है जश्न की पात्रता को हासिल करने की। एक मोदी नहीं, हर सत्ता पर बैठा व्यक्ति अपने को शासक नहीं, सेवक माने। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
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