खायो जी मैने दाल रतन धन खायो
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु |
कृपा कर अपनायो ||
जन्म जन्म की पूंजी गँवाई
पड़ोसी ईर्ष्या से भर आयो
खायो जी मैने दाल रतन धन खायो
भाव रोज ऊँचे, हर कोई लूटे, दिन दिन बढ़त सवायो ||
दाल की राजनीति खेवटिया काला बजारिया
जो पायो वो बौरायो
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर |
दाल खाई के खूब इठलायो ||
मूल भजन ये है
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो |
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु |
कृपा कर अपनायो ||
जन्म जन्म की पूंजी पाई |
जग में सबी खुमायो ||
खर्च ना खूटे, चोर ना लूटे |
दिन दिन बढ़त सवायो ||
सत की नाव खेवटिया सतगुरु |
भवसागर तरवयो ||
मीरा के प्रभु गिरिधर नगर |
हर्ष हर्ष जस गायो ||