भोपाल। विश्व हिंदी सम्मेलन के उदघाटन सत्र के बाद समानांतर सत्र में ‘अन्य भाषा-भाषी राज्यों में हिंदी’ विषय पर श्री वाई. लक्ष्मीप्रसाद के संयोजन में अनेक वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कवि प्रदीप सभागार में हुए इस सत्र में अधिकांश वक्ताओं ने भारतीय भाषाओं और हिंदी के मध्य दो तरफा अनुवाद कार्य को बढ़ाए जाने की जरूरत बताई। वक्ताओं ने दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्यों में काम कर रही हिंदी संस्थाओं की जानकारी दी।
पूर्वोत्तर विश्वविद्यालय शिलांग के श्री माधवेंद्र पांडे ने अनुवाद का काम स्थायी रूप से किए जाने की महत्ता बताते हुए पृथक अनुवाद मंत्रालय प्रारंभ करने का सुझाव दिया। प्रो. रामचंद्र राय ने बताया कि पूर्वोत्तर के राज्यों पर पड़ोसी देश चीन, बर्मा, तिब्बत आदि भाषाओं का भी प्रभाव है इसलिए यहाँ हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ाया जाना चाहिए। आंध्रप्रदेश के प्रो. शेषरत्नम ने हिंदी को मीडिया और व्यवसाय क्षेत्र की प्रमुख भाषा बताया।
प्रो. वी. वाई ललितांबा ने दक्षिण भारत में हिंदी को अपनाने के लिए हुए प्रयास की जानकारी दी। प्रो. एम. ज्ञानम ने कहा कि अनुवाद में हिंदी संपर्क भाषा के कारण अधिक उपयोगी है। सूचना पट्ट हिंदी में लगाने, विदेश में हिंदी शिक्षण बढ़ाने, सांस्कृतिक कार्यक्रम से हिंदी का प्रचार करने और संगोष्ठियों के माध्यम से भाषा-संगम कार्यक्रम करने के सुझाव भी दिए। प्रो. सुशीला थामस ने कहा कि विनोबा जी और तिलक जैसे अहिंदी भाषी महापुरुषों ने हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। प्रो. थामस ने स्वतंत्रता के पहले दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में कार्यरत हिंदी संस्थाओं से अवगत करवाया।