Sunday, November 24, 2024
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यात्रा: पेशावर काण्ड के अमर सेनानी के गांव की- दूसरा भाग

अलकनन्दा नदी पर बने पुल को पार करते ही बस नदी के बांयीं तरफ के भूभाग पर बनी कच्ची सड़क पर हल्की चढाई चढ़ने लगी | नदी के दूसरी ओर के भूभाग पर बनी सड़क कभी इस ओर की सड़क के समान्तर, कभी उंचाई पर तथा कभी निचाई पर बल खाती हुई दिखाई दे रही थी | सड़क के दाहिनी तथा बांयीं तरफ कुछ समतल जगहों पर कहीं कहीं पर खेत और पत्थर-ईंटों के अकेले दुकेले या फिर झुरमुट में मकान दिखाई देने लगे थे |

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मैं इस सड़क पर पहिली बार बस में सफर कर रहा था | इसलिए मुझे जिज्ञासावश सहमुसाफ़िरों से पूछना पड़ रहा था | वे बड़े ही सहज ढंग से इलाके के बावत जानकारी दे रहे थे | इस बीच उनसे रुद्रप्रयाग के जिला बन जाने पर बातचीत हुई | इस विषय में सभी लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की | साथ ही कईयों ने टिहरी के बांगर, सिलगढ़, बड़मा आदि इलाके के लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की, जिन्हें अब पहिले की तरह अपने छोटे या बड़े काम के लिये टिहरी, नरेंद्रनगर जैसे दूरस्थ जिला मुख्यालयों में नहीं जाना पड़ेगा |

किसी से यह भी कहते सुना कि कीर्तिनगर तहसील के अंतर्गत इलाके के लोग भी रुद्रप्रयाग जिले में शामिल होने के इच्छुक हैं | नये जिले के नामकरण के संबंध में कुछ पढ़े-लिखे बुजुर्गों के मुंह से सुना कि काशीपुर भावर को ऊधमसिंह नगर नाम दिये जाने की तरह रुद्रप्रयाग जिले को स्वामी सच्चिदानन्द जी के नाम पर रख दिया जाता, तो इससे जनता की दूसरी आकांक्षा पूरी हो जाती | उनके अनुसार उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा आधुनिक रुद्रप्रयाग (पुनाड़) के निर्माता श्री 1008 स्वामी सचिदानन्द के प्रति उदासीनता बरतती आई है | देखा जाये तो रुद्रप्रयाग और स्वामी सच्चिदानन्द एक दुसरे के पूरक हैं |

इस दौरान बस कोटेश्वर महादेव, कमेड़ा, गडेरी, गंदारी, देबलग और पालि होते हुये ठीक बारह बजे चोपड़ा बाजार में पहुंची | बस से उतरते ही मैंने अपने को दो नवयुवकों से घिरा पाया | पूछताछ करने पर उनमें से एक मेरे मेजबान कैप्टेन श्री इन्द्र सिंह जी का मंझला बेटा मनोज निकला तथा दूसरा उसी गाँव का संतोष था |

मनोज श्रीनगर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमा के अंतिम वर्ष का छात्र है | वह अपने एलपीजी के सिलिंडर के संबंध में बाजार आया हुआ था | बातचीत खत्म होने के बाद मैंने चारों ओर नज़र दौड़ाई | ठीक सामने के विशाल पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर हरियाली देवी का देवस्थान दिखाई दिया | जैसा नाम वैसे ही सघन हरे-भरे बांज-बुरांश के वृक्षों से आच्छादित पर्वत तथा कहीं पर कोई नग्न चट्टान नज़र नहीं आई |

हरियाली देवी का बंगारियों के वंश संबंध होने के नाते मैं भावनात्मक तौर से उससे अपने को जुड़ा हुआ मानता हूँ | मुझे लगा कि वह मुझे मौन निमंत्रण दे रही है | ग्यारह वर्ष की बालकन्या का देवी भगवती का रूप धारण करना और अब उसका अपने पश्वों (बक्यों) के मुँह से अपने इतिहास की जानकारी देते समय मुझ जैसे भावुक मनुष्यों को रोना आ जाता है | अभी तक मैंने देवी के आदि स्थान जसोली गांव की यात्रा नहीं की है, जबकि आज से लगभग 30 साल पहिले देवी ने अपनी सवारी (शेर) को भेजकर एक बार मुझे अर्धसुप्त अवस्था में दर्शन करवाये थे | मैंने मन में ही देवी भगवती को प्रणाम किया | वर्तमान यात्रा का कार्यक्रम हरियाली देवी के दिशानिर्देशानुसार करनी पड़ रही थी |

सारी धनपुर, रानीगढ़ तथा नागपुर की घाटी बहुत ही मनमोहक तथा शांत लग रही थी | हरे-भरे जंगलों के अलावा चारों तरफ खेत ही खेत तथा सफ़ेद चमकदार मकानों के पुंजनुमा गांव नज़र आ रहे थे | सामने रतूड़ा के विस्तृत समतल खेतों में अब भी कहीं-कहीं पर धान की पकी हुई फसल नज़र आ रही थी |

मुझे धान की खेती से बहुत ज्यादा लगाव है | मैं धान की पौध की कुछ ही डालियों को रोपने के बाद फटने वाले असंख्य डालियों (बोट) को प्रकृति का करिश्मा मानता हूँ और बार-बार उन्हें देखने के लिये लालायित रहता हूँ | इस वर्ष कुछ ज्यादा वर्षा हो जाने से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में भी चारों तरफ हरियाली नज़र आ रही थी | घाटी के बीचोंबीच काफी निचाई में अलकनंदा नदी का आसमानी रंग का पानी साफ़ दिखाई दे रहा रहा था |

चोपड़ा बाजार इलाके में कई गांवों के मध्यस्थ में एक ऊंचे स्थान पर बसा है | यहाँ से करीबन पूरी घाटी बिना किसी रूकावट के काफी दूर तक चारों दिशाओं में सपष्ट दिखाई देती है | प्रकृति प्रेमियों के लिये यह स्थान एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है | यह इलाके के लगभग सभी गांवों का क्रय-विक्रय केंद्र है |

यहाँ पर राजकीय इण्टरमीडिएट कालेज , राजकीय कन्या हाई स्कूल, शिशु मंदिर स्कूल, पटवारी – पुलिस चौकी, स्टेट बैंक ओफ इंडिया की शाखा, पोस्ट आफिस, प्राइमरी स्कूल, पशु तथा मानव चिकित्सालय, पंचायत घर, एलपीजी गैस एजेंसी तथा कई छोटी-बड़ी दुकानें हैं | बच्चे, जवान तथा बुजुर्ग आदमी और औरतें यहाँ पर स्वदेश, प्रदेशों तथा आसपास के इलाके से अपने-अपने काम से आते जाते रहते हैं | यदि किसी का कोई काम नहीं होता है तो भी वह अपना समय व्यतीत करने के लिये यहाँ आता है, बल्कि यों कहें कि वह बाजार के आकर्षण से स्वंय ही खिंचा चला आता है | एक दूसरे से देश-विदेश की ताज़ा खबर सुनकर दुकानों में चाय बिस्कुट या पकोड़ियां खा कर शाम को लोग अपने घरों को वापिस चले जाते हैं |

कुछ देर बाजार में रुकने के बाद मैं और मनोज बाजार के नीचे लगभग एक मील के फासले पर स्थित मुख्य गांव के रास्ते पर चल पड़े | रास्ता पक्का तथा साफ़ सुथरा था | कई जगहों पर खडिंचे बिछे हुये थे | पहिली बार इस रास्ते पर चलने की वजह से मुझे वह कुछ लम्बा प्रतीत हुआ |

गांव में प्रवेश करते ही वहाँ अपने चौकों में खड़ी कुछ बुजुर्ग औरतों की मेरे प्रति जिज्ञासा बनी | जैसे ही उन्हें पता लगा कि उनके गांव में मेरी विमाता का मायका है, तो उन्होंने और अधिक मधुर शब्दों में प्यार की बौछार कर दी | पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि उनमें से एक महिला स्व. श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी की धर्म पत्नी हैं |

श्री हरिकृष्ण जी की मृत्यु कुछ समय पहिले हुई थी | उनका ज्येष्ठ पुत्र श्री गोविन्द वल्लभ महामना मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कालेज, गोरखपुर से अवकाश प्राप्त कर अब स्वयं का व्यवसाय करते हैं तथा शास्त्रीजी की मृत्यु उपरांत मेरे पत्र मित्र बने हुये हैं | दूसरी महिला स्व. श्री भास्करानंद जी की धर्म पत्नी हैं | श्री भास्करानंद जी काफी वर्षों तक गांव के प्रधान रहे थे | उनके समय में गांव की उन्नति के लिये काफी काम हुआ है | मेरी उनसे दो बार मुलाकात हुई थी | शाम को दुबारा मिलने का वादा करके अपने को उन लोगों से मुक्त किया |

थोड़ी दूर और चलने के बाद हम मनोज के मकान पर पहुंचे | वहां पहुंचते ही मनोज ने मेरा परिचय अपने पिताजी कैप्टेन इंद्र सिंह बुटोला जी से करवाया | वैसे उनसे यह मेरी पहिली मुलाकात थी, लेकिन शक्ल कुछ जानी-पहचानी लगी | तभी ध्यान आया कि उनकी एक पोस्टकार्ड साइज की फोटो सैनिक वर्दी में तथा दूसरी परिवार के साथ जिसमें उनकी धर्म पत्नी तथा दो छोटे बच्चे भी हैं मेरे एल्बम में अभी भी लगी हुई है | मगर जिस तरह उन्होंने मेरी आवभगत की उससे न केवल मेरी झिझक दूर हुई, बल्कि मुझे उनके द्वारा पूरे गांव की विस्तृत जानकारी भी हुई |

अपने पिता स्व. श्री हीरा सिंह तथा माता स्व. श्रीमती गणेशी देवीजी के अकेला लड़का होने के कारण उनके पास एक बड़ा पुश्तैनी मकान है, फिर भी उन्होंने आधुनिक तरह का सीमेंट-पत्थरों का लिंटेल (लेंटर) वाला मकान बना रखा है और उसमें आधुनिक सुख -सुविधा की चीजें जैसे टेलीफ़ोन, टी. वी., वी. सी. पी. तथा कई अन्य संगीत तथा घरेलु उपयोग के बिजली से चलने वाले उपकरण अपने ड्राइंग रूम में रखी हुई हैं |

मेरे देखते ही देखते उन्होंने अपनी दो भांजियों के पिताजी को सूरत, गुजरात तथा एक झांसी में एस.टी. डी. पर बात की और करवाई | कप्तान साहब के अनुसार उनका बचपन गरीबी में व्यतीत हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत तथा लगन से आर्मी के ई.एम्. ई. विभाग में इंजीनियर कैप्टेन के पद को सुशोभित किया |

सेवा निवृत होने पर उन्हें किसी प्राइवेट ऑटोमोबाइल कंपनी से बीस हज़ार रूपये माहवार की आफर मिलने के बावजूद, उन्होंने ‘कुछ’ सोचकर अस्वीकार कर दिया | फिलहाल वे अपने घर के नज़दीक ही ऑटोमोबाइल का काम शुरू करने की तलाश में हैं | साथ ही अपने बंजर पड़े खेतों पर अच्छे किस्म के आम का बगीचा लगाने की भी योजना बना रहे हैं |

भगवान् ने उन्हें बड़े पद के साथ बड़ा दिल भी दिया हुआ है | मेरे सामने गांव के शिवालय का महंत भांग के नशे में झूमता हुआ आया और कप्तान साहब से सौ रूपया उधार देने के लिये निवेदन करने लगा | उन्होंने बिना किसी संकोच के पुजारी को यह जानते हुये कि, उन्हें यह पैसा वापिस नहीं मिलना है, दे दिया |

उनके परिवार में उनकी एक कुंवारी बड़ी बहिन, पत्नी, तीन पुत्र तथा तीन पुत्रियां हैं | लड़कियों की शादी हो चुकी है | बड़ा लड़का जीप की देखरेख के साथ-साथ अपना कोई निजी व्यवसाय भी करता है| मंझला मनोज है तथा छोटा उन्हीं की तरह ई. एम. ई के पैराशूट में भर्ती हो गया है | सभी लोग खुश दिल तथा सभी के दुख-दर्द में सहानुभूति रखने वाले हैं | भगवान सभी को राजी खुशी रखे तथा चिरआयु प्रदान करे |

इस पूरे इलाके (नागपुर चमोली) में दीपावली का त्योहार को तीन दिन मनाने का रिवाज़ है | गढ़वाली परंपरा के अनुसार लोग अपने उन रिश्तेदारों को दीपावली की सौगात के रूप में पूड़ी पकोड़े तथा अन्य पकवान देते हैं जिनकी दीपवाली नहीं होती है | कैप्टेन साहब की बिरादरी में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने से उनकी दो छोटी भांजियां कलेवा लेकर आई थी | मुझे भी खाने को मिला |

इन लड़कियों ने ही अपने पिताजी से एस. टी. डी. पर बात की थी | खाने के कुछ देर बाद चोपड़ा गांव के बारे में विस्तृत जानकारी लेने की इच्छा हुई | उनके अनुसार उनके गांव में कुल चालीस सामूहिक परिवार हैं, ज्यादातर ब्राह्मणों के हैं | इनमें पुरोहित, चौकियाल, थपलियाल, त्रिपाठी, देवली और कुछ परिवार बुटोला राजपूतों के तथा बहुत कम हरिजनों के हैं | वैसे पूरे इलाके के अधिकतर गांव बुटोला थोकदार राजपूतों के हैं | उन्होंने अपने पुरोहितों, कर्मकांडी तथा सरोला पंडितों को चोपड़ा गांव में बसाया |

अगली कड़ी में पढ़िये – पेशावर काण्ड के वीर सेनानी, नायक स्व. श्री भोलासिंह बुटोला के बारे में

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