भारतीय परंपरा में श्रध्दांजलि का बडा महत्व है। किसी भी मृतक को श्रध्दांजलि देना राष्ट्रीय कर्तव्य है। राजनीतिक मान्यता है कि जो नेता अपने घोर विरोधी को श्रध्दांजलि नहीं देता है उसके टिकट कटने और मंत्री बनने से लेकर किसी कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनने के मौके कम हो जाते हैं। इसीलिए नेता लोग सुबह उठते ही अखबार में और ट्वीटर पर अपने विरोधी की मौत की खबर देखकर श्रध्दांजलि अर्पित करते हैं। अगर कोई नेता या श्रध्दांजलि देने लायक बड़ा आदमी, साहित्यकार, पत्रकार और नेता के लिए सिरदर्द पैदा करने वाला आदमी अस्पताल में भी भर्ती होता है तो नेता अपने सूत्रों से उसके जिंदा रहने या मरने की खबर बराबर लेता रहता है, ताकि उसके मरने के तत्काल बाद श्रध्दांजलि देकर सबसे पहले श्रध्दांजलि देने वालों में अपना नाम लिखा दे।
कुछ साल पहले तक श्रध्दांजलि केवल अखबारों में ही दी जाती थी और ये अखबार वालों पर निर्भर करता था कि वो किसके द्वारा दी गई श्रद्दांजलि को बड़ी खबर बनाए, लेकिन अब ट्वीटर और फेसबुक के जमाने में लोग श्रध्दांजलि देने के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं। वे खुद श्रध्दांजलि दे देते हैं या दूसरे की दी हुई श्रध्दांजलि को कट पेस्ट कर देते हैं। श्रध्दांजलि को कट पेस्ट करने में कोई खतरा नहीं होता, क्योंकि कोई भी आदमी मरते ही महान हो जाता है और लोग उसके इतने सदगुणों का बखान करते हैं कि मृतक के घर वालों को भी लगने लगता है कि जिसे सब लोग दूसरे लोगों के कहने पर एक नंबर का बेईमान, धूर्त, चोर, निकम्मा, रिश्वतखोर, बेईमान और भ्रष्टाचारी समझते थे, वो तो इतना महान आदमी था। किसी धूर्त और बेईमान के मर जाने पर ऐसी महान श्रध्दांजलियों की वजह से घर के लोग भी श्राप मुक्त हो जाते हैं।
श्रध्दांजलि देना हमारे देश के नेताओँ का प्रिय शगल है। जो आदमी जीवित रहकर नेताओँ के घर चक्कर लगाकर मर जाए और मुख्य मंत्री से लेकर प्रधान मंत्री को अपनी समस्याओँ के निराकरण के लिए पत्र लिखकर मर जाए उसके पत्रों का मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री भले ही जवाब ना दे, उसके मरने पर उसे श्रध्दांजलि जरुर देते हैं। उसके मरते ही सबको उसकी महानता का ऐसा बोध होता है कि अगर मरने वाले को जिंदा होने का थोड़ा भी मौका मिल जाए तो वो इस बात पर शर्म से फिर मर जाता कि हाय! मैं जिनको निकम्मा समझता था वो तो मुझ पर फिदा थे।
श्रध्दांजलि देना एक राष्ट्रीय कर्तव्य भी है और सामाजिक जिम्मेदारी भी। देश के नेता सुबह उठते ही ये देखते हैं कि आज किसे श्रध्दांजलि देना है। जैसे ही उन्हें किसी के मरने की खबर मिलती है उनका दिल बल्लियों उछलने लगता है। वे श्रध्दांजलि देने के लिए इतनी जल्दबाजी में होते हैं कि खिलाड़ी के मरने पर उसे महान राजनेता बता देते हैं और किसी धूर्त नेता के मरने पर उसे बहुआयामी प्रतिभा का धनी बता देते हैं। श्रध्दांजलि देने में कई बार मृतक के लिए नेता लोग सही बात भी कह देते हैं। जमीन हड़पने और लोगों को सूद पर पैसा देने वाले किसी भ्रष्टाचारी की मौत पर जब यह कहकर श्रध्दांजलि दी जाती है कि वे जमीन से जु़ड़े नेता थे और उनके घर जो भी आता था वह खाली हाथ नहीं जाता था तो ऐसा लगता है जैसे मृतक को इससे बेहतर सच्ची श्रध्दांजलि नहीं हो सकती।
श्मशानों से लेकर पाँच सितारा सभागृहों में और मंदिरों में मृतक को श्रध्दांजलि देने के भी आयोजन किए जाते हैं। श्मशान में तो श्रध्दांजलि देने से लेकर श्रध्दांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता करना भी बहुत सम्माननीय और प्रतिष्ठित कार्य समझा जाता है। श्मशानगृहों पर कुछ प्रोफेशनल श्रध्दांजलि देने वाले बैठे रहते हैं, जैसे ही कोई शव आता है वे लोग मृतक को श्रध्दांजलि देने के लिए उठ खड़े होते हैं और अपने शब्दजाल से श्रध्दांजलि देने का ऐसा माहौल बना देते हैं कि जो लोग मृतक की शवयात्रा में जाते हैं उन्हें पछतावा होने लगता है कि हाय! इसकी जगह मैं क्यों नहीं मर गया। आज अगर मैं मर गया होता तो ये श्रध्दांजलि सुनकर मेरे घर वालों की कितनी इज्जत बढ़ जाती। इसके बाद लोग प्रोफेशनल श्रध्दांजलि देने वालों से दोस्ती गाँठ लेते हैं ताकि उनके मरने पर भी उनको बढ़िया श्रध्दांजलि मिले।
कई बार तो ये प्रोफेशनल श्रध्दांजलि देने वाले गज़ब कर बैठते हैं, श्मशान पर एक साथ कई शव आ जाने पर हड़बड़ाहट में ये किसी की श्रध्दांजलि का कसीदा किसी और परिवार वालों के बीच जाकर पढ़ने लगते हैं। इस गड़बड़झाले में ऐसा अनर्थ हो जाता है कि जिस आदमी ने कभी किसी धर्म के काम में दो पैसे खर्च नहीं किए उसे महान धर्मात्मा बताकर श्रध्दांजलि देने लगते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि शोक और गम में बैठे लोग श्रध्दांजलि सभा में मुँह छुपाकर हँसने लगते हैं। किसी महिला के शव को आदमी का शव समझकर रटी रटाई श्रध्दांजलि दे देते हैं।
कई नेताओँ ने तो ऐसे प्रोफेशनल श्रध्दांजलि लिखने वाले रख रखे हैं जो किसी के मरते ही उसकी शान में ऐसी श्रध्दांजलि लिखते हैं कि श्रध्दांजलि देने वाले की भी मरने की इच्छा हो जाए।
कुल मिलाकर श्रध्दांजलि मात्र एक धार्मिक, पारिवारिक या सामाजिक रस्म ही नहीं है बल्कि इसके माध्यम से कई हित साधे जा सकते हैं। जिंदगी भर लोग जिसे गाली देते रहते हैं उनको कई बार तो श्रध्दांजलि समारोहों में जाकर ही पता चलता है कि जो मर गया वो कितना महान था।