भोपाल। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा आयोजित निरंतर रचनापाठ की शृंखला के अंतर्गत वरिष्ठ साहित्यकार श्री महेश सक्सेना की अध्यक्षता में उमेश नेमा, बिनय षडंगी राजाराम और चरनजीत कुकरेजा का रचना-पाठ स्वराज भवन के सभागार में संपन्न हुआ।
आयोजन के शुभारंभ में श्री उमेश नेमा ने ‘नीमांश कूटोक्तियां’, दोहे, गीत ‘नफरत की नागफनी’, कविता ‘भयाकांत’, ‘कालकूट’ और ‘कागज की नीव’ आदि कविताओं का पाठ किया। इसी क्रम में वरिष्ठ साहित्यकार, चिंतक एवं विचारक डॉ. बिनय षडंगी राजाराम ने अपनी पहली कृति ‘झर: झर: झर’ से पहली कविता ‘सड़क पर पड़ा पत्थर’, ‘अनजाने ही’, ‘मैं बेटी हूँ समुद्र की’, जीवन नृत्य-घूमर’ और ‘दामिनी कहती है’ आदि रचनाओं का पाठ किया। अंत में श्री चरनजीत सिंह कुकरेजा ने ‘तेरा कब छूटेगा मोह’, ‘मन से मन की बात’, ‘प्रेम वो जो आंसू तराश दे’, ‘अन्तर्मन के सुर’ और ‘एक पिरंदा गाँव का’ आदि कविताओं का रचनापाठ किया। रचना-पाठ के बाद श्रोताओं ने पढ़े गए रचना-पाठों का लुफ्त लेते हुए खूब प्रशंसा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री महेश सक्सेना ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब हमारी दृष्टि इस भारतीय साहित्य-साधना पर टिकती है तो मुझे वैसे ही कुछ समझ मंे नहीं आता, जैसे विराट के दर्शन के समय अर्जुन चौंधिया गए थे। हमारा भारतीय साहित्य उसकी विराट सत्ता की आंख है, जिससे आंख मिलाने का सामर्थ्य विश्व के किसी साहित्य में नहीं है। इस अवसर पर श्री उमेश नेमा की पुस्तक ‘शेष-अशेष’ का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन वरिष्ठ कहानीकार शीला मिश्रा, भोपाल ने किया।