लन्दन-वासी अंडरग्राउंड या ट्यूब ट्रेन सेवा के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं . ये लन्दन की सतह और टेम्स नदी के नीचे तेज़ी दौड़ती मेट्रो ट्रेन हैं जो सच में यहाँ के लोगों के लिए जीवन रेखा हैं इनकी संरचना कुछ इस प्रकार की है और स्टेशन भी पूरे शहर में कुछ इस तरह से फैले हुए हैं कि आप कहीं भी रहते हों या काम करते हों वहाँ से मात्र दस मिनट में करीबी ट्यूब स्टेशन तक पहुँच सकते हैं .
महानगर के अंडरग्राउंड तन्त्र को नौ जोन में बाँटा गया है सेंट्रल लन्दन जोन वन है और सबसे दूर दराज के उपनगर एमर्शम, ब्रेंटवुड , चेशम जोन नाइन में आते हैं . यात्रा का टिकट 2.80 पाउंड से ले कर 9.40 पाउंड का हो सकता है यह आपके द्वारा तय की गई दूरी पर निर्भर करेगा .
ऐसा नहीं कि लन्दन – अंडरग्राउंड यात्रा में सब कुछ अच्छा ही अच्छा है , इन ट्रेन में इंटरनेट सिग्नल प्राय: नहीं पकड़ में आते हैं , कई बार ट्रेन सेवा बाधित भी हो जाती है, कभी लेट भी चलती है , लेकिन फिर भी सड़क मार्ग की तुलना में ट्यूब ट्रेन में यात्रा कहीं बेहतर है .>आँकड़ों की अगर बात करें तो इसकी ग्यारह अलग-अलग लाइनें हैं जिनकी कुल लंबाई 402 किमी है और इन लाइनों पर 272 स्टेशन हैं . कुल मिला कर प्रतिदिन पचास लाख लोग ट्यूब सेवाओं का लाभ उठाते हैं . वहीं हमारी दिल्ली मेट्रो से प्रतिदिन बाईस लाख लोग चलते हैं.
मुंबई की अंडरग्राउंड सेवा संचालित होने में समय बाक़ी है इसलिए उसके बारे में कुछ कहना संभव ही नहीं है लेकिन यह सच है कि जहां एक ओर हमारे यहाँ का संपन्न वर्ग मेट्रो में चलने से बचता है , वहीं लन्दन मेट्रो में तो यहाँ के संसद सदस्य भी चलने में संकोच नहीं करते . पिछले वर्ष की बात है , मैं देख कर हैरान रह गया मेरे एक मित्र जो हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्य हैं मुझे वेस्टमिनिस्टर अंडरग्राउंड स्टेशन पर ही मिल गये. मुझे अचंभित देख कर वह समझ गये कहने लगे मैं सामान्यत: कार की जगह ट्यूब लेना ही पसंद करता हूँ .
व्यस्तता के हिसाब तो पेरिस और मॉस्को मेट्रो इससे ऊपर हैं लेकिन दुनिया की पहली अंडरग्राउंड सेवा होने का गौरव इसी को हासिल है, इसकी शुरुआत 1863 में ही हो गई थी.
लन्दन शहर को अंडरग्राउंड की ज़रूरत क्यों पड़ी इसका रोचक इतिहास है ,अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक लन्दन विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र बन चुका था, दूर दराज से सामान लेकर आये जहाज़ों को डॉक में सामान उतारने के लिए हफ़्ते से भी अधिक की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी . उतरे सामान को गंतव्य यानी वेयर-हाउस तक ले जाना उससे भी बड़ी चुनौती थी क्योंकि टेम्स पर बने पुल पर ज़बरदस्त जाम लगे रहते थे . आवागमन सुगम न होने के कारण कामगारों को झोपड़पट्टी जैसे घरों में डॉक्स के पास रहना पड़ता था . इसलिए टेम्स के नीचे यातायात के लिए 1860 के आसपास जो अंडरग्राउंड टनल बनी उसी से सबसे पहली मेट्रोपोलिटन लाइन सेवा की शुरुआत हुई , यह टनल बनाना उस दौर में उपलब्ध तकनीक, उपकरण और सीमित संसाधनों के कारण बहुत बड़ी चुनौती थी, खूब हादसे हुए , जान और सामान की क्षति भी हुई .
सही मायनों में अंडरग्राउंड ट्रेन सेवा तो 1880 में ही शुरू हो सकी जब विद्युत से चलने वाले इंजन बन कर तैयार हुए . किसी भी घने बसे नगर के नीचे ट्रेन लाइन बिछाने लायक़ टनल बनाना आसान नहीं होता है , लन्दन की सड़कों के नीचे टनल बनाने में भी ख़ासी मुश्किल पेश आयी , घरों, इमारतों में दरारें आयीं, कहीं सीवर लाइन फटीं तो कहीं बाढ़ का पानी आ गया . लेकिन तारीफ़ करनी पड़ेगी उन सिविल इंजीनियरों की जो इस परिकल्पना को साकार करने में जुटे हुए थे उन्होंने चुनौतियों का सामना किया और आधुनिक अंडरग्राउंड परिवहन संचालन की बुनियाद रखी . ये प्रारंभिक प्रयास निजी उपक्रम थे और 1933 तक निजी कंपनियाँ ही अंडरग्राउंड सेवाओं को संचालित करती रहीं, फिर सरकारी पहल पर इसी वर्ष ओवरग्राउंड बसों, ट्राम और अंडरग्राउंड सभी क़िस्म का परिवहन सार्वजनिक उपक्रम बना और इन सेवाओं के विस्तार ने तेज गति पकड़ ली .
यही वो समय था जब अंडरग्राउंड ट्रेन के लिये महत्वाकांक्षी योजनाओं पर कार्य प्रारंभ हुआ . हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ जाने के कारण अंडरग्राउंड के विस्तार का काम बाधित भी हुआ. एक रोचक तथ्य यह है कि इस दौरान डाउन स्ट्रीट अंडरग्राउंड स्टेशन को तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के बंकर में बदल दिया गया था . ऐसे ही तक़रीबन 49 और अंडरग्राउंड स्टेशन हैं जो आजकल काम में नहीं लिए जा रहे हैं , इन्हें भुतहा या घोस्ट स्टेशन कहा जाता है .
इस बीच 1977 के आते आते अंडरग्राउंड की सेवा अंतरराष्ट्रीय विमान स्थल हीथरो तक पहुँच गई . एक अन्य लाइन विक्टोरिया 1943 में बनाने की बात चली थी लेकिन यह सेवा 1968 में जा कर प्रारंभ हो पाई , विक्टोरिया लाइन दक्षिणी लन्दन से वेस्ट एंड होकर ब्रिक्स्टन से उत्तर पूर्वी लंदन के वॉल्थमस्टो इलाक़े तक 21 किलोमीटर का सफ़र तय करके पहुँचती है. 1979 में अंडरग्राउंड में जुबली लाइन जुड़ी , यह महत्वपूर्ण लाइन पूर्वी लन्दन के स्ट्रैटफ़ोर्ड से चल कर उत्तर-पूर्वी लंदन के स्टेनमोर के बीच चलती है . इसकी खूबी है कि यह ग्यारह लाइनों में अकेली ऐसी लाइन है जो किसी न किसी स्टेशन पर किसी न किसी अन्य लाइन पर जुड़ती है . यह ज़मीन के नीचे अन्य सब लाइनों से अधिक गहरी है , भूतल से 69 मीटर नीचे तक चलती है , इसका अर्थ यह हुआ कि कहीं कहीं यह यह समुद्र तल से 32 मीटर और नीचे है .इस लाइन पर कैनेरी वार्फ स्टेशन है जो नगर के गगन चुम्बी बैंक और अन्य व्यवसायिक भवनों के लिए जाना जाने लगा है वहाँ चार करोड़ यात्री सालाना उतरते हैं. सप्ताहांत में देर रात तक पार्टी करने वाले लंदन वादियों का भी यह ख़ास ख़्याल रखती है , यह सप्ताहांत में दस दस मिनट के अंतर पर पूरी रात चलती रहती है.
कई अंडरग्राउंड स्टेशन कला , संस्कृति के केंद्र भी बन चुके हैं ,कला दीर्घा भी कई स्टेशनों पर हैं, लन्दन ब्रिज और कैनेरी वार्फ़ स्टेशन बड़े बाज़ार भी हैं.जुबली लाइन की ट्रेन के डिब्बों की दीवारों पर मशहूर कवियों की कवितायें भी मिल जायेंगी.
अंडरग्राउंड सेवा चूँकि बहुत पुरानी हो चुकी है इसलिए इसके सैकड़ों रोचक क़िस्से हैं . उनमें से एक लिवरपूल स्ट्रीट और अल्डगेट स्टेशन के बारे में है ये दोनों स्टेशन क़ब्रिस्तान की साइट पर बने हैं , पुरावेत्ताओं ने 2015 में लिवरपूल स्ट्रीट स्टेशन की तह में 3000 कंकाल खोजे थे, अल्डगेट स्टेशन अबसे 100 वर्ष पूर्व प्लेग की महामारी की वजह से दफ़नाये गए एक हज़ार लोगों की साइट पर बना था .वैसे तो अंडरग्राउंड सेवाओं में साफ़ सफ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है लेकिन नॉर्दर्न लाइन में गन्दगी इतनी है कि बीस मिनट की यात्रा में आप एक सिगरेट पी जाने जितना प्रदूषण झेल लेते हैं.
लन्दन अंडरग्राउंड को ट्यूब क्यों कहा जाता है इसके पीछे भी रोचक कहानी है , बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में सेंट्रल लाइन में किराया दो पेन्स यानी टूपेन्स था जो बोलचाल में ट्यूब कहा जाने लगा वहीं से अंडरग्राउंड सेवा का नाम ही ट्यूब पड़ गया.
लन्दन अंडरग्राउंड सेवा में हाल ही में एलिज़ाबेथ लाइन जुड़ी है जो विश्व की सबसे आधुनिक सेवा है और इस पर बीस बिलियन पाउंड की लागत आयी है . यह सेंट्रल लंदन के वाइट चैपल स्टेशन को हीथरो एयरपोर्ट हो कर दक्षिणी लन्दन को धुर पूर्व में रीडिंग से जोड़ती है , इस क्रासरेल प्रोजेक्ट को पूरा होने में दस साल लगे है . इस मार्ग पर लगभग 41 किलोमीटर टनलिंग कार्य हुआ है. वाइट चैपल स्टेशन के इर्द गिर्द बांग्लादेश से ब्रिटेन में आकर बसे प्रवासियों की संख्या काफ़ी बड़ी है. इसी लिए इस स्टेशन के साइनेज द्विभाषी यानी अंग्रेज़ी-बांग्ला दोनों भाषाओं में हैं.
इसे अंडरग्राउंड सेवा कहा ज़रूर जाता है लेकिन इसका साठ प्रतिशत ट्रेक सतह पर ही है !
(लेखक इन दिनों लंदन यात्रा पर हैं और वहां की संस्कृति व जीवन शैली से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहे हैं)