शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के एक प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली में नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति के अध्यक्ष श्री टीएसआर सुब्रमण्यम से भेंट की और शैक्षिक सुधार के लिए उन्हें सुझाव-पत्र सौंपा। इस प्रतिनिधिमंडल में न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी, हरियाणा सरकार के पूर्व शैक्षणिक निदेशक प्रो. नरेश सानवान, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक प्रो. जगदीश सिंह, दिल्ली संस्कृत परिषद् के अध्यक्ष डॉ. बृजेश गौतम एवं सचिव प्रो. वी. दयालु शामिल थे।
सुझाव पत्र में मांग की गई है कि सभी स्तरों पर शिक्षा स्वायत्त हो, मातृभाषा में हो और मूल्य-आधारित एवं सेवा का माध्यम हो।
सुझाव-पत्र में आगे कहा गया है कि प्रत्येक राज्य में उस भाषा का विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए, जिसमें प्रमुख रूप से प्रबंधन, इंजीनियरिंग, मेडिकल आदि पाठ्यक्रम वहां की भाषा में पढ़ाया जाए। आई.आई.टी, एन.आई.टी, आई.आई.आई.टी एवं आई.आई.एम. में भी भारतीय भाषाओं में अध्ययन करने का अवसर दिया जाए। सभी प्रकार की प्रतियोगी एवं भर्ती परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं का विकल्प अनिवार्य रूप से हो और सभी स्तर पर से अंग्रेज़ी की अनिवार्यता समाप्त की जाए। इसके साथ ही त्रिभाषा सूत्र की समीक्षा करके नई भाषा नीति पर विचार करने की बात भी कही गई है।
वित्तात्मक पक्ष के संदर्भ में मांग की गई है कि शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम छः प्रतिशत व्यय किया जाए। इसके साथ ही, वर्तमान विद्यालयीन पाठ्यक्रम में कक्षा 5 से उद्यमिता, कौशल विकास एवं व्यवसायिक शिक्षा सहित नागरिक कर्तव्य एवं राष्ट्रीयता के विकास का भी पाठ्यक्रम में समावेश करने पर बल दिया गया है।
सुझाव पत्र में कहा गया है कि न्यायालय एवं चुनाव आयोग की भांति शिक्षा में स्वायतता हेतु राष्ट्रीय स्तर पर ‘स्वायत्त शिक्षा संस्थान’ का गठन किया जाए जिसकी इकाइयाँ राज्य एवं जिला स्तर तक हों। शिक्षा-व्यवस्था को सुगठित करने के लिए ‘भारतीय शिक्षा सेवा’ का गठन किया जाए, जिसके तहत शिक्षा से सम्बंधित प्रशासनिक पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति की जाए। शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने को लेकर प्रत्येक विद्यार्थी को शिक्षा का समान अवसर मिले, इस पर जोर दिया गया है।