वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर, शिव कांची का सर्वाधिक विशिष्ठ विष्णु मंदिर! कैलाशनाथ मंदिर की भान्ति यह मंदिर भी इतिहास, कला तथा मंदिर-वास्तुकला में रूचि रखने वाले विद्वानों एवं विद्यार्थियों में अत्यंत लोकप्रिय है। मैंने भी अपनी कांचीपुरम यात्रा से पूर्व इस मंदिर के विषय में एक सम्पूर्ण पुस्तक पढ़ डाली थी।
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर – कांचीपुरम
पुस्तक में मंदिर की जानकारी इतनी विस्तृत है कि मैंने एक विशाल मंदिर की कल्पना कर ली थी। जो भित्तियाँ इतनी कथाएं कहती हैं, वह अवश्य ही अत्यंत लंबी-चौड़ी होंगी। वहां पहुँच कर मुझे आभास हुआ कि यह मेरी कल्पना से अपेक्षाकृत छोटा मंदिर है। मंदिर परिसर विशाल है किन्तु मंदिर छोटा, सुगठित व तेजस्वी है। विपुलता से उत्कीर्णित भित्तियों के समक्ष स्थित सिंह की आकृतियों के स्तंभ मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो ये सिंह वास्तव में देवों एवं राजाओं की इन कथाओं का रक्षण कर रहे हों।
विष्णु की कथाएं और सिंह स्तम्भ
प्रातः ही मैं मंदिर के दर्शन के लिए चल पड़ी। एक ओर मंदिर का जलकुंड था जो अब सूख गया था। उसमें घास उग आयी थी। तत्पश्चात सामने एक छोटा गोपुरम दृष्टिगोचर हुआ। कांचीपुरम के अन्य मंदिरों की तुलना में इसके गोपुरम का शिखर अपेक्षाकृत छोटा था। प्रवेश स्थल पर नीले रंग के कई प्रवेश द्वार थे। मंडपम को पार कर मैं मंदिर पहुँची। जैसे ही मंदिर को देखा, मेरे श्वास एक क्षण को रुक गये। यूँ तो इस मंदिर के कई चित्र मैंने पुस्तकों में देखे थे, किन्तु प्रत्यक्ष इसकी अद्भुत सुन्दरता देख मेरी आँखे फटी की फटी रह गयीं।
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर की सर्वोत्कृष्ट वास्तुकला
इस मंदिर की संरचना में वास्तुशास्त्र के कुछ ऐसे तत्त्व हैं जो इसे अत्यंत असाधारण एवं न्यारा बनाते हैं।
इस मंदिर की वास्तुकला के कुछ विशेष तत्व आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहती हूँ:
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर के भीतर, तीन तलों में तीन गर्भगृह हैं। जी हाँ! आपने सही पढ़ा! अधिकतर मंदिरों में स्थित एकल गर्भगृह के विपरीत इस मंदिर में एक के ऊपर एक तीन गर्भगृह हैं। तीनों गर्भगृहों में विष्णु की प्रतिमाओं की मुद्राएँ एवं भाव-भंगिमाएं भिन्न हैं।
भूतल
भूतल पर स्थित गर्भगृह के भीतर विष्णु आसीन स्थिति में विराजमान हैं अर्थात् आसन पर बैठे हैं। विष्णु की प्रतिमा का विशाल आकार हमें लगभग पूर्णतः अभिभूत कर देता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान् विष्णु इस पीठासीन मुद्रा में राजा को सलाह देते आचार्य के रूप में उपस्थित हैं। मूर्ति के समक्ष एक छोटा मंडप है जिसे सिंहों पर खड़े स्तंभ आधार देते हैं।
प्रथम तल
प्रथम तल पर स्थापित विष्णु, क्षीरसागर पर निद्रामग्न, शेषशायी विष्णु के रूप में विराजमान हैं। यह गर्भगृह अपेक्षाकृत छोटा है तथा इसकी भित्तियाँ भी सादी हैं। इस मुद्रा में राजा भगवान् विष्णु की ऐसे सेवा कर रहे हैं जैसे एक शिष्य अपने गुरु की सेवा करता है।
इस मध्यम तल पर पहुँचने के लिए आपको मंदिर के चारों ओर चढ़ती सीड़ियों की सहायता लेनी पड़ती है। यहाँ एक समस्या है। यह तल केवल एकादशी के दिन ही खोला जाता है। अर्थात् हिन्दू पञ्चांग के अनुसार प्रत्येक पक्ष के ग्यारहवें दिन इस तल के भीतर प्रवेश पाया जा सकता है। मैं यहाँ द्वादशी के दिन उपस्थित थी। मुझे मध्यम तल में प्रवेश पाने की तीव्र इच्छा थी। मैंने पुजारीजी से मिन्नतें की, उनसे द्वार खोलने का अनुरोध किया। चूंकि द्वार खोलने की अनुमति नहीं थी, पहले तो उन्होंने मुझसे ३ घंटे प्रतीक्षा करवाई। तत्पश्चात क्षण भर के लिए ही उन्होंने दूसरे तल के पट खोले, वह भी मुझसे वचन लेने के पश्चात कि मैं कोई छायाचित्र नहीं लूंगी। पलक झपकते ही उन्होंने द्वार बंद भी कर दिया।
द्वितीय तल
दूसरे तल पर किसी समय भगवान् विष्णु की खड़ी प्रतिमा स्थापित थी। कुछ का मानना है कि प्रतिमा भगवान् कृष्ण की थी। तथ्य सत्यापित करने का कोई मार्ग नहीं है क्योंकि इस प्रतिमा की चोरी हो चुकी है। अब वह कहाँ है, यह किसी को भी ज्ञात नहीं है। अतः यह तल अब निषिद्ध है। इसके भीतर पहुँचना संभव नहीं है। विष्णु की खड़ी प्रतिमा की पृष्ठभागीय मान्यता है कि इस मुद्रा में भगवान् विष्णु ने राजा को १८ विभिन्न कला क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान की थी।
विष्णु की कथाएं भित्तियों पर
मंदिर के तीन तलों की संरचना ऐसी है कि इसके प्रत्येक तल पर पहुंचते हुए आप वास्तव में मंदिर की एक परिक्रमा करते हैं। अनोखा तथ्य यह है कि सीड़ियाँ मंदिर परिसर के किसी भी भाग से दृष्टिगोचर नहीं है।
३ तल, विष्णु की ३ भिन्न मुद्राओं में ३ मूर्तियाँ – आसीन, शेषशायी व खड़ी मुद्रा। यदि इस क्रम का कुछ महत्व हो तो इसके विषय में मैं अनभिज्ञ हूँ। किन्तु इसकी वास्तु एवं संरचना मुझे अत्यंत अद्वितीय व अनूठी प्रतीत हुई।
भूतल पर स्थित गर्भगृह के पृष्ठभाग से जाती सीड़ियाँ आसीन विष्णु की एक विशाल प्रतिमा के समक्ष खुलती हैं। मेरे अनुमान से यह इस मंदिर परिसर की सर्वाधिक रखरखाव युक्त सर्वोत्कृष्ट प्रतिमा है।
गर्भ गृह के गिर्द खंदक
मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही गलियारा है जो मंदिर के चारों ओर स्थित है। मध्य में एक चबूतरे पर गर्भगृह स्थित है। गर्भगृह के चबूतरे की भू-सतह गलियारे की भू-सतह से नीची है। गलियारा एवं गर्भगृह के मध्य एक खंदक है जो गर्भगृह के चारों ओर स्थित है।
आप अवश्य कल्पना कर रहे होंगे कि वर्षा ऋतु में यह मंदिर अद्वितीय प्रतीत होता होगा। मैंने जब यहाँ के दर्शन किये थे, वर्षा ऋतु नहीं थी। किन्तु मेरे मानसपटल में दारासुरम के ऐरावतेश्वर मंदिर की स्मृति अब भी ताजा थी। उस समय ऐरावतेश्वर मंदिर में जल भरा हुआ था। जल सतह पर मंदिर का प्रतिबिम्ब अत्यंत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। यद्यपि, इस मंदिर के भीतर, सीमित स्थान के कारण मंदिर का पूर्ण प्रतिबिम्ब जल सतह पर देख पाना संभव नहीं है।
मंदिर के परिसर एवं गर्भगृह के मध्य निर्मित यह खंदक अत्यंत ही अनूठा है। इससे पूर्व मैंने ऐसी संरचना कहीं नहीं देखी थी। गर्भगृह के चारों ओर खंदक निर्मिती का क्या प्रयोजन हो सकता है, यह मैं अब तक ज्ञात नहीं कर पायी हूँ।
कथा कहती भित्तियां – वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर
गर्भगृह के चारों ओर स्थित गलियारे की भित्तियाँ कथाओं से परिपूर्ण हैं। यूँ तो भारत के अधिकतर मंदिरों के चारों ओर उत्कीर्णित भित्तियाँ हैं। तो इस मंदिर में क्या विशेष है? आईये आपको इससे अवगत कराती हूँ। बाईं ओर स्थित भित्तियों पर विष्णु की कथाएं उत्कीर्णित हैं जो इस मंदिर के पीठासीन देव हैं। वहीं दूसरी ओर की भित्तियों पर इस मंदिर के निर्माता, राजा नन्दिवर्मन की समकालीन कथाएं प्रदर्शित हैं।
मंदिरों की प्रतिमूर्तियाँ
२४ उत्कीर्णित फलकों पर कृष्ण कथाएं प्रदर्शित हैं। भित्तियों पर गंगा एवं यमुना भी उत्कीर्णित हैं। भित्तियों पर देवालय वास्तुकला का समागम, स्वर्णिम काल में दूर-सुदूर से आये व्यापारियों का कांचीपुरम से व्यापार संबंध इत्यादि की रोचक पूर्ण कथाएं भी प्रदर्शित हैं।
चीनी व्यवसायी – वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर की भित्तियों पर
सभी शिल्पों की स्थिति उत्तम नहीं है। यद्यपि इन शिल्पों के साथ किसी ने बर्बरता का व्यवहार नहीं किया है, तथापि समय के साथ इन पत्थरों का क्षरण हो रहा है। आशा है कि इन पत्थरों एवं शिल्पकारियों के क्षरण को रोकने के लिए समय रहते ठोस प्रयास किये जाएँगे।
पल्लव-काल के सिंह स्तंभ
शंकु के आकार के ये स्तंभ, जिनके आधार आसीन सिंहों के समान उत्कीर्णित हैं, तमिल नाडू के पल्लव वास्तु कला का जीवंत उदाहरण है। आप ऐसी वास्तुशिल्प कांचीपुरम में सर्वत्र देख सकते हैं। स्पष्टतः कांचीपुरम लंबे समय तक पल्लवों की राजधानी रही है।
पल्लव वंश के चिन्ह – सिंह स्तम्भ
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर में ये स्तंभ स्पष्ट सुव्यवस्थित पंक्तियों में स्थित हैं। जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, ये सिंह फलकों पर उत्कीर्णित कथाओं का रक्षण करते प्रतीत होते हैं। सामने से यह दृश्य अत्यंत मनमोहक व चित्ताकर्षक है। चूंकि इस मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ नहीं रहती, आप बिना किसी अड़चन के यह दृश्य अनवरत देख सकते हैं।
काले पत्थर के स्तम्भ – विजयनगर काल के
आप इन स्तंभों पर रंगों की विविधता स्पष्ट देख सकते हैं। हकले रंग के बलुआ पत्थर से गहरे रंग के ग्रेनाइट तक रंगों की विविधता देख सकते हैं। इन स्तंभों में रंग एवं मूल तत्व के साथ नक्काशी की रीत भी भिन्न है। इसका कारण है, विजयनगर साम्राज्य द्वारा इन स्तंभों का समय समय पर पुनरुद्धार किया जाना। आप जानते ही हैं कि कांचीपुरम पर एक समय विजयनगर साम्राज्य ने शासन किया था। इन्हें देख आप मंदिर के पुनरुद्धार के इतिहास का तथा पुनरुद्धार कार्य में प्रत्येक वंश के योगदान का अनुमान लगा सकते हैं।
१०८ दिव्य देसम मंदिर
१०८ दिव्य देसम वास्तव में १०८ विष्णु मंदिरों का समूह है। वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर इस १०८ दिव्य देसम में से एक मंदिर है। विष्णु भक्त अपने जीवनकाल में प्रायः इन सभी १०८ मंदिरों के दर्शन करते हैं। इन १०८ मंदिरों में से १४ मंदिर कांचीपुरम में ही स्थित हैं।
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर का इतिहास
कैलाशनाथ मंदिर के पश्चात वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर कांचीपुरम का दूसरा प्राचीनतम मंदिर है। इसका निर्माण पल्लव राजा नन्दिवर्मन द्वितीय ने ७वी. शताब्दी के अंत में अथवा ८वी. शब्दी के आरम्भ में करवाया था। तत्पश्चात इसकी देखरेख वहां राज्य करते चोल वंशी एवम विजयनगर राजाओं ने की थी। यह तथ्य इस मंदिर को द्रविड़ वास्तुकला में संरचित सर्वाधिक प्राचीन पाषाणी मंदिरों में से एक बनाता है। इस मंदिर ने अवश्य आगामी मंदिरों के निर्माण को प्रभावित किया होगा।
नन्दिवर्मन द्वितीय के शासनकाल में इस मंदिर को सम्राट के मूल नाम पर परमेश्वर विष्णुगृहम कहा जाता था। तत्पश्चात इसका नाम वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर हो गया। तमिल भाषी नगरों में विष्णु को पेरूमल कहा जाता है।
यहाँ भगवान् विष्णु को वैकुंठनाथन के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भगवान् विष्णु अपनी पत्नी वैकुण्ठवल्ली के साथ निवास करते हैं।
मंदिर के जलकुंड को ऐरम्मद तीर्थं कहा जाता है।
मंदिर से जुडी किवदंतियां
मंदिर को मन भर कर निहारने के पश्चात एक विचार मन में कौंधा कि कांचीपुरम में विशाल विष्णु कांची होने के बाद भी यह विष्णु मंदिर शिव कांची में क्यों निर्मित किया गया। इसके पृष्ठ भाग में एक किवदंती है।
इस कथा के अनुसार यहाँ का शासक राजा विरोच निःसंतान था। संतान प्राप्ति के लिए उसने भगवान् शिव की आराधना की थी। भगवान् शिव ने राजा को वरदान दिया कि भगवान् विष्णु के द्वारपाल उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। समय आने पर राजा को दो पुत्ररत्नों की प्राप्ति हुई। दोनों पुत्र बड़े होकर भगवान् विष्णु के परम भक्त बने। तभी से भगवान् विष्णु भी यहाँ वैकुण्ठनाथ के रूप में विराजे। आप जानते ही हैं कि विष्णु के धाम को वैकुण्ठ कहा जाता है।
मेरे विचार से यह दंतकथा हिन्दू धर्म के दो पंथों, शैव एवं वैष्णव पंथ को साथ लाती है ताकि इन दो पंथों के अनुगामी एक दूसरे का सम्मान कर सकें तथा शान्ति से साथ रह सकें।
वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर के उत्सव
हिन्दू पञ्चांग के अनुसार प्रत्येक एकादशी के दिन, जिसका सम्बन्ध भगवान् विष्णु से है, वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। राम नवमी एवं जन्माष्टमी के साथ साथ वैकुण्ठ एकादशी भी यहाँ का एक प्रमुख उत्सव है।
डी डेनिस हडसन द्वारा वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर पर लिखी पुस्तक के अनुसार, मंदिर के मध्य तल पर स्थापित विष्णु मूर्ति उनके १२ भिन्न रूपों में पूजी जाती है। वे १२ रूप इस प्रकार हैं:
१. केशव
२. नारायण
३. माधव
४. गोविन्द
५. विष्णु
६. मधुसुदन
७. त्रिविक्रम
८. वामन
९. श्रीधर
१०. ऋषिकेश
११. पद्मनाभ
१२. दामोदर
विष्णु के ये १२ रूपों में से प्रत्येक रूप की, हिन्दू पंचांग के एक मास तक आराधना की जाती है। इसका आरम्भ अंग्रेजी कैलेंडर की १०वीं. तिथि से होता है।
विष्णु कांची के वरदराज पेरूमल मंदिर से विपरीत, इस मंदिर के दर्शन के लिए कुछ ही भक्त आते हैं। एक ओर कम लोगों की उपस्थिति हमें मंदिर की सूक्ष्मता को निहारने का भरपूर अवसर प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर, भक्तों द्वारा की जाती पूजा अर्चना से प्राप्त उर्जा एवं कोलाहल की अनुपस्थिति खलती भी है।
यात्रा सुझाव
वरदराज पेरूमल मंदिर कांचीपुरम में, प्रसिद्ध कांची कामाक्षी मंदिर के समीप स्थित है।
यह मंदिर प्रातः ७:३० बजे से दोपहर १२ बजे तक, तत्पश्चात सायं ४:३० बजे से ७:३०बजे तक खुला रहता है।
मंदिर में प्रतिदिन ६ पूजा अर्चना की जाती है।
वर्तमान में यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के आधीन है। यहाँ उनका एक पहरेदार उपलब्ध रहता है। मंदिर के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए आप उनसे सहायता मांग सकते हैं।
गर्भगृह के सिवाय, अन्य सभी स्थानों में छायाचित्रिकरण की अनुमति है।
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे
साभार https://www.inditales.com/hindi से