Thursday, November 28, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवमध्यकाल में मुस्लिम आतताईयों से मुकाबला करने वाली भारत की...

मध्यकाल में मुस्लिम आतताईयों से मुकाबला करने वाली भारत की प्रथम महिला वीरांगणा सती रानीबाई

वीरांगणा सती रानीबाई ने देश व जाति की रक्षा के लिए, धर्म की स्थापना के लिए हंसते – हंसते कष्ट के मार्ग पर चलने का एक उदाहरण प्रस्तुत किया । उसने देश की ही नहीं विश्व की नारियों के सामने एक उदाहरण रखा कि भारतीय नारी विशेष रुप से राजरानी किस प्रकार अपना सब कुछ धर्म की बलिवेदी पर कितनी सरलता से भेंट चढा सकती है , यदि स्वयं को अग्निदेव के पास भी समाप्त करने के लिए प्रस्तुत करना पडे तो उससे भी इस नारी ने कभी चिन्ता नहीं की तथा अपना सर्वस्व लुटाने के लिए सदा तत्पर रही है । भारत पर प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी का प्रतिरोध करने वाले राजा दाहिर की पत्नी तथा राजरानी वीरांगना रानीबाई ऐसी ही नारियों में प्रमुख स्थान रखती हैं ।

बगदाद के खलीफ़ा के आदेश से सन् ७१२ इस्वी में मुहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण किया । यह किसी मुसलमान का भारत पर प्रथम आक्रमण था, जो मध्यकाल में भारत पर हुआ । सर्वप्रथम उसने देबल पर आक्रमण किया, यहां उसने भारी तबाही मचाई , नगर को अपने कतलेआम से उजाड कर दिया तथा मन्दिर को लूट कर उसको अपवित्र कर दिया । यहां से चल कर वह नैरन पहुंचा । यहां से उसने अपनी योजना को गति देने के लिए तैयारी की । नैरन सिन्ध नदी के निकट होने के कारण ,यहां से भारत में प्रवेश करने के लिए नदी को पार करना आवश्यक था , इस कारण इसने यहां रह्ते हुए एक विशाल बेडा तैयार किया तथा इस की सहायता से सिन्ध नदी को पार करने की तैयारी आरम्भ कर दी। उधर राजा दाहिर को भी इसके आगमन का पता चल चुका था तथा उसने भी युद्ध की तैयारियां आरम्भ कर दीं।

दाहिर की राजधानी आलोर नामक नगर में होते हुए भी उसकी इच्छा रावार के दुर्ग में सुरक्षित रहते हुए ,इस दुर्ग से ही प्रतिरोध करने की थी। इस योजना को कार्यरुप देते हुए वह पुत्र जयसिंह तथा राजरानी रानीबाई को लेकर रावार के इस किले में चला गया । ( कहा तो यह भी जाता है कि इस राजरानी का नाम लाडी था । हो सकता है कि उसे प्रेम से लाडी भी कहा जाता हो किन्तु चाचनामा के लेखक इसे रानीबाई के नाम से ही स्वीकार करते हैं।) यहां पर दाहिर ने अपने ठाकुरों के सहयोग से भयंकर युद्ध किया । युद्ध भूमि में दाहिर ने खूब शत्रु का संहार किया, वह युद्ध क्षेत्र में ही हाथी से उतर कर युद्ध करने लगा , किन्तु दुर्भाग्य से वह मारा गया । दाहर की सेना बडी वीरता से शत्रु से जूझती रही ।

पति की मृत्यु का समाचार पाकर रानी रानीबाई का चेहरा क्रोध से लाल हो गया । देखते ही देखते इस भारतीय नारी ने , राजा दाहिर की महिषी ने भी म्यान से तलवार खींच ली । इस सम्बन्ध में चाचनामा में उल्लेख किया गया है कि “पन्द्र्ह सहस्र सेना की सहायता से रानी ने कासिम पर आक्रमण कर दिया तथा शत्रु सेना को गाजर मूली की भान्ति काटने लगी। ज्यों – ज्यों रानी लड़ती हुई आगे बढ़ रही थी , त्यों – त्यों ही उसके सैनिकों की वीरता भी बढ़ती जाती थी , उनका उत्साह भी निरन्तर बढ रहा था । वह वीर सैनिकों का उत्साह बढाते हुये उन्हें ललकार रही थी कि वीरो आगे बढो, हामारी इस वीर प्रस्विनी भारत भूमि से धर्म द्रोहियों को खदेडना है , यहां से उसे निकाल बाहर करना है, यह प्रत्येक आर्य का परम धर्म है , हमने धर्म की रक्षा करनी है । गो, ब्राह्मण तथा आर्य धर्म की रक्षा से ही हम विश्व के सभ्य राष्ट्रों के सम्मुख अपनी उन्नत सभ्यता व विश्व को गॊर्वान्वित करने वाली संस्कृति का वर्णन करने मे समर्थ होंगे । इस प्रकार उत्साह से भरी यह सेना शत्रु को गाजर- मूली की भान्ति काट रही थी किन्तु भाग्य को कुछ ओर ही मन्जूर था । शत्रु सेना किले में प्रवेश करने में सफ़ल हो गई ।

किले पर शत्रु का आधिपत्य होते देख राजरानी को अपना आगामी निर्णय लेने में एक क्षन भी न लगा । रानी ने तत्काल किले की सब नारियों को एक स्थान पर एकत्र कर कहा कि इस किले पर गो हत्यारों का कब्जा हो गया है । हमारी स्वाधीनता लुट गयी है । हम दासत्व का जीवन नहीं जी सकते । हम अपना सतीत्व भंग करवा कर तथा पराधीन रह कर जीवित रहें, यह हमें स्वीकार हो सकता है ? हमारे पति अब इस संसार में नहीं हैं । वह हमारी प्रतीक्षा स्वर्ग में कर रहे हैं । हम वीर नारियों को अपना धर्म निभाना है । उस धर्म पर चलते
हुए हमें शीघ्र ही यहां से प्रस्थान करना है ।

इस का वर्णन चाचनामा में बडे विस्तार से किया गया है । इस के वर्णन के अनुसार वहां उपस्थित हिन्दु रमणियों ने रानी की हां में हां मिलाते हुये विश्वास दिलाया कि हम अग्निदेव को अपना सर्वस्व भेंट कर शहीद होने को तैयार हैं ।

भारतीय परम्परा के अनुरुप देखते ही देखते एक विशाल अग्निकुण्ड, हवनकुण्ड तैयार किया गया । रक्तिम वस्त्र धारण कर सब से पूर्व राजरानी धधकती चिता में हंसते – हंसते कूद गई । धधकती आग में उसकी शिखाएं आकाश से बातें करने लगीं । यह आर्य बाला आर्य विजयी की प्रतिनिधी की भान्ती अपने पति के श्री चरणॊं में स्वर्ग सिधार गयी । अपनी रानी के जोहर को देख अन्य नारियां कैसे पीछे रह सकती थीं ?, उन्होंने भी उसका अनुगमन किया तथा अपनी रानी के साथ ही न समाप्त होने वाली यात्रा पर चल दीं ।

इस प्रकार आलोर ही नहीं रावार भी अपनी तेजस्विनी सती रानी के स्वर्ग गमन पर शमशान में बदल गये । वह रानी मध्यकालीन ही नहीं आगामी इतिहास के लिये नारियों की एक प्रकार की मार्ग – दर्शक बन गईं । वह एक आदर्श पत्नि ,धर्म परायण नारी, वीर योद्धा , कुशल सैन्य संचालक तथा रजोचित गुणों से सम्पन्न थी । जब तक यह सूर्य व चान्द चमकते रहेंगे , तब तक राजरानी का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण की भान्ति चमकता रहेगा ।

डा.अशोक आर्य
पॉकेट १/६१ रामप्रस्थ ग्रीन से.७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ.प्र.

व्ह्ट्सएप्प ०७१८५२८०६८
E Mail ashokaarya1944@rediffmail.com

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार