कोटा। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय सनातन संस्कृति का परचम विश्व में लहरा कर इसका महत्व प्रतिपादित किया। उन्होंने मंदिर संस्कृति के मूल्यों से भी विश्व को अवगत कराया। यह विचार सेवा निवृत्त प्रोफेसर डॉ. शशि प्रकाश चौधरी ने शुक्रवार को विवेकानंद जयंती पर कोटा के राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय के डॉ एस.आर .रंगानाथन कन्वेंशनल हाल में आयोजित आध्यात्मिक संत एवं राष्ट्रीय गौरव स्वामी विवेकानंद जी की 161 वी जयंती पर व्याख्यानमाला कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। उन्हें कहा कि हमारे यहां पुरातन काल से मंदिर संस्कृति स्थापित रही जिसको विदेशी आक्रांताओं ने नष्ट किया। अब मंदिर संस्कृति का पुनः उदय हो रहा है। सनातन मनुष्यता की धरोहर है। देश में पिछली सदी में जो नरेंद्र थे उनका काम आज इस सदी में दूसरे नरेंद्र कर रहे हैं।
मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर के.बी.भारतीय ने विवेकानंद के कृतित्व और व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका जीवन वेदांत को समर्पित रहा और इसे उन्होंने अपने व्यवहार में उतारा। विवेकानंद ने सभी धर्मो का सार बंधुत्व के मार्ग को बताया जिसमें दया, करुणा, सहयोग और विश्व का कल्याण शामिल है। जब यह होगा तब पूरा विश्व एक परिवार की तरह हो जाएगा। आपस में मिल कर ही विश्व मानवता का भला कर सकते हैं। विवेक, प्रज्ञा और बुद्धि का उपयोग कर ही आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने वेदांग और उपनिषदों के उद्धरणों को स्पर्श करते हुए जीव और ब्रह्म की विस्तार से व्याख्या की और कहा की छंदोउपनिषद में आत्मा को सर्वोपरि माना गया है।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र ‘निर्मोही’ ने कहा कि सनातन धर्म की पहचान चरित्र और संस्कार हैं। लोक धर्म से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा हमारी संस्कृति में निष्काम कर्म की महत्ता प्रतिपादित की गई है। अगर कोई चित्रकार दत्तचित होकर चित्र बनाता है कोई रसोईया रसोई बनाता है तो इससे बेहतर निष्काम कर्म क्या हो सकता है। उन्होंने साहित्य और संवाद के परस्पर संबंध को प्रतिपादित करते हुए कहा की बिना संवाद के साहित्य नहीं है, संवाद होता रहना चाहिए, संवाद से ही परंपरा कायम रहती है।
विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘रामू भैया’ ने अपने उद्बोधन में कहा कि सनातन पूरे राष्ट्र का गौरव है और इस दिन पर पूरा विश्व गौरव करता है। हमें विवेकानंद के जीवन के वह छोटे-छोटे प्रसंग बच्चों तक पहुंचाने चाहिए जो उन्हें संस्कार और चरित्र निर्माण के लिए प्रेरित करें।
स्वागत उद्बोधन में पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि राष्ट्रीय गौरव बढ़ाने मे स्वामी जी का स्थान सर्वोपरी है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टेगोर ने कहा था कि भारत को जानना हे तो स्वामी विवेकानद को पढ़ो। उन्होंने बताया की पुस्तकालय विवेकानंद जयंती के उपलक्ष में एक पूरे पखवाड़े के अंतर्गत विविध कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। साहित्यकार योगीराज ‘योगी’ ने विवेकानंद पर काव्य पाठ किया।
कार्यक्रम में विवेकानंद साहित्य की प्रदर्शनी, वैदिक गणित के चार्टों की प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। आरएस सोलंकी ने वैदिक गणित के सूत्रों की व्यवहारिक जानकारी दी। प्रारंभ में अथितियों ने मां सरस्वती और विवेकानंद की तसवीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। डॉ. शशि जैन ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रेम शास्त्री ने किया। पुस्तकालय के परामर्शदाता डबली कुमारी ने सभी का आभार व्यक्त किया।