Monday, November 25, 2024
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‘महाराष्‍ट्र के ज्‍योतिर्लिंगम मंदिर’ पर वेबिनार का आयोजन

पर्यटन मंत्रालय अपनी ‘देखो अपना देश’ पहल के अंतर्गत पर्यटन पर केंद्रित विविध विषयों, थीम्‍स आदि पर वेबिनारों का आयोजन कर रहा है। “75 डेस्टिनेशन्स विद टूर गाइड्स”के अंतर्गत आज 11 दिसम्‍बर, 2021 को ‘महाराष्‍ट्र के ज्‍योतिर्लिंगम मंदिर’ पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार की प्रस्‍तुति क्षेत्रीय स्‍तर के गाइड उमेश नामदेव जाधव ने की।

महाराष्‍ट्र में लोकप्रिय और पूजनीय धार्मिक एवं आध्‍यात्मिक स्‍थल बड़ी तादाद में हैं, जो बड़ी संख्‍या में पर्यटकों को आकृष्‍ट करते हैं। महाराष्‍ट्र के प्रमुख ज्‍योतिर्लिंगों में त्रियंबकेश्‍वर (त्र्यंबकेश्‍वर), भीमाशंकर, घृष्‍णेश्‍वर,औंढा नागनाथ और परली वैजनाथ शामिल हैं। इन मंदिरों में भगवान शिव ज्‍योतिर्लिंगम के रूप में प्रतिष्‍ठापित हैं और भारत की धार्मिक मान्‍यताओं में पुरातन काल से श्रद्धेय रहे हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से,सुदूर दक्षिण का ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम में, जबकि सुदूर उत्‍तर का ज्योतिर्लिंग हिमालय में उत्‍तराखंड के केदारनाथ में स्थि‍त है। ये मंदिर पुराणों की किंवदंतियों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं तथा इतिहास और परंपरा की दृष्टि से समृद्ध हैं।

त्र्यंबकेश्‍व या त्रियंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगम नासिक से 28 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और यह उन चार स्थानों में से भी एक है जहां सिंहस्थ कुंभ मेला लगाया जाता है जिसमें देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। स्‍थापत्‍य की दृष्टि से यह मंदिर नागर शैली में काले पत्थरों से निर्मित है और विशाल प्रांगण से घिरा हुआ है। इसके गर्भगृह की संरचना आंतरिक रूप से वर्गाकार तथा बाहरी रूप से तारकीय है, जिसमें एक छोटा शिवलिंग – त्र्यंबक है। शिवलिंग गर्भगृह के फर्श निचाई में स्थित है। शिवलिंग के ऊपर से सदैव जल निकलता रहता है। आमतौर पर शिवलिंग चांदी के मुखावरण(मास्क) से ढका रहता है और त्योहार के अवसर पर उसे पांच मुखों वाले सुनहरे मुखावरण से सुसज्जित किया जाता है। प्रत्येक मुख पर सोने का मुकुट होता है। इस मंदिर की संरचना बहुत ही गरिमामय और समृद्ध है।

भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो देश भर से श्रद्धालुओं को आकृष्‍ट करता है। पुणे जिले में स्थित यह मंदिर भारत के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। यह भीमा नदी का उद्गम स्थल भी है। भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने की कथा से इस मंदिर का करीबी नाता है। कहते हैं कि शिव ने देवताओं के अनुरोध पर भीम रूप में सह्याद्री पहाड़ियों के शिखर पर निवास किया था और युद्ध के बाद उनके शरीर से निकलने वाले पसीने से भीमरथी नदी का निर्माण हुआ था। यह मंदिर वास्तुकला की नागर शैली में निर्मित है। भीमाशंकर पुणे से लगभग 110 किलोमीटर और मुंबई से 213 किलोमीटर की दूरी पर है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंगम औरंगाबाद में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। यह घुश्मेश्वर के नाम से भी विख्‍यात है। इसकी पुरातात्विक पुरातनता 11वीं-12वीं ईसवी है। इस मंदिर के नाम का उल्लेख शिव पुराण और पद्म पुराण जैसे पौराणिक साहित्य में मिलता है। मंदिर वर्तमान में उसी स्‍वरूप में है, जिस स्‍वरूप में इसे रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था। यह मंदिर लाल पत्थरों निर्मित से है और इसका शिखर पांच स्तरीय नागर शैली का है। मंदिर का लिंग पूर्वमुखी है, इसके गर्भगृह में 24 स्तंभ हैं, जिन पर भगवान शिव के बारे में कई किंवदंतियों और कहानियों को सुंदर नक्काशी के साथ उकेरा गया है। नंदी की मूर्ति दर्शनार्थियों को बेहद आकर्षक लगती है।यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल – एलोरा की गुफाएं इस मंदिर के बहुत निकट हैं और लगभग 7-10 मिनट की ड्राइव से वहां पहुंचा जा सकता है।

औंढा नागनाथ ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित 13वीं सदी का मंदिर है। औंढा नागनाथ को सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे पांडवों द्वारा स्थापित प्रथम या ‘आद्या’ लिंग माना जाता है। ‘नागनाथ’ का मंदिर वास्तुकला की हेमाड़पंथी शैली में बनाया गया है और इसमें उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। मंदिर का निर्माण देवगिरि के यादवों द्वारा किया गया था। मंदिर में सुंदर मूर्तिकला की सजावट है। वर्तमान मंदिर एक सुदृढ़ घेरे में है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर अर्ध मंडप/मुख मंडप हैजो मुख्य हॉल तक जाता है। मंदिर के स्‍तम्‍भ और बाहरी दीवारों को मूर्तिकला से सुसज्जित किया गया है। मुख्य हॉल में इसी तरह के तीन प्रवेश द्वार हैं। यह औरंगाबाद से 210 किलोमीटर दूर और निकटतम रेलवे स्टेशन चोंडी है। हालांकि सुविधाजनक रेलवे स्टेशन परभणी है।

परली वैजनाथ के ज्योतिर्लिंगम मंदिर को वैद्यनाथ भी कहा जाता है और इसका जीर्णोद्धार रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण एक पहाड़ी पर पत्थरों से किया गया है। यह मंदिर भूमि के स्‍तर से लगभग 75-80 फुट की ऊंचाई पर है। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में है और उसके भव्य द्वार पर पीतल की परत चढ़ायी गई है। चार मजबूत दीवारों से घिरे इस मंदिर में गलियारे और आंगन है।

12 ज्योतिर्लिंगों में से,सुदूर दक्षिण का ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम में, जबकि सुदूर उत्‍तर का ज्योतिर्लिंग हिमालय में उत्‍तराखंड के केदारनाथ में स्थि‍त है। ये मंदिर पुराणों की किंवदंतियों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं तथा इतिहास और परंपरा की दृष्टि से समृद्ध हैं।जब पुराणों की चर्चा हो रही हो, तो पवित्र शहर वाराणसी का उल्लेख आवश्‍यक हो जाता है। पवित्र शहर वाराणसी या बनारस दुनिया की सबसे प्राचीनतम बसावट वाली बस्तियों का उदाहरण है। पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित यह शहर सदियों से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। भगवान शिव का निवास स्‍थान माना जाने वाला वाराणसी देश के सात पवित्र शहरों में से एक है। वाराणसी को भारत के सभी तीर्थ स्थलों में सबसे पवित्र समझा जाता है। वाराणसी या बनारस को काशी के नाम से भी जाना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्‍वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था तथा मंदिर का प्रतिष्ठित 15.5 मीटर ऊंचा सोने का शिखर और सोने का गुंबद पंजाब के शासक महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1839 में दान में दिया गया था। अन्य मंदिरों और संकरी गलियों या रास्‍तों की भूलभुलैया के भीतर विराजमान यह मंदिर मिठाई, पान, हस्तशिल्प और अन्य सामानों की दुकानों से घिरा है।

‘देखो अपना देश’ वेबिनार श्रृंखला राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस विभाग, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ तकनीकी साझेदारी में प्रस्तुत की गई है। वेबिनार के सत्र अब https://www.youtube.com/channel/UCbzIbBmMvtvH7d6Zo_ZEHDA/featured पर तथा पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के सभी सोशल मीडिया हैंडलों पर भी उपलब्ध हैं।

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