एक मित्र ने शंका के माध्यम से पूछा कि क्या आप श्री कृष्ण जी को भगवान् मानते है?
मेरा उत्तर इस प्रकार से है-
महाभारत में श्री कृष्ण जी के विषय में लिखा है-
वेद वेदांग विज्ञानं बलं चाप्यधिकं तथा। नृणां हि लोके कोSन्योSस्ति विशिष्ट: ।।
अर्थात आज के समुदाय में वेद वेदांग के ज्ञान तथा शारीरिक शक्ति एवं सामरिक अस्त्र-शस्त्र की कुशलता में श्री कृष्ण सबसे उत्कृष्ट हैं। कोई भी दूसरा कृष्ण के तुल्य नहीं हैं। भीष्म पितामह के मुख से कहे गए यह शब्द अक्षरत: श्री कृष्ण जी के गुणों को सिद्ध करते हैं।
यो वै कामान्न भयान्न लोभान्नार्थकारणात्।
अन्यायमनुवत्र्तेत स्थिरबुद्धिरलोलुपः।
धर्मज्ञो धृतिमान् प्राज्ञः सर्वभूतेषु केशवः।। (महाभारत उद्योग. अ. 83)
पाण्डवों की ओर से दूत रूप में जाने के लिए उत्सुक श्री कृष्ण के विषय में वेदव्यास जी कहते है कि श्री कृष्ण लोभ रहित तथा स्थिर बुद्धि हैं। उन्हें सांसारिक लोगों को विचलित करने वाली कामना, भय, लोभ या स्वार्थ आदि कोई भी विचलित नहीं कर सकता, अतएव श्री कृष्ण कदापि अन्याय का अनुसरण नहीं कर सकते। इस पृथ्वी पर समस्त मनुष्यों में श्री कृष्ण ही धर्म के ज्ञाता, परम धैर्यवान और परम बुद्धिमान हैं।
श्री कृष्ण में एक ओर वेद विज्ञान था, दूसरी ओर बल की भी अधिकता। भगवान् में भग शब्द में 6 गुण हैं। ऐश्वर्य,जप, बल, श्री, वैराग्य और यश। इनमें ज्ञान और बल प्रधान है। अन्य गुण इन्हीं दो से सम्बंधित है। ज्ञान में ऐश्वर्य और वैराग्य निहित है। बल में श्री और यश आ जाते हैं। ब्रह्म और क्षत्र इन्हीं दोनों का अपर नाम हैं। इन सभी गुणों का कृष्ण में समन्वय था इसलिए हम उन्हें भगवान् कहकर पुकारते हैं। ईश्वर नहीं कहा गया है।
स्वामी दयानंद जी ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते है कि पूरे महाभारत उनका गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है। जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्री कृष्ण जी ने जन्म से मरण पर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो,ऐसा नहीं लिखा।
महाभारत या भागवत में कहीं भी श्री कृष्ण जी द्वारा मूर्तिपूजा करना नहीं लिखा हैं।
अपितु श्रीमद्भागवत में श्री कृष्ण जी की दिनचर्या का दशम स्कंध अध्याय 70 में श्लोक 4 से 6 में वर्णन इस प्रकार मिलता हैं-
श्री कृष्ण जी ब्रह्म मुहर्त उठे और शौच आदि से निवृत हो प्रसन्न अन्त: करण से तमस से परे आत्मा अर्थात परमात्मा का ध्यान किया। –
4
जो एक है, स्वयं ज्योति स्वरुप है, अनंत है, अव्यय परिवर्तन रहित है, अपनी स्थिति से भक्तों के पापों नष्ट करता है, उसका नाम ब्रह्मा है, इस संसार की रचना और विनाश के हेतुओं से अपने अस्तित्व का प्रमाण दे रहा है और भक्तों को सुखी करता हैं। –
5
और निर्मल जल में स्नान करके यथा विधिक्रिया के साथ दो वस्त्र धारण करके संध्या की विधि की और श्रेष्ठ श्री कृष्ण ने हवन किया और मौन होकर गायत्री का जाप किया। –
6
श्री कृष्ण जी का जीवन धर्मयुक्त राजनीती से प्रेरित था। आपके महान नीतिकार के कुछ गुण महाभारत में इस प्रकार से प्रदर्शित होते हैं-
१. पांचाल देश में द्रौपदी स्वयंवर में असफल नृपों के घोर क्षोभ और युद्ध से पांडवों का संरक्षण। -आदि पर्व अध्याय 199
२. पांडवों को आधा राज्य दिलाना और इंद्रप्रस्थ की स्थापना। – आदि पर्व अध्याय 206
३. जरासंध वध और राजाओं की मुक्ति। -सभा पर्व अध्याय 24
४. राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों और श्रेष्ठ विद्वानों के पग प्रक्षालन का कार्यभार संभालना। -सभा पर्व अध्याय 35
५. शिशुपाल वध। -सभा पर्व अध्याय 45
६. वनवास में पांडवों से भेंट। हस्तिनापुर में जुए खेलने को न रोक पाने पर खेद व्यक्त करना। – वन पर्व अध्याय 13
७. पांडवों में हीन भावना उत्पन्न करने के लिए संजय की आलोचना। – उद्योग पर्व अध्याय 19
८. संधि दूत बनाकर कौरवों की सभा में ओजस्वी भाषण देना। – उद्योग पर्व अध्याय 5
९. दुर्योधन को फटकार। – उद्योग पर्व अध्याय 129
१०. दुर्योधन द्वारा बंदी बनाने पर असफल होने पर श्री कृष्ण द्वारा सिंह गर्जन। – उद्योग पर्व अध्याय 130
११. हस्तिनापुर में माता कुंती, विदुर से मिलकर पांडवो के लिए सन्देश लाना।- उद्योग पर्व अध्याय 132-133
१२. कर्ण को पांडवों का सहयोग देने के लिए प्रेरणा देना। – उद्योग पर्व अध्याय 140
१३. अर्जुन को युद्ध के आरम्भ होने से पहले क्षत्रिय के धर्म पालन की प्रेरणा देना। – भीष्म पर्व अध्याय 25-42
१४. नीतिनिपुणता से भीष्म वध।- भीष्म पर्व अध्याय 107
१५. नीतिनिपुणता से द्रोण वध।- द्रोण पर्व अध्याय 190
१६. नीतिनिपुणता से जयद्रथ वध।- द्रोण पर्व अध्याय 146
१७. नीतिनिपुणता से कर्ण वध।- कर्ण पर्व अध्याय 91
१८. युधिष्ठिर द्वारा व्यथित होने पर आत्महत्या की घोषणा करने पर कृष्ण द्वारा समझाना।- कर्ण पर्व अध्याय 70
१९. नीतिनिपुणता से शल्य वध।- शल्य पर्व अध्याय 91
२०. कर्ण की अमोध इन्द्र शक्ति से घटोत्कच का वध और अर्जुन की रक्षा।-द्रोण पर्व अध्याय 180
२१. नीतिनिपुणता से दुर्योधन वध।- शल्य पर्व अध्याय 18
२२. युधिष्ठिर को भीष्म के पास ले जाकर धर्मनीति, युद्धनीति, राजनीती का उपदेश दिलाना।- शांतिपर्व अध्याय 46-50
२३. युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ की प्रेरणा देना। – अश्वमेध पर्व अध्याय 71
२४. पुत्रमोह से ग्रस्त धृतराष्ट्र से भीम के प्राणों की रक्षा।-स्त्रीपर्व अध्याय 12
२५. अश्वथामा की चपलता पर उसे झाड़ लगाकर अपने घोर ब्रह्मचर्य व्रत का वर्णन करना। – सौप्तिक पर्व अध्याय 12
इस प्रकार से श्री कृष्ण जी जैसा नीतिकार, सदाचारी वेद वेता, धर्मज्ञ, कर्मयोगी, विनम्र, निर्लोभी, धर्मरक्षक, सद्गृहस्थ, ईश्वर उपासक, महात्मा, महापुरुष अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण भगवान कहलाने के अधिकारी हैं।
(लेखक बाल रोग विशेषज्ञ हैं व धार्मिक, ऐतिहासक वव अध्यात्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)