Thursday, December 26, 2024
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क्या मोदीजी का सूट सूरत के विकास की नई कहानी लिखेगा?

पिछले महीने सूरत हीरा उद्योग ने एक नीलामी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादास्पद महीन धारियों वाला सूट 4.31 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि में खरीदा था, जो उसका एक रणनीतिक निवेश माना जाना चाहिए। इसका फायदा उसे भविष्य में कारोबारी मामलों में केंद्र के समर्थन के रूप में मिल सकता है। विशेष रूप से ऐसे समय में जब हीरे का कारोबारी केंद्र मुंबई के स्थान पर सूरत को बनाने को लेकर गहमागहमी बढ़ रही है।

देश से तराशे हीरों का जितना निर्यात होता है, उसमें मुंबई का योगदान करीब 90 फीसदी होता है। सूरत में हीरों के कारोबार के लिए एक्सचेंज बन रहा है, जिससे मुंबई का ज्यादातर कारोबार सूरत में जाने की संभावना है। स्थानीय उद्योग की मांग है कि देश में इस तरह का माहौल बने कि तराशकारों को भारत में ही कच्चे हीरे मिल जाएं। अभी उन्हें कच्चे हीरे खरीदने के लिए बेल्जियम, रूस और पश्चिम एशिया जाना पड़ता है।

हीरा तराशकार इस संबंध में पहले ही केंद्र से मदद की गुहार लगा चुके हैं। रत्नाभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के बीच कटे एïवं तराशे हीरों का कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 5 फीसदी घटकर 1.16 लाख करोड़ रुपये रहा है। ऐसी स्थिति में उद्योग की मांग पर विचार करना जरूरी है। सूरत के हीरा उद्योग के मोदी का सूट खरीदने के फैसले में परोपकार के साथ ही खुद का हित भी जुड़ा था।

साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी में सामाजिक अध्ययन केंद्र के पूर्व निदेशक और समाजशास्त्री विद्युत जोशी के मुताबिक, 'हीरा कटाई करने वाले लोगों की पहली पीढ़ी 1970 के दशक में अकाल प्रभावित सौराष्ट्र आई थी और उन्होंने सूरत में जैन कारोबारियों के यहां काम करना शुरू किया था। उनमें से कुछ को उन दिनों हर महीने 10,000 रुपये तक वेतन मिलता था और इन नए अमीरों की कई तरह से प्रशंसा की गई।'

सूरत में हीरा कारोबारियों की वर्तमान पीढ़ी उन सौराष्ट्रवासियों की तीसरी पीढ़ी है और उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए न केवल अपने गांवों को धन मुहैया कराया, बल्कि आज के सूरत को बनाने में अहम भूमिका निभाई है। सूरत पुराने समय में बंदरगाह वाले शहर के रूप में फला-फूला और आज यह भारत में हीरा कारोबार का गढ़ है। यह गुजरात के स्वच्छ शहरों में से एक है। कंक्रीट से बनी चौड़ी-चौड़ी सड़कें साफ एवं स्वच्छ हैं। लोगों का कहना है कि सूरतवासियों ने 1994 में प्लेग के बाद स्वच्छता की अहमियत समझी है।

शहर के व्यापारी मुक्त-हस्त से दान कर रहे हैं, जिसकी बदौलत ही रियायती अस्पतालों समेत ये सामाजिक पहल हुई हैं। सूरत के अतिरिक्त कलेक्टर पी एन मकवाना कहते हैं, 'जब हमने बाढ़ प्रभावित कश्मीरी लोगों के लिए खाद्य पैकेट जुटाने का फैसला लिया तो सुबह योजना बनने के बाद दोपहर तक हवाई अड्डे से दो उड़ानें खाद्य पैकेट लेकर रवाना हो गई थीं।' नीलामी में प्रधानमंत्री का पिनस्ट्रीप सूट खरीदने वाले लालजीभाई पटेल की आंखों में हर कोई गर्व की चमक देख सकता है। वह कहते हैं कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सूरत के सीसीटीवी मॉडल के अध्ययन के लिए एक पुलिस टीम भेजी थी। पटेल ने कहा, 'हम पहले ही सभी ट्रैफिक सिग्नलों पर 600 कैमरे लगवा चुके हैं, जिस पर महज 30 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इससे एक साल के भीतर शहर में अपराध 27 फीसदी कम हो गए हैं।' पटेल अपने मोबाइल फोन में एक वीडियो दिखाते हैं, जिसमें वे प्रधानमंत्री के साथ सहज रूप से बातचीत कर रहे हैं।

खुद पटेल पहली पीढ़ी के कारोबारी हैं। उन्होंने 35 साल पहले एक हीरा तराशकार का काम शुरू किया था और आज उनका कारोबारी साम्राज्य 6,000 करोड़ रुपये का है। वह सौराष्ट्र में पाटीदार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस समुदाय ने एक-दूसरे को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत मदद की है और हीरे की तराशी के कारोबार को सामुदायिक कारोबार बना दिया है। इस समुदाय की न केवल सूरत को बनाने में अहम भूमिका रही है, बल्कि उनका गुजरात की राजनीति में तगड़ा दबदबा रहा है। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद खुद मोदी सूरत के विभिन्न हीरा कारोबारियों से मिलने उनके घर गए थे। इन कारोबारियों में से एक लालजीभाई का दावा है कि वह प्रधानमंत्री को 12 वर्षों से जानते हैं।

उस समय नए मुख्यमंत्री मोदी के लिए समुदाय से मजबूत रिश्ते रखना जरूरी था, जिन्होंने दिग्गज नेता केशुभाई पटेल की जगह ली थी। माना जाता है कि इस समुदाय ने बहुत से राजनेताओं को चुनाव लडऩे में वित्तीय मदद दी है। इस जुड़ाव के चलते सूरत में हुई नीलामी में मोदी के बहुप्रचारित बंदगला के लिए 4.31 करोड़ रुपये कीमत लगने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पटेल ने धर्मनंदन डायमंड्स के कॉरपोरेट कार्यालय के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर एक पुतले को यह सूट पहनाया हुआ है, जहां आगंतुक पुतले के साथ सेल्फी लेने में व्यस्त दिखाई देते हैं। इस सूट पर कई बार नरेंद्र दामोदरदास मोदी लिखा हुआ है। पटेल के लिए 4.31 करोड़ रुपये की राशि ज्यादा नहीं है, जिन्होंने सौराष्ट्र में अपने पैकृत गांव उगामेडी में पिछले साल जल परियोजना के लिए 12 करोड़ रुपये खर्च किए थे।

 

जिलाधीश के कार्यालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2014 में पिछली नीलामी में मोदी के उपहार 2.18 करोड़ रुपये में बिके थे। उसमें 900 वस्तुओं की नीलामी की गई थी। शहर के दो छोटे हीरा कारोबारियों ने दावा किया कि इसी वजह से प्रधानमंत्री ने दिल्ली के बजाय सूरत को नीलामी के लिए चुना। एक कारोबारी ने कहा, 'वह जानते थे कि यहां के कारोबारियों से ज्यादा फंड जुटा सकेंगे। उन्होंने भविष्य में मोदी सरकार का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए रणनीति निवेश किया है।' उद्योग को कई महत्त्वपूर्ण मसलों से निपटना होगा।

एसडीए के सचिव गणेश एन घेवरिया कहते हैं, 'अगर यहीं विक्रेता आ सकते हैं तो कच्चे हीरों के लिए बेल्जियम जाने की क्या जरूरत है? सरकार को केवल यह सुनिश्चित करना है कि देश से बिना बिके हीरों को बाहर ले जाने पर दो फीसदी सीमा शुल्क नहीं लगे।' पटेल इस बात को लेकर विश्वस्त हैं कि ये नियम जल्द बन जाएंगे और हीरा तराशकारों को कच्चा माल खरीदने के लिए रूस और बेल्जियम नहीं जाना होगा। शुरुआती झटकों के बाद प्रस्तावित सूरत डायमंड बुअर्स पटरी पर है। इसके लिए राज्य सरकार ने जमीन आवंटित कर दी है और इस महीने के प्रारंभ में शिलान्यास कर दिया गया है।   सूरत के हीरा कारोबारियों के लिए मार्जिन बढऩा जरूरी है, जो इस समय 3-4 फीसदी है। सूरत स्थित हीरा तराशकार और कारोबारी कीर्ति शाह ने कहा कि डॉलर में उतार-चढ़ाव और वैश्विक मंदी का उद्योग पर वर्ष 2008 से बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, 'सूरत में 6,000 इकाइयों में से करीब 70 फीसदी लघु इकाइयां हैं, जिनका सालाना कारोबार 2 से 15 करोड़ रुपये तक है। बहुत से कम क्षमता पर परिचालन कर रहे हैं, क्योंकि कच्चे माल में निवेश के लिए उनके पास पूंजी नहीं है।'

एसडीए के अध्यक्ष दिनेश नवादिया का दावा है कि कारोबारी उधार में कच्चा माल नहीं ले सकते हैं और अमेरिका से तराशे हीरे लाने के लिए प्रमाणपत्र लेने में 150 दिन लगते हैं। उन्होंने कहा, 'इसलिए तराशकारों के पास बैंकों से ऋण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।' हीरा कारोबार का केंद्र सूरत को बनाने का 1.85 लाख करोड़ रुपये के इस उद्योग के बहुत से कारोबारियों को फायदा मिलेगा।

 

साभार- बिज़नेस स्टैंडर्ड से

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