अगर देश के सभी कानूनों को एक के बाद एक साथ जोड़ लिया जाए तो इससे एक अंतहीन सिलसिला बन जाएगा। भारत में दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है जिसमें 1,17369 शब्द हैं। अमेरिका के संविधान में केवल 4,543 शब्द हैं। देश में 1,248 मुख्य कानून हैं। हालांकि केंद्रीय और राज्य कानूनों की कोई गिनती नहीं है। उच्चतम न्यायालय हर साल जो फैसले देता है, वे 16 खंडों में छपते हैं। इसे 24 उच्च न्यायालयों से गुणा कर दीजिए। फिर हर राज्य के लिए प्रक्रियागत नियम हैं। इन आंकड़ों को केवल कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) से ही संभाला जा सकता है। कृत्रिम मेधा विधि क्षेत्र में नई अवधारणा है।
अलबत्ता, भारतीय विधि व्यवस्था अब भी बुनियादी डिजिटल साक्षरता से जूझ रही है। उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने के लिए शुरू की गई ई-फाइलिंग व्यवस्था को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। पिछले तीन वर्षों में इसके माध्यम से केवल कुछ सौ याचिकाएं ही दायर की गई हैं। ऐसा वकील दिखना दुर्लभ है जो सामने लैपटॉप रखकर अदालत में अपनी दलील पेश करे। उच्चतम न्यायालय ने हाल में पास ही 12 एकड़ में फैली बहुमंजिला इमारतों में अपना विस्तार किया है। यह इस बात का संकेत है कि न्यायपालिका अभी कृत्रिम मेधा के लिए तैयार नहीं है। आम बजट में न्यायपालिका के लिए 0.2 फीसदी बजट रखा गया है, उसे देखते यही उम्मीद की जा सकती है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने हाल ही में घोषणा की थी कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। फिर भी वह कृत्रिम मेधा की भूमिका को अहम मानते हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रति सेकंड 10 लाख शब्द पढ़ सकता है और हजारों पन्नों वाले मामलों में सवालों का जवाब दे सकता है। हाल में अयोध्या मामले में ऐसा देखने को मिला था।
चूंकि न्यायपालिका की कृत्रिम मेधा अपनाने की रफ्तार बहुत धीमी है, इसलिए स्वाभाविक है कि विधि पेशेवरों की चाल भी धीमी है। डेटा क्रांति के लिए विधि कॉलेजों में बहुत कम तैयारी है। विधि विभाग पुराने पाठ्यक्रमों में उलझे हुए हैं और वे भविष्य में ऐसे वकील बनाने के लिए तैयार नहीं हैं जो कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल कर सकें। न्यायाधीशों की भी डिजिटल में रुचि नहीं है और वे अब भी पुराने दौर से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हालांकि कानून और प्रक्रियाओं से संबंधित सॉफ्टवेयर धीरे-धीरे बाजार में उपलब्ध हो रहे हैं लेकिन अभी कुछ ही विधि फर्में उनका इस्तेमाल कर रही हैं। सामान्य वकील उनका बोझ वहन नहीं उठा सकते हैं और न ही उन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं। इतना ही नहीं, अगर वकील के कमरे में कानून की ढेरों किताबें रखी गई हैं तो मुवक्किल भी इससे प्रभावित होते हैं। वकील मौजूदा व्यवस्था में ज्यादा सहज महसूस करते हैं और इसे अपने कारोबार के लिए अच्छा मानते हैं।
कृत्रिम मेधा अभी मुख्य रूप से शोध के लिए उपयोगी है। अभी विधि फर्में में जूनियर वकील यह काम करते हैं। कृत्रिम मेधा के जरिये इस काम को बेहतर ढंग से किया जा सकता है। यह कंपनी जगह के मुवक्किलों को सलाह देने में मददगार है और इसके जरिये उन्हें अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने से पहले पूरी प्रक्रिया से वाकिफ कराया जा सकता है। बार-बार होने वाले नियमित काम में इसकी उपयोगिता बहुत ज्यादा है। सर्वेक्षणों के मुताबिक यह 70 फीसदी से अधिक सटीक होता है। विधि पेशेवरों को आशंका है कि एआई के आने के बाद उनका भी वही हाल हो सकता है जो भाप इंजन आने के बाद घोड़ों का हुआ था।
दूसरे मायनों में भी कृत्रिम मेधा का भविष्य वकीलों के लिए शुभ नहीं है। आशंका है कि एक बार शुरू होने के बाद यह किसी भी मामले के परिणाम की भविष्यवाणी कर सकता है। यह कानून, नजीर और न्यायिक सोच को बेहतर समझता है। इसमें केवल मानवीय कारक नहीं है जैसे न्यायाधीशों का रवैया और वकीलों के तर्क। अगर अदालत में कैमरे की अनुमति दी जाए तो कृत्रिम मेधा न्यायाधीश के भावों का बेहतर विश्लेषण कर सकता है।
अगर कृत्रिम मेधा का चलन आम हो गया तो मुवक्किल भी अपने मामलों की सफलता का अनुमान लगाने के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि उनका पक्ष कमजोर है तो वे मध्यस्थता या निपटारे में जाना पसंद करेंगे। इससे विधि पेशेवरों का भारी नुकसान होगा। डॉक्टरों को अक्सर मरीजों के खास सवालों का सामना करना पड़ता है। गूगल ने अब लोगों को काफी समझदार बना दिया है। वकीलों को भी भविष्य में इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। अंत में कृत्रिम मेधा को भारत में कई अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। मुकदमा लड़ रहे लोगों को जीतने में मदद करने वाले ज्योतिषी वकीलों के चैंबरों के आसपास मंडराते रहते हैं। भृगु संहिता में मौजूदा और भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पूरी जानकारी होती है। फिर कम से कम दो मंदिर ऐसे हैं जहां के देवताओं को मुकदमा लड़ रहे लोगों को जीत का आशीर्वाद देने में विशेषज्ञता हासिल है। इनमें से एक मंदिर हिमाचल में और दूसरा केरल में है।
साभार- https://hindi.business-standard.com/ से