हमारा देश भी अजीब है। वह पिछली बातों को भूलता बहुत जल्दी है। अब देखिये। काला कुर्ता और फटी हुई ब्लू जीन्स वाला गैंग JNU में रोहित वेमुला की बरसी बना रहा है। कमाल है ना। एक आत्महत्या करने वाले को महान बताया जा रहा है। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों में हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला कि आत्महत्या का दोष “स्वघोषित न्यायाधीश भारतीय मीडिया” ने मोदी सरकार और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के सर पर मढ़ था। यह वो पक्ष है जो दिखाया गया था। मगर सत्य को तथ्यों के विपरीत छुपाया गया।
रोहित वेमुला जैसे हज़ारों छात्रों को सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपये की सब्सिडी देकर योग्यता अर्जित करने का अवसर प्रदान करती है। इस सहयोग का मुख्य उद्देश्य समाज के लिए एक सुपठित, बुद्धिजीवी, जिम्मेदार, आदर्श नागरिक बनाना होता हैं। जो समाज और देश के विकास में अपना योगदान दे। पिछले कुछ दशकों से भारतीय विश्वविद्यालयों को पढ़ने-पढ़ाने के स्थान पर राजनीतिक पार्टियां धरना-प्रदर्शन आदि करने का मंच के रूप में प्रयोग कर रही हैं। सबसे बड़ी बात देखिये कि समाज को सबसे अधिक लाभ देने वाले डॉक्टर, इंजीनियर आदि इस पार्टी-बाजी में कभी भाग नहीं लेते। उनका उद्देश्य केवल कठिन पाठ्यक्रम को पूरा कर, अपना कोर्स पूरा कर देश को सेवाएं देना होता है। इसके परत कुछ विश्वविद्यालयों में ऐसे अनेक कोर्स ऐसे चल रहे हैं जिसे हम टाइम पास कहे तो सही रहेगा।
इन कोर्स में दाखिला लेने वाले पढ़ने नहीं अपितु अपनी राजनीति चमकाने वहां आते हैं। कुछ धनी माँ -बाप की संतान होते हैं। इसलिए उनका भविष्य सुनिश्चित होता हैं। मगर बहुतेरे ऐसे युवक भी होते हैं जो निर्धन पृष्ठभूमि से आते हैं। ऐसे युवक पार्टियों के इस भ्रामक दुष्प्रचार का शिकार होकर अपनी शिक्षा से अधिक राजनीतिक पार्टियों के एजेंडा को प्राथमिकता देने लगते है।
रोहित वेमुला भी एक ऐसा ही युवक था। निर्धन पृष्ठभूमि से निकल कर उसे भी जीवन में उच्च स्थान अर्जित करने और बड़ा आदमी बनने का अवसर मिला था। मगर दलित राजनीति के दुष्प्रचार का वह शिकार हो गया। उसे सिखाया गया बीफ फेस्टिवल बनाने, महिषासुर दिवस बनाने, भारतीय संविधान द्वारा फांसी चढ़ाये गए आतंकवादी याकूब मेनन के समर्थन में नारे लगाने, बाबरी मस्जिद विध्वंस दिवस बनाने, “मुज्जफरनगर अभी बाकि है” जैसी फिल्मों का प्रदर्शन करने, टीपू सुल्तान का महिमा मंडन करने, ओवैसी के ऊट-पटांग बयानों पर तालियां बजाने का कार्य करने से समाज सुधार होगा। ऐसे कार्यों को करने के चक्कर में विश्वविद्यालय में अनुशासनहीनता के आरोप भी रोहित पर लगे। इन आरोपों के चलते उसकी छात्रवृति बंद हो गई। उधारी से कब तक कार्य चलता। ऐसी दशा में उसे दलित राजनीति करने वाली पार्टियां सब नकली, ढोंगी, मतलब निकालने वाली दिखने लगी। जब सच सामने आया तो रोहित जैसे साधारण युवक अवसाद से ग्रसित होकर आत्महत्या के लिए विवश हो गया। अंत परिणाम सभी को ज्ञात है।
यक्ष प्रश्न यही है कि “रोहित वेमुला को किसने मारा?” उत्तर भी स्पष्ट है।
रोहित वेमुला को उसका इस्तेमाल कर बब्बल गम के समान फेंकने वालों ने मारा।
उसको “नाम बड़े दर्शन छोटे” वाले राजनीतिक चेहरों ने मारा।
जिनके लिए उसने अपना जीवन दाव पर लगा दिया उसे उन्हीं लोगों ने उसे मारा।
भड़काने वाले भाषण, नकारात्मक सोच, तोड़ने वाली मानसिकता, जहरीले विचार, दूरियां बढ़ाने वाले नारे, द्वेष भावना को बढ़ावा देने वाली राजनीति के उसे मारा। विडंबना देखिये उसके मरने के बाद वही लोग उसे ही पोस्टर बॉय बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं। सब भाषणबाजी में लगे हैं। मगर इस स्वार्थ भरी राजनीति के कारण रोहित जैसे कितने प्रतिभाशाली युवा आज अपना भविष्य बर्बाद कर गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। यह किसी ने नहीं सोचा। पहले बर्बाद करो फिर उसके नाम पर राजनीति करो।
जो युवा इस लेख को पढ़ रहे हैं। वो चिंतन करे और सोचे कि उन्हें जीवन में क्या बनना है। एक हताश, कुंठित, निराश, परेशान, हतोत्साहित, बेरोजगार युवा अथवा एक आदर्श, गुणी, जिम्मेदार, हित करने वाला, कल्याण करने वाला नागरिक। सोचना आपको है!
(लेखक राष्ट्रवादी व अध्यात्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)