हाथरस की हैवानियत के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को दोषी ठहराया जा रहा है। यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि लोग अपने चरित्र पर उंगली उठाने से पहले ही सरकारों को दोष देने लग जाते हैं। लेकिन देश बहुत बड़ा है। निर्भया कांड से हाथरस बलात्कार कांड तक बीते 7 साल और 9 महीनों में देश में कुल मिलाकर 2 लाख 48 हजार 600 बलात्कार हुए। ये तो वे हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड पर हैं। लेकिन लोक लाज और समाज व सरकार के डर से जो बलात्कार पुलिस की फाइलों में दर्ज ही नहीं हुए, उनके आंकड़े इससे तो ज्यादा ही रहे होंगे। ये सारे बलात्कार उस देश में घटे हैं, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है। तो क्या सारा दोष उनका है? नहीं, दोष समाज का है और सुधार समाज में होना चाहिए। सरकारें आती हैं, जाती है, टूटती हैं, बिखरती हैं। लेकिन समाज हमेशा रहता है। इसलिए खुद सुधरिए, समाज को संवारिए, सांसारिक संबंधों को सहेजिए व सामाजिक संतुलन को साधिए। मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रियों ने कोई समाज को सुधारने के ठेका नहीं उठा रखा है। वे पहरेदार हैं हमारे, हम गलती करेंगे, तो सजा देंगे। लेकिन गलतियों के लिए जिम्मेदार तो हम ही रहेंगे। हम सुधरेंगे, तो समाज सुधरेगा, और समाज सुधरेगा, तो देश सुधरेगा। सिर्फ आरोपों से कुछ नहीं होगा।
वैसे, सीधे सीधे तो किसी के समझ में नहीं आएगा कि यूपी के हाथरस और राजस्थान के जयपुर का आपस में क्या संबंध है। लेकिन जयपुर सहित पूरे देश भर में हंगामा मचा हुआ है। जयपुर के वैशाली नगर में हाथरस के जिला कलेक्टर प्रवीण कुमार घर हैं। हंगामा इसीलिए हाथरस से राजस्थान पहुंच गया। पर, जयपुर आते आते मामला राजनीति के रास्तों में भटक भी गया। बलात्कार की घटनाएं तो हाथरस के बाद भी यूपी में कई जगह हुई हैं। बुलंदशहर में बलात्कार का आरोपी रिजवान पकड़ा गया। आजमगढ़ बलात्कार कांड में दोषी दानिश सलाखों में समाया हुआ है। बलरामपुर में हुए बलात्कार में शाहिद और साहिल आरोपी थे। लेकिन यूपी में लगातार हो रही ऐसी घटनाओं के बजाय राजस्थान के बारां की घटना को मुद्दा बनाकर हाथरस से तुलना करते हुए हंगामे की कोशिश हुई। पर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वक्त रहते मामला सम्हाल लिया। लोग इसलिए भी गुस्से में उबल रहे हैं। क्योंकि राजनीति की रवायतें बदल रही हैं। वैसे, जिस देश में कभी एक बेटी पूरे गांव की बेटी हुआ करती थी, उसी देश में अब बेटियों से बलात्कार हो रहे हैं। शर्म सरकारों को नहीं, बल्कि हमें आनी चाहिए। क्योंकि बलात्कार सरकारें नहीं करती, समाज के लोग करते हैं। दोषी समाज है, क्योंकि संस्कार मरते जा रहे हैं।
यह मरते संस्कारों का ही सबूत है कि हमारे हिंदुस्तान में लगभग हर डेढ़ घंटे में एक बलात्कार होता है। ऐसे में क्या पुलिस और क्या अदालतें, क्या सरकारें और क्या समाज, कलंक सभी के माथे पर है। सवाल है कि आख़िर क्यों कुछ भी नहीं बदलता? ध्यान से हर न्यूज चैनल देखें, तो निशाने पर यूपी की योगी सरकार है। लेकिन समाज किसी के भी निशाने पर नहीं है। यह भी तो गलत है। हाथरस में पुलिस ने जो किया, निश्चित रूप से वह युवती की लाश का नहीं, बल्कि व्यवस्था, कानून और न्याय का जबरिया अंतिम संस्कार था। उस मासूम की चिता की राख भले ही ठंडी हो रही है, लेकिन राजनीति गरम हो रही है। इस हैवानियत भरी घटना पर देश एक बार फिर मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर निकल पड़ा है। सहमें दिलों में सवाल सुलग रहे हैं। हर मन में गुस्सा है और हर कोई उफन रहा है। देश दंग है। समाज सांसत में है, और लोग हैरत में। क्योंकि बलात्कार नहीं रुक रहे हैं। निर्भया के वक्त पूरा देश उबल रहा था। हाथरस की हैवानियत पर फिर एक बार देश उसी राह पर दिख रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में फिर कैंडल मार्च निकल रहे हैं, जंतर मंतर पर मजमा फिर जमने लगा है।
गुस्सा भले ही पूरे देश में है, लेकिन लोगों का मिजाज हाथरस के हैवानियत भरे सामूहिक बलात्कार पर टिका है। लेकिन यह भी सच है कि बलात्कार की घटनाएं रोकने के लिए सरकारों को तो सख्त होने की जरूरत है ही, उससे ज्यादा समाज को जिम्मेदार होने की जरूरत है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस वगैरह लगभग सारी राजनीतिक पार्टियां विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी हाथरस गए, तो हिरासत में ले लिया गया। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों के साथ यूपी पुलिस ने शर्मनाक बदतमीजी की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जंतर मंतर पर पहुंचे। लेकिन बीजेपी के प्रखर नेता, प्रदर्शनकारी और प्रवक्ता सारे मौन हैं। वे योगी आदित्यनाथ की सरकार की करतूत के बजाय दूसरे प्रदेशों पर ध्यान भटका रहे हैं। लेकिन उन्हें यह भी तो समझ लेना चाहिए कि दूसरे प्रदेश भी उसी देश का हिस्सा हैं, जिसके प्रधानमंत्री उनके माननीय नेता नरेंद्र मोदी हैं।
तो, सवाल देश का है, केवल उत्तर प्रदेश का नहीं है। बलात्कार की घटनाएं पूरे देश में हो रही हैं, समान रूप से हो रही हैं, और हमारे समाज में ही समाज के लोगों द्वारा हो रही हैं। मतलब यह है कि, दोषी सरकारें नहीं, दोष समाज का है, जिसमें लगातार शिक्षित होने के बावजूद संस्कारों की फसल फुंकती जा रही है। बलात्कारों के आंकड़े देखे तो शर्म आती है,क्योंकि हम उसी भारतवर्ष के वासी है, जहां नारी को देवी मानकर पूजने की परंपरा है। लेकिन जिस समाज में हर डेढ़ घंटे में बलात्कार हो रहा हो, तो भी क्या शर्म सिर्फ सरकारों को ही आनी चाहिए? बलात्कार हम करें और सर झुकाए सरकार ? ऐसा क्यों ? लोग तख्तियां लेकर सड़कों पर उतरे हैं कि शर्म करो सरकार, बंद करो बलात्कार। जैसे, बलात्कार सामाजिक कुकर्म न होकर कोई सरकार प्रायोजित कार्यक्रम हो। शर्म अकेली सरकार को ही क्यों, वह तो हमें भी आनी चाहिए, आपको आनी चाहिए, सबको आनी चाहिए। और तब तक आती रहनी चाहिए, जब तक हमें डूब मरने को चुल्लू भर पानी न मिल जाएं!
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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