Thursday, November 28, 2024
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काश कामराज जैसा नेता देश के हर राज्य में होता!

कोयंबटूर से गुजरना हुआ है. शायद दशकों पहले. अब स्मृति में तिथि नहीं है. कभी दक्षिण भारत लुंगी और शर्ट पहन कर घूमा था. बस से. रेल से. एक मित्र के साथ. वेषभूषा देखकर कई लोग तमिल में बात करने लगते. उन्हें लगता था, शायद इसी राज्य का हूं. पिछले दिनों कोयंबटूर के ‘द आर्य वैद्य चिकित्सालयम एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट’ में लगभग तीन सप्ताह रहना हुआ. घुटने के उपचार के लिए. आयुर्वेद चिकित्सा के अपने अनुशासन हैं.

कमरे में कैद, लगातार कई दिनों तक. वर्षो बाद इस स्वअनुशासन में खुद रहना अनुभवप्रद है. प्रवास में ‘द हिंदू’ अखबार पलटता था. एक दिन पढ़ा कि सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री ली कुआन यू के नहीं रहने पर तमिलनाडु के गांवों में शोक मनाया गया. तमिलनाडु से निकली बड़ी संख्या दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में है. सिंगापुर में भी. ली कुआन ने सिंगापुर को तो बदला ही. वहां रहनेवाले तमिलों का भाग्य भी चमका. 1959 में ली सिंगापुर के प्रधानमंत्री बने, तब वहां रहनेवाले लोगों की प्रतिव्यक्ति आय 400 डॉलर थी, आज वहां प्रति व्यक्ति आय 55000 डॉलर है.

इस तरह सिंगापुर की समृद्धि का असर तमिलनाडु के गांवों पर पड़ा. इसलिए तमिलनाडु के गांव ली को याद कर रहे हैं. उनके प्रधानमंत्री बनते ही, बड़े पैमाने पर सरकारी खर्चे से इन्फ्रास्ट्रर बनाने के लिए, सरकारी क्षेत्र में दुनिया स्तर की कामयाब कंपनियों को खड़ा करने के लिए, बड़े पावर स्टेशन बनाने के लिए, बंदरगाह बनाने के लिए, पूरी व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए. 

सिंगापुर के ली, भारत के तमिलनाडु के गांवों में याद किये जा रहे हैं, यह है आधुनिक ग्लोबल बाजार. अर्थ प्रधान दुनिया का एकसूत्र में जुटते जाना. तमिलानाडु के पुराने संपर्कसूत्रों के मित्र मिलने आते हैं. युवा भी हैं. व्यस्क भी हैं. उनसे पूछता हूं, ली को तमिलनाडु के गांव क्यों याद कर रहे हैं? उनके उत्तर, तमिलनाडु के बारे में सूचना संपन्न बनाते हैं. वो कहते हैं, अच्छे शासन और समाज को संपन्न बनाने के प्रयास के कारण उन्हें सिंगापुर में लोग याद करते हैं. सिंगापुर में तमिल समुदाय के जो लोग हैं, उनकी चर्चा यहां करते हैं.

कहते हैं कि खुद तमिलनाडु में आज नेताओं की परख, उनकी गवर्नेस, सिस्टम को बेहतर बनाने की क्षमता से हो रही है. हमारी पुरानी धारणा रही है कि तमिलनाडु में पेरियार और अन्ना दुरई के आंदोलन ने सामाजिक बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार की. करुणानिधि, रामचंद्रन या जयललिता ने उसको आगे बढ़ाया. यह हकीकत भी है कि सामाजिक क्रांति या बदलाव की आधारशिला, पेरियार और अन्ना दुरई ने रखी. पर तमिलनाडु के पुराने मित्र आज जो कुछ बताते हैं, उनसे लगता है कि शायद हमारी यह मान्यता अधूरी है.

यह पूरा सच नहीं है. ये युवा कहते हैं कि तमिलनाडु की समृद्धि और बेहतरी के लिए पेरियार और अन्ना दुरई को जितना श्रेय है, उससे कम कामराज का योगदान नहीं है. आज तमिलनाडु के गांव-गांव में लोग कामराज को याद करते हैं.

कामराज के काम की घर-घर में चर्चा

उनके गवर्नेस और सुशासन के कारण. वह मानते हैं कि तमिलनाडु को बदलने का मुख्य श्रेय कामराज को है. बाद के नेताओं के काम से तो तमिलनाडु अब देश के अग्रणी राज्यों की पंक्ति से फिसलने के रास्ते पर है.

तमिलनाडु की राजनीति में दिलचस्पी रखनेवाले एक युवा मित्र बताते हैं कि कामराज के कुछ काम ऐसे हैं, जिनकी आज तमिलनाडु के घर-घर में चर्चा होती है. युवा पीढ़ी शुरूआती पाठ्यक्रम में पढ़ती है. मसलन, बच्चों का स्कूल ड्रेस एक हो. देश में. इसकी शुरुआत तमिलनाडु से ही हुई. इसका श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री कामराज को था.

स्कूल दौरे के दौरान उन्होंने पाया, जमींदारों या आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के बच्चे सिल्क या मंहगे कपड़े पहन कर आते हैं. गरीबों के बच्चे मामूली कपड़े पहन कर. यह हीनताबोध बच्चों में न पनपे, इसलिए कामराज जो खुद अपढ़ थे, जो सबसे गरीब समुदाय से थे, उन्होंने तय किया कि स्कूल में एक ही तरह के सामान्य कपड़े पहन कर बच्चे आयेंगे.

गौर कीजिए, यह फैसला जब कामराज ने किया होगा, तो कितना क्रांतिकारी, असरदार और भविष्य को दूर तक प्रभावित करनेवाला फैसला रहा होगा? देश, काल और परिस्थितियों से जोड़कर ही ऐसे फैसलों को समझा जा सकता है. अमूमन होता है कि जीवन या समाज के बड़े और महत्व की चीजें, जब जीवन की सामान्य दिनचर्या में शामिल हो जाती हैं, हम भूल जाते हैं.

पर आज लौट कर परखें, तो पायेंगे कि यह कितना बड़ा कदम था. एक तरह के कपड़े पहने स्कूल के बच्चे. इससे उनके मन में उपजते समानता के भाव और एक होने का बोध. इसका दूसरा पड़ाव सबके लिए एक समान स्कूल, एक समान शिक्षा है.

लेकिन आजाद भारत में अब तक कोई दूसरा कामराज नहीं हुआ, जो इतना बड़ा निर्णायक कदम उठा सके. हमारे तमिलनाडु के मित्र कहते हैं कि यही नहीं आज जो दोपहर के भोजन की व्यवस्था स्कूलों में है, उसकी शुरुआत इसी राज्य यानी तमिलनाडु से कामराज के नेतृत्व वाली सरकार में हुई. वह किस्सा सुनाते हैं. एकबार कामराज एक गांव से गुजर रहे थे.

उन्होंने देखा कि स्कूल में बच्चे नहीं हैं. उन्होंने गांववालों से पूछा कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं गये? गांववालों ने कहा, खाने को है नहीं, मां-बाप रोजगार या मजदूरी में जाते हैं और बच्चे घर पर रहते हैं.

कामराज ने तय किया कि स्कूल में सभी बच्चों को भोजन मिलेगा. इस क्रांतिकारी कदम या बदलाव की शुरुआत कामराज ने तमिलनाडु से की. तमिलनाडु के मित्र सुनाते हैं कि तत्कालीन बड़े अफसरों, आइएएस अफसरों ने इसका विरोध किया. कहा, इसके लिए पैसे नहीं हैं. कामराज ने कहा, आप परेशान न हों, इसके लिए पैसे मैं दूंगा. पहले वर्ष उन्होंने संपन्न लोगों की बैठक बुलायी. याद रखिए, तब बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था. बड़े घराने नहीं थे.

कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत काम नहीं होता था. तब तत्कालीन बड़े उद्योग घरानों को बुलाकर कामराज ने कहा कि आप सब डोनेशन (चंदा) दें, ताकि एक साल तक स्कूलों में बच्चों को दोपहर का भोजन मुफ्त मिले. इसकी व्यवस्था करें. एक साल बाद सरकार इसका प्रबंध करेगी. हमारे दूसरे मित्र, कोयंबटूर के युवा हैं. वह एक दूसरा प्रसंग सुनाते हैं कि दिल्ली में एक बार जवाहरलालजी ने मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलायी थी.

उस बैठक में उन्होंने एक बड़ा स्टील उद्योग लगाने की बात की, पर कहा कि यह उद्योग उसी राज्य में लग सकता है, जहां नदी हो. नदी के पास रेलवे स्टेशन हो, क्योंकि उक्त इंडस्ट्री को पर्याप्त पानी चाहिए. धुलाई वगैरह की अच्छी व्यवस्था चाहिए. फिर माल के ट्रांसपोर्टेशन का प्रबंध. हमारे मित्र के अनुसार देश के अन्य मुख्यमंत्री इसका तुरंत उत्तर नहीं दे सके, पर कामराज ने तुरंत कहा कि हमारे राज्य में यह कारखाना लगेगा. तमिलनाडु लौटकर कामराज ने अपने अफसरों से पूछा कि कौन-सी ऐसी जगह है? जवाब में अफसरों ने हाथ खड़े कर दिये.

कामराज ने हेलीकॉप्टर लिया और उन्होंने दिखाया कि त्रिचि के पास नदी का पानी है. पास में ही स्टेशन भी है. इस तरह त्रिचि में भेल (भारत हेवी इंडस्ट्रीज लिमिटेड) का कारखाना बना. आज त्रिचि, तमिलनाडु का बड़ा उद्योग केंद्र है.

कामराज के ऐसे अन्य कदमों ने तमिलनाडु को देश के अन्य राज्यों के मुकाबले आगे लाकर खड़ा कर दिया. तमिलनाडु में सबसे अधिक सिंचाई डैम बने, यह कामराज की सोच थी. पर सरकार के पास पैसे नहीं थे. उन्होंने भारत सरकार के माध्यम से रूस से बातचीत की. कहा कि आप डैम बनवायें. डैम बनने के बाद आप ही प्रभार में रहें.

इसके उपयोग से धीरे-धीरे हम पैसा चुका देंगे, इसके बाद आप सिंचाई डैम हमें सौंप दें. जनता पर कोई नया टैक्स डैमों को बनाने के लिए नहीं लगा. फिर रूस के सहयोग से तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर डैम बने. सिंचाई के लिए. बिजली के लिए. इन डैमों और बांधों ने तमिलनाडु को देश के अग्रणी राज्यों की सूची में पहले-दूसरे स्थान पर पहुंचा दिया.

हमारे मित्र कहते हैं कि छ:-सात वर्ष पहले ऐसे करार के तहत रह रहे रूसी एक सिंचाई डैम को सौंप कर रूस लौटे. जहां भी डैम बना, वहां पावर स्टेशन बना. इस तरह बिजली और सिंचाई की व्यवस्था तमिलनाडु में कामराज ने की. कामराज के कार्यकाल में चीनी की नौ मिलें लगाने की योजना बनी. इंफ्रास्ट्रर बनाने का काम बड़े कांट्रेक्टरों को दिया गया.

उन्होंने समयबद्ध काम किया. चीनी मिलें बन गयी और कांट्रेक्टरों ने ईमानदारी से अपनी आय का दस फीसदी पार्टी को दिया. यह पूरा पैसा कामराज ने एक जगह इकट्ठा कर तमिलनाडु में दसवीं सुगर फैक्टरी बनवा दी. हमारे मित्र यह सूचना देते हैं. मुझे नहीं मालूम कि सरकारी फाइलों में ये तथ्य दर्ज हैं या नहीं. पर तमिलनाडु में कामराज को लेकर लोकस्मृति में ये बातें आज जीवित व चर्चा में हैं.

वह और प्रसंग सुनाते हैं. कामराज की मां जिंदा थी, पर कामराज उन्हें अपने साथ नहीं रखते थे. वजह भी बताया कि मां साथ रहेंगी, तो दूर के रिश्तेदार, परिचित लोग आने लगेंगे. काम की पैरवी लेकर.

इसलिए उनकी मां गांव में ही रहती थी. कामराज, महीने-दो-महीने के अंत में अपने गांव जाते थे. राशन या खाने की चीजें खरीद कर लौट आते थे. एक बार वह गये, तो देखा गांव के घर में पीने के पानी का नल लगा है. कामराज ने संबंधित विभाग के लोगों को बुला कर पूछा कि क्या ये नल गांव के सभी घरों में लगे हैं? सूचना मिली, नहीं.

कामराज ने कहा कि मेरी मां भी अन्य लोगों की तरह ही एक महिला हैं. वह कोई विशिष्ट नहीं हैं. पहले गांव के जिस एकमात्र सार्वजनिक नल से वह पानी लाती थीं. लाइन में लग कर, वैसे ही लायेंगी. अगली बार जब मैं गांव आऊं, तब तक यहां नल नहीं होना चाहिए.

यह दृष्टि, यह चरित्र, गांधी, राजगोपालाचारी और कांग्रेस के पुराने नेताओं ने कामराज को दिये. यह वैल्यू सिस्टम था. कामराज पढ़े-लिखे नहीं थे, पर उन्होंने देश के दो प्रधानमंत्रियों का चयन किया. लालबहादुर शास्त्री और इंदिराजी का. तब कामराज कांग्रेस अध्यक्ष थे. उनके प्रभावी नेतृत्व में ये दोनों प्रधानमंत्री चुने गये. कोयंबटूर के हमारे तमिल मित्र ने बताया कि उनके पिता कांग्रेस के बड़े नेता थे. कामराज से उनका संबंध था. एक बार उनके पिता ने यहीं कोयंबटूर में कामराज से पूछा कि आप रहते तो गरीबों के बीच हैं. बात और काम उनके करते हैं. पर शाम का खाना बड़े लोगों के घर जाकर खाते हैं? कामराज ने कहा, बिल्कुल सही कहा आपने. ये आप देखते हैं कि मेरे साथ खानेवाले कितने गरीब लोग होते हैं. पुलिसवाले होते हैं. आप जैसे अनेक मित्र होते हैं. इतने लोगों को एक साथ अगर कोई खाना खिलायेगा, तो उसे भारी कर्ज लेना होगा. पर मैं ऐसे आदमी के पास जाता हूं, जो सबको खाना खिला सके. उसको मैं प्रोत्साहित करता हूं कि वह राज्य में उद्योग लगाये. वह राज्य में कामकाज बढ़ाये, ताकि लोगों को रोजगार मिले. याद रखिए, तब बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था. बड़ी कंपनियां नहीं थीं. मामूली उद्योग-धंधे ही चलते थे. तमिलनाडु में इस तरह उद्यमियों को प्रोत्साहित कर उन्होंने उद्योग लगवाये. उद्योग-व्यवसाय में पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में हजारों वर्षो तक तमिलनाडु का असर रहा है.

दक्षिण भारत का व्यापार तो रोम साम्राज्य तक पहुंचा था. उस ताकत को भी कामराज बढ़ाते थे. यही महान कामराज मरे, इमरजेंसी में, एक उपेक्षित नेता के रूप में. क्योंकि वह इंदिरा कांग्रेस से हट गये थे. उनके घर से जो संपत्ति मिली, वह थी दो कपड़े, एकाध खद्दर का शर्ट और जब में 135.50 रुपये (एक सौ पैंत्तीस रुपये पचास पैसे).

कामराज कितने मानवीय थे, इसका प्रसंग भी हमारे मित्र सुनाते हैं. कामराज के एक बचपन के मित्र थे. उनके बेटे की शादी थी, वह निमंत्रण देने गये, तो कामराज ने कहा कि मैं बिल्कुल नहीं आऊंगा. लेकिन शादी के दिन लोगों ने देखा कि बिल्कुल सुबह से आकर घर पर बैठे हैं.

उनके मित्र नाराज हुए कि आपने बताया नहीं. जवाब में कामराज ने कहा कि अगर मैं बता देता तो आपका ध्यान इस बात पर रहता कि मुख्यमंत्री कामराज आ रहे हैं. उनकी अगवानी कैसे करें? उनका स्वागत कैसे करें? आपका ध्यान अपनी शादी में नहीं रहता, इसलिए मैंने मना कर दिया था. भारतीय राजनीति में कामराज किंगमेकर रहे. उस कामराज का यह व्यवहार था.

जिस आयुर्वेदिक संस्थान में रहना हुआ, वहां अधिकतर काम करनेवाले या आयुर्वेद के पारंगत लोग केरल के हैं. उनसे केरल की स्थिति पूछता हूं. वे कहते हैं, केरल शिक्षा में या बाकी चीजों में बहुत अच्छा है, पर वहां स्थिति सही नहीं है.

वे कहते हैं कि केरल में शासन चाहे, लफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का हो या यूनाइटेड डेमाक्रेटिक फ्रंट यानी कांग्रेस वगैरह का हो, पर दोनों ही एक-दूसरे के अच्छे कामों को नहीं होने देते.

वे तुलना करते हैं. कहते हैं, केरल और तमिलनाडु की सड़कें देखिए? केरल और तमिलनाडु के उद्योग-धंधों को देखिए? दोनों में फर्क साफ दिखायी देगा. केरल में जो भी पार्टी सत्ता में है, अगर वह कोई विकास का बड़ा काम या प्रयास करना चाहती है, तो उसके खिलाफ दूसरा पक्ष यानी विपक्ष खड़ा हो जाता है.

उसे यह डर होता है कि इस अच्छे काम का श्रेय कहीं उसे न मिल जाये. इसलिए तरह-तरह के अड़ंगे लगाना, विरोध खड़ा करना, ताकि यह काम आगे बढ़े ही न. यह केरल की राजनीति का मर्म है. मैं साफ �शब्दों में पूछता हूं कि केरल और तमिलनाडु में क्या फर्क है? केरल के लोग जवाब देते हैं कि तमिलनाडु संपन्न है. हमारे कोयंबटूर के मित्र, जिनके पिता कामराज के साथ रहे हैं, कहते हैं कि अगर कामराज नहीं होते, तो तमिलनाडु भी केरल जैसा ही होता.

पास बैठा तमिलनाडु का ही एक युवा मित्र कहता है कि कामराज ने जो कुछ किया, डैम बनवाये, शिक्षा की व्यवस्था की, दोपहर के भोजन की स्कूलों में व्यवस्था की, बड़े उद्योग-धंधे लगवाये, बिजली-सिंचाई की व्यवस्था की, इंडस्ट्रीज खड़ी की, इन सब चीजों से तमिलनाडु बदल गया. आर्थिक रूप से तमिलनाडु आगे बढ़ा. कमजोर व गरीबों के हाथ आर्थिक ताकत आयी. वे सबल हुए, उनकी आवाज सुनाई देने लगी. वह कहते हैं कि कामराज के अच्छे कामों की जो डिपाजिट है, उसे तमिलनाडु में आज के नेता खर्च कर रहे हैं.

मेरे युवा मित्र तमिलनाडु के मौजूदा राजनेताओं के कामकाज की चर्चा करते हैं. एक बड़ी खबर का हवाला दे कर, ‘द हिंदू’ में छपा है. मुफ्त चीजों को बांटने की राजनीति या सरकारी कदम ने किस तरह तमिलनाडु की वित्तीय स्थिति खराब कर दी है. तमिलनाडु की स्पर्धात्मक राजनीति में चीजों को मुफ्त बांटने की होड़ में दस वर्षो के अंदर इतना पैसा खर्च हुआ है, जितना चेन्नई मेट्रो प्रोजेक्ट में लगता.

कलर टीवी, मुफ्त बांटने के मद में साढ़े तीन हजार करोड़ गये. लैपटाप बांटने के मद में लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ और वोट पाने के नाम पर मिक्सर और ग्राइंडर घर-घर पहुंचाने में साढ़े तीन हजार करोड़ खर्च हुए. मुफ्त सामान देकर मतदाताओं को रिझाने की दौड़ में तमिलनाडु जो कभी आर्थिक रूप से बड़ा मजबूत हुआ करता था, उसके बजट में गंभीर स्थिति पैदा हो गयी है.

तमिलनाडु की आर्थिक स्थिति बहुत सुधरी हुई मानी जाती थी, पर अब उसके सामने गंभीर चुनौतियां हैं. पिछले एक दशक में अलग-अलग सरकारों ने लगभग दो बिलियन यानी 11561 करोड़ सिर्फ तीन स्कीमों में (कलर टीवी, लैपटाप और मिक्सी ग्राइंडर के मुफ्त वितरण) में लगा दिया है. अर्थशास्त्री कहते हैं कि ये कदम अगर राज्य के पास पर्याप्त पैसा या लाभ होता, तो संभव था. पर एक तरफ सरकार के बजट में लगातार चुनौतियां आ रही हैं. उसकी वित्तीय सेहत ठीक नहीं है.

दूसरी तरफ ऐसी चीजों पर, मुफ्तखोरी पर खर्च राज्य के लिए गंभीर चुनौती बन गयी है. अर्थशास्त्री कहते हैं कि तीन मदों में जितने पैसे खर्च हुए, उनसे 25 हजार स्कूल या 11 हजार प्राइमरी हेल्थ सेंटर बन सकते थे. अर्थशास्त्री यह भी कहते हैं कि अब तमिननाडु के पास मुफ्तखोरी के लिए एक पैसा भी नहीं बचा. जो भी अतिरिक्त संसाधन थे, वोट पाने के लिए मुफ्तखोरी में बंट गये. इससे राज्य के सामने अनेक नयी चुनौतियां है. 

गुजरे वर्षो में स्वास्थ और शिक्षा पर तमिलनाडु में खर्च काफी घटा है. देश के 17 बड़े राज्य स्वास्थ्य और शिक्षा पर आज जो खर्च कर रहे हैं, उनसे कम खर्च तमिलनाडु में हो रहा है. इसका दूरगामी असर होगा. यह रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में है. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के अर्थशास्त्री ऐसा बताते हैं. अर्थशास्त्री कहते हैं कि यह जो मुफ्तखोरी है, महज प्रतीकात्मक कदम है.

एक तरफ यह स्थिति है, तो दूसरी तरफ तमिलनाडु में सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह चार गुना से भी अधिक बढ़ गयी. 2005 से 2013 के बीच सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते पर खर्च 8000 करोड़ से बढ़कर 34000 करोड़ हो गया है. एक अर्थशास्त्री कहते हैं कि हमारे सार्वजनिक खर्चो में बड़े पैमाने पर इनइफिशिएंसी है, इसको कोई देख नहीं रहा.

95 लाख मिक्सर राज्य में बांटे गये 955 करोड़ में. इसी तरह 95 लाख ग्रांइडर बांटे गये 2153 करोड़ रुपये मिले. 95 लाख पंखे और स्टोव बंटे, 854 करोड़ रुपये में. 164 लाख कलर टीवी बंटे 3876 करोड़ रुपये में. लगभग 22 लाख से अधिक लैपटाप बांटे गये, 3912 करोड़ में. 2005 में 8980 करोड़ रुपये सरकारी कर्मचारियों के वेतन वगैरह पर खर्च था. अब 2013 में बढ़कर वह 34570 करोड़ रु पये हो गया है.

हमारे मित्र कहते हैं कि कामराज जैसे लोगों के सुशासान और दूरदृष्टि से यह राज्य संपन्न बना. देश के अन्य राज्यों के बीच सबसे तेजी से आगे बढ़ा. आज उस समृद्धि को ही, जो उनके बादे की सरकारें आयीं, वे अब धीरे-धीरे खराब हालत की ओर ले जा रही हैं. कामराज ने कल्याणकारी योजनाएं चलायीं, गरीबों के हित के लिए कदम उठाये, तो साथ-साथ निर्माण की भी बड़े पैमाने पर कोशिश की.

बड़े उद्योग लगे, सिंचाई की व्यवस्था हुई. बिजली उत्पादन की व्यवस्था हुई. इस तरह पूंजी का निर्माण एक तरफ और दूसरी तरफ रोजगार का सृजन. साथ-साथ गरीबों को भी मदद. पर आज की सरकारें गवर्नेश के नाम पर समझती हैं कि उन्हें गद्दी पाने के लिए मुफ्त चीजें कितने लोगों तक पहुंचानी हैं, ताकि वोट पाया जा सके.

पूंजी या दौलत बढ़े, यह प्राथमिकता नहीं है. यह मुफ्तखोरी की राजनीति, समृद्ध तमिलनाडु, जिसकी परिकल्पना या जिसकी बुनियाद कामराज जैसे नेताओं ने रखी, आज उसकी नींव को कमजोर कर रही है, यह मानना है, तमिलनाडु के समझदार मित्रों का.

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साभार- प्रभात खबर से

(लेखक प्रबात खबर के संपादक और राज्य सभा सदस्य हैं)

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