Monday, November 25, 2024
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोआर्ट ऑफ लिविंग की प्रेरणा से 20 हजार महिलाएँ जुटी एक...

आर्ट ऑफ लिविंग की प्रेरणा से 20 हजार महिलाएँ जुटी एक मरी हुई नदी को जिंदा करने को

तमिलनाडु के वेल्लोर जिले की 20,000 महिलाओं ने सालों से सूखी पड़ी एक नदी को फिर से जिंदा करने का बेमिसाल काम अंजाम दिया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक वेल्लोर तमिलनाडु के 24 सूखाग्रस्त जिलों में से एक है. यहां नागानदी नाम की एक नदी कुछ दशक पहले पानी का मुख्य स्रोत हुआ करती थी. लेकिन करीब 15 साल पहले यह खत्म हो गई. पानी कम होते चले जाने के चलते यहां के कृषि मजदूर काम की तलाश में शहरों में चले गए. इनमें अधिकतर पुरुष थे.
खबर के मुताबिक बाद में आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) फाउंडेशन के कुछ लोग जिले में पहुंचे और नदी को पुनर्जीवित करने का सुझाव दिया. चूंकि कर्नाटक में इस तरह की परियोजनाओं से सूख चुकी दो नदियों को फिर से जिंदा किया जा चुका है, इसलिए वेल्लोर की नागानदी को फिर से बहाने के लिए सरकार की मंजूरी आसानी से मिल गई. इसके बाद एक टीम गठित की गई और सैटेलाइट के जरिये नदी को मापा गया. फिर वेल्लोर के इलाके को कवर करते हुए कार्य योजना तैयार की गई. इसके तहत महिलाओं को परियोजना का हिस्सा बनाया गया और उन्हें मनरेगा के तहत मजदूरी देना सुनिश्चित किया गया.

इन महिलाओं को यह काम अंजाम देने में चार साल लगे हैं. इस दौरान उन्होंने बारिश का पानी रोकने के लिए कई छोटे-छोटे बांध और कुंए बनाए. इनमें इकट्ठा हुए पानी का इस्तेमाल नदी को जिंदा करने में किया गया. इन बांधों और कुंओ से आज यहां कई इलाकों में पानी की जरूरत पूरी हो रही है. गांव की महिलाएं बताती हैं कि अब जिले के कुछ इलाकों में फिर से खेती भी होने लगी है. देश के कई इलाकों और गावों में लोगों को पीने और सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है.

नागानदी पुनर्जीवन परियोजना के निदेशक चंद्रशेखरन कुप्पन ने अखबार को बताया, ‘नदी की सतह पर पानी भूजल की पूर्ति के बाद ही बहता है. इसलिए नदी को फिर से जिंदा करने का मतलब केवल उसके बहाव से नहीं जुड़ा है, बल्कि इसमें जमीन के अंदर तक पर्याप्त मात्रा पानी पहुंचाना है. दूसरे शब्दों में कहें तो वर्षा जल को मिट्टी के जरिये नीचे तक पहुंचने देना है. इस साल बारिश के बाद नदी तेजी से बह रही होगी.’

उधर, वेल्लोर से सैकड़ों मील दूर उत्तराखंड में भी कई ग्रामीण पानी इकट्ठा करने की तकनीकें इस्तेमाल कर रहे हैं. यहां पौरी गढ़वाल में बच्चों द्वारा शुरू किए गए प्रयास के तहत अलग-अलग आकार के जलाशय निर्मित किए जा रहे हैं. वहीं, मॉनसून का पानी इकट्ठा करने के लिए लोग लिखित प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर कर रहे हैं. ये दोनों मामले उदाहरण पेश करते हैं कि कैसे जल संकट से जूझ रहे भारत को स्थानीय स्तर पर जल स्रोतों का संरक्षण करने की जरूरत है.

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार