आभा बोधिसत्व इलाहाबाद के हमारे पुराने कवि मित्र बोधिसत्व की पत्नी है । कुछ साल पहले कोलकाता बुक फ़ेयर के वक्त यह दंपत्ति हमारे घर आई थी उसी समय हमने उन्हें कई किताबें भेंट कीं जिनमें एक किताब सरला का पहला संकलन ‘ आसमान के घर की खुली खिड़कियाँ’ भी थी । आज अचानक हमने देखा कि इस महिला ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट लगाई है जिसमें सरला के इस संकलन में प्रकाशित एक कविता को उन्होंने अपनी कविता बताया है और प्रमाण के तौर पर 2019 में प्रकाशित अपने एक संकलन की तस्वीर दी है ।
आभा बोधिसत्व की इस बेजा हरकत पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए हमने फ़ेसबुक पर उनकी टिप्पणी पर लिखा कि “ यह सरासर बदमाशी कहलायेगी । सरला की यह कविता 2015 के उसके पहले संकलन में प्रकाशित हो चुकी है । यहाँ हम उसकी तस्वीरें दे रहे हैं । “
सरला की यह कविता ‘एन एच 10 फ़िल्म’ पर एक ही श्रृंखला में लिखी गई दूसरी कविता थी, जिसका शीर्षक है – ‘एन एच 10, भाग -2’ ।
बहरहाल, हम यहाँ सरला के संकलन में प्रकाशित कविता और संकलन के प्रकाशन की तिथि की तस्वीरें दे रहे हैं । सरला की यह कविता फ़ेसबुक पर पहले भी कई मौक़ों पर प्रकाशित हो चुकी है । इसके अलावा पहली कविता ‘ एनएच – 10 : एक छवि’ की तस्वीर भी दे रहे हैं ।
सरला की यह कविता उसके एक और संकलन ‘ आओ आज हम गले लग जाए’ (2017) में भी संकलित हैं । इस संकलन की सारी कविताएँ स्त्रियों के बारे में है । हम उस संकलन की तस्वीरें भी यहाँ दे रहे हैं ।
एनएच 10 फ़िल्म 2015 के मार्च में रिलीज़ हुई थी । यह कविता हमारे फ़ेस बुक वाल पर 27 मार्च को जारी की गई । मज़े की बात है कि इसे वहाँ लाइक करने वालों में आभा बोधिसत्व भी शामिल है । हम उस पोस्ट का लिंक यहाँ दे रहे हैं :
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1030479470314847&set=a.652829361413195&type=3
और क्या कहा जाए ! लेखन की चोरी का यह एक जघन्य उदाहरण है । उनका रुख़ ‘चोरी और सीनाज़ोरी’ वाला है । जीवन में ऐसे बेईमान और बदतमीज़ लोगों से पाला पड़ना दुखदाई तो होता ही है । इन पर और ज्यादा कुछ कहते हुए खुद को शर्म आती है । खोजने पर हमें कहीं वे तस्वीरें भी मिल जाएगी जो उनके साथ हमारे घर पर ली गई थी और जिनमें सरला की कविताओं का संकलन भी शायद नज़र आ जाएगा ।
आभा बोधिसत्व को लेकर देश भर के साहित्यकारों ने तीखी प्रतिक्रियाएँ दी है – उनकी प्रतिक्रियाएँ पढ़िये श्री अरुण माहेश्वरी के फेसबुक पेज पर
https://www.facebook.com/arun.maheshwari.982