क्या अल्पसंख्यकवाद ही धर्मनिर्पेक्षता है
महोदय
देश के तीस लाख मुसलमानो के द्वारा बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने से उत्साहित बीजेपी के नेता भी अपने को यह प्रमाणित करने में गौरव अनुभव कर रही है कि वे भी आज 'प्रचलित' धर्मनिरपेक्षता के समर्थक हो गये है।तभी तो मुस्लिम शिष्ट मंडल के प्रभाव में मोदी जी ने आधी रात को भी उनकी सेवा के लिए तत्पर रहने का आश्वासन दे दिया है।
ध्यान रहे मुसलमानो की सहायतार्थ पहले से ही सरकार अनेको योजनाओ के माध्यम से अधिकाँश हिन्दुओ के द्वारा दिए जाने वाले राजस्व से संचित राजकोष के अरबो रुपया न्यौछावर कर रही है।
"अल्पसंख्यक आयोग" व "अल्पसंख्यक मंत्रालय" को केवल देश के अल्पसंख्यको विशेषतः मुसलमानो को सरकार द्वारा कैसे कैसे लाभान्वित किया जाये के लिए ही कार्य करना होता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि इतना सब "धर्म के आधार" पर घोषित अल्पसंख्यको के लिए क्यों किया जाता है ? जबकि हमारा देश एक "धर्मनिरपेक्ष" राष्ट्र है ?
क्या बहुसंख्यको का दोहन होता रहे और अल्पसंख्यको को मालामाल किया जाता रहे तो फिर सदभावना व सामाजिक सोहार्द के उपदेश देना बेमानी नही होगी ?
बहुसंख्यको के लिए न तो कोई आयोग है तथा न ही कोई मंत्रालय और ऊपर से संविधान की दुहाई यह है कि हम धर्मनिरपेक्ष है ।
फिर भी अल्पसख्यको की राजनीति करने वाले राजनेता कहते आ रहे है कि हम समाज को बांटने या किसी विशेष धर्म या सांप्रदायिकता की राजनीति नहीं करते। क्या बहुसंख्यक समाज को इसी प्रकार धोखे में रख कर उनके संवैधानिक व मौलिक अधिकारो को हनन होता रहेगा ?
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विनोद कुमार सर्वोदय
नया गंज,गाज़ियाबाद