Saturday, November 23, 2024
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Homeअध्यात्म गंगाराम बिना अन्तर्मन सूना

राम बिना अन्तर्मन सूना

महर्षि बाल्मीकी के अनुसार अनजाने में भी अगर कोई राम नाम ले ले, तो वह भी भव सागर पार हो जाता है । यहाँ तो अधिकांश देसी- विदेशी भारतीयों के अन्तर्मन में गहरे जा बसा है राम -नाम ।

बापू की प्यारी राम धुन ‘रघुपति राघव राजा राम’ जन मानस की राम -राम ,पश्चिमी देशों की गली-गली ,शहर- शहर हो रहे भजन ‘हरे रामा हरे कृष्णा ‘तक राम-नाम समूचे विश्व के रोम-रोम में बसा हुआ है । जन साधारण के नामो ‘रामलखन, रांमनारायन, रामचरण, रामशरन, रामकुमार से होता हुआ विश्व के नामी गिरामी नेताओ ,महानेताओ व बड़े बड़े उद्योगपतियों तक मे बिद्यमान है राम-नाम ।

यारों दोस्तों की दुहाई राम दुहाई से होती है ,प्रेमी जन एक दूसरे को राम कसम कहकर अपना विश्वास दिलाते हैं । फिर एक दूसरे को पाकर आन्नद विभोर होकर या फिर विरह के दर्द से कराह कर ‘हाय राम’ ही कहते हैं । भारत की धरती ‘जय राम जी ‘के अभिवादन से गूँजती रहती है । हर मुश्किल का आखिरी व अचूक उपाय ‘राम बाण’ ही होता है।

श्री राम भारत की आस्था हैं । भारत का रोम रोम ‘राम ‘में रमा हुआ है । मिले तो जय राम ,अलग हुये तो राम- राम ,और जब संसार छोड़े तो ‘राम नाम सत्य है ‘। भारत की श्रुति ,स्मृति और काव्य का अंतस हैं श्री राम । भारतीए श्रद्धा ने राम को अपने ह्रदय में बैठाया है । लेकिन वो इतिहास में भी हैं और भूगोल में भी ।गांघी जी ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया ,तो राम राज्य का ही आदर्श रखा । राम राज्य की कल्पना में सभी अभिलाषाएं शामिल हैं ।

निर्गुणियाँ कबीर को भी पी के रूप में राम ही भाए । राम की बहुरिया बन पूर्णता प्राप्त की ।उन्होने ‘फूटा कुम्भ जल जल ही समाना ‘के द्वारा आत्मा, परमात्मा ,जीव और ब्रह्म का अद्वैत स्थापित किया । वस्तुत: कबीर के लिए ‘कस्तुरी कुंडल बसे मृग ढूँढे वन मांही ,ऐसे घट- घट राम हैं दुनिया देखे नांहि ।‘ ‘राम परम ब्रह्म के पर्याय हैं ।

‘जलि जाय ई देहियाँ राम बिना’ और ‘ रामहि राम रटन करू जीभिया रे’ ऐसे जाने कितने भजन हमारे अतीत से चले आ रहे हैं । राम के बिना जीवन के व्यर्थता बोध का यह सहज उद्घाटन क्या किसी शास्त्रीय ज्ञान या वाद –विवाद का मोहताज है । राम हर उस मन का सत्य है ,जो भारतीय है,भारत से जुड़ाव रखता है । इसलिए शास्त्रों और मंत्रों से अनपढ़ जन की भी जिह्वा बस राम ही राम रटती रहती है।

जाने अनजाने कितने जुड़े हुये हैं हम राम नाम से ,कितना रच बस गया है यह राम नाम हमारे अन्तर्मन की गहनतम गहराइयों । हर पल ,हर क्षण ,हर जगह किसी न किसी संदर्भ में राम नाम हमारे साथ ही रहता है। —

लेखिका का परिचय
लेखिका एक गृहिणी हूँ और अधिकतर समय घर व बच्चों की देख -रेख में बीतता है, लेकिन इन्हीं क्रिया कलापों के बीच लेखकीय मन कुलबुलाने लगता है और इस तरह की कोई रचना निकल आती है। अब तक मेरी कई रचनाएँ देवगिरी समाचार ,राष्ट्रीय सहारा,लोकमत समाचार,विचार सारांश, संगिनी, वनीता जैसी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वे मूलतः बहराइच की रहने वाली हैं और वर्तमान में लखनऊ में रह रही हैं।

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