Friday, November 22, 2024
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जी एंटरटेनमेंट के बेहतर भविष्य के लिए पुनीत गोयनका ने लिया ये बड़ा फैसला

मुंबई।  जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) के मैनेजिंग डायरेक्टर (Managing Director) पुनीत गोयनका ने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी में अब उन्हें चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के तौर पर नियुक्त किया गया है। दरअसल, यह निर्णय बोर्ड और नामांकन व वेतन समिति की 15 नवंबर 2024 की बैठक में लिया गया। कंपनी ने 18 नवंबर 2024 को कारोबार समाप्त होने के बाद उनके इस्तीफे को मंजूरी दी और उसी दिन सीईओ के तौर पर उनकी नियुक्ति की।

बता दें कि श्री  पुनीत गोयनका ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को अपनी भूमिका छोड़ने और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के रूप में परिचालन संबंधी जिम्मेदारियों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने की पेशकश की थी।

कंपनी के अनुसार, पुनीत गोयनका कंपनी के भविष्य को मजबूत बनाने के लिए उसके प्रदर्शन और मुनाफे के स्तर को बेहतर बनाने में अपना पूरा समय समर्पित करना चाहते हैं, लिहाजा उन्होंने कंपनी की भविष्य की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने समय का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने की इच्छा व्यक्त की है।

इस नई रणनीति के तहत, वह प्रमुख परिचालन बाजारों में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करेंगे, ताकि उपभोक्ताओं और विज्ञापनदाताओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

इस संदर्भ में पुनीत गोयनका ने कहा, “कंपनी एक मजबूत आधार पर खड़ी है और भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार करने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है। अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें मुख्य व्यवसायों पर केंद्रित समय और ऊर्जा की आवश्यकता है, जो परिचालन क्षमता के माध्यम से ही संभव है। कंपनी और उसके सभी हितधारकों के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए, मैंने बोर्ड से CEO के रूप में परिचालन पर ध्यान केंद्रित करने का अनुरोध किया है। मैं बोर्ड का आभारी हूं, जिसने मेरे प्रयासों को सराहा और इस दिशा में मेरा समर्थन किया।”

गोयनका के इस कदम का समर्थन करते हुए जी के चेयरमैन आर. गोपालन ने कहा, “चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के रूप में कंपनी के परिचालन पहलुओं को बेहतर बनाने के लिए पुनीत गोयनका का दृष्टिकोण सराहनीय है। उनकी विशेषज्ञता और व्यावसायिक समझ बेजोड़ है और हमें विश्वास है कि वह कंपनी और उसके सभी हितधारकों को उनकी नई भूमिका में अपार मूल्य प्रदान करेंगे। बोर्ड की ओर से, मैं उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।”

वहीं, नामांकन और पारिश्रमिक समिति की सिफारिशों के आधार पर, मुकुंद गलगली को डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिस (Deputy CEO) के रूप में प्रमोट किया गया है। गलगली इस नई भूमिका के साथ-साथ चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (CFO) के रूप में भी काम करेंगे और CEO पुनीत गोयनका को रिपोर्ट करेंगे। यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है।

बोर्ड ने प्रबंधन को एक डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिस (Deputy CFO) की नियुक्ति करने की भी सलाह दी थी, ताकि प्रबंधन टीम को और मजबूत किया जा सके।

इसके अलावा, बोर्ड कंपनी की मानव संसाधन (HR) नीतियों, प्रक्रियाओं और वेतन संरचनाओं की समीक्षा जारी रखे हुए है, जिन्हें विलय प्रक्रिया के दौरान बदला गया था।

प्रधानमंत्री की वैश्विक लोकप्रियता और सम्मान

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की सीटें कम रह जाने पर देश में निराशा का वातावरण था और विरोधी दल गठबंधन सरकार अब गई तब गई का कयास लगाकर इस निराशा को बढ़ाया करते थे किंतु हरियाणा विधान सभा चुनावों ने देश को उस निराशा से उबार लिया। विपक्ष की सरकार को लेकर की जा रही सभी राजनैतिक बयानबाजियों के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी  भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की लिए संकल्पवान होकर एक सच्चे कर्मयोगी की तरह अपने काम में लगे हैं और विदेश यात्राएं भी कर रहे हैं । विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री मोदी  भारत की विकास यात्रा का वर्णन करते हुए विभिन्न  राष्ट्रों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने का सफल प्रयास कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार शपथ ग्रहण के साथ ही त्वरित गति से अशांत वैश्विक वातावरण को शांत करने के अभियान में लग गये हैं। पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है क्योंकि ऐसा मन जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो  रूस- यूक्रेन युद्ध का समापन करवा सकते हैं और इजराइल और अरब देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को भी कम करवा सकते हैं।अपने तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री  मोदी वैश्विक नेताओं के साथ लगातार संपर्क में हैं।अमेरिका में रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शानदार वापसी से इस बात को और बल मिला है क्योंकि मोदी और ट्रंप के व्यक्तिगत सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक लोकप्रियता का नुमन इसी से लगाया जा सकता है कि अभी वे नाइजीरिया के दौरे पर हैं और उनको को नाइजीरिया सरकार ने अपने  सर्वोच्च राष्ट्रीय  पुरस्कार  “ग्रैंड कमांडर आफ द आर्डर आफ द नाइजर“ से सम्मानित किया है। इससे पूर्व यह सम्मान केवल ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ को ही मिला था। इसके साथ साथ उन्हें नाइजीरिया की राजधानी अबुजा की चाबी भी सौंपी गई है। प्रधानमंत्री मोदी का ही यह प्रयास था कि अफ्रीकी देशों के विकास की गति को तीव्र बनाने के लिए  उन्हें जी -20 समूह में शामिल कराया गया।नाइजीरिया के समाचार पत्रों में मोदी जी की यात्रा छाई हुई है यही हाल ब्राजील और गुयाना का भी है।

प्रधानमंत्री मोदी को विगत सप्ताह ही कैरेबियाई देश डोमिनिका ने अपना सर्वोच्च सम्मान “डोमिनिका अवार्ड ऑफ आनर“ प्रदान करने की भी घोषणा की है। यह सम्मान कोविड -19 महामारी के दौरान डोमिनिका के लिए मोदी के योगदान और दोनों देशों के बीच साझेदारी को मजबूत करने में उनके योगदान की मान्यता के रूप में  देखा जा रहा है। डोमिनिकन सरकार का कहना है कि फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने डोमिनिक को एस्ट्राजेनेका कोविड -19 वैक्सीन की 70 हजार खुराक की आपूर्ति की थी।

प्रधानमंत्री मोदी को 14 देशों से 17 सम्मान मिल चुके हैं। इन सर्वोच्च नागरिक सम्मानों के अलावा उन्हें  प्रसिद्ध वैश्विक संगठनों की ओर से भी कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अरब देशों में  भी है।अप्रैल 2016 में सऊदी अरब ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर सम्मानित किया था और 2016 में ही अफगानिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान स्टेट आर्डर आफ गाजी अमीर अमानुल्लाह खान से सम्मानित किया गया।

2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने फिलिस्तीन यात्रा की और उन्हें ग्रैंड कालर ऑफ़ द स्टेट ऑफ फिलीस्तीन अवार्ड से सम्मानित किया गया जो जो विदेशी गणमान्य व्यक्तियों के लिए फिलिस्तीन का सर्वोच्च सम्मान है।2019 में प्रधानमंत्री मोदी को यूएई के सर्वोच्च सम्मान आर्डर ऑफ़ जायद अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान भारत और  यूएई के मध्य घनिष्ठ संबंधों का प्रमाण है।रूस ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान  आर्डर आफ सेंट एंड्रयू  द एपोस्टल से भी सम्मानित किया। 2019 में मालदीव ने भी मोदी जी को आर्डर आफ द डिस्टिंविश्वड रूल आफ मिशन इज्जुददीन से सम्मानित किया।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने  2020 में लीजन आफ मेरिट से सम्मानित किया जो असाधारण सेवा और उपलब्धियों के लिए अमेरिकी सशस्त्र बलों द्वारा दिया जाने वाला सम्मान है। उन्हें मिस्र की सरकार ने भी सम्मानित किया। भूटान ने दिसंबर 2021 में पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान आर्डर ऑफ द डुक ग्यालपो से सम्मानित किया। यह पुरसकार मार्च 2024 में भूटान की यात्रा के दौरान प्रदान किया गया। वहीं 13 जुलाई  2023 को फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉ की उपस्थिति में पीएम मोदी को फ्रांस के सर्वोच्च पुरस्कार ग्रैंड  क्रास ऑफ द लीजन ऑफ आनर से सम्मानित किया गया। प्राप्त होने वाले प्रत्येक सम्मान को  प्रधानमंत्री मोदी 140 करोड़ देशवासियों का समर्पित करते हैं और कहते हैं कि यह 140 करोड़ देशवासियों का सम्मान है।

यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व व उनके प्रति सम्मान का ही परिणाम था कि कतर में फांसी की सजा पाए आठ नागरिकों की सकुशल रिहाई हो सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का ही प्रतिफल है कि आज कोई भी देश भारत के प्रति नकारात्मक विचार अधिक दिनों तक नहीं रख पा रहा है। यदि किसी देश की सरकार या कोई नेता भारत अथवा भारत की संस्कृति के विरुद्ध षड्यंत्र रचता है तो वह अंधकार युग में प्रवेश कर जाता है। वर्तमान समय में बांग्लादेश और कनाडा इसका उदाहरण हैं।

अपनी यात्राओ के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ बनाने का सफल प्रयास करने के साथ साथ भारत के  पर्यटन उद्योग को सुदृढ़ करने और निवेश बढ़ाने के लिए भी विदेशी नागरिकों को भारत आमंत्रित करते हैं। अपनी ताजा यात्राओें में प्रधानमंत्री मोदी विदेशी अतिथियों को महाकुंभ- 2025 में आने का निमंत्रण दे रहे हैं और बता रहे हैं कि प्रयगराज के पास ही अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि का भव्य मंदिर भी है तो उपस्थित समुदाय  सहर्ष ही भारत माता की जय के नारे लगाने लगता है। प्रधानमंत्री मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग थलग कर दिया है।अमेरिका ने भारत की 1440 वह कलाकृतियां वापस कर दी हैं जिन्हें कभी चुराकर बाजार में बेचा गया था। भारत सरकार ब्रिटेन में गिरवी रखा गया सोना वापस लाने में सफल रही है। भारत की ताकत ने ही  भारत और चीन के मध्य शांति  वार्ता का रास्ता खोला है। आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना की धमक पूरे विश्व में सुनाई पड़ रही है। यह देखकर आश्चर्य हो सकता है कि भारत में विरोधी दलों के अनर्गल प्रचार के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से आज विश्व भर में सनातन का सूर्योदय हो रहा है ।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं. -9198571540

इफ्फी परेड के दौरान स्काई लैंटर्न से जगमगाएगा गोवा का आसमान: श्री प्रमोद सावंत

भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) और गोवा सरकार द्वारा एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा (ईएसजी) के माध्यम से संयुक्त रूप से 20 से 28 नवंबर 2024 तक गोवा में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) का आयोजन कर रहा है। इस वर्ष का महोत्सव सिनेमा की भव्यता और विविध कहानियों, नवीन विषयों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।

आज इफ्फी मीडिया सेंटर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत, एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा की उपाध्यक्ष सुश्री डेलीलाह लोबो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव और एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक श्री पृथुल कुमार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री वृंदा देसाई और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की महानिदेशक सुश्री स्मिता वत्स शर्मा और पीआईबी और ईएसजी के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

इस वर्ष की नवीन गतिविधियों की जानकारी देते हुए डॉ. सावंत ने कहा कि ‘स्काई लैंटर्न’ प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टियां इफ्फी परेड के मार्ग पर प्रदर्शित की जाएंगी और प्रतिभागियों को नकद पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। 22 नवंबर को ईएसजी कार्यालय से कला अकादमी तक इफ्फी परेड का आयोजन किया जा रहा है।

महोत्सव के दौरान 81 देशों की 180 अंतर्राष्ट्रीय फिल्में दिखाई जाएंगी। महोत्सव स्थल तक यात्रा सुविधा हेतु निःशुल्क परिवहन सुविधा उपलब्ध करायी जाएगी। मुख्यमंत्री ने बताया कि गोवा की फिल्मों पर एक विशेष खंड होगा जिसमें 14 फिल्में दिखाई जाएंगी और स्थानीय प्रतिभा और संस्कृति का उत्सव मनाया जाएगा।

एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक श्री पृथुल कुमार ने कहा कि महोत्सव में यूट्यूब के प्रभावशाली लोगों का गूगल और माई गॉव प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी के माध्यम से जुड़ाव सुनिश्चित किया गया है। फिल्म बाज़ार में एक ऑस्ट्रेलियाई फ़िल्म मंडप प्रदर्शित किया जाएगा। इस महोत्सव में विधु विनोद चोपड़ा, ए. आर. रहमान, विक्रांत मैसी, आर. माधवन, नील नितिन मुकेश, कीर्ति कुल्हारी, अर्जुन कपूर, भूमि पेडनेकर, रकुल प्रीत सिंह, नुसरत भरूचा, सान्या मल्होत्रा, इलियाना डिक्रूज, बोमन ईरानी, पंकज कपूर, अपारशक्ति खुराना, मानसी पारेख, प्रतीक गांधी, साई ताम्हणकर, विष्णु मांचू , प्रभुदेवा, काजल अग्रवाल, सौरभ शुक्ला सहित फिल्म उद्योग की कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियां भी शामिल होंगी।

श्री पृथुल कुमार ने बताया कि इस वर्ष 6500 प्रतिनिधियों का पंजीकरण हुआ है और पिछले वर्ष की तुलना में प्रतिनिधियों के पंजीकरण में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि फिल्म महोत्सव में फिल्म प्रेमियों के लिए फिल्में देखना आसान बनाने के लिए इस साल 6 और स्क्रीन और 45 प्रतिशत अधिक स्क्रीनिंग थिएटर उपलब्ध कराए जाएंगे।

श्री पृथुल कुमार ने यह भी कहा कि पत्रकारों को फिल्म व्यवसाय के सभी आयामों से परिचित कराने के साथ-साथ पत्रकारों को फिल्म उद्योग के विभिन्न पहलुओं की गहन समझ प्रदान करने के लिए एक प्रेस टूर का आयोजन किया जाएगा। युवा फिल्म निर्माताओं पर केंद्रित इफ्फी 2024 में इस साल सीएमओटी श्रेणी में रिकॉर्ड 1032 प्रविष्टियां प्राप्त हुई हैं। श्री कुमार ने कहा, पिछले साल इस खंड में 550 प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं।

भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की महानिदेशक सुश्री स्मिता वत्स शर्मा ने मीडिया के बीच इस महोत्सव की बढ़ती लोकप्रियता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाने में हुई महत्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मीडिया कर्मियों से बड़ी संख्या में आवेदन प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया से कुल 840 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 284 आवेदन गोवा से हैं। देश के सभी क्षेत्रों में महोत्सव की पहुंच बढ़ाने के लिए पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के क्षेत्रीय कार्यालय संबंधित भाषाओं में मीडिया विज्ञप्तियां जारी करेंगे, जिनमें कोंकणी भाषा में मीडिया विज्ञप्तियां भी शामिल होंगी।

छत्तीसगढ़ में देश का 56वां टाइगर रिजर्व अधिसूचित

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को देश के 56वें टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किए जाने की जानकारी राष्ट्र को दी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में मंत्री ने कहा, “भारत बाघ संरक्षण में नए मील के पत्थर स्थापित कर रहा है, इसी क्रम में हमने छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास-तमोर पिंगला को 56वें टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया है। गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व 2,829 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।”

छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की सलाह पर छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर जिलों में गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को अधिसूचित किया। कुल 2829.38 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस बाघ अभयारण्य में 2049.2 वर्ग किलोमीटर का कोर/ क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट शामिल है, जिसमें गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं, और इसका बफर क्षेत्र 780.15 वर्ग किलोमीटर का है। यह इसे आंध्र प्रदेश के नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व और असम के मानस टाइगर रिजर्व के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व बनाता है। गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व देश में अधिसूचित होने वाला 56वां टाइगर रिजर्व बन गया है।

भारत की राष्ट्रीय वन्यजीव योजना में परिकल्पित संरक्षण के लिए परिदृश्य दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, नव अधिसूचित बाघ अभयारण्य मध्य प्रदेश में संजय दुबरी बाघ अभयारण्य से सटा हुआ है, जो लगभग 4500 वर्ग किलोमीटर का परिदृश्य परिसर बनाता है। इसके अलावा, यह अभयारण्य पश्चिम में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य और पूर्व में झारखंड के पलामू बाघ अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अक्टूबर, 2021 में गुरु घासीदास-तमोर पिंगला बाघ अभयारण्य को अधिसूचित करने के लिए अंतिम मंजूरी दी थी।

छोटा नागपुर पठार और आंशिक रूप से बघेलखंड पठार में स्थित यह बाघ अभयारण्य विविध भूभागों, घने जंगलों, नदियों और झरनों से समृद्ध है, जो समृद्ध जीव विविधता के लिए अनुकूल हैं और इसमें बाघों के लिए महत्वपूर्ण आवास मौजूद हैं।

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व से 365 अकशेरुकी और 388 कशेरुकी सहित कुल 753 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। अकशेरुकी जीवों का प्रतिनिधित्व ज्यादातर कीट वर्ग द्वारा किया जाता है। कशेरुकी जीवों में पक्षियों की 230 प्रजातियाँ और स्तनधारियों की 55 प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें दोनों समूहों की कई संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं।

इस अधिसूचना के साथ, छत्तीसगढ़ में अब 4 बाघ रिजर्व हो गए हैं, जिससे प्रोजेक्ट टाइगर के तहत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से मिल रही तकनीकी और वित्तीय सहायता से इस प्रजाति के संरक्षण को मजबूती मिलेगी।

समाचार पत्र सामाजिक सरोकारों को भी बखूबी निभा रहे हैं

कोटा / व्यावसायीकरण और राजनीतिक प्रभाव होने के बावजूद भी समाचार पत्र सामाजिक सरोकारों को भी बखूबी निभा कर अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। साहित्य, धर्म -समाज, परम्पराओं, सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए समाज और सरकार के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
यह विचार आज संस्कृति, साहित्य,मीडिया फोरम कोटा द्वारा  संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल द्वारा राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर आयोजित मोबाइल ग्रुप समूह संगोष्ठी में साहित्यकारों और पत्रकारों ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा सामाजिक सरोकारों के साथ –  साथ लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका की वजह से आज भी चौथे स्तंभ के रूप में मजबूत पहचान बनाए हुए है।
ओडिशा के साहित्यकार दिनेश कुमार माली ने कहा प्रेस हमारे लोकतंत्र का सबसे प्रमुख स्तंभ है जो  सामाजिक परिदृश्यों को बदलने की अहम भूमिका होती है। जब-जब राजनीति लड़खड़ाती है, तब-तब ईमानदार एवं निडर प्रेस ही उसे सँभाल सकती है। सलूंबर की साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी ने कहा
आजादी के समय जो प्रेस में भूमि का निभायी उसका यह आज दिन तक असर कायम है कि व्यक्ति का विश्वास प्रिंट मीडिया पर कायम है। अखबार या पत्र-पत्रिकाओं में छपी खबर को जनता सत्य मानती है  प्रेस का भी यह दायित्व रहा कि उसने सच्चाई को कभी नहीं छुपाया और जनता के सम्मुख रखा। इतना ही नहीं उसने आगे बढ़कर मार्गदर्शन भी दिया इसीलिए प्रेस को मशाल के रूप में भी चिन्हित किया गया है।
 अजमेर के साहित्यकार और पत्रकार अखिलेश पालरिया ने कहा सामाजिक जीवन की अच्छाइयों-बुराइयों को उजागर करने, यहाँ तक कि उनका निराकरण करने में प्रेस की महती भूमिका के कारण ही उसकी समाज में स्वीकार्यता बढ़ी है। अजमेर के साहित्यकार और मीडिया विशेषज्ञ डॉ .संदीप अवस्थी ने कहा पत्रकारिता सच्चे अर्थों में राष्ट्र और उसके नागरिकों के लिए एक त्याग,समर्पण है, तभी पत्रकार रात दिन कार्य करते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी,माधव सपरे,महावीर प्रसाद द्विवेदी,राजेंद्र माथुर,धर्मवीर भारती, प्रभाष जोशी,कन्हैयालाल नंदन,एसपी सिंह,विनोद मेहता आदि की लंबी  समृद्ध परम्परा है। इनकी शैली पर पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में किताब होनी चाहिए। जयपुर के साहित्यकार नंद भारद्वाज प्रेस की निष्पक्षता पर जोर देते हैं।
राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा के संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने कहा मीडिया जनता की आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने और सत्य को उजागर करने का माध्यम है। हमें निष्पक्ष और सत्यनिष्ठ पत्रकारों का समर्थन करना चाहिए। कोटा के साहित्यकार राजकुमार प्रजापति ने कहा प्रेस का सामाजिक सरोकार समाज के विकास और कल्याण के लिए उसकी भूमिका से जुड़ा होता है। जब मीडिया निष्पक्षता और ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करती है, तो उसके कई सकारात्मक सामाजिक प्रभाव होते हैं: – जनजागरण, सत्य की खोज, लोकतंत्र की रक्षा, सामाजिक एकता और सद्भावना, सकारात्मक पहल की प्रेरणा और वंचित वर्गों की आवाज बनती है।
साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘ ने कहा समाज के आर्थिक , धार्मिक, आपराधिक, राजनीतिक,  स्वास्थ्य , शिक्षा  , विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और सीमा, आदि  अनेकों बीसियों सरोकारो को आज प्रेस की मदद के बिना आवाज मिलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिम्मेदार प्रेस ही राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों  में शान्ति तथा सौहार्द की नींव को ठोस धरातल देता है।  वैदेही गौतम ने कहा मानव सभ्यता के विकास में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रेस के माध्यम से प्रकाशित व प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है जो समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचती है, सहृदय पाठक का साधारणीकरण प्रेस के माध्यम से ही होता है , अतः प्रेस समाज के उत्थान व विकास के लिए अत्यावश्यक है। विजय जोशी ने कहा प्रेस से जुड़े सभी आयाम यथा पत्रकार और लेखक तथा इनके विचारों को मुद्रित करने में अपरोक्ष रूप से सहयोग करने वाले व्यक्ति और व्यक्ति समूह परिवर्तित होते जा रहे समाज के समक्ष जीवन मूल्यों की आभा को दृष्टिगोचर करने में लगें हैं।
कवि और लेखक विवेक कुमार मिश्र ने कहा,  मीडिया आम आदमी के संघर्ष को केंद्र में रखकर कार्य करता है। कोई भी मीडिया क्यों न हो वह जनता की आवाज को सामने लाता है। मीडिया की विश्वसनीयता भी जन जन की आवाज को उठाने में ही है। डॉ. अपर्णा पांडेय ने कहा पत्रकार अनेक दबावों के मध्य भी सजग प्रहरी की तरह अपना धर्म निभाता रहा है। पूर्व मुख्य प्रबन्धक स्टेट बैंक विजय माहेश्वरी ने कहा प्रेस समाज के विभिन्न वर्गों की नीति, परंपराओं, मान्यताओं तथा सभ्यता एवं संस्कृति के प्रहरी के रूप में भूमिका निभाती है। प्रेस  सरकारों और जनता के मध्य भी सेतु का काम करती है।  प्रेस किसी भी प्रकार के दबाव, लोभ या डर से दूर रहकर अपनी शक्ति का सदुपयोग जनहित में करे और समाज का मागदर्शन करे। संयोजक ने सभी का आभार व्यक्त किया।

बाल साहित्य मेला समापन पर 62 बालकों को पुरस्कृत किया

कोटा /  बाल दिवस के संदर्भ में विगत डेढ़ माह से आयोजित किए जा रहे  बाल साहित्य मेले का आश्रय भवन श्री करनी नगर विकास समिति रविवार को समापन समारोह में कोटा और बारां जिले के विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में प्रथम तीन साथ पर रहने वाले 62 छात्र – छात्राओं को प्रमाण पत्र और साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम आयोजित करने वाले 11 साहित्यकार और शिक्षकों के साथ – साथ बाल कविता लेखन में टॉप रहे 4 साहित्यकारों का भी सम्मान किया गया। समारोह का आयोजन संस्कृति,साहित्य,
मीडिया फोरम और केसर काव्य मंच द्वारा किया गया।
अतिथियों ने संबोधित करते हुए कहा कि बच्चों को साहित्य से जोड़ने और रुचि उत्पन्न करने किए हाड़ोती में किया गया यह प्रथम प्रयास एक अच्छी पहल है। यह एक ऐसा आयोजन रहा जिसमें न  केवल साहित्यकारों, शिक्षकों, बच्चों की भागीदारी रही वरन अभिभावक भी जुड़े। बच्चों में साहित्य के प्रति रुझान पैदा करने के लिए ऐसे आयोजन निरंतर होने चाहिए। ये विचार  मुख्य अतिथि साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भइया ‘ तथा अध्यक्षता करते हुए जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘ ने व्यक्त किए। विशिष्ठ अतिथि  राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संभागीय अधीक्षक डॉ. दीपक श्रीवास्तव एवं डॉ.प्रीति मीणा ने भी विचार व्यक्त किए। साहित्यकार विजय जोशी ने गीत एवं छात्र गोविंद ने स्व रचित कविता प्रस्तुत कर सभी को गुदगुदाया।
फोरम के संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने संचालन करते हुए बताया कि इस आयोजन से 18 शिक्षण संस्थाओं के 5 हजार से अधिक बच्चे प्रत्यक्ष रूप से साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं। फोरम के वरिष्ठ सदस्य किशन रत्नानी ने आभार व्यक्त किया। अतिथियों ने मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारंभ किया।
समारोह में मदर टेरेसा उच्च माध्यमिक विद्यालय के वंदना नागर, राहुल कोली, जतिन वर्मा , राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय  मोरपा, सुलतानपुर के  खुशी गोचर , अरमान , दीपिका गुर्जर , राधे रेनवाल , राधिका रेनवाल, मुस्कान ऐरवाल, हिमांशी ,अंकित सेन दिव्यांशी सैनी, मीनाक्षी एरवाल , ईशु मेघवाल राजकीय राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बोरदा, इटावा के सुनील सुमन , साक्षी मीणा, निखिल नागर को पुरस्कृत किया जाएगा। सर्वोदय चिल्ड्रन उमावि, भंवरगढ़, बारां की दिव्यांशी मीणा, भारती शर्मा कक्षा ,अक्षिता नागर , मित्तल इंटरनेशनल स्कूल, मानपुरा, कोटा के पूर्वांश शर्मा, दीपाली हाड़ा, स्नेहा गुर्जर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, केशवपुरा सेक्टर 6 कोटा के प्रियांशु अग्रवाल, राधिका कंवर , नंदिनी पोरवाल,  नालंदा एकेडमी स्कूल, कोटा के  जारा इमरान, अरोज मंसूरी , मनस्वी जैन  ,श्री संस्कार अकादमी  स्कूल शिवाजी नगर बारां के प्रिंस बैरवा, पूनम शर्मा,  गुंजन पांचाल ,श्री करणी नगर विकास समिति गोवर्धनपुरा, कोटा के विकास सुमन मेहरा, कपिल राज , रोहित बैरवा , हरिशंकर मजूमदार ,कमल, गोविंद, अजय, हरीश, राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय, गुमानपुरा की  निशा नायक, जेबा, समायरा, वृंदालय नि:शुल्क विद्यालय महावीर नगर विस्तार योजना  के  युक्ति, अर्जुन, विनीत, राजकीय महाविद्यालय, बाराँ के  प्रवीण गोचर , शिवराज सिंह हाड़ा, प्रिंस कुमार पंकज , राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय , कोटा के अंकित बंसल , अभिषेक मीना,आशीष सोनी ,अंजु सिंह, महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल बोरखेड़ा क नताशा , जाह्नवी , अक्षिता, मांगी  चित्रांश , कुशाल एवं  प्रिंस को पुरस्कृत किया गया।
 साहित्यकारों का सम्मान
 बाल कविता लेखन प्रोत्साहन प्रतियोगिता में पहले चार स्थान पर रहने वाले साहित्यकार योगीराज योगी,अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवं सन्जू श्रृंगी को सम्मानित किया गया। बाल साहित्य मेला आयोजन में पहल कर सक्रिय योगदान और कार्यक्रम आयोजित करवाने वाले  सहयोगी साहित्यकार  डॉ. हिमानी भाटिया,डॉ. अपर्णा पांडे,डॉ. इंदु बाला शर्मा, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. प्रीति मीणा, विजय शर्मा, स्नेहलता शर्मा, मंजु कुमारी,महेश पंचोली, विजय जोशी एवं  रेखा पंचोली को सम्मानित किया गया।

‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन का हथियार

2004 में टाइम पत्रिका के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक प्रसिद्ध ब्रिटिश-अमेरिकी इतिहासकार इतिहासकार नियाल फर्गुसन ने कहा है, “सॉफ्ट पावर बहुत शांत होता है। हमें सेना या आर्थिक हार्ड पावर को प्रयोग करने की आवश्यकता ही क्या है जबकि हमारे पास इससे बेहतर संसाधन सॉफ्ट पावर के रूप में मौजूद हैं।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख श्री मोहन भागवत जी ने जब नागपुर में विजयदशमी के अवसर पर अपने संबोधन में ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ और ‘वोक संस्कृति’ पर अपना विचार रखा तो नियाल फर्गुसन की इस बात के दीर्घकालिक मायने भारत के परिप्रेक्ष्य में  समझे जा सकते हैं। खुद को ‘जागृत’ या ‘वोक’ कहने वाले लोग आधुनिकता के नाम पर पारंपरिक मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं। श्री भागवत जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये विचारधारा विनाशकारी और सर्वभक्षी है, जो भारतीय समाज के मूल्यों और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के खिलाफ काम कर रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये लोग न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सुव्यवस्था, नैतिकता, उपकार और गरिमा के विरोधी हैं। उनके अनुसार, ये ताकतें समाज में अलगाव और भेदभाव पैदा करके उसे कमजोर करना चाहती हैं ताकि विनाशकारी शक्तियों का प्रभुत्व कायम किया जा सके।

‘वोक संस्कृति’ की आलोचना करते हुए भागवत जी ने कहा कि ये लोग शिक्षा और मीडिया पर नियंत्रण करके समाज को भ्रम, भय और घृणा के चक्रव्यूह में फंसाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि ‘वोक’ विचारधारा का उद्देश्य शिक्षा, संस्कृति, राजनीति और सामाजिक वातावरण को अराजक और भ्रष्ट बनाना है, जिससे समाज भीतर से कमजोर हो जाए। भागवत जी ने कहा कि इस विचारधारा से प्रभावित लोग नहीं चाहते कि भारत अपने दम पर खड़ा हो और इसलिए वे समाज की एकजुटता को तोड़ने के लिए सक्रिय हैं। उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वे भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित सकारात्मक बदलावों के साथ आगे बढ़ें, जिससे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को सही दिशा मिल सके।

कुल मिलाकर मोहन भागवत जी ने सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन पर आघात करते हुए भारतीय समाज को इसके विरुद्ध जागरूक करने का प्रयत्न किया। आइये मोहन भागवत जी के इन विचारों का गहराई से जाननें का प्रयत्न करते हैं।

दुनिया में हुए लोकतांत्रिक जागरण एवं संचार क्रांति के द्वारा जब औपनिवेशिक शक्तियों के लिए सामाजिक व शारीरिक गुलामी संभव नहीं रही तो वैचारिक गुलामी का एक नया दौर प्रारंभ किया गया जिसे सॉफ्ट पॉवर कोलोनाइजेशन कहा जाता है। इस नए दौर की औपनिवेशक शक्तियां धर्मान्तरणकारी, पूंजीवादी और वामपंथी स्वरूपों में इस वैचारिक गुलामी को प्रभावी बनाते दिखाई देती हैं। वैश्विक स्तर पर इस्लाम एवं ईसाइयत के बीच चलने वाला घोषित युद्ध हो या पूंजीवादी देशों एवं वामपंथी विचारधारा के बीच का अघोषित युद्ध, भारत इन अधर्मी ताकतों के लिए जनसँख्या, भूगोल, जलवायु, आदि सभी रूपों से अपने प्रदर्शन के लिए सबसे सुखद संभावनाओं वाला देश दिखाई पड़ता है। दुनिया भर में 1991 में हुए साम्यवादी-वामपंथी शक्तियों के पराभव के बाद चीन धीरे-धीरे एक पूंजीवादी देश बन गया तथा भारतीय वामपंथी विचारधारा भारत में एक परिजीवी बनकर इस्लामिक एवं ईसाई धर्मान्तरण एवं पूंजीवादी ताकतों की B टीम के रूप में कार्य कर रही है। इसका एकमात्र लक्ष्य है भारत की सनातन परंपरा का नुकसान कर इसे इस्लामिक एवं ईसाई ताकतों का उपनिवेश बना दिया जाए। इन्हीं उपरोक्त विचारों के क्रम में विगत 3 दशाब्दियों से वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के नाम पर पूंजीवादी देशों (अमेरिका, यूरोप एवं चीन) के द्वारा भारत को आर्थिक उपनिवेश बनाने एवं धर्मान्तरण की शक्तियों द्वारा इसे अरब एवं वेटिकन का धार्मिक उपनिवेश बनाने हेतु भारत की कुटुंब प्रणाली पर लगातार आघात किया जा रहा है क्यों की यही परिवार व्यवस्था इन कुचक्रों हेतु सबसे बड़ी बाधा बन रहा है।

उपभोक्तावाद के निशाने पर भारतीय:
उपभोक्तावाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार ऐसे विचार गढ़े जाते हैं की जो व्यक्ति बड़ी मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं, वे बेहतर स्थिति में होते हैं। थोरस्टीन वेबलन 19वीं सदी के अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री थे, जिन्हें अपनी पुस्तक “द थ्योरी ऑफ़ द लीजर क्लास” (1899) में “विशिष्ट उपभोग” शब्द गढ़ा। विशिष्ट उपभोग किसी की सामाजिक स्थिति को दिखाने का एक साधन है, खासकर जब सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित सामान और सेवाएँ उसी वर्ग के अन्य सदस्यों के लिए बहुत महंगी हों। आमतौर पर उपभोक्तावाद का मतलब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में रहने वाले लोगों की अत्यधिक भौतिकवाद की जीवनशैली अपनाने की प्रवृत्ति से है, जो कि रिफ्लेक्सिव, अत्यधिक उपभोग के इर्द-गिर्द घूमती है। सांस्कृतिक पारिवारिक ढांचे में एक ओर जहाँ एक भाई दुसरे के सुख दुःख में भाग लेकर, अपने माता पिता की सेवा करने में सुख और शांति महसूस करता था, उसे अब उपभोक्तावाद ने कमाई के अनुरूप अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के मानक पर विभाजित कर दिया।

उपभोक्तावाद ने विज्ञापन उद्योग के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं को जन संस्कृति के अगुआ के रूप में स्थापित करती है जो सक्रिय और रचनात्मक लोगों के बजाय ब्रांडों द्वारा नियंत्रित लोगों को लोकप्रिय बनती है। ऐसे नियोजित पूर्वाग्रह उपभोक्तावाद को जन्म देते हैं। अगर इन पूर्वाग्रहों को खत्म कर दिया जाए, तो बहुत से लोग कम उपभोक्तावादी जीवनशैली अपनाएंगे। उपभोक्तावाद का एक उदाहरण हर साल मोबाइल फोन के नए मॉडल पेश करना है। जबकि कुछ साल पुराना मोबाइल डिवाइस पूरी तरह से काम करने लायक और पर्याप्त हो सकता है, उपभोक्तावाद लोगों को उन मोबाइल को छोड़ने और नियमित आधार पर नए मोबाइल खरीदने के लिए प्रेरित करता रहता है। जबकि यही पैसा परिवार के भाई, भतीजे, बेटी, बुजुर्ग माता-पिता की जरूरतों में खर्च हो सकता था लेकिन उपभोक्तावाद ने इस सामाजिक साहचर्य को ख़त्म कर दिया। इसी उपभोगवादी समाज में अब अपने रिश्तेदारों, मामा, चाचा, फूफा के यहाँ रहकर पढ़ने-लिखने, जीवन बनाने जैसे उदहारण भी दिखना लगभग शून्य हो चुका है।

इस अर्थ में, उपभोक्तावाद को पारंपरिक मूल्यों और जीवन के तरीकों के विनाश, बड़े व्यवसायों द्वारा उपभोक्ता शोषण, पर्यावरण क्षरण और नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभावों में योगदान देने के लिए व्यापक रूप से समझा जा सकता है।

परिवार/ विवाह संस्कार पर आघात:
कुटुंब व्यवस्था का आधार स्तम्भ है विवाह संस्कार। पति एवं पत्नी मिलकर वंश परंपरा में 3 पीढ़ियों का पलान, पोषण करते हैं, जिसमें उनके माता-पिता एवं बच्चे शामिल होते हैं। पूंजीवादी शक्तियों के भारत में पनपने में यह सबसे बड़ी बाधा हैं क्यों की एक ही छत के नीचे स्त्रियाँ मिलकर सभी गृहकार्य कर लेती हैं और पुरुष मिलकर आर्थिक एवं सामाजिक दायित्व निभाते हैं। बुजुर्ग, बच्चों के साथ संवाद कर उनके जिज्ञासाओं को पुष्ट करते हुए उन्हें सामाजिक संस्कार देते हैं। कल्पना करिए की यही विवाह संस्कार टूटने से क्या प्रभाव पड़ेगा। बुजुर्गों को मोटी फीस देकर वृद्धाश्रम में रहना पड़ेगा, उनके लिए नर्स, कुक, क्लीनर आदि सेवक सेविकाएँ सब पैसे पर आयेंगे। इसके अलावा सभी स्त्री एवं पुरुष जो एकल जीवन शैली में रहेंगे वो भी अपनी सभी जीवन से जुडी आवश्यकताओं हेतु बाज़ार पर निर्भर होंगे। घर से रसोई कक्ष ख़त्म होगा तो रेस्टोरेंट व्यवसाय को गति मिलेगी। इसके अलावा कपड़े धुलने हेतु लांड्री, सफाई हेतु क्लीनर आदि सभी आवश्यकताओं हेतु व्यक्ति बाज़ार पर निर्भर होगा। ‘यूज एंड थ्रो’ की संस्कृति विकसित होने से पूंजीवाद पर निर्भर व्यक्ति एक इकाई के रूप में भाव शून्य होकर केवल पैसे कमाकर अपनी जरूरतों को पूर्ण करने का एक यन्त्र बन जाएगा।

विवाह परंपरा के समाप्त होने से व्यक्ति का कुटुंब समाप्त होगा तो एकल व्यक्ति का ब्रेनवाश करना धर्मान्तरण गिरोहों के लिए बेहद आसान होगा। किसी को वृद्धाश्रम की सेवा के नाम पर मतांतरित किया जायेगा तो किसी को सांसारिक मुक्ति के नाम पर। बच्चे जो अपने बाबा दादी से अलग परिचारिकाओं के संरक्षण में पलेंगे, या माता पिता के साथ एकाकी जीवन में होंगे तो उनके भीतर मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक संस्कार शून्य होंगे। इससे उनका ब्रेनवाश आसानी से संभव होगा। अभी सम्पूर्ण विश्व ने ISIS के द्वारा यूरोप के बच्चों को आतंक हेतु इन्टरनेट पर प्रभावित करते देखा गया जिससे वैश्विक स्तर पर चिंताएं बढ़ी हैं। यह उदहारण अब केरल और बंगाल आदि भारतीय प्रदेशों में भी दिखाई दे रहे हैं।

फ्री-सोल और DINK संस्कृति के कुचक्र में नई पीढ़ी:
“DINK” एक संक्षिप्त नाम है जिसका अर्थ है “डबल इनकम, नो चाइल्ड्स”, जो उन दम्पतियों को संदर्भित करता है जो स्वेच्छा से निःसंतान हैं। विवाह परंपरा का विरोध और यौन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिव-इन संबंधों के प्रचार द्वारा भारत के सामाजिक चरित्र हरण के पीछे धर्मांतरणवादी समूहों का योगदान है। इसके लिए इस प्रकार के विमर्श को प्रमुखता दी जाती है जिसमें युवाओं को बताया जाता है की आप मुक्त इकाई हो, “जिंदगी न मिलेगी दोबारा” आदि जुमलों को आधार बनाकर माता, पिता, समाज एवं परम्पराओं को धता बताकर केवल अपने करियर निर्माण पर ध्यान देने की बात कही जाती है। इससे पूंजीवादी कंपनियां एक मानव को पारिवारिक इकाई से औद्योगिक इकाई के रूप में परिवर्तित कर केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं और जब एक आयु और उर्जा के बाद आप को एहसास होता है की परिवार और समाज की आवश्यकता है तब तक देर हो चुकी होती है और समाज के प्रवाह में पीछे छुट गए युवा डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। यही अवसादग्रस्त युवा हॉस्पिटल, नशीली दवाओं, शराब, नाईट क्लब के व्यव्साय को फलने फूलने में मदद करते हैं और जब जवानी का आवेग थमता है तो निराश और एकाकी जीवन धर्मांतरणवादी समूहों का सबसे उपयुक्त शिकार बन जाता है।

फ्री-सोल माधुरी गुप्ता की कहानी: माधुरी गुप्ता भारतीय विदेश सेवा की वरिष्ठ अधिकारी थीं। वे 52 साल की थीं, लेकिन अविवाहित थीं। उन्होंने मिस्र, मलेशिया, जिम्बाब्वे, इराक और लीबिया समेत कई देशों में वरिष्ठ पदों पर काम किया था। उर्दू पर उनकी अच्छी पकड़ के कारण उन्हें पाकिस्तान भेजा गया, जहाँ उन्हें वीज़ा के साथ मीडिया का प्रभार भी दिया गया। पाकिस्तान में माधुरी गुप्ता की मुलाकात जमशेद उर्फ जिम्मी नाम के 30 साल के शख्स से हुई। युवक ने अपनी वाकपटुता और हाजिरजवाबी से माधुरी गुप्ता का दिल जीत लिया। इतना ही नहीं माधुरी गुप्ता ने इस्लाम धर्म भी अपना लिया। माधुरी गुप्ता जमशेद के प्यार में देशद्रोही हो गई है और वो भारत की गुप्त सूचनाएं जमशेद को दे रही थी। दरअसल जमशेद आईएसआई का जासूस था। आईएसआई ने उसे ट्रेनिंग दी और माधुरी गुप्ता को फंसाने के लिए उसका इस्तेमाल किया क्योंकि जब आईएसआई को पता चला कि माधुरी गुप्ता 52 साल की उम्र में अविवाहित है तो वो जरूर किसी साथी की तलाश में होगी।

भारतीय त्योहारों पर कुचक्र:

भारत की परिवार व्यवस्था पर आघात करने के लिए ऐसे सभी भारतीय तीज त्यौहारों पर आघात किया जा रहा है जिसे भारतीय परिवार मिलजुल कर मनाते हैं। इसके लिए औपनिवेशिक मानसिकता वाले धर्मांतरण गैंग स्कूलों, विश्वविद्यालयों एवं कॉरपोरेट संस्थाओं आदि में ईसाइयों के त्योहार पर छुट्टियां प्रदान करते हैं परंतु हिंदू त्योहारों पर धीरे-धीरे लंबी छुट्टियां को समाप्त कर एकदिवसीय छुट्टी दी जाती है। कॉन्वेंट आधारित स्कूली शिक्षा एवं वामपंथी नेक्सस के द्वारा नियंत्रित होने वाले विश्वविद्यालयों के द्वारा जानबूझकर बच्चों की परीक्षाओं को हिंदू त्योहारों के इर्द-गिर्द डाला जाता है जिससे चाहते हुए भी कोई परिवार इकट्ठा होकर त्योहारों का आनंद न ले सके। कॉर्पोरेट कंपनियों में 15 दिसंबर से लेकर 31 दिसंबर तक घोषित रूप से छुट्टियां कर दी जाती हैं क्योंकि इस दौरान इसाई क्रिसमस के लिए छुट्टियां मनाते हैं लेकिन तर्कसंगत बात यह है कि हिंदुओं के लिए ऐसी छुट्टियों का क्या मतलब?

पूंजीवादी वामपंथी नेक्सस ने भारत में एक बड़ा विमर्श खड़ा कर दिया की दीपावली मनाने से प्रदूषण होता है, होली मनाने से पानी की बर्बादी होती है, दशहरा मनाने से वायु प्रदूषण होता है। करवाचौथ जैसे पति-पत्नी के पवित्र त्यौहार को पितृसत्तात्मक कहकर इसलिए आलोचना की जाती है क्योंकि यह अब्राहमइक मज़हबी  बहुपत्नी व्यवस्था के विरुद्ध एक पत्निधर्म संबंध की मजबूती को दर्शाता है। पश्चिमी त्योहारों जैसे वैलेंटाइन डे, थैंक्सगिविंग, क्रिसमस आदि पर महंगे उपहार के द्वारा पूंजीवाद को प्रमोट किया जाता है।

LGBT एक सुनियोजित षड़यंत्र:
वामपंथ का लम्बे समय तक हासिये पर जाने के बाद, यूरोप में इसकी वापसी अचानक एक नए कलेवर में हुई। अचानक जगह-जगह यूरोप में गे-प्राईड, LGBT प्राइड रैली आदि होने लगी और उसके प्रायोजक यह बड़े-बड़े फैशन ब्रांड है क्योंकि इन फैशन ब्रांड को यह लगता है कि जब आदमी के पास पैसा होगा तब आदमी उनके ब्रांड पर पैसा खर्च करेगा और किसी भी आदमी की कमाई का 90% हिस्सा उसके परिवार पर खर्च हो जाता है इसीलिए यह फैशन ब्रांड LGBT कल्चर को खूब बढ़ावा दे रहे हैं। बिजनेस हाउस चाहते हैं कि लड़के और लड़कियां विवाह ना करें अपनी यौन कुंठा एक दूसरे के साथ मिटाएं ताकि उनकी जो कमाई है वह कमाई परिवार पर खर्च ना हो फिर इस तरह की फैशन मैगजीन में तस्वीरें देखकर उनके ब्रांड पर पैसे खर्च करें। अमेरिका भी तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहा है। मुझे बराक ओबामा की वह चेतावनी याद आ रही थी कि जब वह अमेरिकी युवको को संबोधित करते हुए कह रहे थे अगर तुम अभी भी नहीं जागे तब भारत के युवा तुम्हारी सारी नौकरी-बिजनस खा जाएंगे।

अमेरिका, आयरलैंड और दूसरे तमाम देशों में गर्भपात पर ईसाइयत का हवाला देकर प्रतिबंध लगवा देता है। गर्भपात की इजाजत नहीं देता वही देश दुनिया भर में गे और लेस्बियन कल्चर पर खामोश क्यों है ? इसका उत्तर है की पूंजीवाद की चर्च से जुगलबंदी एवं वामपंथ की खोल में छुपकर प्रकट हुआ इस्लाम अपने अपने स्वार्थों हेतु बाजार में संयुक्त होकर भारत के संस्कृति और संस्कारों के विनाश हेतु तैयार हैं।

उपरोक्त परिस्थितियों से हम भारतीय परिवारों के लक्षित रूप से टूटने की भयावहता को समझ सकते हैं और इसके दुष्परिणाम भारतीय समाज पर पड़ना दिखाई देना प्रारंभ हो चुका है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम देश विदेश में फैले भारतवंशी परिवारों हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यों की यही परिवार सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और अध्यात्मिक विरासत के परिचायक हैं।

ओटीटी जैसे नए मंचों से षड़यंत्र:
भारत में ओटीटी प्लेटफार्म्स की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता ने मनोरंजन के नए द्वार खोले हैं, लेकिन इसके साथ ही कुछ नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं। इन प्लेटफार्म्स पर कई ऐसे वेब सीरीज और फिल्मों का प्रसारण हो रहा है, जिनमें हिंसा, अश्लीलता और आपत्तिजनक सामग्री को प्रमुखता दी जाती है। इन प्लेटफार्म्स पर आसानी से उपलब्ध कंटेंट में जाति, धर्म और सामाजिक मुद्दों को ऐसे तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, जो समाज में नफरत और विभाजन को बढ़ावा देता है।

ओटीटी कंटेंट पर नियंत्रण की कमी और सेंसरशिप न होने के कारण, निर्माता अक्सर विवादास्पद विषयों का सहारा लेते हैं, जिनसे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। कई सीरीज में धर्म और सांस्कृतिक प्रतीकों का अपमानजनक चित्रण होता है, जिससे समाज में तनाव और असहमति बढ़ती है। दर्शकों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वह किस प्रकार की सामग्री का सेवन कर रहे हैं और उसका उनके विचारों और आचरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। सरकार और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर प्रसारित सामग्री स्वस्थ, जिम्मेदार और समाज को एकजुट करने वाली हो, ताकि आने वाली पीढ़ियां एक सुरक्षित और सकारात्मक सामाजिक वातावरण में विकसित हो सकें।

उपसंहार:
श्री मोहन भागवत जी द्वारा उठाए गए बिंदु यह दर्शाते हैं कि ऐसी विचारधाराएं जो सांस्कृतिक मार्क्सवाद या वोक विचारधारा के तहत आती हैं, भारतीय समाज में भेदभाव, भ्रम, और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश करती हैं। इनका उद्देश्य पारंपरिक सांस्कृतिक व्यवस्थाओं और मूल्यों को ध्वस्त करना है, ताकि समाज में अराजकता और विभाजन पैदा हो सके। वोक संस्कृति के प्रति सावधानी बरतते हुए हमें अपने समाज की एकता, सांस्कृतिक धरोहर और नैतिकता को बनाए रखना होगा। यह अत्यावश्यक है कि भारतीय समाज अपने सांस्कृतिक मूल्यों पर गर्व करे और अपने रास्ते पर अडिग रहते हुए अपने सांस्कृतिक मूल्यों को अपनी शक्ति बनाकर विश्व मंच पर सॉफ्ट पॉवर के रूप में प्रसारित करें जैसे वर्त्तमान में विश्व योग, आध्यात्म और आयुर्वेद के रूप में हमारी सांस्कृतिक विरासत को स्वीकार कर रहा है। इसतरह से भारत अपने दम पर खड़ा होकर दुनिया के सामने एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के रूप में उभरेगा जिसका नेतृत्व लम्बे समय तक विश्व को आलोकित कर सकेगा।

Shivesh Pratap

 लेखक IIM कलकत्ता से शिक्षित, लेखक व लोकनीति विश्लेषक हैं)

मो 8750091725
Mob: 8750091725

हिंदू कालेज में सतर्कता अभियान

दिल्ली। सत्यनिष्ठा की संस्कृति से ही राष्ट्र की समृद्धि और सम्पन्नता होती है। असत्य और अनैतिकता मनुष्य और राष्ट्रीयता की गरिमा को नष्ट करते हैं। हिंदू कालेज में सतर्कता अभियान के अंतर्गत राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा सत्यनिष्ठा और जागरूकता की शपथ दिलाते हुए प्राचार्य प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदू महाविद्यालय की शानदार परम्पराओं में ‘सत्य का संगीत’ हमारा आदर्श वाक्य रहा है। शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों को सत्यनिष्ठता की शपथ दिलाते हुए प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि हमें नए दौर में भी अपने आदर्शों को बनाए रखना है। महाविद्यालय की उप प्राचार्य प्रो रीना जैन ने कहा कि कार्यालय के स्तर पर किसी भी तरह का कोई कार्य लंबित रहना अनुचित है और हम सभी को प्रत्येक कार्य अथवा शिकायतों को समयबद्ध ढंग से पूरा करने का संकल्प लेना होगा। महाविद्यालय के कोषाध्यक्ष डॉ वरुणेंद्र सिंह रावत ने कहा कि शिक्षण संस्थान होने के कारण हमारे यहां आर्थिक गतिविधियां सीमित होती हैं तब भी हमारा संकल्प है कि इनमें पारदर्शिता बनी रहने दी जाए ताकि किसी अनियमितता के लिए कोई स्थान न रहे।
राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी और हिंदी विभाग में सह आचार्य डॉ पल्लव ने इस वर्ष मनाए गए सतर्कता अभियान की जानकारी दी। आयोजन में शिक्षक, सह शैक्षणिक कर्मचारी और विद्यार्थियों ने भाग लिया। राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयं सेवकों ने शपथ पत्र वितरण में सहयोग किया। अंत में महिला विकास प्रकोष्ठ की डॉ नीलम सिंह ने आभार प्रदर्शित किया।
नेहा यादव
अध्यक्ष, राष्ट्रीय सेवा योजना
हिन्दू कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली

डाकघर के माध्यम से घर बैठे बनेगा पेंशनरों का जीवन प्रमाणपत्र – पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव

डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 की शुरुआत, 30 नवंबर तक चलेगा अभियान

अब पेंशनरों को जीवन प्रमाणपत्र जमा करने के लिए कोषागार, बैंक या अन्य किसी विभाग में जाने की जरूरत नहीं है। पेंशनर अपने नजदीकी डाकघर के पोस्टमैन या ग्रामीण डाक सेवक के माध्यम से डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट जारी करवा सकते हैं। इसके लिए मात्र 70 रुपये का शुल्क निर्धारित किया गया है। यह प्रमाण पत्र स्वतः संबंधित विभाग को ऑनलाइन पहुंच जाएगा। इससे पेंशन मिलने में कोई रुकावट नहीं आएगी। उक्त जानकारी राजकोट प्रधान डाकघर में इंडिया पोस्ट पेमेंटस बैंक द्वारा आयोजित डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र शिविर में सौराष्ट्र एवं कच्छ परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने दी। इस अवसर पर राजकोट मंडल के प्रवर अधीक्षक डाकघर श्री एस के बुनकर, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के सीनियर मैनेजर श्री संदीप मौर्या और सीनियर पोस्टमास्टर राजकोट श्री अभिजीत सिंह भी उपस्थित रहे।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकार सभी विभागों के पेंशनरों को घर बैठे डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट प्रदान करने की सुविधा प्रदान की जा रही है। 30 नवंबर तक डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र अभियान 3.0 वृहद रूप से चलेगा। इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक ने 2020 में केंद्रीय, राज्य और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के पेंशनरों के लिए जीवन प्रमाण जनरेट करने के लिए डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र की डोरस्टेप सेवा की शुरुआत की, जो कि पेंशन व पेंशनर्स कल्याण विभाग और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के समन्वय में है। इस पहल का उद्देश्य फेस ऑथेंटिकेशन (चेहरा प्रमाणीकरण) तकनीक और फिंगरप्रिंट बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन की डिजिटल प्रक्रिया के उपयोग को बढ़ावा देना है, जिससे सभी पेंशनरों, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वालों को सुविधाजनक सेवाएं मिल सकें।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि पेंशनर इस सुविधा को प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र के पोस्टमैन के साथ-साथ पोस्ट इन्फो मोबाइल एप (https://ccc.cept.gov.in/ServiceRequest/request.aspx) द्वारा ऑनलाइन अनुरोध भी कर सकते हैं। इसके लिए पेंशनर को आधार नंबर, मोबाइल नंबर, बैंक या डाकघर बचत खाता नंबर और पीपीओ नंबर देना होगा। प्रमाण पत्र जनरेशन प्रक्रिया पूरी होने पर, पेंशनर को उनके मोबाइल नंबर पर एक पुष्टि एस.एम.एस प्राप्त होगा और प्रमाण पत्र को https://jeevanpramaan.gov.in/ppouser/login पर अगले दिन के बाद ऑनलाइन देखा जा सकेगा।

           गौरतलब है कि पेंशनरों को प्रत्येक वर्ष  सामान्यतया नवंबर और दिसंबर माह में कोषागारबैंक या संबंधित विभाग में जीवन प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होता है। इसके लिए  दूरदराज इलाके के पेंशनरों को कोषागार आने में कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है एवं यात्रा आदि में भी काफी व्यय होता है। ऐसे में डाक विभाग की इस पहल से  पेंशनरों को काफी सहूलियत मिलेगी। इसके साथ-साथ पेंशनर डाकिया के माध्यम से घर बैठे पेंशन की धनराशि आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम के माध्यम से अपने बैंक खाते से निकाल सकते हैं।

कृषि वस्तुओं के निलंबन का खाद्य कीमतों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

नई दिल्ली, दिल्ली।

  • शैलेश जे. मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (SJMSOM), आईआईटी बॉम्बे और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), नोएडा द्वारा प्रस्तुत एक स्वतंत्र शोध
  • अलग-अलग अध्ययनों ने प्रचलित बाजार मिथक ‘कमोडिटी डेरिवेटिव ट्रेडिंग से मुद्रास्फीति बढ़ती है’ को ध्वस्त कर दिया है

भारत के प्रमुख बी-स्कूलों में से एक, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), नोएडा और शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (SJMSOM), IIT बॉम्बे ने एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज (ETCDs) पर फ्यूचर डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के निलंबन के प्रभाव की जांच करने के लिए दो अलग-अलग अध्ययन किए। BIMTECH रिपोर्ट कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का अंडरलाइंड कमोडिटी बाजार पर असर, में जनवरी 2016 से अप्रैल 2024 के बीच सरसों बीज, सोयाबीन, सोया तेल, सरसों तेल और पाम ऑयल का अध्ययन किया गया है । यह रिपोर्ट निर्णायक रूप से बताता है कि ETCDs (एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज) के निलंबन के कारण वास्तविक बाजार में में संदर्भ मूल्य की अभाव की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है , और इसके परिणामस्वरूप मंडी भाव एक जैसे नहीं रहते । विभिन्न मंडियों में भाव बहुत अलग-अलग होते हैं और कीमतें भी ज्यादा ऊपर-नीचे होती है।

शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, आईआईटी बॉम्बे द्वारा किए गए अध्ययन का शीर्षक है – कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का कृषि तंत्र पर प्रभाव । इसमें द्वितीयक और प्राथमिक शोध को मिलाकर व्यापक तरीका अपनाया गया। प्राथमिक आंकड़े महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सर्वेक्षण और बाजार प्रतिभागियों (किसान और एफपीओ समेत) के गहन साक्षात्कार के जरिये इकट्ठे किए गए।, जिसमें सरसों बीज, सोया तेल, सोयाबीन, चना और गेहूं जैसी कमोडिटी को केंद्र में रखा गया। अध्ययन में इस बात का उल्लेख किया गया है डेरिवेटिव्स अनुबंध किसानों और वैल्यू चेन के दूसरे भागीदारों के लिए भाव तय करने तथा जोखिम संभालने का अहम जरिया होते हैं। इसके जरिये वे उतार-चढ़ाव और कृषि आर्थिक क्षेत्र में दूसरे जोखिमों को संभाल सकते हैं।

साल 2021 में, सेबी ने सात कृषि कमोडिटी/कमोडिटी समूहों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर रोक लगा दी। इसे 2003 में कमोडिटी एक्सचेंजों के आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण के अस्तित्व में आने के बाद से भारतीय कमोडिटी डेरिवेटिव बाजार पर अब तक का सबसे बड़ा प्रतिबंध कहा जा सकता है। हालांकि निलंबन के लिए कोई विशेष कारण नहीं बताया गया, लेकिन ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि चढ़ते भावों पर अंकुश लगाने के लिए रोक लगाई गई थी क्योंकि डर था कि डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से कीमतें बढ़ रही हैं। इस संदर्भ में, भारत के दो प्रतिष्ठित संस्थानों ने कमोडिटी डेरिवेटिव के निलंबन का कमोडिटी इकोसिस्टम पर प्रभाव ‘ का मूल्यांकन करते हुए एक व्यापक अध्ययन किया।

BIMTECH का अध्ययन डॉप्रबीना राजीबडारुचि अरोड़ा, बिमटेक से और डॉपरमा बराई आईआईटीखड़गपुर द्वारा किया गया जो तीन दृष्टिकोणों पर केंद्रित है

  • स्थानीय मंडियों के लिए प्राइस एंकर उपलब्ध नहीं होने का असर।
  • कमोडिटी वायदा पर रोक और थोक तथा रिटेल स्तर पर खाद्य तेल के भाव पर असर।
  • निलंबित वस्तुओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हेजिंग दक्षता

अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर प्रबीना राजीब ने कहा, “भारत में कमोडिटी डेरिवेटिव अनुबंध पर समय-समय पर रोक लगाना चलन जैसा बन गया हैजो  केवल डेरिवेटिव क्षेत् के विकास में बाधा डाल रहा हैबल्कि समग्र कमोडिटी पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को भी प्रभावित कर रहा है। हालांकिदुनिया भर में कमोडिटी एक्सचेंज सैकड़ों वर्षों से बेरोकटोक कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध चलाते आ रहे हैं, जबकि इन कमोडिटी में अक्सर आपूर्ति और मांग का मेल बिगड़ जाता है और कीमत ऊपर-नीचे होती रहती हैं । इस शोध के माध्यम से भारत में रोक के पीछे अंतर्निहित प्रचलि विश्वास प्रणाली में गहराई से जाना और सबसे प्रमुख इकाई – हमारे किसानों और मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों पर इसके प्रभाव को समझना दिलचस्प था। हमारा अध्ययन स्पष्ट करता है कि डेरिवेटिव वायदा कारोबार के बारे में यह धारणा कि मूल्य मुद्रास्फीति की ओर ले जाती हैगलत हो सकती है। खुदरा और थोक मूल्य के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि विशेष रू से खाद्य तेलों के लिए केवल निलंबन अवधि के दौरान सभी श्रेणियों में कीमतों में वृद्धि हुई हैबल्कि खुदरा उपभोक्ता  भी अधिक कीमत चुका रहे हैं।

एसोसिएट प्रोफेसर सार्थक गौरव (अर्थशास्त्रऔर सहायक प्रोफेसर पीयूष पांडे (वित्तद्वारा कि गए शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट आईआईटी बॉम्बे अध्ययन में चार विशिष्ट उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

  • पांच कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक के कृषि तंत्र पर हुए असर की पड़ताल करना।
  • कमोडिटी पर रोक के बाद पड़ने वाले प्रभाव की तस्वीर पेश करना और वायदा तथा हाजिस भाव, वॉल्यूम एवं उतार-चढ़ाव के बीच संबंध की पड़ताल करना।
  • यह समझना कि जिस कमोडिटी पर रोक लगाई गई, उसमें अटकलबाजी चिंता का विषय है या नहीं।
  • वास्तविक बाजार में भागीदारी करने वालों के बीच वायदा बाजार की समझ का पता लगाना। इसमें किसान समुदाय भी शामिल है, जिसके वायदा ट्रेडिंग के बारे में अनुभवों का अध्ययन बहुत कम हुआ है।

अपने शोध के बारे में बोलते हुए प्रोफेसर सार्थक गौरव ने टिप्पणी की, हमारे शोध में पाया गया है कि पांच निलंबित वस्तुओं के लि कमोडिटी वायदा कारोबार और हाजिर बाजार की कीमतों के बीच सकारात्मक संबंध का कोई सबूत नहीं हैजो यह दर्शाता है कि वस्तुओं के लिए वायदा कारोबार और खाद्य मुद्रास्फीति के बीच संबंध गलत है। वास्तव मेंतीन राज्यों – महाराष्ट्रमध्य प्रदेश और गुजरात में कमोडिटी वायदा और हाजिर कीमतों के आंकड़ों और सर्वेक्षणों के विश्लेषण पर आधारित ध्ययन दृढ़ता से स्थापित करता है कि जिन कमोडिटी पर रोक लगाई गई और जिन पर रोक नहीं लगाई गईदोनों के ही भाव रोक के बाद भी ऊंचे ही बने रहे और कमोडिटी के रिटेल मूल्य पर घरेलू और विदेशी मां तथा आपूर्ति का असर पड़ता है उन्होंने आगे कहा कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध कीमत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैंजो विश्लेषण से स्पष्ट है। रोक के बाद रेफरेंस प्राइसिंग व्यवस्था खत्म हो जाने तथा मूल्य जोखिम प्रबंधन के तरीके बिगड़ जाने के कारण कमोडिटी के बेहतर भाव तय करने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ा है। उचित मूल्य पता लगाने की प्रक्रिया में बाधा आई है और बाजार में प्रवेश तथा भागीदारी पर भी असर पड़ा है। “

दोनों अध्ययनों द्वारा सामने रखे गए दृष्टिकोण को जोड़ते हुए, कमोडिटी पार्टिसिपेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय रावल ने कहा, कमोडिटी और डेरिवेटिव ट्रेडिंग का निलंबन  केवल कृषि मूल्य श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव डालता हैबल्कि यह दीर्घ अवधि में तंत्र में निहित विश्वास को भी तोड़ता है। इसलिएयह ध्यान रखना उचित है कि इस तरह के फैसलों का हमारे कमोडिटी बाजार पर भौतिक और वित्तीय दोनों तरह से दीर्घकालिक परिणाम होते हैं। घरेलू खुदरा कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय बाजारोंभूराजनीतिक वातावरणमौसम संबंधी विसंगतियोंआपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों आदि जैसे संभावित मौलिक मूल्य को प्रभावित करने वाले कारकों के आलोक में इस तरह के प्रतिगामी कदमों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि, “डेरिवेटिव ट्रेडिंग मूल्य खोज और मूल्य जोखिम प्रबंधन के लिए वायदा बाजार के लिए एक रेफरेंस प्राइसिंग प्रदान करती है। यहां तक कि भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 ने कृषि डेरिवेटिव बाजार द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है। मेरा ईमानदारी से मानना है कि कमोडिटी वायदा बाजार प्रभावी रूप से मूल्य खोज में तभी योगदान दे सकता है जब कई पभोक्ताउत्पादकव्यापारी और एग्रीगेटर इन बाजारों का उपयोग अपने जोखिम को कम करने के लिए रें।

इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (आईआरएमए) में कमोडिटी मार्केट्स में उत्कृष्टता केंद्र के प्रोफेसर और समन्वयक डॉराकेश अरवटिया ने हाकमोडिटी डेरिवेटिव्स बाजार संचालित उपकरण हैंजो अस्थिर समय के दौरान ढाल के रूप में का करते हैं – मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों के हितों की रक्षा रते हैं और कमोडिटी बाजारों में स्थिरता लाते हैं। चूंकि ये अपेक्षाकृत नए उपकरण हैंइसलिए उनके बारे में एक निश्चित स्तर की आशंका है। हालांकिसरकार को  उपकरणों का उपयोग किसानों को मूल्य अस्थिरता के बावजूद उनके मूल्य जोखिम का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए करना चाहिएन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिएजिससे वॉल्यूम बढ़े और बाजार का विश्वास मजबूत हो।