लंदन की सांस्कृतिक संस्था संस्कृति ने कल हैरो स्थित फ्रांसिस जॉर्डन हाल में ग़ज़ल गायन का कार्यक्रम आयोजित किया , प्रस्तुति के समय खचाखच भरे हाल में हर ग़ज़ल तालियों की गड़गड़ाहट से अंदाज़ा हो रहा था कि इस शहर में भी घायलों के कदरदान मौजूद हैं.
गायिका पूजा भनोट की शास्त्रीय संगीत में की गई मेहनत से उनकी हर ग़ज़ल ने गहरा प्रभाव छोड़ा. ग़ज़लों का चयन कुछ इस प्रकार से था कि जैसे ग़ज़ल की विकास यात्रा ही सम्मुख प्रस्तुत कर दी गई हो . अट्ठारहवीं शताब्दी की दखिनी महिला शायर
माह लक चंदा से लेकर लंदन में बसे भारतीय मूल के कवि और कहानीकार की ग़ज़लें शामिल थीं.
माह लक चंदा उर्दू शायरी का वह पहली महिला शख्सियत रही हैं जिनकी ग़ज़लों का दीवान निकला और उन्होंने अपनी रचनाओं में भारी भरकम अरबी फ़ारसी के शब्दों की जगह बोलचाल के शब्दों का इस्तेमाल किया, अबसे दो सौ वर्ष पहले लिखी रचना “आने का मुंतज़र “ पर लंदन में बसी नई पीढ़ी भी दाद दे तो इस शायरा की रचनाओं की प्रासंगिकता समझ में आती है . उन्नीसवीं शताब्दी के दो समकालीन शायर ग़ालिब और दाग़ देहलवी की रचनाएँ “शब ए रोज़ तमाशा मेरे आगे” और “न रवा कहिये न सज़ा कहिये/कहिये कहिये मुझे बुरा कहिये/दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़/इस को हर्गिज़ न बर्मला कहिये” भी पसंद की गईं .
बागी तेवर वाले फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की रूमानी रचना “दश्ते-तनहाई में ऐ जाने-जहाँ लरज़ाँ हैं/तेरी आवाज़ के साए तेरे होंठों के सराब/दश्ते-तनहाई में दूरी के ख़सो-ख़ाक़/ तले
खिल रहे हैं तेरे पहलू के समन और गुलाब”, मजाज़ लखनवी की “अब मेरे पास तुम मेरे पास आई हो तो क्या आई हो/मैंने माना कि तुम इक पैकर-ए-रानाई हो/
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन-आराई हो/तलअत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो/बिंत-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो”
साहिर लुधियानवी की ताज महल फ़िल्म में प्रयुक्त ग़ज़ल “ जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं /कैसे नादान हैं शोलों को हवा देते हैं”, कैफ़ी आज़मी की मशहूर नज़्म “कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है/वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है/यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है”यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है”, निदा फ़ाज़ली की “हर जगह हर तरफ़ बेशुमार आदमी /फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी”, बशीर बद्र की “सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा नहीं कुछ भी नहीं/
माँगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं/सोचा तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे/मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं” और तेजेन्द्र शर्मा की “अज़ब सी बात है अज़ब सा यह फ़साना है/कि अपने शहर में अपना नहीं ठिकाना है “ भी खूब पसंद की गई.
कार्यक्रम के संचालक विनीत जौहरी और आशीष मिश्रा ने शायरों और रचनाओं की पृष्ठभूमि पर रोचक जानकारी देकर कार्यक्रम को कलेवर प्रदान किया. गायिका पूजा को अमरजीत तबले , सुनील जाधव की-बोर्ड,सिद्धार्थ सिंह गिटार ,सुरजीत सिंह ने सारंगी पर संगती प्रदान की.
कार्यक्रम में अन्य गणमान्य श्रोताओं के साथ हाउस ऑफ़ कॉमन्स के सदस्य वीरेन्द्र शर्मा , काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी भी संस्कृति के इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
(लेखक स्टेट बैंक ऑफइंडिया के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और इन दिनों लंदन यात्रा पर हैं