विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारत के शेयर बाजार में किये गए निवेश का पोर्टफोलियो लगभग 20 प्रतिशत गिर गया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को यह आभास हो रहा है कि इसमें अभी और गिरावट आ सकती है अतः विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना निवेश अभी भी लगातार निकाल रहे है। दूसरे, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को भारतीय बाजार तुलनात्मक रूप से महंगे लग रहे हैं क्योंकि चीन एवं कुछ अन्य देशों की कम्पनियों के शेयर इन देशों के शेयर बाजार में सस्ते में उपलब्ध हैं। अमेरिका में बांड यील्ड के उच्च स्तर (4.75 प्रतिशत से भी ऊपर) जाने के चलते भी अमेरिकी पोर्टफोलियो निवेशक भारत से अपना निवेश निकाल कर चीन, अमेरिका एवं अन्य इमर्जिंग बाजारों में निवेश कर रहे हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होते जाने से भारतीय रुपए पर लगातार दबाव बना हुआ है एवं भारतीय रुपए का अवमूल्यन हुआ है। हाल ही के समय में एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य भारत के लगभग 88 रुपए के स्तर पर पहुंच गया है, इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की भारत के शेयर बाजार में होने वाली आय भी कम हुई है एवं उनकी लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
सितम्बर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का भारतीय कम्पनियों में किए गए निवेश का पोर्टफोलियो 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आज गिरकर 30,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा गया है। इसमें 25 प्रतिशत की भारी भरकम गिरावट दर्ज की गई है। 2 अप्रेल 2025 से ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर रेसिपरोकल टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के चलते अभी भी भारतीय पूंजी बाजार पर लगातार दबाव बना रह सकता है। हालांकि, इसी समय में भारतीय संस्थागत निवेशक एवं खुदरा (रीटेल) निवेशक भारतीय कम्पनियों के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश कर रहे हैं इसीलिए भारतीय शेयर बाजार बहुत अधिक नहीं गिरा है। परंतु फिर भी, भारतीय शेयर बाजार में माहौल तो बिगड़ ही रहा है।
अभी तक तो विकसित देशों द्वारा वैश्वीकरण की नीतियों के आधार पर अपनी आर्थिक नीतियां बनाई जा रही थीं एवं विश्व के अन्य विकासशील देशों पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि वे भी इन नीतियों का अनुपालन करते हुए विश्व के विकसित देशों के लिए विकासशील देश अपने द्वार खोलें ताकि इन देशों के संस्थागत निवेशक विकासशील देशों के पूंजी बाजार में अपना निवेश बढ़ा सकें। जबकि आज, विशेष रूप से अमेरिका, वैश्वीकरण की नीतियों को धत्ता बताते हुए केवल अपने देश को प्रथम स्थान पर रखकर वैश्वीकरण की नीतियों के संदर्भ में यू टर्न लेता हुआ दिखाई दे रहा है। किसी भी देश के लिए टैरिफ को अंधाधुंध बढ़ाना दुधारी तलवार की तरह है। जिस भी देश में भारी मात्रा में टैरिफ बढ़ाए जा रहे हैं उस देश के नागरिकों पर निश्चित रूप से इन उत्पादों के महंगे होने के चलते भारी बोझ पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। क्योंकि, टैरिफ बढ़ाए जाने वाले देश में आयात की जा रही वस्तुओं के महंगे होने का खतरा बढ़ता है जिससे उस देश में मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होती है और आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़ती जाती है।
अमेरिका की देखा देखी अब रूस ने भी चीन से आयात किए जा रहे चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। चीन ने, आज रूस के 3/4 ऑटोमोबाइल बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है। चीन ने हालांकि रूस में चार पहिया वाहनों के निर्यात के मामले में पश्चिमी देशों को झटका देते हुए अपना निर्यात रूस में बढ़ाया है। शुरू शुरू में तो रूस को यह सब अच्छा लगा परंतु अब उसे महसूस हो रहा है कि किसी भी उत्पाद के आयात के मामले में केवल एक देश पर निर्भरता उचित नहीं है। अतः अब रूस ने चीन से आयात किए जाने वाले चारपहिया वाहनों पर टैरिफ लगाना प्रारम्भ कर दिया है। साथ ही, रूस अब अपने देश में ही चारपहिया वाहनों का उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयों की स्थापना करना चाहता है ताकि रूस में ही रोजगार के नए अवसर निर्मित हो सकें।
टैरिफ युद्ध के चलते अमेरिका में भी आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि इसकी सम्भावना वर्ष 2024 में भी की जा रही है। जे पी मोर्गन ने पूर्व में अपने एक आंकलन में बताया था कि अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना 17 प्रतिशत है जबकि अब अपनी एक नई रिसर्च के आधार पर एक आंकलन में बताया है कि अमेरिकी में आर्थिक मंदी की सम्भावना 31 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसी प्रकार गोल्डमैन सैचस ने भी पूर्व में अमेरिका में आर्थिक मंदी की 14 प्रतिशत की सम्भावना व्यक्त की थी जो अब बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है। अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है।
हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार बहुत मजबूत बना हुआ है। अमेरिका में फरवरी 2025 माह में 150,000 रोजगार के नए अवसर निर्मित हुए हैं, यह आर्थिक मंदी का चिन्ह तो नहीं हो सकता है, बल्कि यह तो मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था का संकेत है। हां, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर में कुछ कमी आ सकती है। मोर्गन स्टैनली के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में इस वर्ष विकास दर घटकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है। अमेरिका में धीमी हो रही आर्थिक विकास की दर के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बहुत सम्भव है कि, यू एस फेड रेट (ब्याज दर) में कमी की शीघ्र ही घोषणा करे, इससे अमेरिका में बांड यील्ड में कमी आ सकती है एवं अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ सकता है, इससे रुपए को मजबूती मिल सकती है एवं अंततः विदेशी पोर्ट फो लियो निवेशक एक बार पुनः वापिस भारत लौट सकते हैं।