Sunday, April 27, 2025
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राजस्थान के साहित्य साधक : साहित्य के नगीनों का हार

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल द्वारा लिखित कृति “राजस्थान के साहित्य साधक” राजस्थान प्रदेश के उन साहित्यकारों के साहित्य सृजन को उकेरती है जिन्होंने देश में अपना मकाम बनाया है। इसकी अनुक्रमिका को प्रारंभ में एक नजर देखे तो सर्वप्रथम वे प्रवासी राजस्थानी आते है जो देश के अन्य प्रदेशों में साहित्य धर्म का निर्वाह कर रहे है। प्रो. अजहर हाशमी रतलाम, दिनेश कुमार माली उड़ीसा, राजेन्द्र राव कानपुर, डॉ. कुसुम खेमानी कोलकत्ता, रमाकांत शर्मा उद्घांत, डॉ. विकास दवे निदेशक म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल आदि इनमें प्रमुख है। जयपुर संभाग से वेदव्यास, नंद भारद्वाज, इकराम राजस्थानी भरतपुर संभाग से डॉ. इंदु शेखर ‘तत्पुरूष’ उदयपुर संभाग से डॉ. महेन्द्र भानावत, डॉ. ज्योति पुंज, डॉ. विमला भंडारी, सीकर संभाग से श्याम महर्षि, बीकानेर संभाग से डॉ. नीरज दइया, दीनदयाल शर्मा, राजेन्द्र पी जोशी, कोटा संभाग से अतुल कनक, अतुल चतुर्वेदी, जितेन्द्र निर्मोही, विजय जोशी लेखिकाओं में डॉ. कृष्णा कुमारी, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, श्यमाा शर्मा आदि है। कुल मिलाकर कृति में बासठ रचनाकारों के कृतित्व और व्यक्तित्व को संक्षिप्त में समाहित कर गागर में सागर जैसा विलक्षण काम लेखक द्वारा किया गया है। अतः डॉ. प्रभात कुमार सिंघल का यह कार्य अभिनंदन योग्य है। कृति की भूमिका कृति के आद्योपांत विजय जोशी ने बड़ी बेबाकी से लिखी है। यह कार्य अपने आप में अनुपम और अद्वितीय है।
  इस कृति में आजादी की बाद की पीढ़ी के वरिष्ठ हस्ताक्षर साहित्य सृजक है, जिन्होंने हिन्दी साहित्य के उद्भव एंव विकास में महनीय कार्य किया है। इनमें से अधिकांश पर शोध कार्य हो रहा है। कृति के विद्वान लेखक देश की उत्कृष्ट पत्र-पत्रिकाओं में महत्वपूर्ण स्थान पाने वाले जाने माने हस्ताक्षर है। अजहर हाशमी, वेदव्यास, राजेन्द्र राव आदि ने बरसो तक प्रमुख समाचारों के साहित्यिक अभिरूचि के निबंध लिखे है। डॉ. इंदु शेखर “तत्पुरूष” की “मधुमती” पत्रिका की सम्पादकीय डॉ. विकास दवे की “साक्षात्कार” की सम्पादकीय आज भी जानी जाती है। प्रारंभ में जो नाम गिनाये गये है उनमें से अधिकांश किसी न किसी साहित्यिक विधा के सिद्धहस्त है। साहित्य जगत में उनकी उपस्थिति और उनका कर्म सर्वविदित है। राजस्थानी के ख्यातनाम समालोचक डॉ. नीरज दइया राजस्थानी साहित्य जगत के नामवर सिंह है। कृति में विद्यमान अधिकांश साहित्यकारों पर विभिन्न विश्व विद्यालयों में शोध कार्य हुआ है और निरंतर शोध होना अवश्यम्भावी भी है।
इन सभी की सहित्यिक उपादेयता किसी से लुकी छुपी नहीं है। कृति में विद्यमान अधिकांश साहित्यकार देश भर में कहीं न कही किसी साहित्यिक प्रयोजन से जाने जाते है। इनमें से कुछ लोग साहित्य में नवाचार में संलग्न है, कुछ अपनी-अपनी विधाओं में सिद्धहस्तता हासिल करने में लगे है। कुछ साहित्यकार साहित्य को जन सरोकार से जोड़ने में तल्लीन है। कुल मिलाकर सभी साहित्यकार साहित्य कर्म के प्रतिबद्ध है इनमें से वरिष्ठ श्रृंखला के विद्वानों पर अभिनंदन ग्रंथ लिखे जा सकते है। क्योंकि उनका काम सर्वविदित है।
हर एक साहित्यकार को विस्तार देना यहाँ संभव नहीं था इस कृति के माध्यम से उनका साहित्य कर्म आलोक में आया है। अस्तु यह कहा जा सकता है कि यह कृति “राजस्थान के साहित्य साधक” अपने आप में एक अनूठा सृजन कर्म है। यह कृति लघु समीक्षा के रूप में एक लेखक के कृतित्व और व्यक्तित्व को संक्षिप्त में संजोने का साधु प्रयास तो है। इस कृति में ही देश बासठ लेखको लेखिकाओं के कृतित्व व्यक्तित्व को श्रृंखलाबद्ध ढंग से संजोया गया है। जो अभिनंदन योग्य है। हिन्दी के शोधकर्ताओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण और उपादेय साहित्यिक कृति है। डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को साधुवाद बधाई।
कृति- राजस्थान के साहित्य साध
लेखक- डॉ० प्रभात कुमार सिंघल
प्रकाशक- साहित्यगार जयपुर
मूल्य – 750/-
 समीक्षक : जितेन्द्र निर्मोही, कोटा

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