भारत में कम ही लोग जानते हैं कि वैदिक गणित नाम का भी कोई गणित है। जो जानते भी हैं, वे इसे विवादास्पद मानते हैं कि वेदों में किसी अलग गणना प्रणाली का उल्लेख है। पर विदेशों में बहुत-से लोग मानने लगे हैं कि भारत की प्राचीन वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल आनंद मिलता है,बल्कि उससे आत्मविश्वास बढ़ता है, स्मरणशक्ति भी बढ़ती है। मन ही मन हिसाब लगाने की यह विधि भारत के स्कूलों में शायद ही पढ़ाई जाती है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भारत के शिक्षाशास्त्रियों का अब भी यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है,जो इंग्लैंड-अमेरिका यानी विदेशों से आता है।
सोलह सूत्रों का कमाल
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वैदिक गणित को लेकर न्यूयॉर्क टाईम्स के थॉमस फ्राईडमैन ने कहा था-60 के दशक में जब हम अमरीकी बच्चे बड़े हो रहे थे, तो हमें यह कहा जाता था कि खाने के समय हमें खाना जूठा नहीं छोड़ना चाहिए, हम जितना खाना जूठा छोड़ते हैं उससे कई लोगों का पेट भर सकता है। मेरी माँ मुझसे कहा करती थी, जब तुम खाना खाते हो तो भारत में भूख से मरने वाले बच्चों के बारे में भी सोचो, और आज 40 साल बाद मैं अपने बच्चों से कहता हूँ कि अपना गणित का होमवर्क पूरा करो और इसके साथ ही भारत के बच्चों के बारे में सोचो, वे तुमको भूखों मरने पर मजूबर कर देंगे। वैदिक गणित के क्षेत्र में स्वामी श्री भारती कृष्ण जी महाराज का अभूरपूर्व योगदान है। जिज्ञासु विद्यार्थियों और शोधार्थियों को उनसे काफी सीख मिली है। स्वामी जी द्वारा प्रतिपादित सोलह सूत्र और तेरह उपसूत्र यदि आप समझ लें तो गणित के कठिन से कठिन सवालों के ज़वाब आपकी मुट्ठी में समझिए।
अगर भारतीय बच्चे वैदिक गणित के महत्व और उपयोगिता को समझ लें तो थॉमस फ्राईडमैन का यह वक्तव्य सही साबित हो सकता है। वैदिक गणित के माध्यम से हम गणित को रोजमर्रा की जिंदगी में मौज मस्ती की तरह शामिल कर सकते हैं। वैदिक गणित का किसी भी धर्म से कोई लेना देन नहीं है। यह मात्र एक गणित है। अगर कोई हमसे पूछे कि 8 गुणा 8 कितना होता है तो हम इसका तत्काल जवाब देंगे 64 लेकिन कोई अगर हमसे पूछे कि 13 गुणा 17 कितना होता है तो हमारे माथे पर बह पड़ जाएंगेऔर हम इसका गुणा करने मे उलझ जाएंगे। इसके लिए फिर हम अपने स्कूल के समय की कोई तरकीब आजमाएंगे, लेकिन इस पूरी कवायद में बहुत समय लग जाएगा, या फिर हम इसका आसान तरीका अपनाएगे यानि केल्कुलेटर, मोबाइल या कम्प्युटर की मदद से इसका हल खोजेंगे।
भारत का योगदान अमूल्य
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भारत का गणित-ज्ञान यूनान और मिस्र से भी पुराना बताया जाता है। शून्य और दशमलव तो भारत की देन हैं ही, कहते हैं कि यूनानी गणितज्ञ पिथागोरस का प्रमेय भी भारत में पहले से ज्ञात था। वैदिक विधि से बड़ी संख्याओं का जोड़-घटाना और गुणा-भाग ही नहीं, वर्ग और वर्गमूल, घन और घनमूल निकालना भी संभव है। इस बीच इंग्लैंड, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बच्चों को वैदिक गणित सिखाने वाले स्कूल भी खुल गए हैं।
जाहिर है कि वैदिक गणित हमारी अपनी प्राचीन गणित है जिसके माध्यम से हम मात्र कुछ क्षणों में अपने कठिन से कठिन सवाल का हल पा सकते हैं, लेकिन हम किसी भी तरह की गणना के लिए पूरी तरह से कैल्कुलेटर के आदी हो गए हैं, जो कि पश्चिम जगत की खोज है। अगर हम अतीत में जाएं, तो वह काल न तो कंप्यूटर का था न कैल्कुलैटर का, आज से सैकड़ों साल पहले के समय की जो बात हमारे दिमाग में सबसे पहले आती है वह है वैदिक काल। हमारे चार वेद हैं, और वैदिक गणित अथर्ववेद का ही एक भाग है।
वैदिक गणित की विशेषताएँ
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वैदिक गणित की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर गौर कीजिए -(1) ये सूत्र सहज ही में समझ में आ जाते हैं। उनका अनुप्रयोग सरल है तथा सहज ही याद हो जाते हैं। सारी प्रक्रिया मौखिक हो जाती है।(2) ये सूत्र गणित की सभी शाखाओं के सभी अध्यायों में सभी विभागों पर लागू होते हैं। शुद्ध अथवा प्रयुक्त गणित में ऐसा कोई भाग नहीं जिसमें उनका प्रयोग न हो। (3) जटिल गणितीय प्रश्नों को हल करने में प्रचलित विधियों की तुलना में वैदिक गणित विधियाँ काफी कम समय लेती हैं।(4) छोटी उम्र के बच्चे भी सूत्रों की सहायता से प्रश्नों को मौखिक हल कर उत्तर बता सकते हैं।(5) वैदिक गणित का संपूर्ण पाठ्यक्रम प्रचलित गणितीय पाठ्यक्रम की तुलना में काफी कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।
वैदिक गणित एक तरह से 16 सूत्रों पर आधारित है। इन सूत्रों को आप चाहें तो एक तकनीक या ट्रिक भी कह सकते हैं। कई लोग तो इसे जादुई ट्रिक भी कहते हैं। इस तकनीक की मदद से सवाल के साथ ही उसका जवाब भी हमारे दिमाग में आ जाता है। हम इसे दूसरे शब्दों में इस तरह कह सकते हैं वैदिक गणित वह विधा है जिसकी मदद से हम सवाल में ही छुपे जवाब का पता लगा सकते हैं।
कुछ रोचक उदाहरण देखें
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दुनिया वाले अब भारत की वैदिक अंकगणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं। बिना कागज-पेंसिल या कैल्क्युलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज तरीका शायद ही कोई है। रंगा योगेश्वर ने जर्मन टेलीविजन दर्शकों को एक उदाहरण से इसे समझाया। उन्होंने कहा, मान लें कि हमें 889 में 998 का गुणा करना है। प्रचलित तरीके से यह इतना आसान नहीं है। भारतीय वैदिक तरीके से उसे ऐसे करेंगे- दोनों का सब से नजदीकी पूर्णांक एक हजार है। उन्हें एक हजार में से घटाने पर मिले 2 और 111, इन दोनों का गुणा करने पर मिलेगा 222, अपने मन में इसे दाहिनी ओर लिखें। अब 889 में से उस दो को घटाएँ, जो 998 को एक हजार बनाने के लिए जोड़ना पड़ा। मिला 887, इसे मन में 222 के पहले बायीं ओर लिखें। यही, यानी 887222, सही गुणनफल है। है न कमाल ?
क्या आपको भी वैदिक गणित सीखनी है इसे पढ्ने के दो तरीके हैं – सूत्र के माध्यम से, और आसान विधा के माध्यम से। मिसाल के तौर पर गौर फरमाइए – आपको 10 या 100 य 1000 आदि से कोई भी अंक घटाना: (सब 9 से और अंतिम 10 से.) इसके लिये बहुत ही सीधा तरीका है, उदाहरण – कुछ इस तरह – (1000 -784) ,4 को छोड कर, हर अंक को 9 से घटाइये: इस तरह:(9-7) (9-8) आप को मिलता है: 21 अब अंतिम अंक (4) को,10 से घटाइये. आपको मिलता है 6, इस अंक को 21 के बाद लगा दीजिये। मिला 216, अब कहिये तो सही कि गणित के इस चमत्कारिक हल से हमारी धरोहर पर गर्व करने का कारण बनता है या नहीं ? इस तरह हम सवाल को एक निश्चित विधि से विभाजित कर उसका उत्तर उसके अंदर से ही हासिल कर सकते हैं। क्या यह जादू नहीं है। यह दुर्भाग्य की बात है कि भारत में 90 प्रतिशत लोग इस जादुई गणित से परिचित नहीं है।
चुटकियों में पाएँ हल
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वैदिक गणित के माध्यम से कोई भी विद्यार्थी गणित से संबंधित किसी भी सवाल का हल बजाय कुछ मिनटों के मात्र कुछ क्षणों में ही हासिल कर सकता है, इससे उसका समय भी बचेगा और परीक्षा में वह ज्यादा अंक भी हासिल कर सकता है। इस विधि के माध्यम से कोई भी विद्यार्थी जोड़, बाकी घटाव, वर्ग, वर्गमूल और घन मूल आदि सवालों को बहुत संक्षिप्त तरीके कम समय मे कर सकता है। किसी भी विद्यार्थी के लिए परीक्षा में 5 या10 अंकों का अंतर बहुत मायने रखता है खासकर उनके लिए जो कॉलेज में प्रवेश लेना चाहते हैं।
वैदिक गणित की तुलना अगर यूसी मैथ्स से की जाए तो हम पाते हैं कि विद्यार्थी एबैकस की मदद के बिना यूसी मैथ्स नहीं सीख सकते। एबैकस वह उपकरण है जिसका आविष्कार चीन में हुआ है और इसमें कुछ बिंदुओ का प्रयोग किया जाता है। दूसरी बात इसको सीखने में ज्यादा समय (कुछ सप्ताह) लगता है। इसको विस्तार से सीखने में यानि भाग देना, गुणा करना, आदि सीखने मे कई और सप्ताह लग जाते हैं।
बुनियादी सिद्धांत सीखना होगा
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जबकि वैदिक गणित में तो किसी भी विद्यार्थी को इसके बुनियादी सिध्दांतों को ही सीखना होता है और उसे गणित के सवाल के अनुसार जोड़, घटाव, गुणा भाग से लेकर वर्ग, वर्गमूल, और घनमूल निकालने में प्रयोग में लाना होता है। यह सबकुछ कोई भी एक घंटे तक चहने वाले 12 सत्रों में आसानी से सीख सकता है। वैदिक गणित बीजगणित, त्रिकोणमिति और कैल्कुलस से जुड़े सवालों को हल करने में भी उपयोगी होता है। खगोल और अंकगणित से संबंधित गणनाओं के लिए भी वैदिक गणित बेहद उपयोगी है।वैदिक गणित की सबसे बड़ी बात यह है कि इससे पश्चिमी विधा की पध्दति की एकरसता से छुटकारा मिल जाता है। इस विधि की वजह से गणित के प्रति विद्यार्थियों की रुचि हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। इस लेख का मकसद यही है कि आपके बच्चे गणित के मामले में कैल्कुलेटर पर आश्रित ना रहें और गणित के अंकों के साथ खेलें इससे उनकी बुध्दि भी कुशाग्र होगी।
परीक्षा की घबराहट से बचें
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वैदिक गणित उन लोगों को और उन छात्रों को जरुर सीखना चाहिए जो गणित से घबराते हैं। परीक्षा में गणित के पेपर में समय की कमी से अपने सवालों को हल नहीं कर पाते हैं जो अन्य विषयों में तो अच्छी पढ़ाई करते हैं मगर गणित विषय में रुचि पैदा नहीं होती। जो मन ही मन में गणना करने में हमेशा पिछ़ड़ जाते हैं। वैदिक गणित बहुत सीधा और सरल है जिससे समय की बचत होती है। इसकी मदद से जटिल गणित की गणनाएँ भी आसानी से की जा सकती है। इससे हमारी मानसिक एकाग्रता में वृध्दि होती है। आप अपने जवाब को लेकर पूरे आत्मविश्वास से भरे होते हैं।
जटिल खगोलीय गणना करने के लिए नासा (अमरीकी अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र) में भी वैदिक गणित का प्रयोग किया जाता है। आज वैदिक गणित इंग्लैंड, आयरलैंड, हॉलैंड, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यू .जीलैंड और अमरीका सहित कई देशों में पढ़ाया जा रहा हैसाथ ही स्वीडन, जर्मनी, ईटली पौलेंड और सिंगापुर में भी इसे स्वीकार किया गया है। हमेशा याद रखें: किसी समस्या का समाधान खोजने का तरीका जितना सरल होगा, आप उतनी ही जल्दी उसे हल कर सकेंगे और इसमें गलती होने की संभावना भी कम से कम होगी।
अंत में बस इतना कि साहित्य का प्राध्यापक हूँ लेकिन मूलतः गणित विषय में स्नातक होने के कारण मैंने अभी हाल ही में इसे पढ़ना शुरू किया और मूल संस्कृत सूत्रों के साथ शुरू के कुछ पन्ने पढ़ कर ही हैरान हो गया हूँ। मैं चाहता हूँ कि इस बेहतरीन तकनीक को सभी के साथ बाँटा जाये और मैं बार बार अनुरोध करूँगा कि छोटे बच्चों को इसकी शिक्षा दी जाये। ये विदेशी तकनीकों से बिल्कुल अलग है और बेहद सरल है। इससे हमारे नौनिहालों की बुद्धि भी कुशाग्र होगी।
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प्राध्यापक ( हिन्दी विभाग )
दिग्विजय कालेज,राजनांदगांव
मो.9301054300