बंटवारे के खूनखराबे को चुनौती देकर वे पाकिस्तान के सियालकोट से बेहतर भविष्य की उम्मीद लेकर किसी तरह से जम्मू के गांवों तक पहुंचे थे लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी उन्हें जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थाई निवासी का दर्जा, शिक्षा, रोजगार और वोटिंग के अधिकार पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।
‘वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी ऐक्शन कमिटी, 1947’ लफ्ज भले ही आपको सुनने में पुराना सा लगे लेकिन उनकी शिकायतें बेहद गंभीर हैं। 1987 में बचन लाल कलगोत्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1987 के फैसले के बावजूद जम्मू और कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तान से आए लोगों को दोयम दर्जे की जिंदगी जीनी पड़ रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकार इन शरणार्थियों की वास्तविक शिकायतों पर गौर करे और स्थाई निवासी का दर्जा दे ताकि राज्य विधानसभा चुनावों और पंचायत चुनावों में इन्हें वोट देने का अधिकार मिल सके। दिलचस्प बात यह है कि इन शरणार्थियों और इनके बच्चों को लोकसभा चुनावों में वोट देने का अधिकार हासिल है।
लेकिन इन शरणार्थियों की शिकायतें किसी आधुनिक लोकतंत्र में आपकी सोच से परे हो सकती हैं। ‘वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी ऐक्शन कमिटी, 1947’ के वकील अनिरुद्ध शर्मा कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ शरणार्थियों को स्थाई निवासी का दर्जा दिया है लेकिन इसकी शर्त यह रखी गई है कि उन्हें केवल सफाई कर्मचारी के काम के लिए ही रोजगार दिया जा सकता है।’
उन्होंने बताया, ‘इन शरणार्थियों और उनके बच्चों को इससे ऊंचा दर्जा पाने की इजाजत नहीं है। इतना ही नहीं, न तो वे किसी सरकारी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर सकते हैं और न ही उन्हें पढ़ाई के लिए वजीफा मिल सकता है।’ इसके ठीक उलट इन शरणार्थियों के बच्चे लोकसभा चुनावों में वोट दे सकते हैं, संघ लोक सेवा आयोग की परिक्षाओं में शामिल हो सकते हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि पश्चिमी पाकिस्तान से आया कोई शरणार्थी यूपीएससी की परीक्षा देकर जम्मू और कश्मीर का चीफ सेक्रटरी या फिर राज्य के पुलिस महकमे का मुखिया बन सकता है लेकिन राज्य सरकार की सेवा में उसे क्लर्क या कॉन्स्टेबल से बड़ा ओहदा नहीं दिया जा सकता है। कमिटी का कहना है कि पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की संख्या तीन लाख के करीब है।
साभारृ टाईम्स ऑफ इंडिया से