Saturday, May 18, 2024
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भारतीय विज्ञान को नया आकाश देने वाले चन्द्रशेखर वेंकट रमण

मैंने किसी ऐसे आदमी को कभी नहीं देखा जो विज्ञान से इतना आनन्द लेता था। चीज़ों को देखने का विशुद्ध आनन्द और विज्ञान का कार्य करना उसे उल्लास और उत्तेजना से परिपूर्ण कर देता था। जीवन के लिए वह अविश्वसनीय जोश रखता था। वह अपने खाने, अपने चुटकुलों, अपनी लड़ाइयों और झगड़ों से मज़ा लेता था। लेकिन विज्ञान के लिए उसे जो आनन्द मिलता था वह कुछ अलग ही चीज़ थी। ऐसा लगता था कि देदीप्यमान प्रकृति की मौजूदगी में इसके अनुसरण में उसका अहं पूरी तरह गायब हो जाता था। हां, वह आश्चर्य और सुन्दरता में वस्तुत: खो जाता था जिसे वह समझने की कोशिश कर रहा था।

सी वी रमण पर एस रामासेशन (सी वी रमण: चित्रमत्र जीवन चरित्र, भारतीय विज्ञान अकादमी बेंगलोर)

 

बहुत से लोग चन्द्र शेखर बेंकटरमण (सी वी रमण के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध) को जानते हैं क्योंकि वह पहले भारतीय थे जिसे विज्ञान में नोबुल पुरस्कार मिला। अब तक रमण ही एक मात्र भारतीय है जिसने विज्ञान में नोबुल पुरस्कार प्राप्त किया। भारतीय मूल के दो वैज्ञानिक है यानी गोबिन्द खुराना और सुब्रामण्यिन चन्द्रशेखर (जो यूएस नागरिक बनाए) जिन्हें विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला।

 

रमण पहले एशियन भी थे जिसे विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला। रमण के प्रसिद्ध खोज, रमण प्रभाव, में प्रयोग करते हुए प्रदर्शित किया गया कि प्रकाश कूवाण्टा और अणु में ऊर्जा का आदान-प्रदान निश्चित रूप से करते है जो बिखरे प्रकाश के रंग के परिवर्तन के रूप में अपने आपको प्रकट करती है। तथेपि, इस तथ्य की पहले हेन्ड्रिक एन्थोनी क्रामर्स (1894-1952) और बर्नर हीज़नबर्ग (1901-76) ने सिद्धांत रूप से भविष्यवाणी की थी। प्रकाश के क्वाण्टम सिद्धांत का यह अत्यधिक युक्तियुक्त सबूत थे। इससे रमण की खोज का महत्व कम नहीं होता। जैसा कि एल्बर्ट इंन्स्टीन (1879-1955) लिखते है, ‘सी वी रमण पहला वैज्ञानिक थे जिसने माना और प्रदर्शन किया कि फ़ोटोन की ऊर्जा द्रव्य के भीतर अंशिक रूपांतरण कर सकती है।

 

मुझे अब भी याद है कि इस खोज का हम सब पर गहरा प्रभाव हुआ।’ विज्ञान में रमण की दिलचस्पी खगोल-विज्ञान और मौसमी-विज्ञान से शरीर-विज्ञान तक। रमण ने 475 शोध-पत्र प्रकाशित किए और ऐसे विषयों पर असाधारण प्रबन्ध लिखे जो इतने विभिन्न थे कि मन चकरा जाता है।  रमण ने ध्वनिक, अल्ट्रासोनिक, प्रकाशीय, चुम्बकत्व और क्रिस्टल भौतिक में अनेक बड़ी वैज्ञानिक खोजें की। भारत में संगीत ड्रमों पर रमण के कार्य युगान्तरकारी थे और इसमें प्राचीन हिन्दुओं के ध्वनिक ज्ञान को प्रकट किया गया।

 

यह बताना जरूरी है कि पाइथेगोरस ने पहले पहले मानव श्रवण के लिए ध्वनि संगीत का निर्माण किया।  लंदन की रायल सासाइटी का ह्यूज पदक प्रदान करने के आवसर पर लार्ड रूथरफ़ार्ड (1871-1937) ने रमण की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर निम्नानुसार टिप्पणी की:  ‘सर वेंकटारमण प्रकाशीय पर अग्रणी प्राधिकारियों में से एक है, विशेषत: प्रकाश के प्रकीर्णन के तथ्य पर।  इस संबंध में लगभग तीन वर्ष पहले उन्होंने खोज कि प्रकीर्णन से प्रकाश का रंग बदला जा सकता है। कुछ समय इसकी भविष्यवाणी की की गई थी लेकिन अनुसन्धान करने के बावजूद परिवर्तन का पता नहीं चला थे। गत दशक में प्रयोगात्मक भौतिक में तीन या चार सर्वोत्तम खोज के बीच ‘रमण प्रभाव’ को रखा जा सकता है, इसने साबित किया है कि साबित करेगी कि ठोस के सिद्धांत के अध्ययन में यह महान शक्ति का साधन होगा। ज्ञान के बहुत से क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान के अलावा, उन्होंने (रमण) कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञानों में अनुसन्धान एक सक्रिय स्कूल विकसित किया है।’

 

रमण ने भौतिक विज्ञान का एक जीवन्त और शानदार स्कूल विकसित किया। उन्होंने भारतीय विज्ञान अकादमी, बेंगलोर (1934) और रमण अनुसन्धान संस्थान (1948) स्थापित किए। रमण याद किए जाने का अधिकारी है केवल अपनी उच्चतम वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के लिए भी। रमण पक्का देश-भक्त थे और प्रगति के लिए भारत की शक्ति में उसे पूरा भरोसा थे। अत्यन्त विपरित परिस्थितियों में भी वह उत्कृष्ट बना। रमण ने विज्ञान को बहुत लोक प्रिय बनाया। वह शायद सब से बड़े सेल्समैन थे जो विज्ञान ने इस देश में पाया, एस. रामासेशन कहते है जो भारत में एक्स-रे क्रिस्टोलोग्राफ़ी के अग्रगामी और रमण के भतीजे थे। अपने लोक-प्रिय विज्ञान भाषणों (या निष्पादनों जैसे रमण उन्हें कहता थे) के दौरान रमण श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर देता थे। उसके भाषणों के साथ सदा सजीव प्रदर्शन होते थे। रमण विनोद-प्रिय थे। रामासेशन के अनुसर, रमण के लोक-प्रिय विज्ञान भाषण इतने दिलचस्प होते थे क्योंकि वह केवल उन चीज़ों के बारे में ही बात करता थे जिसके बारे में वह तीव्रता से महसूस करता थे या उन चीज़ों के बारे में जिन्हें वह अच्छी तरह समझता थे या बेहतर समझना चाहता थे। वह चीज़ों को उनके सरलतम रूप और अत्यन्त मूल तत्वों में सामने लाता थे। वह श्रोताओं का महसूस करने देता थे कि उन्होंने भी यह सब कुछ देखा हुआ है। रमण एक अद्वितीय वक्ता थे। उसके आलेचक भी इस बात के लिए तो सहमत ही थे। जीवन पर्यनत वह भाषण देता रहा। विभिन्न श्रोताओं के सामने वह भाषण देता थे। तथेपि वह अपनी सर्वोत्तम स्थिति में होता जब लोक-प्रिय विज्ञान भाषण देता।

 

रमण रेडियो वार्ताएं भी करते थे। उसकी उन्नीस रेडियो वार्ताओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक का शीर्षक थे ‘नवीन भौतिक: विज्ञानों के पहलुओं पर वार्ता।’ इसे न्यूयार्क की फ़िलासोफीकल लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित किया गया। रमण द्वारा लिए गए विषयों में परमाणुओं की सूक्ष्म दुनिया से लेकर ब्रह्मांड तक शामिल थे। रमण के लैक्चरों की गुणता का अंदाजा फ्रांसिस लो द्वारा लिखे इस पुस्तक के परिचय से लगाया जा सकता है, वह एक प्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिक-विज्ञानी थे जो एडवांस्ड स्टडीज़ इंस्टीच्यूट, प्रिंसटन में तब काम करता थे: भौतिक विज्ञान अपनी प्रकृति के कारण अपेक्षा करता है कि इसके विद्यार्थी अत्यधिक विशिष्टता प्राप्त करें। इसके निष्कर्ष, जिसमें वास्तविक मापों के परिणामों के लिए संख्याओं की अनतत: भविष्यवाणी की जाती है, सर्वोत्तम रूप में गणितीय सूत्रों में व्यक्त किए जाते है। इस का आलम यह है कि विषय को आम आदमी के लिए बहुत हद तक अबोधगम्य बना दिय जाता है। दुर्भाग्य से बहुत कम अध्यापक ऐसे है जो अवरोध को पार कर सकते है।

 

प्रो. रमण ने एक पुस्तक लिखी है जिसमें इन फन्दों से बचा गया है और इस से आम पाठक को इस रूचिकर और महत्वपूर्ण विज्ञान के रहस्यों के कम से कम कुछ भागों में प्रवेश का अवसर दिया गया है।  रमण नीजी रूप से निपुणता में विश्वास रखता थे। वह गुणवत्ता पर कभी समझौता नहीं करता थे और उसका पक्का विश्वास थे कि यदि भारत को कोई आर्थिक प्रगति करती है तो यह केवल ऐसी निपुणता पर ही आधारित हो सकती है। कला और संगीत में उसकी गहरी दिलचस्पी थी। वह किसी विशेष संकीर्ण विशेषज्ञता तक सीमित नहीं थे। उसे विश्वास थे कि वास्वविक मूलभूत उन्नति केवल उन्हीं के कारण होती है जिन्होंने विज्ञान की सीमाओं की उपेक्षा की है और विज्ञान को समग्र रूप में लेते हैं।’

 

आर चन्द्रशेखर आईयर (रमण के पिता) पार्वती अम्मल (रमण के माता) रमण एक बहुत सरल व्यक्ति थे। वह अत्यन्त अहंकारी भी थे। लेकिन फिर भी निजी वार्तालाप में बहुधा वह बहुत विनम्रता दिखाता थे। वह भावुक आदमी थे। उन्होंने अपनी भावनाओं को दबाने की कभी चिन्ता नहीं की। वह उग्र क्रोधी थे। उन्होंने बहुत लोगों को चोट पहुंचाई। वह किसी भी शक्ति से नहीं डरता थे। कई बार वह एक बच्चे की तरह सबके सामने रोने लगता थे। रमण में ‘सब बहुत मानव’ कमियां बहुतात में थीं, लेकिन तब वह एक शानदार भौतिक-विज्ञानी थे और विज्ञान के अनुसरण में पूर्णत: समर्पित थे।

 

सी.वी. रमण का जन्म 7 नवम्बर 1888 को अपने नाना के घर में हुआ जो तमिलनाडु में कावेरी के किनारे पर तिरूचिरापल्ली (उन दिनों त्रिचनापली) के पास थीरूवानायकवल के छोटे ग्राम में थे। रमण क नाना सप्त ऋषि शास्त्री एक महान् संस्कृत विद्वान थे जो अपनी जवानी के दिनों में नव न्याय (आधुनिक तर्क) सीखने के लिए दूर दराजा बंगाल (2000 किमी दूर) तक पैदल ही गया।  रमण के माता-पिता थे- आर. चन्द्रशेखर आईयर और पार्वती अम्मल। रमण के पिता आरंभत: बहुत वर्षों तक एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाते रहे लेकिन बाद में श्रीमती ए.वी. नरसिम्हा राव कॉलेज विशाखापटनम (तब विज़ागापटनम) आन्ध्रपदेश में गणित और भौतिक के लैक्चरर बने।

 

रमण ने अपनी मैट्रिकूलेशन परीक्षा 11 वर्ष की आयु में उत्तीर्ण की और 13 वर्ष की आयु में वज़ीफे के साथ आनी एफ.ए. परीक्षा (आजकल के इन्टरमीडिएट के बराबर) पास की। 1903 में रमण ने प्रेसिडेंसी कॉलेज, चिन्नई (तब मद्रास) में दाख़िला लिया और वहां से बी.ए. (1904) और एम.ए. (1907) परीक्षाएं पास की। बी.ए. और एम.ए. की परीक्षाओं में प्रथम स्थान पर रहा और सब उपलब्ध पुरस्कार प्रापत किए। इस का कुछ अंदाज़ा लगाने के लिए यहां हम रमण को ही उद्धृत करते है।  रमण और एस.चन्द्रशेखर, ललिता चन्द्रशेखर का थोड़ा उल्लेख है।

 

रमण ने लिखा:  ‘अठारह वर्ष की आयु में मैंने अपना स्कूल और कालेज कैरियर और यूनिवर्सिटी परीक्षा समाप्त की। इस छोटी अवधि में, चार भाषाओं और विभिन्न प्रकार के अनेक विषयों का अध्ययन शामिल है जो कई मामलों में उच्चतम विश्वविद्यालय स्तर तक के थे। मैंने जितनी पुस्तकें पढ़नी पढ़ी उनकी सूची की लंबाई आश्चर्यजनक हैं क्या इन पुस्तकों ने मुझे प्रभावित किया हां? एक सीमित हद तक मुझे कई विषयों के बारे में उपयुक्त जानकारी मिली जिनमें प्राचीन यूनान और रोमन इतिहास, आधुनिक भारत और यूरोपीय इतिहास, औपचारिक तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र, धन सिद्धांत, लोक वित्त, दिवंगत संस्कृत लेखक, छोटे अंग्रेजी लेखक, शरीर-विज्ञान, रसायन और विशुद्ध और अनुप्रयुक्त गणित की और प्रायोगिक और सैद्धांतिक भौतिक-विज्ञान विषय शामिल थे। लेकिन विषयों और पुस्तकों की इन तरंगित लहरों में क्या मैं वास्तव में कोई चीज़ चुन सकता थे जो मेरे बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का निर्माण करे और जीवन में मेरा पथ निर्धारित करे? हां मैं कर ऐसा सकता हूँ और इसके लिए मै। तीन पुस्तकों का उल्लेखर करना चाहूँगा।

 

यह मेरा सुभाग्य थे कि जब कालेज में मैं एक विद्यार्थी ही थे तो उसकी महान् पुस्तक ‘दि सेन्सेशन ऑफ टोन’ के अंग्रेजी रूपांतर की एक प्रति तब मेरे पास उपलब्ध थी। जैसा कि सब जानते है यह हेल्महोल्टज की श्रेष्ठ कृतियों में से एक थी। इसमें संगीत और वाद्य यन्त्रों के विषयों को गम्भीर ज्ञान और सूक्ष्म दृष्टि के साथ ही नहीं बल्कि भाषा और अभिव्यक्ति की परम सुस्पष्टता के साथ भी लिया गया है। जब रमण एक विद्यार्थी थे तो उन्होंने ध्वनिक और प्रकाशीय में मूल खोजों को स्वतन्त्र रूप से हाथ में लिया।

 

रमण मद्रास प्रेसिडेंसी कालेज के पहले विद्यार्थी थे जिसने शोध-पत्र प्रकाशित कराया थे और वह भी सुप्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका में। उसका पहला शोध-पत्र ‘एक आयताकार छिद्र के कारण असममित विवर्तन बैंड’ नवम्बर 1906 को फिलासोफ़ीकल मैग्ज़ीन (लंडन) में प्रकाशित हुआ थे। रमण द्वारा कालेज में एक साधारण स्पेक्टोमीटर का प्रयोग करते हुए प्रिज्म के कोणों को मापने का यह परिणाम थे। इसके बाद उसी पत्रिका में सतह तनाव मापने के एक नए प्रयोगात्मक तरीके पर एक नोट प्रकाशित हुआ। लार्ड रेलेह (1842-1919) का ध्यान रमण द्वारा विद्यार्थी के रूप में प्रकाशित शोध-पत्रों की ओर गया। रेलेह एक उच्च गणितीय भौतिक विज्ञानी और एक अच्छा प्रयोगकर्ता थे जिसे आर्गन की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया थे। रमण और रेलेह का एक दूसरे से कुछ पत्राचार हुआ। यह ध्यान देने की दिलचस्प बात थी कि लार्ड रेलेह ने रमण को प्रोफ़ेसर कह कर सम्बोधित किया थे।

 

अपने पिता के कहने पर रमण ने वित्तीय सिविल सेवा (FCS) की परीक्षा दी। परीक्षा में वह प्रथम स्थान पर रहे और 1907 के मध्य में रमण भारतीय वित्त विभाग में सहायक अकाउंटेंट जनरल के रूप में भरती के लिए कोलकाता (तब कलकत्ता) गए। वह तब 18 वर्ष के थे। उनका आरंभिक वेतन 400रु. प्रति माह तक जो उन दिन एक बड़ी रकम थी।

 

उस समय किसी के स्वप्न में भी नहीं आया होगा कि रमण पुनः विज्ञान का अनुसरण करने का साहस करेगा। सरकारी सेवा में रमण का भविष्य अत्यन्त उज्जवल थे और उन दिनों अनुसंधान के लिए अवसर विरले ही थे। तब एक दिन कार्यालय जाते समय रमण ने एक साइन बोर्ड देखा जिस पर लिखा थे “विज्ञान के संवर्धन के लिए भारतीय संघ”। इसका पता थे -210, बोबाज़ार स्ट्रीट। वापसी समय मे वह संघ में आया जहां वह पहले आशुतोष डे (आशु बाबू) नामक व्यक्ति से मिला जिसे 25 वर्षों के लिए रमण का असिस्टेंट रहना थे। आशु बाबू रमण को संघ के अवैतनिक सचिव, अमृत लाल सरकार, के पास ले गया और रमण के इस आशय के बारे में जानकर वह बहुत खुश हुआ कि रमण संघ की प्रयोगशाला में अनुसंधान कार्य करना चाहता है।

 

अमृत लाल के खुशी में समा न पाने का कारण यह थे कि उसके पिता महेन्द्र लाल सरकार (1833-1904), एक दूरदर्शी व्यक्ति थे और उन्होंने 1876 में संघ की स्थापना की। यह संघ एक प्रकार से पहला संस्थान थे जो भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए स्थापित किया गया थे।   महेन्द्र लाल सरकार महेन्द्र लाल सरकार ने 1863 में MD  डिग्री प्राप्त की और उसे 1870 में कलकत्ता विश्वविद्यालय का फ़ैलो और 1887 में कलकत्ता का शैरिफ़ नियुक्त किया गया। वह 1887 से 1893 तक बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसल का सदस्य भी रहा। और कलकत्ता की बहुत सी विद्या-सोसाइटियों से सम्बद्ध थे। महेन्द्र लाल पक्का देशभक्त थे और उसकी दिलचस्पी चिकित्सा शास्त्र के आगे भी थी।

 

एक स्वप्नद्रष्टा होने के कारण उन्होंने कल्पना की थी कि देश को पेश आ रही बहुत सी समस्याएं आधुनिक विज्ञान के अनुप्रयोग से ही हल की जा सकती हैं। महेन्द्र लाल ने यह जानकर बड़ी दूरदर्शिता दिखाई थी कि केवल शिक्षा पाठ्यक्रम में आंरभ करने की प्रक्रिया से विज्ञान देश में गहरी जड़े नहीं जमा पायेगा। अपने स्वप्नों को साकार करने के लिए महेन्द्र लाल ने संघ की स्थापना की। महेन्द्र लाल ने संघ का उद्देश्य ऐसे बताया : “इस संघ का उद्देश्य भारत के निवासियों को इस योग्य बनाना है कि विज्ञान का उसकी सब शाखाओं में संवर्धन कर सकें ताकि मूल अनुसंधान द्वारा और (और यह इसके बाद जरूर होगा) जीवन की कला और सुविधाओं के लिए इसके विभिन्न अनुप्रयोगों की दृष्टि से प्रगति की जा सके”। आरंभ में संघ का मुख्य कार्यकलाप प्रसिद्ध विद्वानों और वैज्ञानिकों के द्वारा लोकप्रिय विज्ञान लैक्चरों का आयोजन करना थे।

 

संघ ने 1891 में एक प्रयोगशाला विजीआनाग्राम द्वारा दिए उदार दान से बनाई थी। तथेपि, महेन्द्र लाल के जीवनकाल में कोई भी संघ के तत्वाधान में अनुसंधान करने के लिए आगे न आया। अपनी मृत्यु से चन्द सप्ताह पहले महेन्द्र लाल ने अपनी इच्छा इन शब्दों में व्यक्त की थी : “नौजावन आदमी आगे आये और मेरे इस स्थान में कदन रखे और इसे एक बड़ा संस्थान बना दे”। इस प्रकार अमृतलाल सरकार ने रमण को देखा तो शायद उन्होंने सोचा कि वह (रमण) शायद उसके पिता के स्वप्न को पूरा करेगा। और जैसा कि हम आज जानते हैं रमण ने वास्तव में महेन्द्रलाल सरकार के स्वप्न को पूरा किया।

 

यह एक आसान काम नहीं थे। 1917 तक रमण अपने फाल्तू समय में संघ में अनुसंधान कार्य करता रहा। अनुसंधान कार्य फाल्तू समय में अत्यन्त सीमित सुविधाओं के साथ किया जा रहा थे, तब भी रमण अग्रणी अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं जैसे नेचर, दि फ़िलासोफ़िकल मैग्ज़ीन और फ़िज़िक्स रिव्यू में अपने अनुसंधान निष्कर्ष प्रकाशित कर सका। इस अवधि के दौरान उन्होंने 30 मूल अनुसंधान शोध-पत्र प्रकाशित किए। इस अवधि में की गई उसकी रिसर्च मुख्यतः कम्पनों और प्रकाशकीय के क्षेत्रों पर संकेन्द्रित रही। उन्होंने बहुत से वाद्य-यन्त्रों जैसे एकतारा, वायलन, तम्बूरा, वीना, मृदंगाम, तबला आदि का अध्ययन किया। वायलन पर अपन् विस्तृत अध्ययनों पर उन्होंने एक प्रबन्ध प्रकाशित किया। प्रबन्ध का शीषर्क थे ‘वायलन-परिवार के वाद्य-यन्त्रों के कम्पनों के यांत्रिक सिद्धांत, परिणामों के प्रयोगात्मक सत्यापन के साथ-भाग-1’। इस अवधि के दौरान आशु बाबू ही जिसने कभी विश्वविद्यालय की दहलीज़ पर कदम नहीं रखा थे, उसका एकमात्र सहयोगी थे। इससे रमण द्वारा प्रकाशित बहुत से शोध-पत्रों में संयुक्त-लेखक बनने से आशु बाबू को नहीं रोका गया।

 

रॉयल सोसाइटी लंदन के कार्य-विवरणों में प्रकाशित एक शोध-पत्र का तो आशु बाबू एकमात्र लेखक थे। 1919 में रमण ने रिर्सच विद्यार्थीयों को पहली बार लिया।  अमृतलाल सरकार  आशुतोष डे संघ में रमण के कार्य में एक अवरोध उत्पन्न हुआ। उसे रंगून (1909) और नागपुर (1910) में स्थानान्तरित कर दिया गया। तथेपि रमण का रिर्सच कार्य पूरी तरह रुका न थे। दोनो ही स्थानों पर उन्होंने अपने घर को प्रयोगशाला में बदल दिया और अपना काम जारी रखा। वह 1919 में कलकत्ता वापस आ गया। 1917 में आशुतोष मुखर्जी (1864-1924) ने रमण को नए स्थापित साईंस कालेज में प्रोफ़ेसर बनने के लिए आमंत्रित किया। मुखर्जी बीस वर्षों तक कलकत्ता हाईकोर्ट का जज रहा और वह अपने समय का महान् शिक्षा शास्त्री और विधिवेत्ता थे।

 

कलकत्ता विश्वविद्यालय का उपकुलपति नियुक्त होने पर उन्होंने विज्ञान के विभिन्न विषयों के लिए न केवल ए पोस्ट-ग्रेजुएट विभाग आरंभ किया बल्कि धर्मदाय प्रोफेसरशिप सृजित करने के लिए उन्होंने लोगों को प्रेरित भी किया। रमण वित्त विभाग में जो वेतन प्राप्त कर रहा थे, प्रोफ़ेसर का वेतन उससे आधा थे। तथेपि एक वित्त आधिकारी के रूप में रमण बहुत सफल थे। वास्तव में वित्त विभाग उसे छोड़ने के लिए अनिच्छुक थे। अतः वाइसराय परिषद् के सदस्य (वित्त) ने लिखा : “हम ने पाया है कि वेंकटारमण वित्त विभाग के लिए बहुत उपयोगी है और वास्तव में हमारे सर्वोत्तम आदमियों में से वह एक है।” फिर भी, रमण ने यह प्रास्तव खुशी से स्वीकार कर लिया और जुलाई 1917 में पालित प्रोफ़ेसर के रूप में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में पदभार संभाला।

 

 

यहां हम उसके एक विद्यार्थी एल.ए. रामदास को उद्धृत करते है : “प्रो. रमण ने वर्ष 1920-21 में विस्तृत और चुम्बकत्व और 1921-22 में भौतिक-प्रकाशकीय लिया। दोनों विषयों के MSC विद्यार्थीयों ने महसूस किया कि वे वास्तव में एक प्रकार के प्रेरित शिक्षण को सुन रहे हैं जिसके लिए प्राचीन काल की वास्तविक महक और जोश लाया गया थे। हमने उसके बहुत सी उत्तेजना और शानदार रोमांच की सहभागिता की, जो बेंजेमिन फ्रेंकलिन, ओयर्सटेड, अरागो, गाउस, फ़ेराडे, मैक्सवेल, हर्टज़, लार्ड केलवीन और बहुत अन्य विज्ञानियों ने अपने वास्तविक खोजें करते हुए महसूस किया होगा। उसे पढ़ाने की बहुत लग्न थी और कई बार तो वह पूरा पूर्वाह्न 2 घंटों और कई बार 3 घंटों के लिए भी ले लेता थे और प्रत्येक लैक्चर के बाद हम मूल शोध-पत्रों और शोध-प्रबन्धों जैसे मैक्सवेल का विद्युत और चुंबकत्व, जे.जे. थेमसन का विद्युत चालन, फ़ेराडे का प्रयोगात्मक अनुसंखधान, लार्ड रेलेह और केलवीन के एकत्रित शोध-पत्र आदि अपने आप ही देखने लग जाते थे”। कलकत्ता विश्वविद्यालय में पदभार संभालने के बाद भी रमण को संघ की प्रयोगशाला में अपना कार्य जारी रखने की अनुमति थी।

 

वास्तव में संघ, विश्वविद्यालय की अनुसंधान भुजा बन गया। 1919 में अमृतलाल सरकार की मृत्यु के बाद रमण को संघ का अवैतनिक सचिव चुना गया और कलकत्ता छोड़ने तक 1933 तक वह इस पद पर बना रहा। ऐसी बात नहीं थी कि रमण कलकत्ता छोड़ने के लिए राज़ी थे लेकिन भारतीय विज्ञान की एक अन्य प्रतिष्ठित हस्ती मेघानन्द साहा और उसके बीच उठे विवाद के कारण उसे जाना पड़ा। रमण को संघ के अवैतनिक सचिव पद से वोट डाल कर बाहर किया गया। रमण के लिए अनादर का यह तलख़ पल थे और ऐसा इसलिए भी क्योंकि उसका अपना अंह हिमालय से भी ऊंचा थे। और इस प्रकार उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बेंग्लोर के लंबित निमन्त्रण को स्वीकार किया और उसका निदेशक बनने का फ़ैसला किया। वह पहला भारतीय थे जो इसका निदेशक बना। रमण ने सर मार्टिन फोस्टर FRS का स्थान लिया। उन्होंने निदेशक (1933-37) और भौतिकी विभाग प्रधान (1933-48) दोनों स्थितियों में भारतीय विज्ञान संस्थान में काम किया।

 

साईंस कालेज, कलकत्ता जब रमण ने भारतीय विज्ञान संस्थान में कार्यभार संभाला तो इसकी शैक्षणिक उपलब्धियां ज्यादा उच्च नहीं थी। इसकी निधियन स्थित कलकत्ता विश्वविद्यालय से बहुत बेहतर थी जहां रमण ने कार्य किया थे। रमण ने निम्नलिखित परिवर्तन किए :  एक नया भौतिक विभाग अस्तित्व मे लाया गया। कुछ पहले से विद्यमान विभागों का पुनर्गठन किया गया। सूक्ष्मता यंत्रों के निर्माण के लिए एक केन्द्रीय वर्कशाप स्थापित करने के उपाय किए गए।  सुन्दर फूलों के उद्यान लगा कर इर्द गिर्द पर्यावरण को सुधारा गया। शैक्षिणक निपुणता प्राप्त करने के लिए उन्होंने स्वयं योग्य विद्यार्थीयों की एक टीम गठित की और भौतिकी के कई क्षेत्रों में उच्च कोटि के अनुसंधान करने आरंभ किए। उत्कृष्ट अध्यापक-वर्ग की भरती करके, रमण काण्टम मकेनिक्स, क्रिस्टल कैमिस्टरी, विटामिन और इन्ज़ाइम कैमिस्टरी जैसे क्षेत्रों में मूल अनुसंधान आरंभ करना चाहता थे।

 

उस निश्चित समय पर बहुत से प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को हिटलर की जाति नीति के कारण जर्मनी छोड़नी पड़ी। रमण इन में से कुछ विज्ञानिकों को IISC में लाना चाहते थे। रमण की सूची मे विदेशी और भारतीय बहुत से नाम थे। तथेपि वह केवल मैक्स बार्न को ही ला पाने में सफल हो सका और वह भी अल्पावधि के लिए।   नील बोहर और रमण  भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंग्लौर रमण के कुछ प्रस्तावों का वर्तमान स्टाफ़ द्वारा विरोध किया गया। वास्तव में वर्तमान विभागों के पुनर्गठन और इंस्टीच्यूट वर्कशाप के रमण के सुझाव के कारण दो प्रोफ़ेसरों –कैमिस्टरी प्रोफ़ेसर (प्रो. वाटसन) और विद्युत इंजीनियरी प्रोफ़ेसर (प्रो. मोडावाला) को त्यागपत्र देना पड़ा। नव स्थापित भौतिकी विभाग की सहायता के लिए इंस्टीच्यूट के बजट के पुनः आबेटन के रमण के कृत्य के कारण गबन का चार्ज लगा। उस पर आरोप लगा कि अन्य विभागों की कीमत पर वह भौतिक विभाग को संरक्षण दे रहा है। मैक्स बार्न को इंस्टीच्यूट में रखने के उसके प्रयास को भी कई लोगों ने पसन्द न किया।

 

समय बीतने पर रमण ने पाया कि वह अलग-थलग होता जा रहा है। कैम्पस में बढ़ती हलचल को देखते हुए परिषद्, इंस्टीच्यूट के प्रबन्धन को देखने वाले निकाय, ने विज़िटर (तब ब्रिटिश भारत का वाइसराय) को जुलाई 1935 में एक पुनरीक्षा समिति नियुक्त करने की सिफ़ारिश की ताकि इंस्टीच्यूट के मामलों की समीक्षा की जाए। समिति की 19 जनवरी,1936 की औपचारिक रूप से घोषणा की गई और इसमें सर जेम्स इरविन, प्रिंसिपल और वाइस चांसलर सेंट एन्डरियूस यूनिवर्सिटी, डॉ. ए.एच. मेकेन्जी प्रो. वाइस चांसलर, ओसमानिया यूनिवर्सिटी, और डॉ. एस.एस. भटनागर तत्कालीन भौतिकी प्रोफ़ेसर, पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर। इरविन समिति का अध्यक्ष थे। समिति ने वाइसराय को अपनी रिर्पोट मई 1936 में प्रस्तुत की जिस में कुल मिला कर रमण के विरुद्ध लगाये आरोपों की पुष्टि यह कहते हुए की रिर्पोट में बताया गया : “संभावित अत्युक्ति की पूरी गुंजाइश रखते हुए, हमें खेद है कि इन आरोपों में बहुत सच्चाई है। प्रो. वाटसन और प्रो. मोडावाला के त्याग-पत्रों की बात अब आसानी से समझी जा सकती है”।

साभार- http://www.vigyanprasar.gov.in/ से

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मंगल यान की खास बातें…

मंगलयान यानी हमें मंगल ग्रह तक पहुंचाने वाला जरिया। चेन्नई से 80 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा से करीब ढाई बजे इतिहास लिखे जाने की तैयारी है। और यही यान हमें लाल ग्रह तक ले जाएगा।

यूं तो मिशन मार्स को लेकर बीते कई दिनों से चर्चा जारी है, लेकिन आज अंतरिक्ष विज्ञानियों समेत पूरे देश के लिए अहम दिन है। आइए जानते हैं कि इस मिशन की कामयाबी के क्या मायने हैं और इसका मतलब क्या है।

भारत लाल ग्रह तक पहुंचने की कोशिश करने वाला दुनिया का केवल चौथा मुल्क है। हमसे पहले सोवियत संघ, अमेरिका और यूरोप यह कारनामा कर चुके हैं।

यह देश का पहला मंगल मिशन है और कोई भी मुल्क पहली कोशिश में कामयाब नहीं रहा है। दुनिया ने मंगल तक पहुंचने की 40 कोशिश की, लेकिन इनमें से 23 बार वह नाकाम रही। जापान को 1999 और 2011 में चीन को भी असफलता का मुंह देखना पड़ा।

स्वदेशी स्तर पर तैयार पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) का नया वर्जन, एक्सटेंडेड रॉकेट के साथ मंगलयान को पृथ्वी के आखिरी छोर तक ले जाएगा। इसके बाद सैटेलाइट के ‌थ्रस्टर छह छोटे फ्यूल बर्न वाली प्रक्रिया शुरू करेंगे, जो उसे और बाहरी परिधि में ले जाएगा। और आखिरकार गुलेल जैसी प्रक्रिया से इसे लाल ग्रह की ओर रवाना किया जाएगा।

मंगलयान के सफर से जुड़ा कार्यक्रम भी दिलचस्प है। 300 दिन और 78 करोड़ किलोमीटर का सफर कर वह ऑरबिट मार्स में पहुंचेगा और वहां के वातावरण का अध्ययन करेगा।

यह यान जब ग्रह के सबसे करीब होगा, तब इसकी दूरी उसके सरफेस से 365 किलोमीटर होगी। और जब सबसे दूर होगा, तो दोनों के बीच फासला 80 हजार किलोमीटर होगा।

सवाल उठता है कि इतना खर्च करने के बाद हमें हासिल क्या होगा? मंगलयान पर लगने वाले पांच सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण यह पता लगाएंगे कि मंगल पर मौसम की प्रक्रिया किस तरह काम करती है। साथ ही वह इस बात की तफ्तीश भी करेंगे कि उस पानी का क्या हुआ, जो काफी पहले मंगल ग्रह पर बड़ी मात्रा में हुआ करता था।

मंगलयान मंगल ग्रह पर मीथेन गैस की भी तलाश भी करेगा, जो पृथ्वी पर जीवन को जन्म देने वाली प्रक्रिया में अहम रसायन रहा है। इससे भौगोलिक प्रक्रियाओं को जानने में मदद मिलेगी।

कोई भी उपकरण इन सवालों का जवाब देने लायक पर्याप्त आंकड़े नहीं भेजेगा, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन डाटा से यह पता लगेगा कि ग्रह भौगोलिक रूप से कैसे विकसित हुए हैं? ऐसी कौन सी स्थितियां हैं, जो जीवन को जन्म देती हैं और ब्रह्मांड में और जीवन कहां हो सकता है?

2008-09 में इसरो ने चंद्रयान 1 लॉन्च किया था, जिसने पता लगाया कि चांद पर पानी रहा है। मंगलयान को उसी टेक्‍नोलॉजी के आधार पर तैयार किया गया है, जिसे हमने चंद्रयान मिशन के दौरान टेस्ट किया था।

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सत्या टू [हिंदी अपराध कथा ]

दो टूक : कहते हैं अपराध एक ऐसा कानूनी पेंच हैं जो किसी अपराधी को रास्ता भी  देता और उसे अपनी गिरफ्त में भी ले लेता है। यही नहीं वो पूछता भी नहीं  कि कोई क्यों अपराध की दुनिया से जुड़ा है। बस उसे तो उसे अपनी ताकत बतानी होती है। य़े अलग बात है कि इसके बावजूद कुछ लोग उसे चुनौती देकर उसके सामने आ खड़े होते हैं।  निर्देशक राम गोपाल वर्मा की नयी फ़िल्म सत्या टू भी एक युवक के  क़ानून को धता बताकर खुद को उसका प्रतिद्वंदी बना देने की कहानी से जुडी है।  फ़िल्म में पुनीत सिंह  रत्न ,अनायिका सोती , आराधना गुप्ता , महेश ठाकुर , राज प्रेमी , अमल सेहरावत , कौशल कपूर और विक्रम सिंह की भूमिकाएं हैं।  

 कहानी : फ़िल्म की कहानी सत्या [पुनीत सिंह]  के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने गांव से मुंबई आता है।  नक्सली बताकर उसके पिता की ह्त्या उसे मुम्बई  में संगठित अपराद का एक गिरोह यानि कम्पनी बनाने की और अगरसर करती  है और मुंबई में वह अपने बचपन के दोस्त नारा[अमृतियाँ ] के साथ वो  बिल्डर पवन लहोटी [महेश ठाकुर] के जरिए वह पूर्व गैंगस्टर आर.के. [राज प्रेमी ] में और दूसरे बिल्डर संघी के संपर्क में आता है। उसका  परिवार ,सत्या का दोस्त नारा, उसकी प्रेमिका चित्रा  [अनायिका सोत ] और नारा की प्रेमिका [आराधना गुप्ता  ] सत्या की हकीकत से अंजान है। लेकिन धीरे धीरे  जब हकीकत खुलती है, तब शुरू होता है खून™खराबे और रिश्तों में भारी उथल™पुथल का सिलसिला। फ़िल्म में अशोक समर्थ , कौशल कपूर और विक्रम सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।  

गीत संगीत : फ़िल्म में संजीव और दर्शन राठौड़ के साथ नितनी रायकवार, श्री डी और कार्य अरोरा माँ संगीत और  कुमार , नितिन, मोदी इल्हाम , सोनि रावण के साथ श्री डी और कार्य अरोरा का गीत हैं लेकिन  साथी रे साथी जैसे गीत को छोड़ दिया जाए तो सबसे भारी जैसी बोलों वाले गीतों में भी कोई खास दम नहीं है।  

अभिनय : फ़िल्म के केंद्र में  पुनीत सिंह हैं। उन्होंने  मेहनत तो की है पर  सत्या जैसे चरित्र के लिए वो एक कमजोर अभिनेता हैं। हाँ उनका आत्मविश्वास दिखाई देता है। अनायिका सोती के लिए करने को कुछ नहीं था वो बस हंसती और होंटो को दबाती रही।  जबकि उनके साथ  स्पेशल के नाम से फ़िल्म में सहनायिका बनी  आराधना गुप्ता अच्छी लगती हैं।  . महेश ठाकुर ने पहली बार नेगेटिव भूमिका की है पर वो निराश नहीं करते।  हाँ अशोक समर्थ को रामू ने व्यर्थ कर दिया जबकि पुरुषोतम के नाम से जिस अभिनेता को ज्यादा फूटेज दिया गया वो कुछ ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ते।  नारा के पात्र को अभिनीत करने वाले अभिनेता अमित्रियाँ ठीक लगते हैं।  राज प्रेमी जाने पहचाने हैं और उनके बेटे बने अमल सेहरावत अतिरेकता के शिकार रहे।  

निर्देशन :  राम गोपाल वर्मा को गैंगस्टर फिल्मों का उस्ताद कहा जाता है लेकिन सत्या, कम्पनी और सरकार जैसी  फ़िल्में बनाने वाले रामू में अब वो रचनाशीलता नहीं रही।  इस फ़िल्म में भी वो कुछ नया नहीं कर पाये हैं।  उनकी फ़िल्म अपनी ही कुछ फिल्मों का दोहराव लगती है और अपनी बात कहने में समर्थ नहीं लगती।  फ़िल्म में कोई जिज्ञासा भी नहीं है और न ही अपने पात्रों के लिए कोई नया रचाव और  विस्तार।  फ़िल्म उनकी ही तेलगु फ़िल्म का हिंदी संस्करण है और नबे के दशक में आयी  सत्या के मुकाबले कमजोर भी।  पर वो एक स्टइलिस्ट गैंगस्टर फ़िल्म है जो किसी आदर्शवाद की बात नहीं करती और अपराध को संगठित तरीके से कम्पनी बनाकर उसे जारी रखने लेकिन आम आदमी के साथ जबर्दस्ती ना करने की पैरवी करती है।  फ़िल्म में तेज संगीत है और पात्रों में कोई आकर्षण भी नहीं है पर रामू की फ़िल्म है तो एक बार जरुर देखिये।  

फ़िल्म क्यों देखें : रामू की फ़िल्म है।

फ़िल्म क्यों न देखें : रामू और पहली सत्या से कोई मेल नहीं खाती। 

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खून की एक बूँद से पता चलेगी आपकी बीमारी

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसी किट बनाने में सफलता पाई है जिस पर मानव रक्त की एक बूंद पड़ते ही वह अपना रंग बदलने लगेगी। रक्त का यह बदलता रंग ही रक्त जनित बीमारी का नाम उजागर कर देगा। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि पीड़ित को रक्त की तमाम जांचों से मुक्ति और रोग के अनुरूप दवा व इलाज में बेहद सहूलियत। इस किट का लैब में सफल प्रयोग किया जा चुका है और अब यह किट परीक्षण के लिए मिशिगन (अमेरिका) में है।

इस किट को बनाने वाले रसायन शास्त्र विभाग के प्रो. मायाशंकर सिंह कहते हैं कि खून के रंग की अपनी भाषा होती है। जरूरत तो इसे पढ़ने की है। इसे ध्यान में रखकर मॉलिक्यूल बनाने में सफलता मिली है जो खून के बदलते रंगों की मदद से किसी भी मर्ज के चेहरे पर पड़ा गुमनामी का पर्दा चाक कर देगा। ब्लड टेस्ट की तमाम क्लीनिकल पेंचीदिगियों से छुटकारा मिल जाएगा। प्रो. सिंह कहते हैं कि हार्स रैडिस परास्किडेज "एंजाइम" के जरिये यह उपलब्धि हासिल हुई है।

अमेरिका में परीक्षण : प्रो. सिंह कहते हैं कि रोगों को जानने के लिए तमाम तरह के उपकरण विकसित हैं। उनका यह शोध खून को केंद्र में रखकर किया गया है। यहां से निकला सिद्धांत मिशिगन डायग्नोस्टिक (अमेरिका) को भेजा गया है और वहां इसका परीक्षण भी चल रहा है। परिणाम उत्साहजनक मिले हैं। वर्ष २०१४ के आखिर तक इस किट के बाजार में आने की संभावना है।

तमाम जांचों से छुट्टी संभव : प्रो. सिंह कहते हैं कि केवल इतना ही नहीं, इसके माध्यम से शरीर की आंतरिक संरचना की गतिविधियों को भी जाना जा सकेगा। खून के जरिए एड्स, डायबिटीज, टाइफाइड, पीलिया, किडनी जैसे रोगों की जानकारी होती है।

साभार- दैनिक नईदुनिया से

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सलीम-जावेद की 26 साल पुरानी दीवार गिरी, साथ काम करैंगे

शोले, डॉन और दीवार जैसी कई बेहतरीन फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने वाली सलीम-जावेद की जोड़ी ने 26 साल पुरानी अपनी दुश्मनी को भुलाकर साथ आने का फैसला किया है।

एक से बढ़कर एक हिट फिल्में देने वाली इस जोड़ी की आखिरी फिल्म मिस्टर इंडिया थी। 26 साल बाद इस जोड़ी को जयंती लाल गड़ा की 'थ्री डी शोले' साथ ला रही है। दोनों ही अपने मनमुटाव को खत्म करते हुए जल्द ही प्रोफेशनल रूप से भी एक साथ आ सकते हैं।

इस खबर की पुष्टि करते हुए सलीम कहते हैं कि हमने 15 साल एक साथ काम किया है। स्वभाव से अलग होते हुए भी हमने हमेशा एक दूसरे के साथ अच्छा काम किया है। मैं हम दोनों के साथ आने से इंकार नहीं करता। जावेद भी कुछ ऐसा ही कहते हैं कि हमने अपने सभी मतभेद खत्म कर लिए हैं। अब हमारे बीच कोई तनाव नहीं है और हम एक साथ काम करने को तैयार हैं।

26 साल से चली आ रही इस दुश्मनी को खतम किया जंजीर की रीमेक ने जिसके कोर्ट कचहरी के चक्कर ने इन दोनों पुराने दोस्तों की दुश्मनी खतम कर दी। जावेद कहते हैं कि इस दौरान हम कई दफा चार-पांच घंटे तक एक साथ कोर्ट में रहे जिसने हमारी दूरियों को कम करने का काम किया।

सलीम तर्क देते हुए कहते हैं कि किसी भी पार्टनरशिप में दरारें आ सकती हैं पर आमने सामने बैठकर इन्हें सुलझाया जा सकता है। अब हमारे बीच कोई दीवार नहीं है। हमारे पास कुछ आइडिया है जिसे अगर हम स्क्रिप्ट का रूप दें तो आज भी निर्माताओं की कोई कमी नहीं होगी।

कैसे हुए जुदा

कहा जाता है कि मिस्टर इंडिया की स्क्रिप्ट लिखते वक्त सलीम-जावेद अमिताभ को उस रोल के लिए लेना चाहते थे, जो बाद में अनिल कपूर ने किया। अमिताभ ने यह रोल करने से इनकार कर दिया था। अमिताभ के इनकार से सलीम खफा हो गए और उन्होंने बिग बी के साथ कभी काम ना करने का फैसला किया। कहते हैं कि ये बात जावेद ने अमिताभ से गलती से कह दी और इसी वाकये ने सलीम-जावेद के बीच ऐसी गलतफहमी पैदा कर दी, जिसे भुलाने में इन दो दिग्गज लेखकों को 26 साल लग गए।

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आम आदमी पार्टी के ले मुसीबत लेकर आए दंगों के आरोपी मौलाना

'वैकल्पिक राजनीति' की मिसाल बनने की कोशिश में जुटे अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता को बड़ा खतरा मानते हैं। लेकिन मुसलमानों के वोट अपने पाले में करने के लिए केजरीवाल पर्दे के पीछे ऐसे धर्मगुरु से सांठगांठ कर चुके हैं, जिस पर सांप्रदायिक दंगों को भड़काने का आरोप लग चुका है।

 पिछले शुक्रवार को केजरीवाल ने बरेली के मौलाना तौकीर रजा खान से मुलाकात की और उनसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में समर्थन हासिल किया। यही नहीं, अरविंद ने बरेली के आला हजरत की दरगाह पर माथा भी टेका। मौलाना तौकीर रजा खान आप के समर्थन में दिल्ली में जनसभाएं करने के लिए राजी हो गए हैं। मार्च, 2010 में बरेली में हुए दंगों को भड़काने के आरोप में तौकीर रजा खान की गिरफ्तारी हुई थी। तौकीर को जब रिहा किया गया था, उसके बाद दंगे फिर भड़के थे।

इस समय तौकीर उत्तर प्रदेश सरकार के स्टेट हैंडलूम कॉरपोरेशन के उपाध्यक्ष हैं। उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ है। तौकीर की अपनी एक राजनीतिक पार्टी इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) भी है, जिसने 2012 के विधानसभा चुनाव में एक सीट भी जीती थी। उत्तर प्रदेश में आईएमसी और समाजवादी पार्टी के बीच 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन है। हालांकि, तौकीर का कहना है कि यूपी में सपा के साथ उनका गठबंधन अब भी कायम है। तौकीर के मुताबिक उन्हें अरविंद की सादगी बहुत पसंद आई। मुस्लिम धर्मगुरु ने कहा, 'अरविंद भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता, दोनों के खिलाफ हैं, इसलिए मैंने उनका समर्थन किया है।'

 

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राहुल गाँधी की खास मीनाक्षी को कमरे में बंद किया काँग्रेसियों ने

मध्य प्रदेश में टिकट वितरण से असंतुष्ट कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गुरूवार को मंदसौर से कांग्रेस सांसद मीनाक्षी नटराजन को कमरे में बंद कर दिया।

नटराजन को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी लोगों में गिनी जाती है। पार्टी कार्यकर्ता जावद विधानसभा क्षेत्र से राजकुमार अहीर को टिकट नहीं दिए जाने से नाराज थे। जावद नीमच जिले में आता है। यह इंदौर से 270 किलोमीटर दूर है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पहले सांसद का घेराव किया और बाद में उन्हें कमरे में बंद कर दिया।

कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मीनाक्षी नटराजन और प्रदेश चुनाव अभियान समिति के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया टिकट वितरण में पूर्वाग्रह से ग्रसित थे। कांग्रेस ने जावद से रघुराज चोरडिया को मैदान में उतारा है। चोरडिया 2008 के विधानसभा चुनाव में नीमच से 20 हजार वोट से चुनाव हार गए थे।

राजकुमार अहीर ने बताया कि सिंधिया और मीनाक्षी नटराजन के कारण मुझे टिकट नहीं मिला। मैं पिछले पांच साल से जावद विधानसभा क्षेत्र में काम कर रहा हूं। अगर पार्टी ने जल्द मामला नहीं सुलझाया तो मैं बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ूंगा। अहीर 2008 के विधानसभा चुनाव में 4700 वोट से चुनाव हार गए थे।

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एबीपी न्यूज के कार्यक्रम घोषणापत्र में अरविंद केजरीवाल

एबीपी न्यूज के कार्यक्रम में अरविंद ने माना कि उन्हें तौकीर रजा के आपराधिक रिकार्ड की जानकारी नहीं थी।  

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनावों के लिए बरेली जाकर यूपी सरकार के राज्य मंत्री, और इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा से सहयोग मांगा था। जबकि तौकीर रजा दंगे भड़काने के आरोप में जेल तक जा चुके हैं। अरविंद केजरीवाल से वरिष्ठ पत्रकार राधिका ने जब ये पूछा कि तौकीर रजा दंगे भड़काने, भड़काऊ भाषण देने के मामले जेल जा चुके हैं और आप उनसे सहयोग मांगने पहुंचे थे तो इस सवाल पर अक्सर खरी खरी कहने वाले अरविंद साफ जवाब नहीं दे पाए। अरविंद केजरीवाल ने ये सफाई जरुर दी कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी।

केजरीवाल से ये भी पूछा गया कि उनकी पार्टी वोट के लिए धर्म और जाति को आधार बना रही है। इस पर केजरीवाल ने कहा कि मराठी और बंगाली टोपी पहनने पर कोई नहीं पूछता लेकिन उर्दू टोपी पर हंगामा मच जाता है। बाटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल उठाने के उनके बयान पर पूछे जाने पर कहा कि उनके मन में शंका थी जो उन्होंने उठाया था लेकिन अदालत के फैसले को स्वीकार करते हैं।

अरविंद केजरीवाल ने इस कार्यक्रम में खुद को सीएम पद का उम्मीदवार नहीं माना लेकिन वो ये मान ही गए है कि चुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़ा जा रहा है और पार्टी के लोग उन्हें सीएम पद के उम्मीदवार मानते हैं।

केजरीवाल ने ये भी साफ कि वो चुनाव के बाद कांग्रेस या बीजेपी किसी के साथ नहीं जाएंगे

इसके अलवा केजरीवाल की महत्वपूर्ण बातें –

·       अरविंद केजरीवाल ने कार्यक्रम मे माना कि महिलाओं को टिकट देने के मामले मे हम पीछे रह गई है दिल्ली विधानसभा चुनावों मे उन्होने कहा कि 6 सीटो पर महिलाओं को टिकट दिया है लेकिन ये भी कम है और आगे इस बात का ख्याल रखा जाएगा।

·       कांग्रेस और बीजेपी दोनों के निशाने पर हैं आम आदमी पार्टी है। कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे के नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के खिलाफ हैं… दोनों दल आपस में मिले हुए हैं। हमारे ऊपर कांग्रेस और बीजेपी के एजेंट होने के आरोप लगते हैं लेकिन हम आम आदमी पार्टी के एजेंट हैं।

·       अरविंद ने कहा कि राजनीतिक दलों को हजारों करोड़ का चंदा मिलता है लेकिन कोई बताने को तैयार नहीं है लेकिन हमारी पार्टी को अगर आप चंदा देंगे तो 3 मिनट में आप का नाम हमारी वेबसाइट पर होगा।

·       अरविंद ने कहा कि प्याज पर मंहगाई इसलिए छाई है क्योंकि प्याज की कालाबाजारी हो रही है, शीला जी कालाबाजारियों के हाथ जोड़ रही है क्या जनता ने इसलिए उन्हें सीएम बनाया था?

·       दिल्ली में पानी के लिए टैंकर माफियाओं के कब्जा है ये टैंकर माफिया कांग्रेस और बीजेपी से जुडे हुए हैं।

संपर्क

Pravin Yadav

Senior Producer

ABP News

9899983501

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इन्होंने अंधेरी दुनिया को अपने जज्बे से रोशन किया

कोलकाता के सावित्री गर्ल्स कॉलेज में आलिफिया तुंडावाला को खासे सम्मान के साथ देखा जाता है। वे राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर तथा कार्यकारी विभागाध्यक्ष तो हैं ही, सबके लिए प्रेरणास्रोत भी हैं। कारण यह कि उन्होंने अपनी शारीरिक कमी के चलते पेश आई सारी चुनौतियों को ध्वस्त कर दिया और आज मानव जिजीविषा की मिसाल बनकर सबके सामने हैं। आलिफिया को जन्म से ही आंखों में समस्या थी और धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह जाती रही। जब वे दो साल की थीं, तब उनके अभिभावक गुजरात के सिदपुर नामक कस्बे से बेहतर इलाज की आस में कोलकाता चले आए। मगर कोलकाता के डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया। बताया गया कि आलिफिया की बीमारी लाइलाज है।

कुछ बड़ा होने पर जब आलिफिया को अपनी स्थिति का अहसास हुआ, तो बेचारगी का भाव धारण करने के बजाए उन्होंने प्रण किया कि वे अपना जीवन पूरी शिद्दत से जिएंगीं। अपने परिवार की मदद से वे सामान्य जीवन जीने लगीं, यहां तक कि वे सामान्य स्कूल में ही पढ़ीं। आज ३७ वर्षीय आलिफिया कहती हैं,"हमने स्थिति को सकारात्मक तरीके से लिया। मैंने खुद से कहा कि जो हो गया सो हो गया, अब मुझे जीना है और हर काम को बेहतरीन कर दिखाना है।"

लॉरेटो स्कूल में, जहां वे पढ़ीं, उनके सहपाठी तथा शिक्षक उन्हें पढ़-पढ़कर पाठ सुनाते। घर पर उनकी मां उनका सबसे मजबूत सहारा बनकर खड़ी थीं। आलिफिया को जो भी पाठ पढ़कर सुनाया जाता, उसे वे कंठस्थ कर लेतीं। कॉलेज में भी वे लेक्चर सुनकर नोट्‌स लेतीं। ऐसे मौके भी आए, जब परीक्षा में लिखते वक्त उनके पेन में स्याही खत्म हो गई लेकिन उन्हें पता नहीं चला, सो वे सूखे पेन से लिखती चली गईं। तब उनके शिक्षकों ने कागज पर सूखा पेन चलने से बनी छाप को "पढ़कर" उन्हें अंक दिए!

आज आलिफिया स्वयं शिक्षिका हैं। उनके लेक्चर सीधे उनके दिल से निकलकर आते हैं और अपने लेक्चर्स के माध्यम से वे सीधे अपनी छात्राओं से जुड़ती हैं। उनकी क्लास में कुछ छात्राएं तो दूसरे विभागों की होती हैं, जो सिर्फ उन्हें सुनने के लिए आती हैं। एक छात्रा के शब्दों में,"यदि आप उदास हों, तो उन्हें सुनकर नया जोश आ जाता है।" आलिफिया के लेक्चर बड़े ही जीवंत होते हैं और वे अपने विद्यार्थियों से संवाद स्थापित करती चलती हैं। उनके आत्मविश्वास तथा जीवन के प्रति नजरिये को देखकर उनकी छात्राओं को प्रेरणा मिलती है। एक छात्रा माया तिवारी कहती हैं,"हमें प्रेरणा मिलती है कि अगर वे जीवन में इतना कुछ कर सकती हैं, तो हम क्यों नहीं!"

आलिफिया ने राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद २०११ में "पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की वर्तमान स्थिति" विषय पर डॉक्टरेट की। वे सामाजिक कार्य में भी सक्रिय हैं। वे अपने कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना की प्रभारी हैं। आलिफिया का दृढ़ मत है कि विकलांग लोगों को भी मुख्यधारा के स्कूलों में ही पढ़ाया जाना चाहिए। वे कहती हैं,"इससे उन सभी लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा जो सक्षम तो हैं मगर औरों से जरा अलग हैं।"

 

साभार-दैनिक नईदुनिया से

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आडवाणी बोले, पटेल को सांप्रदायिक मानते थे नेहरू

भाजपा ने सरदार पटेल को लेकर मचे विवाद को मंगलवार को और हवा दी। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने पटेल को लेकर जवाहरलाल नेहरू पर गंभीर आरोप लगाया है।

आडवाणी ने एक किताब का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने गृह मंत्री को 'साम्प्रदायिक' करार दिया था, जब उन्होंने आजादी के बाद सेना को हैदराबाद के लिए कूच करने को कहा था। हालिया ब्लॉग पोस्ट में आडवाणी ने एमकेके नायर की 'द स्टोरी ऑफ एन ऐरा विदआउट इल विल' का हवाला दिया है, जो हैदराबाद के खिलाफ 'पुलिस कार्रवाई' से पहले कैबिनेट बैठक में नेहरू और पटेल के बीच 'तकरार' की जानकारी देती है।
 

पाकिस्तान से जुड़ने की चाहत रखने वाले निजाम ने वहां की सरकार को खूब पैसा भिजवाया था। निजाम के अधिकारी स्‍थानीय लोगों पर अत्याचार कर रहे थे। किताब में लिखा है, "कैबिनेट बैठक में पटेल ने ये बातें बताईं और सेना को वहां भेजने की मांग की, ताकि हैदराबाद में जारी आतंकी गतिविधियां रुक सकें। आम तौर पर संयम और शांति का परिचय देने वाले नेहरू ने इस मौके पर अपना संयत रवैया छोड़कर पटेल से कहा कि आप पूरी तरह साम्प्रदायिक हैं। मैं आपकी मांग नहीं मान सकता।"

नायर की किताब के हवाले से आडवाणी ने लिखा है, "पटेल पर कोई असर नहीं हुआ, लेकिन वह दस्तावेजों के साथ कमरे से बाहर चले गए।" भाजपा बीते कुछ दिनों से सरदार पटेल को हिंदुत्व विचारधारा के करीब वाले नेता के रूप में पेश करने की कोशिशों में लगी है।

भाजपा का यह आरोप भी है कि सरदार पटेल के सहयोग को कांग्रेस ने कभी स्वीकार नहीं किया और केवल नेहरू-गांधी परिवार का नाम जपा। अपने ब्लॉग में आडवाणी ने लिखा है कि तत्कालीन गवर्नर जनरल राजाजी ने हैदराबाद में सेना भेजने का फैसला किया।

 

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