पचास साल से शौचालय और सफाई को लेकर जारी मेरे काम का एक ही मकसद रहा है, स्वच्छता की संस्कृति को बदलना। 1960 के दशक तक तो स्वच्छता को लेकर खास संस्कृति भी नहीं थी। इसका उदाहरण है कि जब भी कभी हमलोग किसी के यहां शौचालय को लेकर बात करने जाते थे तो लोगों का पहला सुझाव यह होता था कि पहले चाय पी लेते हैं, फिर शौचालय की बात करते हैं। पचास साल की कोशिशों का अब बदलाव नजर आने लगा है। अब लोग खुलकर शौचालय की बात करने लगे हैं। स्वच्छता की संस्कृति पर बात करने को लेकर कोई हिचक नजर नहीं आती। वैसे भी 2014 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपिता गांधी की डेढ़ सौंवीं जयंती तक देश को खुले में शौचालय से मुक्त करने का जो अभियान शुरू किया है, उसने भी देश में स्वच्छता को लेकर नई जागरूकता पैदा की है। शायद एक यह भी वजह है कि स्वच्छता के प्रति मेरी ललक व अनुभव को देखते हुए रेलवे ने तरजीह दी और सबसे बड़ी परिवहन सेवा के साथ मुझे जुड़ने का सौभाग्य मिला।
हमारा मानना है कि सफाई की संस्कृति तब और ज्यादा तेजी से विकसित होगी, जब इसे सेवा भाव से लिया जाय। हमारा भारत देश विशाल है और इस देश में जब तक सेवा भाव से काम नहीं किया जाएगा, स्वच्छता की संस्कृति को जन-जन तक पहुंचा पाना और उनकी तरफ से सहज स्वीकारोक्ति हासिल कर पाना आसान नहीं होगा। देश में करीब आठ हजार रेलवे स्टेशन हैं और इसी तरह करीब साढ़े चार लाख स्कूल हैं। यद्यपि रेलवे ने अपने स्टेशनों की सफाई के लिए अभियान शुरू कर रखा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि देश के दूरदराज के ज्यादातर स्टेशनों पर सफाई की उचित व्यवस्था नहीं हो पायी है। हमने एक कार्य योजना बनाई है कि रेलवे स्टेशनों की सफाई के प्रति जागरूकता अभियान में स्कूलों के बच्चों को शामिल किया जाएं, इससे न केवल बच्चों में स्वच्छता की भावना का विकास होगा, बल्कि रेलवे स्टेशनों पर भी स्वच्छता का असर दिखाई देने लगेगा।
इस योजना के तहत प्रत्येक रेलवे स्टेशन के नजदीक के स्कूलों के बच्चों को हफ्ते या महीने में एक-दो दिन स्टेशन पर बुलाया जाय और उन्हें उन स्टेशनों की सफाई के लिए प्रेरित किया जाय। इस कार्य में हिस्सा लेने वाले छात्रों को सर्टिफिकेट दिए जाएंगे, ताकि उनका उत्साह बना रहे। भविष्य के सूत्रधार बच्चों में एक नया दृष्टिकोण विकसित होगा और वे गांवों और कस्बों तक इसे पहुंचाने में बहुत मददगार साबित होंगे। बच्चें व युवा वास्तव में किसी भी समाज के वास्तविक ब्रांड अंबेस्डर होते है, यदि हम स्वच्छता के प्रति उनके मन में एक विचार, एक कौंध जागृत कर दें, तो समाज और राष्ट्र वास्तव में लाभांवित होगा।
भारतीय रेल प्रतिदिन दो करोड़ लोगों को गंतव्य तक पहुंचाती हैं। जब यात्रा के दौरान स्टेशन पर पहुंचने और उतरने के समय स्वच्छ टॉयलेट उपलब्ध हो, तो व्यक्ति के लिए वास्तव में यह राहत की बात होती है। यात्रा सचमुच सुखद लगती है। वैसे करीब तीन सौ रेलवे स्टेशनों पर सुलभ की ओर से शौचालयों का रखरखाव किया जा रहा है। सुलभ इंटरनेशनल को रेलवे के साथ काम करने का अनुभव है। इसलिए मुझे लगता है कि हमें इस काम में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
मैंने महसूस किया है कि रेलवे स्टेशनों पर शौचालयों और मूत्रालयों की काफी कमी है। अगर हैं भी तो उनकी साफ-सफाई पर ध्यान कम है। हम इस दिशा में भी काम करेंगे। हम चाहेंगे कि रेलवे स्टेशनों पर मूत्रालयों और शौचालयों की संख्या बढ़े। वैसे रेल मंत्री सुरेश प्रभु के प्रस्ताव पर पहले से पांच रेलवे स्टेशनों पुरानी दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, ग्वालियर और गोरखपुर में शौचालय के रख-रखाव का काम कर रहे हैं और उन स्टेशनों को साफ रखने के काम में अपना दायित्व निभा रहे हैं।
रेलवे ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दो शौचालयों के रखरखाव का जिम्मा दिया है तो दो को बनाने की हमें जिम्मेदारी दी है और हम इस दिशा में काम करेंगे। देशभर के रेलवे प्लेटफॉर्मों पर शौचालयों और मूत्रालयों की कमी है, इसे पूरा कर पाना आसान नहीं है। हमारा मानना है कि इस कार्य को बैंकों से कर्ज लेकर पूरा किया जा सकता है और एक बार शौचालय बन गए तो उन्हीं के जरिए बैंक के कर्ज को भी दिया जा सकता है। सुलभ यह काम करने को तैयार है। हम रेलवे से आग्रह करेंगे कि वह सुलभ की गारंटी बैंकों को दे तो यह काम आसानी से पूरा किया जा सकता है। हम प्लेटफॉर्म की सफाई के लिए लोगों से सुझाव मांगेंगे, ताकि जन भागीदारी के तहत इस कार्य को सफल बनाया जाए। इसके लिए पूरे साल हम साफ-सफाई करने के अभियान के साथ-साथ सेमिनार और नुक्कड़ नाटकों के जरिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करेंगे। हमारे देश भर में अभियान से अनेक स्वंय सेवक जुड़े हैं इन सभी के सेवाभाव और सहयोग से आज हम शौचालय और सफाई की इस मुकाम तक पहुंचे हैं, हमें इसका दायरा और बढ़ाना है।
हम सिर्फ स्वच्छता की संस्कृति को ही बढ़ावा देने के लिए काम नहीं कर रहे, बल्कि हमने समाज में निचले स्तर पर मैला ढोने वाले लोगों के पुनर्वास से भी जुड़े है। इसके साथ ही हमारे पास दुनिया का एकमात्र टॉयलेट म्यूजियम है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता के प्रति जन जागरूकता अभियान की शुरूआत की है। यदि हम सभी देशवासी अपने आसपास एवं सार्वजनिक स्थलों, पार्कों, दर्शनीय स्थलों, रेलवे स्टेशनों पर स्वच्छता रखेंगे, तो निश्चय ही भारतवर्ष स्वच्छता का लक्ष्य पा सकेगा। रेल हमारे समाज की जीवन-रेखा है। स्टेशन और शौचालयों की स्वच्छता यात्रियों को सुखद एहसास प्रदान करती है और गंतव्य तक पहुंचना राहत से भरपूर होता है। आइए इस महत्वपूर्ण कार्य में हम सब अपना योगदान करें।
लेखक पदमश्री से सम्मानित रेल स्वच्छ मिशन के ब्रांड अंबेसडर हैं।