Saturday, November 23, 2024
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नोटबंदी के बाद चुनावों में भाजपा की जीत का मतलब

देश के राजनीतिक विश्लेषक और मोदी-विरोधी नेता चकित हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात के स्थानीय चुनावों और मप्र के उप-चुनावों में भाजपा कैसे जीत गई? यदि नोटबंदी के फैसले से आम जनता की जिंदगी दूभर हो गई है तो उसने भाजपा को इतने जोरदार ढंग से क्यों जिता दिया?

यह सवाल बेहद प्रासंगिक है। इसके दो उत्तर हो सकते हैं। पहला तो यही कि जो मैं 8 नवंबर से ही कह रहा हूं। वह यह कि देश का आम आदमी यह मानकर चल रहा है कि मोदी ने नोटबंदी का यह फैसला अपने स्वार्थ के लिए नहीं किया है और न ही भाजपा के स्वार्थ के लिए ! यह फैसला देशहित के लिए किया गया है। लोगों को जो कठिनाइयां हो रही हैं, वे सिर्फ इसीलिए हो रही हैं कि बैंकों में नए नोट नहीं हैं। वे जैसे ही आते जाएंगे, उनकी कठिनाइयां दूर होती चली जाएंगी। उन्हें इस बात का परम संतोष है कि काला धन खत्म होने से अमीरों पर नकेल कसी जा सकेगी।

वे अमीरों के भावी दुख की कल्पना से सुखी हैं। (उन बेचारों को पता नहीं है कि अमीर लोगों ने लाइनों में खड़े हुए बिना ही अपने करोड़ों-अरबों-खरबों रू सफेद कर लिए हैं)। जो भी हो, इस तत्व के अलावा इन चुनावों में भाजपा की जीत का दूसरा कारण यह भी है कि स्थानीय चुनावों में प्रायः राष्ट्रीय मुद्दों का असर कम ही होता है।

नोटबंदी का असली असर तो दो-तीन माह बाद ही पता चलेगा। आम आदमी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) का आंकड़ा ऊपर गया या नीचे गया, डॉलर 70 रु. का हुआ या 100 का हुआ और आर्थिक प्रगति 7 प्रतिशत हुई या 7.50 प्रतिशत हुई। वह तो तब भिनभिनाएगा, जब खाने-पीने की चीजें मंहगी हो जाएंगी, मजदूरी या तनखा उसे कम मिलेगी या वह बेरोजगार हो जाएगा।

अभी संसद में जो नया आयकर संशोधन कानून पास हुआ है, यदि उससे सरकार के पास अरबों-खरबों रुपया जमा हो गया और सरकार ने देश के तीसरे वर्ग के 100 करोड़ लोगों को सीधा फायदा पहुंचा दिया तो देश में मोदी ही मोदी का नारा लगेगा, चाहे अर्थव्यवस्था का कबाड़ा हो जाए ! इस समय स्थानीय चुनाव हो या नोटबंदी, विपक्ष का हाल खस्ता है। उसकी बात लोगों के गले ही नहीं उतर रही। उधर नोटबंदी के बाद बदहवास सरकार आए दिन नई-नई रियायतें घोषित कर रही है। अब भाजपा ने अपने सांसदों से उनके दो माह के खातों का हिसाब मांगा है। यह नौटंकी है। क्या उसे पता नहीं कि नेता इतने मूर्ख नहीं हैं कि वे अपना काला धन बैंकों में रखेंगे ? जनता जानती है कि सारे नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।

(साभार: नया इंडिया से )

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