यूरिया के साथ ही डीएपी(डाई अमोनियम फॉस्फेट) और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और सल्फर की बिक्री में भी गिरावट देखने को मिली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में एनडीए सरकार की बड़ी उपलब्धियों में यूरिया को नीम कोटेड करने को गिनाते रहे हैं। साल 2014 से वे अपने भाषणों में नीम कोटेड यूरिया के फायदों पर कहते रहे हैं कि उनकी सरकार के इस फैसले से यूरिया की कालाबाजारी पर लगाम लगी है। इसका असर भी देखने को मिला है। नीम कोटेड यूरिया के चलते खाद की बिक्री में कमी देखने को मिली है लेकिन अनाज की पैदावार में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। सरकार का दावा है कि साल 2016-17 में खाद्यान उत्पादन पिछले साल के 251.57 मिलियन टन के मुकाबले 271.98 मिलियन टन रहेगा।
इस अनुमान के अनुसार चावल, गेंहू, मक्का, दाल और कपास का उत्पादन अब तक का सर्वोच्च स्तर पर रहेगा। बावजूद इसके खाद की बिक्री कम रही। यूरिया के साथ ही डीएपी(डाई अमोनियम फॉस्फेट) और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और सल्फर की बिक्री में भी गिरावट देखने को मिली है। हालांकि अधिक खाद्यान उत्पादन के दावों के बाद भी कम खाद की बिक्री का कोई स्पष्ट कारण सामने नहीं आया है। लेकिन एक वजह यह बताई जा रही है कि गत वर्षों में खाद विक्रेताओं ने भारी मात्रा में खाद का स्टॉक जमा कर लिया था लेकिन किसानों ने सूखे के हालातों के चलते खरीद नहीं की। हालांकि यह वजह भी खाद की बिक्री में गिरावट के आंकड़ों का पुख्ता जवाब नहीं है।
यूरिया की बिक्री में दो मिलियन टन की कमी काफी बड़ी है। साल 2012-13 से 2015-16 के बीच यूरिया की बिक्री 30 से 30.6 मिलियन टन के बीच रही। लेकिन इस बरस यह आंकड़ा 28 मिलियन टन पर आ गया। कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड के अध्यक्ष (कॉर्पोरेट अफेयर्स और स्ट्रेटेजिक प्रोजेक्ट्स) जी रवि प्रसाद यूरिया की बिक्री में कमी के पीछे नीम कोटेड यूरिया को कारण बताते हैं। प्रत्येक टन यूरिया की 400 एमएल नीम तैल से कोटिंग की जाती है। इससे यूरिया का गैर कृषि कार्यों में उपयोग कम हो गया है।
बता दें कि यूरिया को प्लाईवुड को बाइंड करने और कपड़ों की साइजिंग के काम में भी लिया जाता है। साथ ही नकली दूध बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है। लेकिन नीम कोटिंग के चलते इस पर लगाम लगी है। प्रसाद ने यूरिया की कम बिक्री की एक और वजह बताई कि नीम कोटिंग के चलते यूरिया धीरे-धीरे लेकिन पूरी तरह से काम करता है। जब यूरिया को मिट्टी में डाला जाता है तो वह पानी से घुलता है और अमोनियम आइंस के रूप में टूटता है। इसके बाद नाइट्राइट और फिर नाइट्रेट में इसका ऑक्सीडेशन होता है। नाइट्रिफिकेशन से ही नाइट्रोजन बनता है।
यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है। सामान्य यूरिया तेजी से घुल जाता है और इसके कारण दो-तिहाई नाइट्रोजन हवा या जमीन में चले जाने के कारण जाया हो जाता है। नीम कोटिंग से यूरिया धीरे-धीरे घुलता है और इससे फसल लंबे समय तक हरी बनी रहती है। इससे यूरिया का इस्तेमाल कम करना पड़ता है और एक एकड़ गेंहू या चावल में तीन बैग के बजाय दो से काम चल जाता है। यूरिया का इस्तेमाल कम होने से बाकी खाद का प्रयोग भी कम हुआ है।
साभार – जनसत्ता से