सरकार का तो नारा ही है- ‘सबका साथ सबका विकास’. एक प्रधानमंत्री के रूप में देश को आगे बढ़ाने का जो नजरिया चाहिए, वह नरेंद्र मोदी के पास है।
केंद्र की मोदी सरकार को सत्तासीन हुए एक साल हो रहा है। किसी सरकार के कामकाज की उपलब्धियों की समीक्षा के लिए एक साल का वक्त कोई मायने नहीं रखता, पर भ्रष्टाचार और बेरुखी के एक दशक बाद नई सरकार से जनता की अपेक्षाएं बेहद अधिक थीं। वास्तविकता और तथ्य बताते हैं कि इन बारह महीनों में सरकार कितनी दूरी तय की है। यह याद रखना जरूरी है कि नरेंद्र मोदी सरकार को संप्रग से एक कमजोर और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था ही विरासत में मिली थी। यह कितनी कमजोर और बदहाल हालत में थी, कि लगातार जीडीपी में गिरावट का रुख था और महंगाई की दर ऊपर जा रही थी।
संप्रग सरकार ने जिस गढ्डे में अर्थव्यवस्था को डाला था, पिछले एक साल के दौरान उसे वापस पटरी पर लाया गया है। फिजूलखर्ची और कुशासन के कारण जो स्थिति पैदा हुई थी, उसकी पृष्ठभूमि में इस सरकार का काम और भी चुनौतीपूर्ण था। सच है कि राजनीति में एक साल काफी लंबा समय होता है। फिर भी, मोदी सरकार को मिले पांच साल के जनादेश के हिसाब से समय का यह टुकड़ा छोटा हो सकता है। इतने समय में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं और कई चुनौतियां बाकी हैं। इससे इनकार करना कठिन हो सकता है कि पूर्व के नीतिगत पक्षाघात से विश्वास व आशा को जो झटका लगा था, वह अब निर्णायक रूप से पलटा है और अधिकतर मानदंडों की बुनियाद पर अर्थव्यवस्था पिछले साल की तुलना में अधिक बेहतर लग रही है।
रेटिंग एजेंसियों और बहुआयामी संस्थाओं, विश्व बैंक और आईएमएफ का आशावाद बढ़ रहा है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा इस्तेमाल में आई वैकल्पिक कार्य-प्रणाली बताती है कि मौजूदा साल में विकास दर 8-8.5% रहेगी और अगले कुछ वर्षों में दहाई के अंक में पहुंच जाएगी। ढांचागत सुधार, फंसी हुई पूंजी को निकालने के उपाय और सार्वजनिक खर्च को बढ़ाना, विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, इस लक्ष्य को अधिक वास्तविक बनाते हैं। विकास की रणनीति निर्णायक तौर पर अधिक समावेशी है। वित्तीय समावेश के विशेष उपाय और आधार योजना के साथ मिलकर ग्रामीण भारत के वित्तीय सशक्तीकरण को पुनर्परिभाषित किया है। बीमा योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना ने सामाजिक सुरक्षा तंत्र का स्वीकार्य ढांचा बनाया है। यह विशेष रूप से शोषित तबकों को लाभान्वित करता है। यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की क्षमता भी बढ़ाता है।
वैश्विक मोर्चे पर भारत के मजबूत कदम- विदेश नीति को मजबूती देने और विदेशी निवेश लाने की कोशिश में जुटे मोदी की छवि वैश्विक नेता के रूप में मजबूत हुई है। दरअसल, विदेश यात्रा को लेकर विपक्षी दल और आलोचक नरेंद्र मोदी पर लगातार निशाना साध रहे हैं, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि मोदी की महत्वपूर्ण छवि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन पर सबकी नजर है। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी विदेश यात्राओं पर जाते रहे हैं, लेकिन उनकी उतनी चर्चा नहीं होती थी, जितनी आज मोदी की हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन देशों चीन, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया का दौरा कई मायने में सफल रहा। इस यात्रा से कूटनीति के नए आयाम स्थापित हुए तो द्विपक्षीय सहयोग के भी कई नए रास्ते खुले। जिनका आने वाले वर्षों में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है। मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में आए एक साल पूरा होने वाला है, इतने कम दिनों में अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर उनकी सफलता देखते ही बनी है। हम हाल की विदेश यात्राओं पर बात करें तो प्रधानमंत्री सबसे पहले चीन गए, जहां उनका स्वागत चीन के राष्ट्रपति ने अपने गृहनगर शियान में किया।
चीन के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी देश के नेता को बीजिंग से बाहर इस तरह वहां के राष्ट्रपति की ओर से सम्मान मिला हो। चीन के मीडिया ने तो इसे बड़ी घटना करार दिया, वहीं पूरी दुनिया भी भारत-चीन संबंधों में आए इस बदलाव को देख कर दंग है। दोनों देश पुरानी कड़वाहटों को भूल कर सीमा विवाद को निपटाने के साथ-साथ आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक संबंधों को आगे ले जाने के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि पहले चीन की सरकार के साथ दस अरब डॉलर के 24 समझौते और फिर निजी कंपनियों के साथ 22 अरब डॉलर के 26 समझौते हो सके।
मंगोलिया के साथ भारत के 2500 वर्ष पुराने संबंध रहे हैं। चीन और रूस के बीच स्थित यह देश खनिज और प्राकृतिक संसाधनों से भरा है। ऐसे में इससे मधुर संबंध उपयोगी है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मंगोलिया ने हमेशा भारत का समर्थन किया है। इन संबंधों को और आगे ले जाते हुए प्रधानमंत्री ने वहां ढांचागत विकास के लिए उसे करीब 63 अरब रुपये ऋण के रूप में देने की घोषणा की है। दक्षिण कोरिया से तो भारत के संबंध एक पायदान और ऊपर चढ़ गए हैं। दोनों देश अपने संबंधों को विशेष रणनीतिक भागीदारी के स्तर पर ले जाने को सहमत हो गए हैं। भारत और दक्षिण कोरिया के बीच दोहरे कराधान से बचाव समेत सात समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। साथ ही ढांचागत विकास के लिए वह भारत को दस अरब डॉलर की आर्थिक मदद भी देने पर राजी हुआ है। इस प्रकार से देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक साल के कार्यकाल में 17 देशों का महत्वपूर्ण दौरा किया है।
भारत का पड़ोसी देश भूटान, नेपाल और श्रीलंका हो या अमेरिका, जापान, फ्रांस, आॅस्ट्रेलिया और जर्मनी लगभग सभी महत्वपूर्ण देशों के प्रमुखों से उनकी वार्ता हुई है। इन यात्राओं का प्रभाव ये हुआ है कि दुनिया भारत की ओर आशा की नजरों से देखने लगी है। पड़ोसी देशों में जहां भरोसा बहाल हुआ है, वहीं विकसित देशों का भारत के प्रति नजरिया बदला है। देसी-विदेशी निवेशकों को भी यहां तमाम संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं। कुल मिलाकर अपनी यात्राओं से वे भारत को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। मेक इन इंडिया के लिए यह जरूरी है।
अल्पसंख्यक और मोदी सरकार – विविधता में एकता भारतीय समाज की विशेषता रही है। पिछले दिनों नई दिल्ली में वेटिकन द्वारा दो भारतीय कैथोलिक ईसाइयों कूरियाकोज चवारा तथा मदर यूफ्रेशिया को सन्त घोषित किये जाने के उपलक्ष्य में हुए एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मजहबी हिंसा और असहिष्णुता पर करारा हमला करते हुए कहा सभी पंथों का सम्मान और सहनशीलता भारत की परंपरा है। उनकी सरकार अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक समुदाय के किसी भी पांथिक संगठन को दूसरों के खिलाफ खुले तौर पर या छिपे तौर पर नफरत भड़काने की इजाजत नहीं देगी और जो भी ऐसा करेगा उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
भाजपा चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में, उसे और संघ परिवार को निशाना बनाने का एक पैटर्न उभर रहा है। जहां भाजपा सत्ता में है,वहां आरोप लगाया जाता है कि वह अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है, और जहां वह विपक्ष में है, वहां उस पर सत्ता के लिए ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया जाता है। नेल्ली से लेकर हाशिमपुरा तक और भागलपुर से लेकर दिल्ली में 1984 तक जितने भी नरसंहार देश में हुए, तब न तो भाजपा सत्ता में थी और न ही उसकी पूर्ववर्ती जनसंघ। राष्ट्र यह जानना चाहता है कि तब किसने वे दंगे कराए और क्यों? दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आप के कार्यकर्ता ईसाइयों के एक विरोध प्रदर्शन में आगे-आगे क्यों चल रहे थे? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार को बदनाम करने के लिए चर्चों पर हमले को अंजाम दिया गया हो? अन्यथा, कोई भी समझदार सरकार क्यों ऐसे बकवास की इजाजत देगी?
लेकिन, पिछले एक साल में ऐसी कोई बात नजर नहीं आयी, जिससे लगे कि सरकार सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है, न ही कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ, जैसा कि दूसरी सरकारों के दौरान हो चुके हैं। जो लोग सरकार पर सांप्रदायिकता और हिंदुत्ववादी कट्टरता का आरोप लगा रहे हैं, उनके पास क्या कोई ठोस उदाहरण है कि किसी मंत्री या सांसद ने कोई दंगा फैलाया हो या सौहार्द बिगाड़ने का काम किया हो, जिससे कि देश की सामाजिक स्थिति पर असर पड़ा हो।
दरअसल, सत्ता में बैठे लोगों पर नजर रखना विपक्ष की जवाबदारी भी बनती है, यही वजह है कि विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार को बारंबार घेरने की कोशिश करती रहती हैं और कहती रहती हैं कि देश में अल्पसंख्यक डर-डर कर जी रहे हैं। लेकिन, सच्चई यह है कि पिछले एक साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत कुछ किया है- न किसी एक धर्म पर आधारित, न किसी एक समाज पर आधारित, न सिर्फ शासन पर आधारित, बल्कि पूरे देश के संपूर्ण विकास पर आधारित है मोदी की सोच।
सरकार का तो नारा ही है- ‘सबका साथ सबका विकास’. एक प्रधानमंत्री के रूप में देश को आगे बढ़ाने का जो नजरिया चाहिए, वह नरेंद्र मोदी के पास है।
R_l_francis आर.एल.फ्रांसिस
Ph. 9810108046