आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि भारत में एक आईएसओ प्रमाण पत्र पाने वाला परिवार भी है। चेन्नई का सुराना परिवार देश की पहली और इकलौती ऐसी फैमिली है जिसे आईएसओ 9000 सर्टिफिकेट मिला हुआ है। उनके परिवार में हर एक चीज बेहद ही खास तरीके से व्यवस्थित रखी जाती है। हर काम के लिए नियम है, जिनका पालन करना बेहद ही जरूरी है। इस परिवार में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति दादा को परिवार का मुखिया बनाया गया है, तो वहीं दादी को परिवार का प्रतिनिधि बनाया गया है, उनकी बहू मैनेजमेंट रिप्रेजेंटेटिव (प्रबंधन प्रतिनिधि) हैं। वहीं बेटे और परिवार के बच्चे परमानेंट कस्टमर्स (स्थायी ग्राहक) हैं। इसके अलावा इस परिवार में जो भी मेहमान आता है उन्हें टेंपरेरी कस्टमर्स (अस्थायी ग्राहक) कहा जाता है। इतना ही नहीं अस्थाई ग्राहक जब सुराना परिवार के घर आते हैं तब उन्हें एक फॉर्म दिया जाता है, जिसमें उन्हें फीडबैक भरना होता है। उस फॉर्म में मेहमानों को यह बताना होता है कि उन्हें सुराना परिवार में कैसा लगा, उनकी खातिरदारी से वह कितने संतुष्ट हैं और खाने से लेकर अन्य बाकी सुविधाओं की गुणवत्ता को लेकर उनकी क्या सोच है। क्या किसी में भी किसी तरह के बदलाव की जरूरत है।
चेन्नई के सुराना परिवार में ऐसा ही होता है. दरअसल, सुराना परिवार देश का शायद अपनी तरह का पहला परिवार है जिसे आईएसओ 9000 सर्टिफ़िकेशन प्राप्त है. यह सर्टिफ़िकेशन किसी संस्थान या कंपनी को उसके द्वारा दी जा रहीं सेवाओं या उत्पादन की प्रक्रिया के मानकीकरण पर दिया जाता है. इसका उद्देश्य सेवाओं या उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाना होता है.
यह कोई मामूली सर्टिफ़िकेशन नहीं है. यह उस आईएसओ( इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर स्टैण्डर्ड़ाइज़ेशन) जिसे हिंदी में अंतरराष्ट्रीय मानकी संस्थान भी कहा जाता है, के द्वारा दिया जाता है जो विश्व भर में मान्य और प्रतिष्ठित संस्था है. इसके तहत किसी संस्थान या कंपनी को अपनी प्रक्रिया का मानकीकरण करना होता है और उसका आलेखन (डॉक्यूमेंटेशन) करना होता है. आईएसओ के अधिकारी बाकायदा अच्छी तरह से समय-समय पर निरीक्षण करते हैं और उसके बाद जब प्रक्रिया में कोई त्रुटि या मानकीकरण से भटकाव नहीं पाया जाता तो उस संसथान को आईएसओ सत्यापित कर दिया जाता है.
सुराना परिवार के विनोद सुराना, जो पेशे से वकील हैं, इसके पीछे की पूरी कहानी बताते हैं. उनके मुताबिक़ जब वे अपने दफ़्तर के लिए आईएसओ लेने की प्रकिया से गुज़र रहे थे, तब उन्हें ये ख्याल आया कि क्यों न अपने घर को भी, जो दफ़्तर के ऊपर ही है, आईएसओ सत्यापित किया जाए. परिवार में हर वयस्क पेशे से वकील ही है. पिता पीएस सुराना, मां, और पत्नी रश्मि सुराना.
विनोद बताते हैं कि उनके पिता हमेशा से ही हर चीज़ को एक तय प्रक्रिया से करते आ रहे हैं. चूंकि मां भी वकील हैं और उनके पास भी समय कम रहता था, सो उनकी भी यही आदत रही. लिहाज़ा, वे एक अनुशासित परिवार में पले -बढे.
आईएसओ की प्रक्रिया के तहत विनोद के पिता को ‘परिवारिक मुखिया’, मां को ‘पारिवारिक रिप्रेजेन्टेटिव’, रश्मि को ‘प्रबंधन रिप्रेजेन्टेटिव’, बच्चों और विनोद को ‘स्थाई ग्राहक’ और मेहमानों को ‘अस्थाई ग्राहक’ का डेजिगनेशन (पद) दिया गया है. जिन दुकानों से घर का सामान ख़रीदा जाता है उन्हें ‘अप्रूव्ड विक्रेता’ कहा जाता है और सिर्फ़ उनसे ही ख़रीदारी की जाती है. बाकायदा उनकी भी रेटिंग की जाती है. रसोई घर या स्टोर रूम में हर सामान पर लेबल लगाये गए हैं.
सुराना परिवार के यहां जब मेहमान आते हैं तो एक तय प्रकिया से ही उनकी खातिर की जाती है. खाने से लेकर चाय तक, सब इसी प्रकिया के तहत दिया जाता है. अब चाहे मेज़बानी खुद रश्मि कर रही हों या कोई और, इस प्रकिया में ज़रा सभी फैरबदल नहीं होता. माने अगर पहले पानी पेश करना है तो पानी ही पेश किया जाएगा. बाद में मेहमानों से खाने की गुणवत्ता, दी गयी सेवाओं आदि का फ़ीडबैक लिया जाता है और उसका रिकॉर्ड रखा जाता है. उनकी पसंद, नापसंद का भी ख़याल रखा जाता है और तिमाही घर में स्टॉक चेकिंग की जाती है.
एक साक्षात्कार में रश्मि बताती हैं, ‘चूंकि मुझे एक साल में 9000 ग्रीटिंग कार्ड्स देने होते हैं, इसलिए हर चीज़ घड़ी की सुइयों के हिसाब से तय है. मतलब कोई फ़ेरबदल नहीं.’ आईएसओ संस्था के कर्मचारी हर छह महीने में घर का निरीक्षण करने आते हैं. और रश्मि बड़े फ़क्र से बताती हैं कि अब तक एक बार भी उनकी प्रक्रिया को ‘नॉन कांफिर्मेट्री’ यानी मानकी के ग़ैर अनुरूप नहीं पाया गया है.
दिलचस्प बात यह है कि छुट्टियों के दिनों में भी प्रकिया में कोई छूट नहीं है. घूमने जाने के लिए ज़रूरी तैयारी भी मानकों के हिसाब से होती है. विनोद बताते हैं, ‘हां. पर जब हम छुटियों पर चले जाते हैं तब नियमों में ढील दी जाती है.’ विनोद यह कहते हुए मुस्कुरा उठते हैं ‘आख़िर आईएसओ में भी तो कहीं-कहीं छूट दी गयी है.’
साभार-टाईम्स नाउ से