जिस अंतरराष्ट्रीय रोल बॉल गेम के आज लाखों दीवाने हैं, उसकी खोज के पीछे राजू दाभाडे नाम के एक भारतीय का दिमाग था। दरअसल, राजू सुबह-सुबह अखबार बांटने का काम करते थे और इसके लिए वे अपने रोलर स्केट्स का इस्तेमाल करते थे। रोलर स्केटिंग में उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में भी अपना नाम कमाया। इसके बाद वे फिजिकल एजुकेशन टीचर (physical education teacher) बन गए लेकिन प्रतिस्पर्द्धा की दौड़ में आगे बढ़ने का उनका जज्बा हमेशा कायम रहा। यही कारण है कि उनके दिमाग में एक ऐसे गेम ने जन्म लिया, जिसने उनका व देश का नाम ऊंचा कर दिया।
दरअसल रोल बॉल का विचार 2003 में उनके दिमाग में तब आया जब एक बास्केट बॉल से उनकी स्केटिंग बाधित हो गई। स्कूलों के कैम्पस में खेला जाने वाला रोलर स्केटिंग काफी लोकप्रिय था और बॉल को सभी भारतीय शुरू से ही पसंद करते है, इसलिए उन्होंने इन दोनों को मिलाकर एक करने का निर्णय लिया।
भारतीय ओलंपिक संघ ने वर्ष 2006 में इस खेल को मान्यता दी। इसके बाद यह खेल देश के साथ ही विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हो गया। देश-विदेश के दौरों पर जाने और टीम बनाने के लिए उन्होंने अपनी पैतृक संपत्ति भी बेच दी।
रोल बॉल व स्केटिंग में उल्लेखनीय योगदान के लिए राजू दाभाडे को 19 दिसंबर 2005 को महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने राजा मंत्री पुरस्कार (Raja Mantri Puraskar) प्रदान किया। इस नए गेम के नियम आदि को तैयार करने में राजू के सहकर्मियों ने उनका पूरा साथ दिया।
साभार- http://samachar4media.com/ से