वाह! क्या गजब है ब्रिटेन, अमेरिका का लोकतंत्र! और यह प्रमाण है कि जिंदा कौम के लोकतंत्र में सब आजाद होते है। देश और देश की संस्थाएं अपने कर्तव्य, अपने अधिकार, अपनी जिम्मेवारी में बेबाक, बेधड़क और विचारवान होते हैं। ठीक विपरीत भारत राष्ट्र-राज्य के लोकतंत्र की मौजूदा मिसाल है। पिछले साढ़े चार सालों में एक शासक, एक प्रधानमंत्री के खूंटे से विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया, सत्तारूढ दल सभी मानों गुलाम, बंधक की तरह व्यवहार कर रहे है। सभी नरेंद्र मोदी की पालकी ढोते हुए जैसे है वह मुर्दा कौम (खासकर हिंदू) की तासीर का प्रमाण है। सोचे, अमेरिका में 27 दिनों से सरकार बंद है। शटडाउन है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी व्हाइट हाउस में बाहर से, निजी खर्चे पर खाना मंगा कर खाना पड़ रहा है क्योंकि अमेरिकी संसद ने सरकार को, उनके रसोईयों का खर्चा देना रोका हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप की जिद्द है कि वे मेक्सिकों की सीमा पर दीवाल बनवाएगें। लेकिन संसद और सांसदों का मानना है कि यह पैसे की बरबादी है। अमेरिकी राष्ट्र-राज्य की वैचारिकता के खिलाफ है इसलिए उन्हे ट्रंप का खर्च प्रस्ताव मंजूर नहीं। अमेरिकी सरकार का ठप्प होना, एफबीआई नाम की संघीय जांच संस्था द्वारा ट्रंप के रूसी झुकाव पर जांच करना, मीडिया का खम ठोंक राष्ट्रपति की परवाह न करना और सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों का भी डोनाल्ड ट्रंप से असहमत होना बताता है कि जिंदा कौम कैसे जिंदादिली में लोकतंत्र की जीवंतता को भोगता है तो मुर्दा हिंदू का लोकतंत्र कैसे कैसे एक प्रधानमंत्री और उनकी कार्यपालिका के आगे घिघियाएं हुए जीता है।
अमेरिका में यदि डोनाल्ड ट्रंप की परिघटना ने वहां के लोकतंत्र के चैक-बैलेंस, व्यवस्था की पारदर्शिता और बेबाकी को झलकाया है तो ब्रिटेन में योरोपीय संघ छोड़ने याकि ब्रेक्जिट से पूरी दुनिया को अहसास कराया है कि मतदाता, सत्तारूढ पार्टी, विपक्ष और प्रधानमंत्री देश की दशा-दिशा को ले कर विचार, सोच में विचार मंथन गहरा, बेबाक करते है। ब्रिटेन के सांसद पार्टी में, संसदीय व्यवस्था की लोकलाज से बंधे हुए भी उससे बाहर निकल कर देश हित में वैचारिक मंथन से नहीं चूकते। तभी ब्रिटेन की संसद याकि हाउस ऑफ कामंस के सदस्यों का कमाल था जो प्रधानंत्री टेरिजा में के ब्रेक्जिट प्लान को खारिज किया लेकिन मे के खिलाफ लाए गए लेबर पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव को गिराया। ब्रेक्जिट पर प्रधानमंत्री मे के प्लान के पक्ष में 202 और विपक्ष में 432 वोट पड़े। ब्रिटेन के इतिहास में सरकार की किसी भी योजना, रीति-नीति वाले प्रस्ताव की यह सबसे बड़ी हार थी। तभी तुरंत बाद विपक्ष के नेता ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, मगर उस पर प्रधानमंत्री के पक्ष में 325 वोट पड़े। जाहिर है यह संसदीय लोकतंत्र की सबसे बेहतरीन मिसाल है, जिसमें कार्यपालिका किसी भी स्थिति में विधायिका को अपने कहे अनुसार चलने वाली याकि फॉर गारंटेड नहीं ले सकती। यह नहीं होता कि प्रधानमंत्री या सरकार जो काम कर रही है उस पर आंख मूंद कर संसद की, सत्तारूढ सांसदों की मुहर लगनी ही है। टेरिजा मे का ब्रेक्जिट प्लान उनकी पार्टी के सांसदों को नहीं पसंद है तो उन्होंने खुलेआम उसके खिलाफ वोट किया पर बाद में जब लेबर पार्टी के नेता जेरमी कोर्बिन ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया तो उसे हरा दिया। कोर्बिन के अविश्वास प्रस्ताव को 306 वोट मिले तो प्रधानमंत्री मे को 325 वोट मिले।
सो ब्रितानी सरकार के पास यूरोपीय संघ से अलग होने के ब्रेक्जिट प्लान को लागू करने में अब सिर्फ दस हफ्ते यानी करीब ढाई महीने का समय है। इसे ब्रिटेन की संसद ने इसे मंजूरी नहीं दी है। संसद में टेरिजा मे का प्लान खारिज होने के बाद एक नए जनमत संग्रह की मांग होने लगी है। हालांकि लेबर नेता कोर्बिन और प्रधानमंत्री दोनों इससे सहमत नहीं हैं लेकिन अगर कोई दूसरा रास्ता नहीं निकलता है तो यह रास्ता अपनाना होगा। इसमें लोगों से सीधा सवाल मे के प्लान को अपनाने या यूरोपीय संघ में बने रहने का होगा। एक रास्ता यह है कि टेरिजा में फिर से चुनाव करा कर संसद के निचले सदन में अपनी पार्टी का बहुमत बढ़ाने का प्रयास करें। लेकिन यह भी आसान नहीं है। उन्होंने पिछले ही साल मध्यावधि चुनाव कराया था, जिसमें उलटा हुआ। उनकी पार्टी अपना बहुमत गंवा बैठी।
इसलिए दूसरे जनमत संग्रह और फिर से चुनाव कराने की बजाय वे अन्य रास्ते पर विचार कर रही हैं। वे यूरोपीय संघ से संपर्क करके ब्रिटेन के लिए कुछ और राहत हासिल करने की कोशिश करेगी ताकि दोबारा उनके ब्रेक्जिट प्लान को संसद में पेश करके पास कराया जाए। पर यूरोपीय संघ की राजधानी ब्रसेल्स में फिलहाल इस पर विचार नहीं है। यूरोपीय संघ के नेता मे को किसी तरह की राहत तभी देंगे जब उनको यह भरोसा हो कि इसके बाद प्रधानमंत्री मे अपने करार, डील को संसद से पास करा लेंगी। मे के पास दूसरा रास्ता यह है कि वे लेबर पार्टी के साथ नए ब्रेक्जिट डील पर बात करें लेकिन इससे उनकी अपनी कंजरवेटिव पार्टी के नेता नाराज हो सकते हैं। एक रास्ता ब्रेक्जिट को अभी थोड़े समय के लिए टालने का है। पर इसके लिए यूरोपीय संघ के सभी 27 सदस्य देशों की सहमति जरूरी होगी। यह सहमति भी तभी मिलेगी, जब प्रधानमंत्री मे उनको भरोसा दिलाएं कि उनका नया प्लान पास हो जाएगा या वे नया जनमत संग्रह कराने जा रही हैं या देश में नया चुनाव होने वाला है।
उधर अमेरिका में सरकार के स्तर पर आंशिक शटडाउन है और लाखों कर्मचारी बिना वेतन के काम कर रहे हैं या काम नहीं कर रहे हैं। दुनिया के इस महाशक्ति देश में 27 दिनों से शटडाउन है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी जिद पर अड़े हैं तो अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेट सांसद अपनी जिद पर अड़े हैं। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में वादा किया था कि वे दक्षिणी सीमा पर एक दीवार बनाएंगे ताकि मेक्सिको से आने वाले अवैध प्रवासियों को रोका जाए। इसके लिए उनको 5.7 अरब डॉलर यानी भारतीय रुपए में करीब 40 हजार करोड़ रुपए चाहिए। पर संसद में डेमोक्रेटिक पार्टी का नियंत्रण है और वे इसकी मंजूरी नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि प्रवासी समस्या को रोकने का उपाय दीवार बनाना नहीं है। डेमोक्रेट सांसदों का कहना है कि यह एक निष्प्रभावी और बेहद खर्चीला उपाय है।
पर चूंकि ट्रंप ने चुनाव में वादा किया है इसलिए वे अड़े हैं और अपने इमरजेंसी फंड से दीवार बनाने की चेतावनी दे रहे हैं। यह भी कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति के बंटवारे और दोनों के अपने वैचारिक लाइन पर अड़ने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मिसाल है। दोनों तरफ की इस जिद में आठ लाख फेडरल कर्मचारी बिना वेतन के काम कर रहे हैं। हर दिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर हो रहा है और जीडीपी दर प्रभावित हो रही है।
इस गतिरोध में ट्रंप की अपनी रिपब्लिकन पार्टी के भी कई सांसद ट्रंप के अपनाए गए रास्ते से खुश नहीं हैं। वे भी डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिल कर ट्रंप की योजना का विरोध कर रहे हैं और संसद में सुरक्षा उपायों और प्रवासियों की समस्या पर विस्तार से चर्चा चाहते हैं जबकि ट्रंप किसी चर्चा से पहले 5.7 अरब डॉलर के फंड की मांग पर अड़े हैं।
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