फिल्मों में हमने यह कहानी खूब देखी है कि पड़ोसी देश ने आपके देश पर हमला बोल दिया है और अपने देश ने भी शंखनाद कर दिया है कि अब लड़ाई आर पार की है। एक सैनिक सेना में हैं और अपने घर छुट्टियों में आया हुआ है। उसकी छुट्टियां निरस्त कर सीमा पर पहुंचने का आदेश आता है। वह खुशी खुशी घर से निकल पड़ता है। उसे सीमा पर भेज दिया जाता है। बंकरों और रेत के बोरों के पीछे से गोलीबारी जारी है।
वर्तमान समय भी युद्ध का है। शत्रु ज्ञात होकर भी अज्ञात है। बारह करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है। चार करोड़ दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है। एयर एशिया ने अपने कर्मचारियों को बिना वेतन के 3 मई तक छुट्टियों पर भेज दिया है। स्पाइस जेट ने कर्मचारियों के वेतन में कटौती की घोषणा की है। एविएशन सेक्टर औऱ उससे जुड़े तीस लाख कर्मचारी संकट में आने वाले हैं। केंद्रीय कर्मचारियों का डीए फ्रीज़ किया गया है। लोगों को भोजन के पैकेट बांटे जा रहे हैं। कुछ आसमान के नीचे खुले में या पुल के नीचे सोने को मजबूर हैं। कोचिंग करने गए बच्चे अपने घर नहीं पहुंच पा रहे। कुछ विदेश में अटके हैं।
सरकारी डॉक्टर, नर्सेज, पैरामेडिकल स्टाफ , पुलिस , नगर निगम , बिजली विभाग, न्यायालय, मीडिया कर्मी ,बैंक , बीमा संस्थान ,राज्य के अन्य कर्मचारी बारह घण्टे ड्यूटी दे रहे हैं और संक्रमित होकर मर भी रहे हैं।
सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएं और नजरिया है-
1. सेना वाला बिना यह परवाह किये कि उसे गोली लग सकती है सीमा पर डटा है।
2. जो लोग खुले में , पुल के नीचे रह रहे हैं उन्हें दो वक्त का भोजन चाहिए
3. दिहाड़ी मजदूर काम मांग रहा है कि उसे परिवार के लिए रुपया चाहिए
4. अस्पतालों में कर्मवीर सेवा दे रहे और संक्रमित होकर मर भी रहे हैं।
5. प्रशासनिक अधिकारी ,कर्मचारी दिन रात काम में जुटे हैं ।
6. ठेले वाले , पंडित पुजारी,फल वाले,चीजों की मरम्मत करने वाले, फुटपाथ पर तमाम तरह के व्यवसाय करने वाले, फेरी वाले, छोटी मोटी दुकान वाले, कारीगर, अवैतनिक पत्रकार सब यही कह रहे कि हम इस संक्रमण काल में काम करने को तैयार हैं, हमें काम दीजिये,पापी पेट का सवाल है।
दूसरी और प्रशासन ने जो निजी अस्पताल अधिग्रहित कर लिए वो अलग बात है मगर अधिकांश निजी अस्पताल सरकार की अपील के बावजूद भी सामान्य मरीजों के लिए नहीं खुल रहे हैं। भटकते, भटकते ही मरीजों की मौत के समाचार आ रहे हैं।
और संकट की इस घड़ी में कुछ अति समझदार (जिनमें कुछ निजी अस्पताल वाले निजी चिकित्सक , कर्मचारी, राज्य सरकार के कुछ कर्मचारी, कुछ केंद्रीय संस्थानों के अधिकारी, राजनेता भी हैं ) को अपनी जान पर ज्यादा खतरा नजर आ रहा है। प्रशासन और उच्च अधिकारियों की तमाम अपीलों के बाद भी ये अपनी सेवाएं देने को तैयार नहीं हैं।
इसका केवल यही मतलब है कि देश में इस समय तीन तरह के वर्ग हैं-
1. सच्चे कर्मवीर जो देश सेवा , मानव सेवा कर रहे , इनमें देश भर के सरकारी कर्मचारी, स्वयं सेवी संस्थाए, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडियाकर्मी आते हैं जो अपने परिवार और अपनी चिंता किये बिना कार्य कर रहे हैं।
2. वो तबका जो इस संक्रमण काल में बिना मौत की परवाह किये रोजगार चाहता है,रुपया चाहता है,जिससे परिवार को अन्न मिले, चाहे कर्फ्यू हो या लॉकडाउन।
3. ऐसे लोग जिन्हें अन्न और राशन की फिकर नहीं । घर में सुरक्षित, जिनको खाने पीने की कोई चिंता नहीं। रोज नए पकवान घर में ट्राय कर रहे। जिनके पहले से ही पेट भरे हैं, वो सब अन्य लोक सेवक जो मैदान में नहीं है, घर में दुबके हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें अर्थ चाहिए मगर केवल संक्रमण के डर से सेवा देने से बच रहे हैं |
यदि तीसरे वर्ग को उच्च अधिकारी या प्रशासन आवाहन करता है कि आइये आपकी सेवाओं की हमें जरूरत है तो सबसे ज्यादा नियम कायदे ये ही बताएंगे क्योंकि इनके पेट भरे हैं। इन्हें आय की फिकर नहीं है। और जिन्हें आय की तो फिकर है मगर मरने की सबसे ज्यादा चिंता भी इसी वर्ग को है। केवल यही घर परिवार वाले हैं । सबसे ज्यादा सवाल यही कर रहे हैं।
अरे जिंदगी हो गई ,यही कहते रहे कि जीना मरना तो ऊपर वाले के हाथ में है । फिर क्यों डर रहे हो। संक्रमित होकर मर तो तब भी सकते हो जब घर से निकलकर दूध लेने जाओगे, ब्रेड लाओगे या दवा लेने जाओगे। ये भी अज्ञात युद्ध है। हमला कभी भी , कहीं से भी हो सकता है। सुरक्षा तो उनकी भी नहीं हो पा रही जो अस्पतालों में डटे हैं। PPE नहीं, मास्क की कमी , ग्लोव्स की कमी तो कर्मवीरों को भी है। फिर भी लगे हैं । क्यों ? किसी डर से , वेतन मिल रहा इसलिए । असामान्य स्थिति और विपरीत परिस्थितियों में दी गई सेवा ही याद की जाती है।आप इस युद्ध का हिस्सा बनोगे या मुंह छिपाओगे,लानतें खाओगे। तय आपको करना है। कर्मवीर या कायर, क्या कहलाना चाहोगे। और हाँ याद रखिये आपका परिवार भी आपको एक योद्धा, कर्मवीर की तरह देखना चाहता है, इस युद्ध में एक भगोड़े की तरह नहीं।
इन तीन वर्ग में आप कहाँ हैं, तय करिए ।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं ,समय लिखेगा उनके भी अपराध ( दिनकर)
– डॉ हरीशकुमार सिंह