कथाकार शशिभूषण द्विवेदी की असामयिक मृत्यु से हिन्दी जगत एवं साहित्य प्रेमियों के बीच गहरा शोक व्याप्त है। कल शाम ह्दयगति रूकने से 45 वर्ष के शशिभूषण द्विवेदी की मृत्यु हो गई।
कोरोना काल के इस अमानवीय समय ने हमें हमारे शोक में नितांत अकेला कर दिया है। सामाजिक दूरी बनाए रखने की हमारी विवशता में हम गले मिलकर एक-दूसरे से अपना ग़म भी नहीं बाँट पा रहे। लेकिन, आभासी दुनिया के माध्यम से लोगों ने शशिभूषण द्विवेदी को याद कर उनके साथ के अपने संस्मरणों को साझा कर, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
लेखक ममता कालिया ने कहा, “उनकी हर कहानी के अंदर उत्तर आधुनिक चेतना देखने को मिलती है। उनकी कहानी ‘छुट्टी का दिन’ बहुत मार्मिक कहानी है। उनकी कहानियों से उनके व्यक्तित्व को अलग नहीं किया जा सकता, अपनी हर कहानी में वे दिखाई देते हैं। राजनीतिक बातों को प्रतिकों के माध्यम से व्यक्त करना उनकी ख़ासियत थी।“
उन्होंने कहा, “कोरोना काल में जब हम अपने अपने घरों में रहने को मजबूर हैं ऐसे में आभासी माध्यम में साथ जुड़कर शशिभूषण द्विवेदी को याद करना खुद के दुखों को कम करने का एहसास मात्र है।“
ममता कालिया ने लाइव बात करते हुए शशिभूषण द्विवेदी की कहानी का पाठ भी किया।
कहानीकार चंदन पांडेय ने शशिभूषण द्विवेदी को एक दोस्त और एक समकालीन कथाकार के रूप में याद करते हुए कहा कि, “ वे एक बेबाक लेखक थे। उनकी कहानियों की ख़ासियत थी कि वे इतिहास को उसी दौर में, उसी नज़रिये से देखते हुए उसे वर्तमान की कहानी बना देते थे। ‘विप्लव’, ‘ब्रह्महत्या’, ‘खेल’ उनकी कुछ महत्वपूर्ण कहानियाँ हैं।
सोशल मीडिया पर लोग कल शाम शशिभूषण द्विवेदी के निधन की ख़बर आने के बाद से लगातार उन्हें ही याद कर रहे हैं। जितने साहित्य की दुनिया के लोग याद कर रहे हैं, उतने ही उससे बाहर के विस्तृत हिंदी समाज के लोगों ने उनके किस्से साझा किए।
आलोचक अमितेश कुमार ने आभासी दुनिया के मंच से जुड़कर शशिभूषण द्विवेदी के साथ बिताए बहुत सारे पलों को याद किया। उन्होंने कहा कि वो जीवन के मुश्किल क्षणों में भी हास्य का रस निकाल लाते थे। अमितेश ने कहा, “अभी तो हम इंतज़ार में थे कि हमें उनकी कई और रचनाओं को पढ़ने का मौका मिलेगा। लेकिन, जैसे उनकी कहानियों में शिल्प अचानक समाप्त हो जाता है, ठीक वैसे ही वे अचानक हमारे बीच से चले गए।
अमितेश ने लाइव बातचीत में कहा, “जीवन में कठिनाई और तनाव के बीच सकारात्मकता ढूँढ़ निकाल लाने वाले व्यक्ति के तौर पर शशिभूषण द्विवेदी बहुत याद आएंगे। अपने दोस्तों और उभरते लेखकों, साहित्यकारों के लिए वे एक बेबाक और स्पष्ट आलोचक थे जिनकी कही बातों ने बहुतों को कुछ नया सिखाया था।“
लॉकडाउन में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा वाट्सएप्प से रोज़ साझा की जा रही पुस्तिका आज लेखक शशिभूषण द्विवेदी को समर्पित रही। पुस्किता में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी कहानियों को साझा किया गया है।
शुक्रिया।