पं. धर्म भिक्षु का जन्म लखनऊ के श्रीवास्तव परिवार में भाद्र कृष्णा ६ संवत् १९५८ विक्रमी तद्नुसार सन १८९८ ईस्वी को हुआ । आप के पिता पं. दीन दयाल थे जब कि माता का नाम श्रीमती जगत प्यारी था । आप का आरम्भिक नाम इश्वरी दयाल रखा गया ।
पं. धर्म भिक्षु के चाचा श्री बनारसी दास जी के सम्पर्क से आप का आर्य समाज में प्रवेश हुआ । जब आपने संन्यास की दीक्षा ली तो आप का नाम स्वामी निर्भयानन्द रखा गया , किन्तु बाद में आपने अपना नाम बदल कर धर्मभिक्षु रख लिया । आप ने स्वामी दयानन्द सरस्वती क्रत ग्रन्थों को पटने के साथ ही साथ संस्क्रत को भी पटा । मात्र इतने ही आप की मनोकामना पूर्ण न हुई क्योंकि आप के अन्त: करण में तो शास्त्रार्थ करने तथा मुसलमानों आदि को शास्त्रार्थों में पराजित करने की उत्कट इच्छा थी । इस कारण अरबी , फ़ारसी आदि की जानकारी का होना आवश्यक था । इस लिए आप ने एक आलिम फ़ाजिल नामक मौलवी से अरबी ओर फ़ारसी को पता व सीखा।
अभी आप किशोर अवस्था के ही थे कि आप आर्य समाज के सत्संगों में जा कर व्याख्यान देने लगे । इस अवस्था में ही अन्य धर्मावलम्बियों से शास्त्रार्थ भी करने लगे । इस प्रकर धीरे धीरे विधिवत धर्म प्रचार में के कार्य में लग गए तभ ही आपने अपना नाम बदल कर धर्म भिक्शु किया ।
आप ने एक लम्बे समय तक स्वतन्त्र रुप से धर्म प्रचार का कार्य किया । तत्पश्चात आप को आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब में उपदेशक स्वरुप नियुक्त किया गया । आर्य प्रतिनिधि सबा के उपदेशक स्वरुप आप ने देश भर का भ्रमण किया । इस मध्य ही दिल्ली में श्री मद्द्यानन्द प्रेस की स्थापना की । इस के साथ ही पं. लेखराम जी की स्म्रति में आर्य मुसाफ़िर नाम से एक प्त्र का प्रकाशन भी आरम्भ किया गया । इस प्रकर आप ने अपना जीवन आर्य समाज के प्रचार व प्रसार मेम पूरी तरह से झॊंक दिया ।
२४ फ़रवरी सन १९२६ को आप का विवाह मोहम्मद्पुर गांव (समीप इलाहाबाद) के एक कायस्थ परिवार की कन्या सुभद्रादेवी से हुआ । इस गृह्स्थ में रहते हुए आप के यहां लक्ष्मी नामक एक कन्या का भी जन्म हुआ । आप ने १९०० इस्वी में हुए सत्याग्रह आन्दोलन में बढ चढ कर भाग लिया ।
आप ने अनेक पुस्तकें भी लिखीं , जिनका आज के आर्य भी खूब लाभ उठा रहे हैं । यह पुस्तकें इस प्रकार से हैं ,पं धर्म भिक्षु जी की ४८ आयतों से युक्त असली कुरान जो १९२४ को लाहौर से नाजिल हुई ।, क्लामुर्रहमान वेद है य कुरान १९२९ मे प्रकाशित इस पुस्तक में वेद को ईश्वरीय ज्ञान बताते हुए कुरान का मनुष्य कृत होना सिद्ध किया गया है । चश्माय कुरान, मिर्जा कादियानी को हमल,आस्मानी दुलहिन, अजाला ओहाम याने तहकीकाते इस्लाम । इतना ही नही इस्लाम सम्बन्धी इन छ: पुस्तकों के अतिरिक्त आप ने धर्मवीर पं.लेखराम तथा मूलशंकर दिग्विजय नाम से दो नाटक भी लिखे किन्तु यह प्रकाशित न हो सके ।
शास्त्रार्थ कला में निष्णात थे तथा इस्लाम मत के मर्मग्य इस पं. धर्मभिक्षु जी का देहान्त दिनांक २० जून १९३० इस्वी समवत १९८७ विक्रमी को विषूचिका रोग के कारण हुआ । आप अलपायु ही इस संसार में रहे किन्तु इस अल्पायु में भी आप आर्य समाज को इतना कुछ दे गये , आर्य समाज के लिए इतना कुछ कर गये, जिसे भुलाया नहीं जा सकता । आप की स्मृति में सुभद्रा देवी ने पं. धर्मभिक्षु लखनवी का जीवनचरित नाम से आप की एक जीवनी भी लिखी ।
डॉ..अशोक आर्य
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