अलकनंदा के पांचो प्रयोगों को नष्ट करने वाले निर्माणाधीन और निर्मित बांधों ने गंगा जी में सांस्कृतिक-अध्यात्मिक संकट तो पैदा कर ही दिया है, उससे जैव विविधता भी नष्ट हो रही है। मंदाकिनी और अलकनंदा पर बन रहे बांधों से अब पहाड़ पर भी बाढ़ आने लगी है। पहले हिमालय में बाढ़ नहीं आती थी। बडे़ बाँध बनने के बाद पहाड़ पर बाढ आना हिमालय में एक नया परिवर्तन है। यही विकास का विनाश है। गंगा जी की सभी धाराओं में खनन है। कुंभ क्शेत्र हरिद्वार में खनन रुकवाने हेतु स्वामी निगमानंद जी ने अपने प्राण दिए थे। आज इनके गुरु स्वामी शिवानंद जी 3 अगस्त 2020 से आमरण अनशन कर रहे है। पहले यह खनन बंद था, अब पुनः चालू कर दिया गया है। अब गंगा जी में बड़ी-बड़ी मशीनों से खनन शुरू हो गया है। इससे जैव विविधता का संकट और गहरा हो गया है।
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अब गंगा जी पर नए निर्मित घाट अवैज्ञानिक ढंग से बन रहे हैं। इनसे गंगा जी में कटाव और तेज होकर बढ़ रहा है। गंदे जल को परिशोधन करने वाले संयंत्रों का कोई भी प्रयोग सफल नही हुआ है। इनसे बिगाड़ ही हुआ है। सरकार गंगा जी के सभी नालों में विकेन्द्रित जल शोधन, छोटी-छोटी जगहों पर प्राकृतिक परिशोधन और मशीन दोनों विधियों से किया जा सकता है। जल परिशोधन में जो रसायन काम लिये जा रहे है; उनका गंगा की जैवविविधता पर बुरा असर हो रहा है।
गंगा केवल भौतिक जल का प्रवाह मात्र नहीं है। जैसे ही हम गंगा को केवल बहते हुए पानी का प्रवाह समझ बैठते हैं, वैसे ही हम समस्या का निर्माण करना शुरू कर देते हैं। गंगा साँस लेने व प्रजनन करने वाली एक जीवंत मानव की तरह है। गंगा में प्रति क्शण ऊर्जा का प्रवाह प्रवाहित होता रहता है। सूरज की ऊर्जा प्राथमिक उत्पादकों के द्वारा अन्न-चक्र में जाकर गंगा को जीवन प्रदान करती है। इस गंगा के भीतर समाये अन्न-चक्र में किसी जंगल या खलियान की भाँति ही जीव समूह अपना-अपना कार्य कर प्रकृति चक्र को जीवित रखते है।
गंगा के संवर्धन के साथ ही साथ हमें उसकी जैव विविधता को भी समझना और संवर्धन करना अत्यावश्यक है। गंगा में पाई जाने वाली सारी प्रजातियों का नदी के विभिन्न अंग प्रत्यांगों से घनिश्ठ संबंध होता है। हर एक प्रजाति किसी न किसी रूप में उसके अधिवासों से जुड़ी है। गंगा के अधिवासों में जैसे ही परिवर्तन आता है, इन प्रजातियों के अस्तित्व पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। जैसे ही हम किसी अधिवास में प्रदूशण करते हैं, वहाँ से प्रदूशण के प्रति संवेदनशील प्रजातियाँ विलुप्त होने लगती हैं। अधिवासों में अगर हम कुछ भी परिवर्तन करते है तो, उस अधिवास से अडाॅप्ट हुई प्रजातियाँ प्रभावित होने लगती है। उदाहरण के तौर पर हम गंगा के ‘ रिफल्स ‘ नाम के अधिवास को नष्ट कर रहे है; फलस्वरूप वहाँ से हिल्सा नाम की मछलियाँ नष्ट हो रही हंै।
गंगा के प्रवाह में प्राथमिक उत्पादकों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। प्राथमिक उत्पादक, सूर्य की ऊर्जा से ‘प्रकाश संश्लेशण‘ की क्रिया के द्वारा अन्न का उत्पादन करते है। इस अन्न को अन्य भक्शक ( कन्ज्यूमर) ग्रहण करते है। प्राथमिक उत्पादकों में ‘प्लवंग‘ या ‘प्लंकटाॅन‘ का एक अपना महत्त्व है। हरित प्ल्वंग (च्ीलजवचसंदाजवद)सूक्श्म जीवों की तरह बिखरे होते हंै, जो सूर्य की ऊर्जा से अन्न की निर्मिती करते हंै। प्लवंगो में जूप्लंकटाॅन भी होते हंै, जो फायटोप्लंकटाॅन की तरह ही सूक्श्म जीवी होते है, परंतु अपने पोशण के लिये प्राथमिक उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। प्राथमिक उत्पादकों में प्लवंगों के अलावा विभिन्न जल वनस्पतियों का भी समावेश है।
भक्षक अपने जीवनयापन के लिये उत्पादकों पर निर्भर होते है। इसमें भी प्राथमिक भक्षक, द्वितीय श्रेणी भक्षक, टाॉप लेवल कार्निवोरस( मांस भक्षी) आदि का समावेश होता है। सूक्श्म जीवों से स्तनपायी पशुओं तक विभिन्न प्रजातियों का अस्तित्व आप गंगा में देख सकते है। इन विभिन्न प्राजातियों से ही नदी में अन्न-चक्र चलता है। विभिन्न अन्न श्रृंखलाओँ से फूडवेब का निर्माण होता है।
गंगा की जमीनी घाटी में एक ट्रांजीशन जोन है। इसे राइपेरीयन जोन कहा जाता है। इसमें गंगा के दोनों किनारों पर उगी विभिन्न वनस्पतियों का समावेश होता है। यह किनारे का जंगल गंगा को अन्न(खाद्य) उपलब्ध कराता है। गंगा के पानी के तापमान को संतुलित रखने में भी राइपेरीयन जोन का अपना महत्त्व है। राइपेरीयन जोन नदी के किनारों को स्थिरता प्रदान करता है। जिसके चलते बाढ़ की वजह से किनारों का क्शरण नहीं होता। यह राइपेरीयन जोन विविध वनस्पति प्रजातियों का घर होने के कारण स्थानीय जनजातियों को विविध लाभ ( जलाऊ लकड़ी, औशधि, वनस्पति, चारा, फल आदि) भी प्रदान करता है।
गंगा के दो मूल गुणधर्म होते हैं, एक निर्मलता और दूसरा अविरलता। निर्मलता का संबंध गंगा के जल की शुद्धता तथा नदी के प्रदूशण पर निर्भर करता है। दूसरा गुणधर्म अविरलता गंगा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। अविरलता में जैसे ही बाधा उत्पन्न होती है, गंगा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। वर्तमान समय में गंगा की अविरलता के संबंध में अर्थात सदा प्रवाही रहे, इस पर काफी विचार मंथन चल रहा है और इसे यहाँ से आगे हम ई-फ्लो (म्बवसवहपबंस सिवूए मदअपतवदउमदजंस सिवू) कहेंगे, इसकी संकल्पनाएँ अपना स्थान लेने लगी है। किसी भी जल प्रवाह में जैव विविधता को अबाधित रखने के लिये तथा उस जल प्रवाह पर निर्भर जनजातियों के रोजगार को निश्चित करने के लिये लगने वाले जल की उपलब्धता, उसका समय तथा उसकी शुद्धता को इकोलाॅजीकल फ्लो कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि अगर किसी नदी में पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता नहीं होगी तो गंगा की जैवविविधता तथा स्थानीय लोगों के रोजगार बाधित होगें। भारत में गंगा जी से लोगों की आस्थाएँ जुड़ी हैं, आस्था की पूर्ति के लिये भी गंगा में पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध होना आवश्यक है। निम्नलिखित 9 कारणों से गंगा का ई-फ्लो बाधित नहीं होना चाहिएः-
1. गंगा की प्राकृतिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिये। साल में कुछ समय के लिये ही क्यों ना हो, लेकिन सतत् बहते रहना इसका मूल स्वभाव है।
2. स्वंय को शुद्ध रखने के लिये इसे बहते रहना आवश्यक होता है। अपने बहते रहने के दौरान नदी में स्थित विविध जैविक व्यवस्थाएँ नदी को शुद्ध करने का काम करती रहती है।
3. गंगा की जैव विविधता को बरकरार रखने के लिये यह हमेशा बहती रहे, यह आवश्यक है।
4. धरती के अक्कीफर पानी से रिचार्ज होते रहें, इसलिये भी नदी में ई-फ्लो अबाधित रहना अत्यावश्यक है।
5. गंगा पर कई जनजातियाँ अपने रोजगार के लिये निर्भर रहती हैं अतः अगर नदी में ई-फ्लो अबाधित होगा तो स्थानीय लोगों के रोजगार भी अबाधित रहेंगे। गंगा जी पर जैसे ही गंगा पर बाँध बना, नदी का ई-फ्लो बाधित हुआ और बाँध के निचले हिस्से में जल के प्रवाह पर उसका दुश्परिणाम हुआ।
6. नदी में जो सिल्ट आती है, उसके आवागमन पर भी ई-फ्लो बाधित होने से बुरा असर पड़ता है।
7. उत्तराखंड में गंगा जी में खारेपन की मात्रा कायम रखने के लिए ई-फ्लो का अबाधित रहना आवश्यक है।
8. गंगा से जुडे़ पर्यटन को अबाधित रखने के लिये भी ई-फ्लो का अबाधित रहना आवश्यक है।
9. गंगा मानव की सांस्कृतिक व धार्मिक जरूरतें भी पूरी करती है, इस जरूरत को अबाधित रखने के लिये भी गंगा जी में ई-फ्लो अबाधित रहना आवश्यक है।
प्राकृतिक प्रवाह में परिवर्तन के पीछे बाँधों की वजह से प्रवाह में परिवर्तन आना , गंगा जी में आने वाली गाद के अवसादन का असंतुलित होना, अधिवास का नष्ट होना या उसमें परिवर्तन होना व जल के उपयोग में परिवर्तन होना आदि बातों का समावेश होता है। जब अनशन किया था, तब 10 अक्टूबर 2018 को भारत सरकार ने गंगा जी का ई-फ्लो निर्धारित किया था। उससे मैं और स्वामी सानंद जी सहमत नहीं हंै। वह पर्याप्त फ्लो नही है।
नीरी की रिर्पोट के अनुसार टिहरी बाँध के नीचे गंगा जल का विशिश्ट गुणधर्म योफाज(गंगत्व) पर बहुत बुरा असर हुआ है। बाँध के ऊपर अबाधित जल प्रवाह में गंगत्व मौजूद है। लेकिन बाधित जल प्रवाह में वह नहीं है। इसलिए गंगा जी की अविरलता बरकरार रखना जरूरी है।
(लेखक दुनिया भर में जल पुरुष के नाम से लोकप्रिय हैं और देश की हजारों नदियों व तालाबों को पुनर्जीवित करने में इनकी अहम भूमिका रही है)