Tuesday, April 30, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवस्वामी विवेकानंद का वो संदेश जिसने दुनियाभर में हिंदुत्व की पताका फहराई

स्वामी विवेकानंद का वो संदेश जिसने दुनियाभर में हिंदुत्व की पताका फहराई

127 साल पूर्व, दिन 11 सितंबर 1893 शिकागो शहर का ‘पार्लियामेंट ऑफ़ रिलीजन’ सभागार। नीचे एक बड़ा हॉल और एक बहुत बड़ी गैलरी, दोनों में छह – सात हजार संसार भर के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि तथा शहर के बहुसंख्यक प्रतिष्ठित व्यक्ति। मंच पर संसार की सभी जातियों के बड़े – बड़े विद्वान। डॉ. बरोज के आह्वान पर 30 वर्ष के तेजस्वी युवा का मंच पर पहुंचना। भाषण के प्रथम चार शब्द ‘अमेरिकावासी भाइयों तथा बहनों’ इन शब्दों को सुनते ही जैसे सभा में उत्साह का तूफान आ गया और 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया। संवाद का ये जादू शब्दों के पीछे छिपी चिर –पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यातम व उस युवा के त्यागमय जीवन का था। जो शिकागो से निकला व पूरे विश्व में छा गया। लगभग तीन मिनट का वो भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है,जितना उस समय था। उस भाषण का एक –एक शब्द अपने आप में एक परंपरा, एक जीवन व हजारों वर्षों की संत संतति से चले आ रहे संदेश का परिचायक है।

उस भाषण को आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। इस भाषण से दुनिया के तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके। स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था। और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे। यह ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था।

सर्वधर्म सम्मेलन में अंत में दस का घंटा बजा। ईसाई पादरी अनुभव करने लगे कि जगत में ईसाई पंथ सर्वश्रेष्ठ है। इस तथ्य को दुनिया के सामने प्रकट करने का समय आ पहुंचा और वास्तव में इसी भावना से अमेरिका के बड़े धार्मिक नेताओं ने इस महासम्मेलन का आयोजन किया था। परंतु किसी को खबर न थी कि यह घंटा तो सनातन हिन्दू-धर्म की विजय का बज रहा है। शिकागो व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में उसको प्रस्तुत किया व स्थापित भी किया। विश्व धर्म सभा में जब सभी पंथ स्वयं को ही श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे, तब स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विचार सभी सत्यों को स्वीकार करता है। स्वामीजी ने कहा- मुझे यह कहते हुए गर्व है कि जिस धर्म का मैं अनुयायी हूँ उसने जगत को उदारता और प्राणी मात्र को अपना समझने की भावना दिखलाई है। इतना ही नहीं हम सब पंथों को सच्चा मानते हैं और हमारे पूर्वजों ने प्राचीन काल में भी प्रत्येक अन्याय पीड़ित को आश्रय दिया है। इसके बाद उन्होंने हिंदू धर्म की जो सारगर्भित विवेचना की, वह कल्पनातीत थी।

उन्होंने यह कहकर सभी श्रोताओं के अंतर्मन को छू लिया कि हिंदू तमाम पंथों को सर्वशक्तिमान की खोज के प्रयास के रूप में देखते हैं। वे जन्म या साहचर्य की दशा से निर्धारित होते हैं, प्रत्येक प्रगति के एक चरण को चिह्नित करते हैं। स्वामीजी द्वारा दिए गए अपने संक्षिप्त भाषण में हिंदू धर्म में निहित विश्वव्यापी एकता के तत्त्व और उसकी विशालता के परिचय ने पश्चिम के लोगों के मनों में सदियों से भारत के प्रति एक नकारात्मक दृष्टि को बदल कर रख दिया। उनके उस छोटे से भाषण ने ही संसद की आत्मा को हिला दिया। चारों तरफ विवेकानंद की प्रशंसा होने लगी। अमेरिकी अख़बारों ने विवेकानंद को “धर्म संसद” की सबसे बड़ी हस्ती के रूप में सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति बताया। उन्होंने संसद में कई बार हिन्दू धर्म और बौध मत पर व्याख्यान दिया। 27 सितम्बर 1893 को संसद समाप्त हो गई। इसके बाद वे दो वर्षों तक पूर्वी और मध्य अमेरिका, बोस्टन, शिकागो, न्यूयार्क, आदि जगहों पर उपदेश देते रहे। 1895 और 1896 में उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में अनेक स्थानों पर भी उपदेश दिए ।

स्वामी विवेकानंद ने उस समय में तीन भविष्यवाणियां की थीं। जिसमें से दो सत्य सिद्ध हो चुकी है और तीसरी सत्य होते हुए दिखाई देने लगी है। इसमें से पहली तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी भारत की स्वाधीनता के विषय में। 1890 के दशक में उन्होंने कहा था, ‘भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले 50 वर्षों में ही स्वाधीन हो जायेगा’ ठीक वैसा ही हुआ। दूसरी भविष्यवाणी थी कि रुस में पहली बार श्रमिक क्रांति होगी, जिसके होने या हो सकने के बारे में किसी को कल्पना तक न थी। ये कथन भी सत्य सिद्ध हुआ। उनकी तीसरी भविष्यवाणी थी, जिसका सत्य सिद्ध होना अभी बाकि है। लेकिन ऐसा होते हुए अब दिख रहा है। वो है भारत एक बार फिर समृद्ध व शक्ति की महान उंचाईयों तक उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को प्राप्त कर आगे बढ़ेगा। आज भारत उस पथ पर अग्रसर होता हुआ दिख भी रहा है और पूरी दुनिया स्वावलंबी, संस्कारित, संगठित तथा समृद्धशाली भारत के इस वर्चस्व को देख भी रही है व मान भी रही है।

संक्षेप में स्वामी विवेकानंद ने सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का परिचय भारत को करवाया। उन्होंने हिंदुत्व को भारत की राष्ट्रीय पहचान के रुप में प्रतिष्ठित किया। ‘हिंदू-राष्ट्र’ इस शब्दावली का प्रथम प्रयोग भी संभवतः विवेकानंद ने ही किया था। शिकागो में 11 सितंबर 1893 को दिए अपने प्रथम भाषण में ‘Response to Welcome’ में उन्होंने अपने हिंदू होने पर गर्व का विस्तार से वर्णन किया है। दिनांक 17 सितंबर 1893 को उनके द्वारा प्रस्तुत ‘Paper on Hinduism’ हिंदुत्व की राष्ट्रीय परिभाषा ही है। इस परिप्रेक्ष्य में समझने पर हमें हमारे विशाल देश की बाह्य विविधता में अंतर्निहित एकात्मता के दर्शन होते हैं। उन्होंने हिंदू समाज को जागृत किया तथा भारत को पुन: एक सबल, सशक्त, सुसंपन्न तथा वैभवशाली बनाने की प्रेरणा दी।

दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनसे प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। सी राजगोपालाचारी के अनुसार “स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की” सुभाष चन्द्र बोस के कहा “विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता हैं”। महात्मा गाँधी मानते थे कि विवेकानंद ने उनके देशप्रेम को हजार गुना कर दिया ।स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक भारत के लिए कीमती और चमकता हीरा साबित किया है। उनके योगदान के लिए उन्हें युगों और पीढ़ियों तक याद किया जायेगा।

कुल मिलाकर यदि यह कहा जाये कि स्वामी जी आधुनिक भारत के निर्माता थे, तो उसमें भी अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। यह इसलिए कि स्वामी जी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु जो माहौल निर्माण किया उस पर अमिट छाप पड़ी। आज के समय में स्वामी जी के मानवतावाद के रास्ते पर चलकर ही भारत एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। वे बराबर युवाओं से कहा करते थे कि हमें ऐसे युवकों और युवतियों की जरूरत है जिनके अंदर ब्राह्मणों का तेज तथा क्षत्रियों का वीर्य हो। युवा मित्रों ! आज विवेकानंद को जानने व 11 सितंबर 1893 शिकागो में उनके द्वारा दिए गए भाषण को पढ़ने के साथ ही उसे गुनने की भी जरूरत है।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक है)

 

 

 

 

 

Dr. Pawan Singh Malik (8269547207)
Assistant Professor (New Media Technology Dept.)
Makhanlal Chaturvedi National University of Journalism & Communication
Bhopal(M.P)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार