बहुत से न भूलने वाले कड़वे अनुभव दे कर बीत गया साल 2020 और आ गया नया साल 2021 जीने की ऊष्मा औऱ नई आशाएं, नए सपने, नया जोश और नई उमंगें लेकर। क्या कभी भूल पाएंगे कोरोना और उससे उपजे संकटों से बने बिंब और प्रतिबिंब जो हमारी आंखों में तैर रहे हैं और अभी भी हमें डरा रहे हैं। एक सदी में यह अकेला साल रहा जिसने विश्व पटल पर अनगिनत मौतों की सूचना दे कर किसी का भाई छीन लिया तो किसी का सुहाग,पत्नी तो किसी की बहन। असंख्य मौतों के साथ रोजगार, रोजी रोटी, वेतन, शिक्षा,स्वास्थ्य आदि के साथ-साथ समाजिक समरसता और परिवार के ताने बाने पर गहरी चोट करने की चौतरफा मार कहाँ नहीं हुई। जीवन बचाने के लिए लंबे लोक डाउन ने देश को बाड़ा बनाकर रख दिया।
निजी संस्थान बंद और सरकार में घर से ही ओंन लाइन कार्य। साथ ही महानगरों से लोगों का पलायन, कोरोना से टूट ते और मौत की और बढ़ते लोग, निजी क्षेत्र में बेरोजगार हो कर असुरक्षा में जीते लोगों का परिदृश्य भी बीते साल की तस्वीरें हैं।ड्रेगन से भी खतनाक कोरोना बीमारी जिसका न कोई भूगोल है न वृत, सारी दुनिया को थर्रा दिया और हमारे देश की तो सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था पटरी से ही उतर गई।
सरकारों ने क्या कुछ नहीं किया ? भारत सरकार हो या राज्य सरकारें हर मुमकिन उपाय किये गये। स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफ़ा किया, लोगों को उनके घर पहुँचाया गया और प्रवासी भारतीयों को लाने के प्रबंध किये गये। कोरोना से लड़ने के लिये कमजोर वर्ग को राहत और शक्ति प्रदान करने के कदम उठाये गये। बीमारी का कहर इतना भयानक था कि करोड़ों लोगों को चपेट में ले लिया और लाखों की जिंदगियां लील ली। मंजर कितना भयानक था कि मौत सामने थी और उसे देखने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
जीवन बचाना और जिंदा रहना मनुष्य को ईश्वर की दी हुई ऐसी अन्तरशक्ति है कि संकट कैसा भी क्यों ना हो हम हार नहीं मानते। मनुष्य की जिजीविषा की यही ताकत उसे नई ऊर्जा, साहस, उमंग,आशा और विश्वास प्रदान करते हैं कि बिखरे हालत फिर से ठीक होंगे, फिर नया सूरज उगेगा और नव प्रभात आएगा। जैसे नया कलेंडर और नया साल आया वैसे ही बीते साल के टूटे-बिखरे सपने फिर से सजेंगे – संवरेंगे और उम्मीदों को नये पंख लगेंगे। सुख,समृद्धि,शांति फिर से मिले,जो हमसे छीन गई,तो साल बदलने की सार्थकता भी हो जाये।
अनन्त विपदा के बीच नये नवाचारों और अवसरों की तलाश में बीता पूरा साल। गूगल मीट, जूम, जियो मीट, स्काइप जैसे मंच आज की डिजिटल बैठकों के सभागार बन गये। शिक्षा और संवाद सब डिजिटल हो गया। बच्चों की कक्षा, स्वास्थ्य परामर्श, मांग की आपूर्ति, आपसी संवाद, विचार गोष्ठी,सेमिनार, कार्यशालाएं, सरकारी काम काज की समीक्षा, बैठकें,वार्तालाप आदि सब कुछ डिजिटल हो गया। इन नए प्रयोगों और नवाचारों से कार्यशैली की एक नई राह भी निकली जो आने वाले समय के लिये सीख भी है। यही नहीं व्यक्ति की आदतों, व्यवहार और विचारों में भी बदलाव के संकेत स्पस्ट हैं। हम बदले,आदतें बदली,विचार बदलें और व्यहार भी बदला। हाथ जोड़ कर अभिवादन की जगह हाय, हेलो ने लेली थी वापस हाथ जोड़ने की भारतीय अभिवादन परम्परा को पूरी दुनिया में स्थापित कर दिया। हाथ धोना सीखाने के स्कूलों में अभियान चलाने पड़ते हैं, पूरे विश्व समुदाय को इस का महत्व समझ में खुदबखुद आ गया।कई प्रसंग सामने आये जिनसे पर्यावरण स्वच्छ रखने की सीख मिली। लोगों को घर का सही अर्थ समझ में आया, घर के कामों के प्रति रुचि जगी और घर में भी समय देने का महत्व समझ में आया।
अपनी ज़मीन, अपना घर,अपना परिवार एवं अपना समाज, दरकते रिश्तों का महत्व समझ में आया।
घोर पीड़ा दे कर भी कोरोना ने बहुत कुछ नया सिखाया। जीवनशैली के प्रति एक नये सोच और दृष्टिकोण को जन्म दिया।
हमारे विचार, व्यवहार और आदतों में भी बदलाव साफ दिख रहा है। हम बदल रहे हैं, देश बदल रहा है। अब वह पुराने साल को बिसार कर नए साल में नई आदतों के साथ प्रवेश कर रहा है। ये आदतें सामाजिक व्यवहार की भी हैं और निजी जीवन की भी। यह व्यवहार और आदतों को भी बदलने वाला साल है। स्वास्थ्य, सुरक्षा और डिजिटल दुनिया की त्रिआयामी कड़ी ने इस जाते हुए साल को खास बनाया है। 2020 ने हमें प्रकृति के साथ रहना सिखाया, पर्यावरण के प्रति ममत्व पैदा किया तो ‘हाथ जोड़कर नमस्कार’ को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया। साफ-सफाई के प्रति हमें चैतन्य किया। इसका असर भी दिखा- साफ आसमान, साफ नदियां, खिला-खिला-सा पूरा वातावरण, चहचहाते पक्षी कुछ कह रहे थे। दर्द देकर भी इसने बहुत कुछ सिखाया है, समझाया है। जिसे हमारे विद्वान वक्ता श्री मुकुल कानिटकर ‘घरवास’ की संज्ञा दे रहे हैं। लॉकडाउन में जीवन के नए अनुभवों ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। नई पदावली से हम परिचित हुए हैं। एक नए जीवन ने हमारी जीवनशैली में प्रवेश किया है।
गये साल 2020 की स्मृतियां साक्षी रहेंगी किस प्रकार इस भयावह संकट से जूझे हम। हर मोर्चे पर डटे रहे कोरोना योद्धाओं ने अपनी जान जोखिम में डाल कर हमें बचाया। चाहे वे चिकित्सक हो ,स्वास्थ्य कर्मी,नर्सेस,पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस और अन्य सुरक्षा कर्मी, घरों में बंद लोगों तक समाचार उपलब्ध कराने वाले समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार, नागरिक प्रशासन के लोग हर कोई मोर्चे पर डटा रहा। समाजसेवी और विभिन्न प्रकार के संगठन तथा संस्थाएं दिन-रात सेवा कार्यो में जुटी रही। बड़ी संख्या में कोरोना से ठीक हो कर प्लाज़्मा डोनेशन के लिए आगे आ कर मिसाल और प्रेरक बने। कोरोना ने अच्छी तरह समझा दिया, प्रकृति की मार के आगे किसी की नहीं चलती और बड़े-बड़े हौसलें पस्त हो जाते हैं। प्रकृति से संवाद और प्रेम का रिश्ता बनाने से ही दुनिया रहने लायक बचेगी।
नूतन वर्ष का अभिनन्दन करते समय हमारी भावनाओं का ज्वार चरम पर होता है और नई कल्पनाएं मन में हिलोर लेती हैं। कोरोना के दंश को तो शायद बरसों नहीं भूल पाये पर प्रभु से कामना तो कर सकते हैं, नया साल उमंगों और खुशियों भरा हो, टूटे सपने फिर से पूरे हो, हम और हमारा देश फिर से पटरी पर आएं और देश की थम गई प्रगति,उन्नति रफ्तार पकड़े और अर्थव्यवस्था में सुधार आये। कोरोना की वजह से जो कुछ अच्छा सीखा उसमें और इज़ाफा हो। स्वस्थ रहें एवं सामाजिक समरसता के ताने-बाने को फिर से सुदृढ़ और समरस बनाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं व राजस्थान जन संपर्क के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं)