नई दिल्ली। ‘मूकनायक’ समाचार पत्र के माध्यम से बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने समाज को जगाने का काम किया था। जाति मुक्त समाज के पक्षधर रहे बाबा साहेब ने समाज में एकता स्थापित करने की बात की। उनका हर शब्द समता के संदेश को प्रसारित करता है।” यह विचार केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री *श्री रामदास आठवले* ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में व्यक्त किए। बाबा साहेब द्वारा वर्ष 1920 में प्रकाशित पहले समाचार पत्र *‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर* इस वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक *प्रो. संजय द्विवेदी* एवं हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति *प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल* भी उपस्थित थे।
‘सुधार और सरोकार की पत्रकारिता के सौ साल’ विषय पर बोलते हुए श्री आठवले ने कहा कि बाबा साहेब एक सफल पत्रकार, लेखक और सुधारक थे। बाबा साहेब महज 29 वर्ष के थे जब उनकी भेंट कोल्हापुर संस्थान के महाराजा शाहु महाराज से हुई थी और मानगांव की परिषद में खुद शाहु महाराज ने लोगों से आहवान करते हुए बाबा साहेब को नेता मानने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि आंबेडकर का मानना था कि हजारों वर्षों से लोगों के मन में बैठी विचारधारा को खत्म किया जाना आवश्यक है, तभी समाज समानता की दिशा में आगे जा सकता है।
विषय प्रवर्तन करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि ‘मूकनायक’ के नाम में ही आंबेडकर का व्यक्तित्व छिपा हुआ है। बाबा साहेब ‘मूक’ समाज को आवाज देकर ही उनके ‘नायक’ बने। आंबेडकर के विचारों का फलक बहुत बड़ा है। यह सही है कि उन्होंने वंचित और अछूत वर्ग के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन उनका मानवतावादी दष्टिकोण हर वर्ग को छूता है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आंबेडकर की पत्रकारिता हमें यह सिखाती है कि शोषणकारी प्रवृत्तियों के प्रति समाज को आगाह कर उसे इन सारे पूर्वाग्रहों और मनोग्रंथियों से मुक्त करने की कोशिश ईमानदारी से की जानी चाहिए और यही मीडिया का मूल मंत्र होना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि समेकित भारत बनाने की दृष्टि बाबा साहेब की पत्रकारिता में परिलक्षित होती है। मूकनायक एक तरफ बहिष्कृत भारत का अस्मिता बोध है, तो दूसरी तरफ प्रबुद्ध भारत के निर्माण के लिए नई संभावनाओं का सिंहनाद है। उन्होंने कहा कि नए भारत को बनाने की दिशा में बाबा साहेब की पत्रकारिता ने सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय सरोकार का कार्य किया है।
वेबिनार में स्वागत वक्तव्य मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने दिया। इस अवसर पर ‘स्त्रीकाल’ नई दिल्ली के संपादक श्री संजीव चंदन, वर्धा के वरिष्ठ पत्रकार श्री अशोक मेश्राम एवं विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. संदीप सपकाले ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मीरा निचले ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेणु सिंह ने किया।