चीन के साथ सीमा विवाद के बीच भारत सरकार ने टिकटॉक, वी चैट और यूसी ब्राउजर समेत 59 चीनी ऐप का बोरिया बिस्तर बांध दिया है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय ने इस बाबत एक ताजा नोटिस जारी किया है, जिसके तहत भारत में TikTok और WeChat समेत कुल 59 चीनी ऐप्स पर लगे बैन को परमानेंट किया जा रहा है। कंपनियों के जवाब से असंतुष्ट होकर भारत सरकार ने यह फैसला लिया है। भारत सरकार के इस कदम से एक बार फिर से चीन को मिर्ची लगी है। ऐप के बैन होने पर लाखों-करोड़ों रुपए के नुकसान से बौखलाए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि चीनी कंपनियों को भारत सरकार से मुआवजे की मांग करनी चाहिए।
दरअसल, पिछले दिनों सरकार ने एक नोटिस जारी किया था, जिसके मुताबिक टिकटॉक समेत चीन के अन्य ऐप पर लगी पाबंदी जारी रहेगी। सरकार ने सबसे पहले जून में चीन के 59 ऐप पर और फिर सितंबर में 118 अन्य ऐप पर रोक लगा दी थी। इनमें टिकटॉक और पबजी जैसे लोकप्रिय ऐप शामिल हैं। भारत सरकार ने इन ऐप्स के जरिए इकट्ठा किए जा रहे डेटा और उनके इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए थे और इस संबंध में इन ऐप्स की कंपनियों से सफाई मांगी थी, मगर कंपनियों ने जो जवाब दिए हैं, उससे सरकार संतुष्ट नहीं है, इसलिए यह कदम उठाया गया है।
यही वजह है कि जब से भारत सरकार ने टिकटॉक समेत 59 चीनी ऐप को बैन किया है, तब से ही ड्रैगन परेशान है। इन कंपनियों को भारत के विशाल यूजर्स नहीं मिलने से काफी नुकसान हो रहा है। चीन की यही बौखलाहट अब ग्लोबल टाइम्स में देखने को मिल रही है। चीनी कंपनियों के जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर ग्लोबल टाइम्स ने इसे भारत का बहाना और चाल बताया है। ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ कहावत की तर्ज पर ग्लोबल टाइम्स ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार ने सीमा विवाद पर अपना गुस्सा उतारने के लिए यह कदम उठाया है और दूसरा घरेलू कंपनियों और भारतीय उत्पाद को जगह देने के लिए।
ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में आरोप लगाया है कि विदेशी कंपनियों के प्रोडक्ट पर बैन लगाने की भारत की पुरानी आदत है और अमेरिकी, जापानी और साउथ कोरियन कंपनियों को भारत की इस चाल का अनुभव है। भारत में इन ऐप्स पर बैन से बौखलाए चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने विश्व व्यापार संगठन की नीतियों का उल्लंघन तक बता दिया है। उसने दावा किया है कि भारत में विकसित सभी चीनी ऐप आधिकारिक और कानूनी रूप से पंजीकृत हैं। उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू करके भारत में प्रासंगिक बाजार का पोषण किया है। भारत उन्हें पूरी तरह से धकेल रहा है और उन्हें स्थानीय उत्पादों के साथ बदल रहा है। उसने आरोप लगाया है कि इसका भारत की आत्मनिर्भरता से कोई लेना-देना नहीं है, यह बस डकैती है।
अपने संपादकीय के माध्यम से ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय कंपनियों को भी भड़काने की कोशिश की है। उसने कहा है कि जो भारतीय कंपनियां इस ‘डकैती’ से लाभान्वित हुई हैं, वे जानती हैं कि वे एक ऐसे कारोबारी माहौल में हैं, जहां किसी भी समय राजनीतिक लाभ के लिए इंट्रेस्ट बैलेंस को पलटा जा सकता है। अपनी नाकामियों को छिपाने वाले चीन ने कहा है कि भारत अभी भी बर्बर युग में है। जिस भारत के डर से चीन अब नेपाल और पड़ोसी देशों को अपने जाल में फांसने की कोशिश कर रहा है, उसने भारत को बैकवर्ड देश बताया है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा- भारत अभी भी एक पिछड़ा हुआ देश है। संरक्षणवाद एक दोधारी तलवार है, जिससे अन्य देशों की कंपनियों के साथ-साथ भारतीय कंपनियों के भी चोटिल होने की अधिक संभावना है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल होने का साहस नहीं किया। इसके बजाय उसने यह तत्काल लाभ लेने के लिए टैरिफ बढ़ाने पर जोर दिया।
भड़के चीन ने कहा कि भारत चीन पर प्रतिबंध लगाना चाहता है। यह प्रतिबंधों के बारे में इसकी निरक्षरता को दर्शाता है। उसका मानना है कि चीन पर भारत के प्रतिबंध एक आत्मघाती हमला है, जिससे भारत को ही नुकसान होगा। चीन यहीं नहीं रुका, उसने युद्ध की गीदड़भभकी भी दी है और कहा कि चीन भारत के खिलाफ मजबूत जवाबी कार्रवाई करने से हिचक रहा है, क्योंकि हम पड़ोस में एक नया दुश्मन नहीं बनाना चाहते हैं। यह चीन की दूरदृष्टि और रणनीति है। वहीं चीन ने भारत को धमकी देते भारत को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।
ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा है कि हम प्रस्ताव देते हैं कि चीनी कंपनियों को कानूनों का सहारा लेकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए और भारत सरकार से उनके नुकसान की भरपाई की मांग करनी चाहिए। अखबार ने कहा है कि चीनी कंपनियों ने भारतीय समाज में अपना योगदान दिया है। लेकिन अब राजनीतिक कारणों से उन्हें देश से बाहर निकाल दिया गया। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार गतिविधियों में विशिष्ट समूहों के खिलाफ अभूतपूर्व कार्रवाई है। चीनी कंपनियों को इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। उन्हें वापस लड़ने की जरूरत है। अखबार ने आगे लिखा कि भले ही वे भारत में मुकदमों को नहीं जीत सकते, मगर उन्हें खुद को सुनने की जरूरत है। उन्हें दुनिया को बताना चाहिए कि भारत का कारोबारी माहौल कितना खराब है। नई दिल्ली को इसकी कीमत चुकानी होगी