मथुरा का राजकीय संग्रहालय इस तथ्य की पुष्टि करता है कि मथुरा कला की भारतीय कला को बड़ी देन है। यहां शक, कुषाण, हूण एवं मौर्ययुगीन प्रतिमाओं का विशद संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मथुरा संग्रहालय मथुरा रेलवे स्टेशन से लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है और नये बस स्टैंड से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थानीय डेंम्पीयर पार्क में स्थित है। अधिकांश पर्यटकों को इसका पता ही नहीं होता है। जबकि यह संग्रहालय इतना विशद है कि इसकी सामग्री देश-विदेश के कई संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं।सामग्री का सबसे बड़ा हिस्सा इस संग्रहालय में ही सुरक्षित है। यहां से कई प्रतिमाएं लखनऊ, कोलकाता, मुम्बई एवं वाराणसी के संग्रहालयों में भेजी गई जो वहां मथुरा कला का दिग्दर्शन कराती हैं। यही नहीं यहाँ की मूर्तियां अमेरिका के बोस्टन संग्रहालय में, पेरिस, लन्दन व जुरिख के संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं। इसके बावजूद भी मथुरा संग्रहाल में संग्रहित प्रतिमाएं एवं अन्य सामग्री यहां की कला एवं संस्कृति से परिचय कराने के लिए पर्याप्त हैं। इस संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1874 ई. में तत्कालीन जिलाधीश श्री एफ. एस. ग्राउज द्वारा की गई थी।
संग्रहालय में शासकों के लेखों से अंकित मानवीय आकारों में बनी प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। बौद्ध एवं जैन धर्म से सम्बन्धित तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं। शक राज पुरूष, बुद्ध प्रतिमाएं, कुबेर प्रतिमा, यक्ष प्रतिमा, विम तक्षम, राजा कनिष्क, हरनिैमगेश, मौर्यकालीन मृण्मूर्ति, भारवाही यक्ष, शुंग कालीन मृणमूर्ति, यक्ष मूर्ति, बोधसत्व मूर्ति, तीर्थंकर पाश्र्वनाथ, पगड़ी पहिने दण्डधारी पुरूष, अजमुखी जैन मातृदेवी जैसी प्रमुख दर्शनीय प्रतिमाएं हैं।
संग्रहालय की मूर्तियों में वस्त्रों में हरहरावन न होकर एक प्रकार का भारीपन, महिला और पुरुषों की मूर्तियों में अलंकारों का बाहुल्य , मूर्तियाँ अधिक गहरी व उभारदार न होकर चपटी होना,भावों का अभाव, मानव मूर्तियों में बहुधा आँखों की पुतलियाँ नहीं बनाना, महिलाओं केश संभार बहुधा, पुष्पमालाओं, मणिमालाओं तथा कीमती वस्रों से सुशोभित रहना, पुरुषों की पगड़ियाँ विशेष प्रकार की होना, बहुधा वे दोनों ओर फूली हुई दिखलाई पड़ती हैं और बीच में एक बड़ी सी फुल्लेदार कलगी से सुशोभित रहती हैं। कानों के पास पगड़ी के बाहर झाँकने वाले केश भी खूब दिखलाई पड़ना मूर्तियों की विशेषताएं हैं। इस काल विशेषता यह भी है कि बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों में बुद्ध की मूर्ति नहीं बनाई जाती थी। उसके स्थान पर प्रतीकों का उपयोग किया जाता था जिनमें भिक्षा पत्र, वज्रासन, उण्णीश या पगड़ी, त्रिरत्न, स्तूप, बोधि वृक्ष आदि मुख्य हैं। मथुरा कला में प्रभामण्डल का उपयोग प्रतीक रुप में किया गया है जो अन्यत्र नहीं दिखलाई पड़ता है। मथुरा कला की शुंग कालीन कला-कृतियों में वैष्णव और शैव मूर्तियाँ भी पाई गई हैं जिनमें बलराम, लिंगाकृति शिव एवं पंचवाण कामदेव विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं।
कुषाण काल (दूसरी से पांचवीं शताब्दी) में मथुरा में मूर्ति कला अत्याधिक विकसित थी। उस काल का संग्रह दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता है। दुनिया भर के मूर्ति कला विशेषज्ञ और शिक्षक-छात्र मूर्ति कला के अध्ययन के लिए लगभग 150 साल पुराने मथुरा म्यूजियम मे आकर अपने शोध पूरे करते है। संग्रहालय के संकलन में अधिसंख्यक कुषाण एवं गुप्तकालीन मथुरा शैली की प्रस्तर कलाकृतियां हैं, परन्तु अन्य वर्गों जैसे मृण्मूर्ति, सिक्के, लघुचित्र, धातुमूर्ति, काष्ठ एवं स्थानीय कला के अनेक दुर्लभ कलारत्न संग्रहित हैं, जो संस्था के लिए गौरव स्वरूप हैं। मृण्मूर्तियों में शुंगकालीन मातृ देवी, कामदेव फलक, गुप्तकालीन नारी व विदूषक, कार्तिकेय, सॉचे, सिक्कों में बलराम अंकित आहत मुद्राओं के सॉचे, गोविन्द नगर से प्राप्त निधि तथा सौंख से प्राप्त सिक्के एवं कुषाण कालीन धातु मूर्तियों में कार्तिकेय, देव युगल प्रतिमा व नाग मूर्तियां, स्थानीय कला में मन्दिरों की पिछवईयां, सांझी के चित्र आदि संग्रहालय की अत्यन्त मूल्यवान धरोहर हैं।
पहली शताब्दी में बड़वा गांव मथुरा से प्राप्त भूमि नाग की प्रतिमा देखी जा सकती है। इसमें नाग और नागिन को दिखाया गया है। दूसरी सदी में गुरुग्राम हरियाणा से प्राप्त मूर्ति में अश्वघोष द्वारा रचित सौंदर्यानंद की कथा का चित्रण है। इसमें नंद और सुंदरी की प्रणय लीला का अंकन है। इसमें पुरुष स्त्री के बालों को संभालता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं स्त्री अपने हाथों में दर्पण लिए हुए है। पास में खड़ी दासी के पास श्रंगार पेटिका है। यह महलों के अंतःपुर का दृश्य प्रतीत होता है। बापू और नेहरू के अस्थि कलश भी यहाँ संजो कर रखे गए है।
संग्रहालय के अमूल्य खजाने में करीब 505पाषाण प्रतिमाएं , 2797 मृण मूर्तियां , 350 धातु कलाकृतियां, 292 मृदा पात्र, 415 चित्र, 178 स्वर्ण सिक्के, 5567 चांदी के सिक्के,15,531 तांबे के सिक्के, 32 आभूषण, 12 हज़ार सौंख संकलन एवं 1283 विविध सामग्री प्रदर्शित की गई हैं। यहां मूर्तियों के छायाचित्र बनाकर समूल्य उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था है। इतिहास एवं पुरातत्व में रूचि रखने वालों को यह संग्रहालय अवश्य देखना चाहिए। संग्रहालय सोमवार को छोड़ कर प्रातः 10 से सांय 5 बजे त क दर्शकों के लिए खुला रहता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं व राजस्थान के जन संपर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं)