मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा ,कोदो एवं रागी) का कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के लिए मौलिक योगदान है। इन अनाजों को सामूहिक रूप से ” मिलेट” की संज्ञा दी जाती है ।भारत ने 2021 की संयुक्त राष्ट्र बैठक में 72 राष्ट्र – राज्यों के सहयोग से 2023 को ‘ अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित करने का प्रस्ताव पारित कराया है ।संयुक्त राष्ट्र ने भी इसके वैश्विक उपादेयता के लिए प्रयास किया है, भारत के लिए इसका महत्व अधिक है, क्योंकि देश में पोषण का स्तर निम्न है। जब तक समाज का हर व्यक्ति सम्मान के साथ दो जून की रोटी जुटाने में सक्षम नहीं हो जाता तब तक भारत के “विश्व गुरु” एवं विश्व विकसित राष्ट्र का सपना अधूरा है।
भारतवर्ष में गरीबी उन्मूलन पिछले कई दशकों से सरकारों के एजेंडा में रहा है; लेकिन परिणाम अपेक्षित नहीं आ पाया है। उचित पोषण स्तर के अलावा मोटे अनाजों को बढ़ते धरती के तापमान में जीवन रक्षक माना जाता है, इसके अतिरिक्त मोटे अनाजों के निम्न लाभ है:-
उच्च पोषण स्तर रखने वाले मोटे अनाज की फसल 46 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को बड़ी सरलता से झेल सकती है। मोटे अनाजों के लिए पानी की कम मात्रा की आवश्यकता होती है ।भारत में मोटे अनाजों का उत्पादन 27% से बढ़कर 1.592 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। भारत में मोटे अनाजों का योगदान 41 % है।
मोटे अनाजों के लिए किसानों ,कृषि संस्थानों एवं कृषि उपज संगठनों को मिलकर नए बाजार तैयार करना चाहिए। भारत में मोटे अनाजों की मानक किस्मों के उत्पादन के लिए शोध एवं अनुसंधान पर निरंतर निवेश करना जरूरी है; मोटे अनाजों की गुणवत्ता और पैदावार को बढ़ाने के लिए आपसी वैश्विक सहयोग भी किया जाना आवश्यक है। भारत ने जी-20 समूह देशों के समक्ष इंटरनेशनल मिलेट इनीशिएटिव फॉर रिसर्च एंड अवरनेस के गठन का प्रस्ताव रखा है जो भविष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है ।भारत को इस दिशा में गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिए सराहनीय कदम उठाकर भारत की 22.8 गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों के लिए संजीवनी का कार्य करना चाहिए।
(लेखक सहायक आचार्य हैं)
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